माता पार्वती और महादेव का अप्रतिम प्रेम
माता पार्वती और महादेव के अप्रतिम प्रेम से पूरा संसार वाकिफ है। कहते हैं कि उनके आगे प्रेम की पराकाष्ठा भी छोटी महसूस होने लगती है। कई ऐसे पौराणिक किस्से भी सुनने को मिलते हैं जहां देवी-देवताओं ने स्वयं भोलेनाथ के प्रेम को असीम और अनन्य बताया है। शायद यही वजह है कि महादेव ने मां पार्वती को अपने आधे अंग पर स्थान दिया और स्वयं अर्धनारीश्वर कहलाए।
शिव स्वरूप सूर्य
जिस प्रकार इस ब्रह्माण्ड का ना कोई अंत है, न कोई छोर और न ही कोई शूरुआत, उसी प्रकार शिव अनादि है सम्पूर्ण ब्रह्मांड शिव के अंदर समाया हुआ है जब कुछ नहीं था तब भी शिव थे जब कुछ न होगा तब भी शिव ही होंगे। शिव को महाकाल कहा जाता है, अर्थात समय। शिव अपने इस स्वरूप द्वारा पूर्ण सृष्टि का भरण-पोषण करते हैं। इसी स्वरूप द्वारा परमात्मा ने अपने ओज व उष्णता की शक्ति से सभी ग्रहों को एकत्रित कर रखा है। परमात्मा का यह स्वरूप अत्यंत ही कल्याणकारी माना जाता है क्योंकि पूर्ण सृष्टि का आधार इसी स्वरूप पर टिका हुआ है।पवित्र श्री देवी भागवत महापुराण में भगवान शंकर को तमोगुण बताया गया है इसका प्रमाण श्री देवी भागवत महापुराण अध्याय 5, स्कंद 3, पृष्ठ 121 में दिया गया है।
शिव पुराण
पवित्र शिव पुराण एक लेख के अनुसार, कैलाशपति शिव जी ने देवी आदिशक्ति और सदाशिव से कहे है कि हे मात! ब्रह्मा तुम्हारी सन्तान है तथा विष्णु की उत्पति भी आप से हुई है तो उनके बाद उत्पन्न होने वाला में भी आपकी सन्तान हुआ।
ब्रह्मा और विष्णु सदाशिव के आधे अवतार है, परंतु कैलाशपति शिव “सदाशिव” के पूर्ण अवतार है। जैसे कृष्ण विष्णु के पूर्ण अवतार है उसी प्रकार कैलाशपति शिव “ओमकार सदाशिव” के पूर्ण अवतार है। सदाशिव और शिव दिखने में, वेषभूषा और गुण में बिल्कुल समान है। इसी प्रकार देवी सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती (दुर्गा) आदिशक्ति की अवतार है।
शिव पुराण के लेख के अनुसार सदाशिव जी कहे है कि जो मुझमे और कैलाशपति शिव में भेद करेगा या हम दोनों को अलग मानेगा वो नर्क में गिरेगा । या फिर शिव और विष्णु में जो भेद करेगा वो नर्क में गिरेगा। वास्तव में मुझमे, ब्रह्मा, विष्णु और कैलाशपति शिव कोई भेद नहीं हम एक ही है। परंतु सृष्टि के कार्य के लिए हम अलग अलग रूप लेते है ।
शिव स्वरूप शंकर जी
पृथ्वी पर बीते हुए इतिहास में सतयुग से कलयुग तक, एक ही मानव शरीर एैसा है जिसके ललाट पर ज्योति है। इसी स्वरूप द्वारा जीवन व्यतीत कर परमात्मा ने मानव को वेदों का ज्ञान प्रदान किया है जो मानव के लिए अत्यंत ही कल्याणकारी साबित हुआ है। वेदो शिवम शिवो वेदम।। परमात्मा शिव के इसी स्वरूप द्वारा मानव शरीर को रुद्र से शिव बनने का ज्ञान प्राप्त होता है।
देवी पार्वती के अन्य रूप
कई हिंदू कहानियां पार्वती के वैकल्पिक पहलुओं को प्रस्तुत करती हैं, जैसे कि क्रूर, हिंसक पहलू। उनका रूप एक क्रोधित, रक्त-प्यासे, उलझे हुए बालों वाली देवी, खुले मुंह वाली और एक टेढ़ी जीभ के साथ किया गया है। इस देवी की पहचान आमतौर पर भयानक महाकाली (समय) के रूप में की जाती है।[18] लिंग पुराण के अनुसार, पार्वती ने शिव के अनुरोध पर एक असुर (दानव) दारुक को नष्ट करने के लिए अपने नेत्र से काली को प्रकट किया। दानव को नष्ट करने के बाद भी, काली के प्रकोप को नियंत्रित नहीं किया जा सका। काली के क्रोध को कम करने के लिए, शिव उनके पैरों के नीचे जा कर सो गए,जब काली का पैर शिव के छाती पर पड़ा तो काली का जीभ शर्म से बाहर निकल आया, और काली शांत हो गई।[19] स्कंद पुराण में, पार्वती एक योद्धा-देवी का रूप धारण करती हैं और दुर्ग नामक एक राक्षस को हरा देती हैं जो भैंस का रूप धारण करता है। इस पहलू में, उन्हें दुर्गा के नाम से जाना जाता है।
देवी भागवत पुराण के अनुसार, पार्वती अन्य सभी देवियो की वंशावली हैं। इन्हें कई रूपों और नामों के साथ पूजा जाता है। देवी पार्वती का रूप या अवतार उसके भाव पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए:
दुर्गा पार्वती का एक भयानक रूप है, और कुछ ग्रंथों में लिखा है कि पार्वती ने राक्षस दुर्गमासुर का वध किया था और इसी कारण वे दुर्गा के नाम से प्रसिद्ध हुई थीं। नवदुर्गा नामक नौ रूपों में दुर्गा की पूजा की जाती है। नौ पहलुओं में से प्रत्येक में पार्वती के जीवन के एक बिंदु को दर्शाया गया है। वह दुर्गा के रूप में भी राक्षस महिषासुर, शुंभ और निशुंभ के वध के लिए भी पूजी जाती हैं। वह बंगाली राज्यों में अष्टभुजा दुर्गा, और तेलुगु राज्यों में कनकदुर्गा के रूप में पूजी जाती हैं।
महाकाली पार्वती का सबसे क्रूर रूप है,यह समय और परिवर्तन की देवी के रूप में, साहस और अंतिम सांसारिक प्रलय का प्रतिनिधित्व करती है। काली, दस महाविद्याओं में से एक देवी हैं,जो नवदुर्गा की तरह हैं जो पार्वती की अवतार हैं। काली को दक्षिण में भद्रकाली और उत्तर में दक्षिणा काली के रूप में पूजा जाता है। पूरे भारत में उन्हें महाकाली के रूप में पूजा जाता है। वह त्रिदेवियों में से एक देवी है और त्रिदेवी का स्रोत भी है। वह परब्रह्म की पूर्ण शक्ति है, क्योंकि वह सभी प्राण ऊर्जाओं की माता है। वह आदिशक्ति का सक्रिय रूप है। वह तामस गुण का प्रतिनिधित्व करती है, और वह तीनो गुणों से परे है, महाकाली शून्य अंधकार का भौतिक रूप है जिसमें ब्रह्मांड मौजूद है, और अंत में महाकाली सबकुछ अपने भीतर घोल लेती है। वह त्रिशक्ति की “क्रिया शक्ति” हैं, और अन्य शक्ति का स्रोत है। वह कुंडलिनी शक्ति है जो हर मौजूदा जीवन रूप के मूल में गहराई से समाया रहता है।
शिवजी से मिलन के लिए मां पार्वती को लेन पड़ा था दूसरा जन्म
महादेव का विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री देवी सती के साथ हुआ था। दक्ष शिवजी को पसंद नहीं करते थे इसलिए उन्होंने महादेव को अपना दामाद के रूप में कभी नहीं स्वीकारा। एक बार दक्ष प्रजापति विराट यज्ञ का आयोजन करवाया जिसमें उन्होंने शिवजी और सति जी को छोड़कर हर किसी को निमंत्रण दिया। इस बात की जानकारी जब माता सती को लगी तो वह बहुत दुखी हुई लेकिन फिर भी वहां जाने का निर्णय ले लिया। शिवजी के समझाने के बाद भी सती जी नहीं रुकी और यज्ञ में शामिल होने के लिए अपने पिता के घर पहुंच गई। यहां दक्ष प्रजापति ने महादेव का घनघोर अपमान किया जिसे माता सती सहन नहीं कर पाई और उसी यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया। कहते हैं कि देवी सती ने देह त्याग करते समय यह संकल्प किया था कि वह पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म ग्रहण कर पुन: भगवान शिव की अर्धांगिनी बनेंगी। हालांकि इसके लिए शिवजी को सदियों तक इंतजार करना पड़ा।
पार्वती के रूप में किया कठिन तप
देवी सती का दूसरा जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ। पर्वतराज के घर जन्म लेने की वजह से उनका नाम पार्वती पड़ा। शिवजी को पाने के लिए माता पार्वती ने इतनी कठिन तपस्या की थी कि चारों तरफ इसे लेकर हाहाकार मच गया था। अन्न, जल त्याग कर उन्होंने सालों साल महादेव की अराधना की। इस दौरान वह रोजाना शिवलिंग पर जल और बेलपत्र चढ़ाती थी, जिससे भोले भंडारी उनकी तप से प्रसन्न हो। आखिर में देवी पार्वती की तप और निश्छल प्रेम से शिवशंकर प्रसन्न हुए और उन्हें अपनी संगिनी के रूप में स्वीकार किया। मान्यताओं के मुताबिक, शिवजी ने पार्वती जी से कहा था कि वह अब तक वैराग्य जीवन जीते आए हैं और उनके पास अन्य देवताओं की तरह कोई राजमहल नहीं है, इसलिए वह उन्हें जेवरात, महल नहीं दे पाएंगे। तब माता पार्वती ने केवल शिवजी का साथ मांगा और शादी बाद खुशी-खुशी कैलाश पर्वत पर रहने लगी। आज शिवजी और माता पार्वती का संपन्न परिवार है।
शिव जी ने ली इस तरह परीक्षा
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए सैकड़ों वर्षों तक कठोर तप किया था. उनकी तपस्या को देखकर देवताओं ने शिवजी से देवी पार्वती की मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना की थी. इसके बाद भोलेनाथ ने सप्तर्षियों को पार्वती जी की परीक्षा लेने के लिए भेजा. इस परीक्षा के दौरान सप्तर्षियों ने शिवजी के ढेरों अवगुणों को बताते हुए माता पार्वती से शिव जी से विवाह न करने का कहा लेकिन पार्वती जी अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुईं.
इस पर खुद भोलेनाथ ने माता पार्वती की परीक्षा लेने का निर्णय लिया.
माता पार्वती के तप से प्रसन्न होकर शंकर जी उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए. कुछ क्षणों बाद ही एक मगरमच्छ ने एक लड़के को पकड़ लिया और लड़का मदद के लिए पुकारने लगा. बच्चे की आवाज सुनकर पार्वती जी नदी किनारे पहुंची और उनका मन द्रवित हो गया. इस बीच लड़के ने माता पार्वती को देखकर कहा कि मेरी न मां है न बाप, न कोई मित्र ही है..माता आप ही मेरी रक्षा करें.
इस पर पार्वती जी ने मगरमच्छ से कहा कि ग्राह इस लड़के को छोड़ दें. इस पर मगरमच्छ ने कहा कि दिन के छठे पहर जो मुझे मिलता है उसे आहार बनाना मेरा नियम है. पार्वती जी के विनती करने पर मगरमच्छ ने लड़के को छोड़ने के बदले में पार्वती जी के तप से प्राप्त वरदान का पुण्य फल मांग लिया. इस पर पार्वती जी तैयार हो गईं. मगरमच्छ ने बालक को छोड़ दिया और तेजस्वी बन गया.
अपने तप का फल दान करने के बाद पार्वती जी ने बालक को बचा लिया और एक बार फिर भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए तप करने बैठ गईं. इस पर भोलेनाथ दोबारा प्रकट हुए और पूछा कि तुम अब क्यों तप कर रही हो, मैंने तम्हें पहले ही मनमांगा दान दे दिया है. इस पर पार्वती जी ने अपने तप का फल दान करने की बात कही. इस पर शिवजी प्रसन्न होकर बोले मगरमच्छ और लड़के दोनों के स्वरूप में मैं ही था. मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था कि तुम्हारा चित्त प्राणिमात्र में अपने सुख दुख का अनुभव करता है या नहीं.
तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए ही मैंने ये लीला रचाई थी. अनेको रूप में दिखने वाला मैं ही एक सत्य हूं. अनेक शरीरों में नजर आने वाला मैं निर्विकार हूं. इस तरह पार्वती जी शिव जी की परीक्षा में उत्तीर्ण हुई और उनकी अर्धांगिनी बनी.
इन उपायों से विवाह में आ रही बाधाएं होगीं दूर
शीघ्र विवाह के लिए लड़का और लड़की को भगवान शिव की निष्ठा पूर्वक पूजा करनी चाहिए. भारतीय ज्योतिष मे नौ ग्रहों मे से सूर्य, शनि, राहु, और केतु का प्रभाव अधिक माना गया है. शादी-विवाह में इनमें राहु तथा शनि विशेष रुकावटें उत्पन्न करते हैं. शनि के प्रभाव से विवाह 28 वर्ष की आयु तक नहीं हो पाता तथा शनि और राहु साथ मे हो तो समाज की मान्यताओं से कुछ हट कर विवाह होता है. इसके इलावा भी कुंडली कुछ योग होते हैं जो विवाह में विलंब का कारण बनते हैं. शीघ्र विवाह हेतु इन चारों ग्रहों की शांति अति आवश्यक है. इसके अलावे भी 16 सोमवारी और रामचरितमानस में शिव-पार्वती विवाह प्रकरण के पाठ से भी विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं. कन्या को 16 सोमवार का व्रत करना चाहिए तथा प्रत्येक सोमवार को शिव मन्दिर में जाकर जलाभिषेक करना चाहिए, मां पार्वती का श्रृंगार करना चाहिए और शिव पार्वती के मध्य गठजोड़ बांधते हुए शीघ्र विवाह के लिए प्रार्थना करना चाहिए.
‘ऊँ नमः मनोभिलाषितं वरं देहि वरं ही ऊँ गोरा पार्वती देव्यै नमः’
इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जाप करने से भी विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं. इसके अलावे विवाह अभिलाषी लड़का या लड़की शुक्रवार के दिन भगवान शंकर पर जलाभिषेक करें तथा शिव लिंग पर ‘ऊँ नमः शिवाय’ बोलते हुए 108 पुष्प चढ़ावें शीघ्र विवाह की प्रार्थना करें साथ ही शंकर जी पर 21 बिल्वपत्र चढ़ावें. निम्न मंत्र से भगवान शिव की पूजा करने से भी जल्द विवाह होता ह