विष्णु भगवान की कथाएं
यहाँ शिव और विष्णु के बारे में पौराणिक कथाओं से तीन दिलचस्प कहानियाँ पेश हैं: जब शिव का घर विष्णु ने ले लिया, जब विष्णु ने शिव को मुश्किल से बचाया और अंत में, विष्णु की शिव भक्ति की एक दिल को छू लेने वाली कहानी।
क्या आप बद्रीनाथ की कहानी जानते हैं? यह वो जगह है, जहां शिव और पार्वती रहते थे। यह उनका घर था। एक दिन नारायण यानी विष्णु के पास नारद गए और बोले, ‘आप मानवता के लिए एक खराब मिसाल हैं। आप हर समय शेषनाग के ऊपर लेटे रहते हैं। आपकी पत्नी लक्ष्मी हमेशा आपकी सेवा में लगी रहती हैं, और आपको लाड़ करती रहती हैं। इस ग्रह के अन्य प्राणियों के लिए आप अच्छी मिसाल नहीं बन पा रहे हैं। आपको सृष्टि के सभी जीवों के लिए कुछ अर्थपूर्ण कार्य करना चाहिए।’
इस आलोचना से बचने और साथ ही अपने उत्थान के लिए (भगवान को भी ऐसा करना पड़ता है) विष्णु तप और साधना करने के लिए सही स्थान की तलाश में नीचे हिमालय तक आए। वहां उन्हें मिला बद्रीनाथ, एक अच्छा-सा, छोटा-सा घर, जहां सब कुछ वैसा ही था जैसा उन्होंने सोचा था। साधना के लिए सबसे आदर्श जगह लगी उन्हें यह। वह उस घर के अंदर गए। घुसते ही उन्हें पता चल गया कि यह तो शिव का निवास है और वह तो बड़े खतरनाक व्यक्ति हैं। अगर उन्हें गुस्सा आ गया तो वह आपका ही नहीं, खुद का भी गला काट सकते हैं। ऐसे में नारायण ने खुद को एक छोटे-से बच्चे के रूप में बदल लिया और घर के सामने बैठ गए। उस वक्त शिव और पार्वती बाहर कहीं टहलने गए थे। जब वे घर वापस लौटे तो उन्होंने देखा कि एक छोटा सा बच्चा जोर-जोर से रो रहा है।
पार्वती को दया आ गई। उन्होंने बच्चे को उठाने की कोशिश की। शिव ने पार्वती को रोकते हुए कहा, ‘इस बच्चे को मत छूना।’ पार्वती ने कहा, ‘कितने क्रूर हैं आप ! कैसी नासमझी की बात कर रहे हैं? मैं तो इस बच्चे को उठाने जा रही हूं। देखिए तो कैसे रो रहा है।’ शिव बोले, ‘जो तुम देख रही हो, उस पर भरोसा मत करो। मैं कह रहा हूं न, इस बच्चे को मत उठाओ।’
बच्चे के लिए पार्वती की स्त्रीसुलभ मनोभावना ने उन्हें शिव की बातों को नहीं मानने दिया। उन्होंने कहा, ‘आप कुछ भी कहें, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरे अंदर की मां बच्चे को इस तरह रोते नहीं देख सकती। मैं तो इस बच्चे को जरूर उठाऊंगी।’ और यह कहकर उन्होंने बच्चे को उठाकर अपनी गोद में ले लिया। बच्चा पार्वती की गोद में आराम से था और शिव की तरफ बहुत ही खुश होकर देख रहा था। शिव इसका नतीजा जानते थे, लेकिन करें तो क्या करें? इसलिए उन्होंने कहा, ‘ठीक है, चलो देखते हैं क्या होता है।’ पार्वती ने बच्चे को खिला-पिला कर चुप किया और वहीं घर पर छोडक़र खुद शिव के साथ गर्म पानी से स्नान के लिए बाहर चली गईं।
वहां पर गर्म पानी के कुंड हैं, उसी कुंड पर स्नान के लिए शिव-पार्वती चले गए। लौटकर आए तो देखा कि घर अंदर से बंद था। शिव तो जानते ही थे कि अब खेल शुरू हो गया है। पार्वती हैरान थीं कि आखिर दरवाजा किसने बंद किया? शिव बोले, ‘मैंने कहा था न, इस बच्चे को मत उठाना। तुम बच्चे को घर के अंदर लाईं और अब उसने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया है।’ पार्वती ने कहा, ‘अब हम क्या करें?’
शिव के पास दो विकल्प थे। एक, जो भी उनके सामने है, उसे जलाकर भस्म कर दें और दूसरा, वे वहां से चले जाएं और कोई और रास्ता ढूंढ लें। उन्होंने कहा, ‘चलो, कहीं और चलते हैं क्योंकि यह तो तुम्हारा प्यारा बच्चा है इसलिए मैं इसे छू भी नहीं सकता। मैं अब कुछ नहीं कर सकता। चलो, कहीं और चलते हैं।’
इस तरह शिव और पार्वती को अवैध तरीके से वहां से निष्कासित कर दिया गया। वे दूसरी जगह तलाश करने के लिए पैदल ही निकल पड़े। दरअसल, बद्रीनाथ और केदारनाथ के बीच, एक चोटी से दूसरी चोटी के बीच, सिर्फ दस किलोमीटर की दूरी है। आखिर में वह केदार में बस गए और इस तरह शिव ने अपना खुद का घर खो दिया। आप पूछ सकते हैं कि क्या वह इस बात को जानते थे। आप कई बातों को जानते हैं, लेकिन फिर भी आप उन बातों को अनदेखा कर उन्हें होने देते हैं।
श्री हरि के अवतार लेने की वजह
हिंदु धार्मिक ग्रंथों की मान्यताओं के अनुसार, धरती पर बढ़ते पापों को खत्म करने के लिए भगवान खुद संसार में अवतार के रूप में प्रकट होते है. अब तक भगवान विष्णु के इन अवतारों को जाना जाता है
गीता में चौथे अध्याय के एक श्लोक में भगवान कृष्ण ने कहा है :
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
इसका मतलब है, हे भारत, जब-जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म बढ़ने लगता है, तब-तब मैं स्वयं की रचना करता हूं, अर्थात् जन्म लेता हूं. मानव की रक्षा दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनःस्थापना के लिए मैं अलग-अलग युगों (कालों) में अवतरित होता हूं
श्री विष्णु भगवन के लिए हुए अलग अलग अवतार:-
- मत्स्य अवतार (Matsya Avatar): मत्स्य अवतार को भगवान विष्णु का पहला अवतार कहा जाता है. इसमें भगवान मछली के अवतार में प्रकट हुए थे और उन्होंने दैत्य हयग्रीव का वध कर वेदों की रक्षा की थी. हयग्रीव ने वेदों को समुद्र की गहराई में छिपा दिया था. इस तरह से मत्स्य अवतार में प्रकट होकर भगवान विष्णु ने वेदों की रक्षा की.
- कच्छप अवतार (Kurma Avatar): कच्छप या कूर्म अवतार में भगवान विष्णु कछुआ के रूप में प्रकट हुए थे. इस अवतार में विष्णु जी ने समुद्र मंथन के दौरान मंदार पर्वत को अपनी पीठ कर धारण किया, जिससे देवताओं और असुरों के बीच अमृत के लिए समुद्र मंथन हो सका.
- वराह अवतार (Varaha Avatar): भगवान विष्णु का तीसरा अवतार वराह अवतार था. इस अवतार में विष्णु जी आधे मानव और आधे सुअर के रूप में प्रकट हुए और राक्षस हिरण्यकशिपु के भाई हिरण्याक्ष का वध कर पृथ्वी को मुक्त कराया. हिरण्याक्ष ने पृथ्वी का हरण कर उसे समुद्र की गहराई में छिपा दिया था.
- नृसिंह अवतार (Narasimha Avatar): पुराणों में नृरसिंह अवतार को भगवान विष्णु का चौथा अवतार बताया गया है. इस अवतार में प्रकट होकर उन्होंने भक्त प्रह्लाद के प्राणों की रक्षा की और उसके पिता हिरण्यकश्यप का वध किया.
- वामन अवतार (Vamana Avatar): वामन अवतार में भगवान विष्णु बटुक ब्राह्मण के रूप में धरती पर आए थे. इस अवतार में उन्होंने प्रह्लाद के पौत्र राजा बलि से दान में तीन पद धरती मांगी और तीन कदम में अपने पैर से तीन लोक नापकर बलि का घमंड तोड़ दिया.
- परशुराम अवतार (Parshuram Avatar): भगवान विष्णु शिवभक्त परशुराम के अवतार में भी प्रकट हुए. इस अवतार में उन्होंने राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका और भृगवंशीय जमदग्नि के पुत्र बनकर जन्म लिया. इस अवतार में उन्होंने क्षत्रियों के अहंकारी विध्वंश से संसार को बचाया.
- श्रीराम अवतार (Ram Avatar): त्रेता युग में भगवान विष्णु ने श्रीराम अवतार में जन्म लिया. वे अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के पुत्र थे. इस अवतार में राम जी ने रावण के आतंक और पाप से संसार को मुक्त कराया.
- श्रीकृष्ण (Krishna Avatar): द्वापर युग में कृष्ण अवतार में भगवान विष्णु का जन्म हुआ था. इस अवतार में उन्होंने अधर्म को समाप्त कर धर्म की पुन: स्थापना के लिए महाभारत के धर्मयुद्ध में अर्जन के सारथी बने.
- बुद्ध गौतम अवतार (Buddha Avatar): विष्णु जी के दशावतारों में एक अवतार महात्मा गौतम बुद्ध भी है. इनका नाम सिद्धार्थ था. इन्हें बौद्ध धर्म का संस्थापक माना जाता है.
- कल्कि अवतार (Kalki Avatar): धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु का अंतिम और दसवां अवतार कल्कि अवतार होगा. इस अवतार में विष्णु जी कलयुग के अंत में प्रकट होंगे और धरती के सभी पाप व बुरे कर्मों का विनाश होगा. इसके बाद फिर से सतयुग की शुरुआत होगी. इस अवातर में विष्णु जी देवदत्त नामक घोड़े पर आरूढ़ होकर तलवार से दुष्टों का संहार करेंगे.
कौन है भगवान श्री विष्णु जी के तीन गुरु जिनसे प्राप्त की थी शिक्षा!!
भगवान शिव
परशुराम विष्णु के अवतार थे और इनके गुरु भगवान शिव हुए थे. परशुराम काफी तेज शिष्यों में माने जाते थे. शिव जी समय-समय पर परशुराम की परीक्षा लेते रहते थे. ऐसे में एक बार जब परशुराम भगवान शिव से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे उस समय शिव जी ने परशुराम से एक काम करने को कहा. वह कार्य निति के विरुद्ध था. ऐसे में परशुराम गुरु का आदेश मानकर सोच में पड़ गए लेकिन बाद में उन्होंने शिव जी को साफ मना कर दिया. ऐसे में शिव जी द्वारा जबरदस्ती दबाव बनाए जाने पर परशुराम युद्ध करने पर उतर आए. परशुराम के बाणों को भगवान शिव ने त्रिशूल से काट दिया. जब परशुराम ने शिव जी पर फरसे से प्रहार किया तो शिव जी ने अपने अस्त्र का मान रखते हुए उसे अपने ऊपर आने दिया. फरसे से उनके मस्तिष्क पर चोट लगी. इसके बाद शिव जी ने परशुराम को अपने गले लगा लिया. उन्होंने निति के विरुद्ध न जाने की प्रशंसा की. उन्होंने कहा कि अन्याय अधर्म से लड़ना ही सबसे बड़ा धर्म है.
संदीपनी मुनि
विष्णु जी का एक अवतार भगवान श्रीकृष्ण है. श्रीकृष्ण ने अपने भाई बलराम और दोस्त सुदामा के साथ संदीपनी मुनि से शिक्षा ग्रहण की थी. इनके आश्रम में न्याय, राजनीति शास्त्र, धर्म पालन और अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा दी जाती थी. इसके अलावा यहां पर आश्रम नियमावली के मुताबिक शिष्यों को ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करना होता था. शास्त्रों के मुताबिक श्रीकृष्ण ने संदीपनी मुनि के आश्रम में करीब 64 दिनों में शिक्षा ग्रहण सम्पूर्ण शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया था. इस दौरान उन्होंने 18 दिनों में 18 पुराण, 4 दिनों में चारों वेदों का ज्ञान लिया. इसके बाद 6 दिनों में 6 शास्त्र, 16 दिनों में 16 कलाएं सीखीं. वहीं श्रीकृष्ण ने 20 दिनों में जीवन से जुड़ी दूसरी महत्वपूर्ण चीजें सीखी और गुरु की सेवा भी की.
गुरु वशिष्ट
भगवान श्रीराम भी विष्णु जी के ही अवतार हैं. श्री राम ने वेद-वेदांगों की शिक्षा गुरु वशिष्ट से ग्रहण की थी. यहां पर श्री राम के साथ उनके तीनों भाई भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न ने भी शिक्षा पाई थी. मान्यता है कि वहीं गुरु ब्रह्मर्षि विश्वामित्र श्रीराम के दूसरे गुरु हैं. ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने भगवान श्रीराम को कई गूढ़ विद्याओं से परिचित कराया था. ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने श्रीराम और लक्ष्मण को कई अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान दिया था. ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने अपने द्वारा तैयार किए गए दिव्यास्त्रों भी दोनों भाइयों को दिए थे. श्रीराम एक आज्ञाकारी शिष्य थे