माता श्री नैना देवी जी
श्री नैना देवी जी, हिमाचल प्रदेश में सबसे उल्लेखनीय स्थानों में से एक है। जिला बिलासपुर में स्थित, यह 51 शक्तिपीठों में से एक है जहां सती के अंग पृथ्वी पर गिरे हैं। इस पवित्र तीर्थ स्थान पर वर्ष भर तीर्थयात्रियों और भक्तों का मेला लगा रहता है, खासकर श्रावण अष्टमी के दौरान और चैत्र एवं अश्विन के नवरात्रों में। विशेष मेला चैत्र, श्रवण और अश्विन नवरात्रों के दौरान आयोजित किया जाता है, जो पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और देश के अन्य कोनों से लाखों दर्शकों को आकर्षित करता है।
देवी की उत्पत्ति कथा
दुर्गा सप्तशती और देवी महात्यमय के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच में सौ वर्षों तक युद्ध चला था। इस युद्ध में असुरो की सेना विजयी हुई। असुरो का राजा महिषासुर स्वर्ग का राजा बन गया और देवता सामान्य मनुष्यों कि भांति धरती पर विचरण करने लगे। तब पराजित देवता ब्रहमा जी को आगे कर के उस स्थान पर गये जहां शिवजी, भगवान विष्णु के पास गए। सारी कथा कह सुनाई। यह सुनकर भगवान विष्णु, शिवजी ने बड़ा क्रोध किया उस क्रोध से विष्णु, शिवजी के शरीर से एक एक तेज उत्पन्न हुआ। भगवान शंकर के तेज से उस देवी का मुख, विष्णु के तेज से उस देवी की वायें, ब्रहमा के तेज से चरण तथा यमराज के तेज से बाल, इन्द्र के तेज से कटि प्रदेश तथा अन्य देवता के तेज से उस देवी का शरीर बना। फिर हिमालय ने सिंह, भगवान विष्णु ने कमल, इंद्र ने घंटा तथा समुद्र ने कभी न मैली होने वाली माला प्रदान की। तभी सभी देवताओं ने देवी की आराधना की ताकि देवी प्रसन्न हो और उनके कष्टो का निवारण हो सके। और हुआ भी ऐसा ही। देवी ने प्रसन्न होकर देवताओं को वरदान दे दिया और कहा मै तुम्हारी रक्षा अवश्य करूंगी। इसी के फलस्वरूप देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध प्रारंभ कर दिया। जिसमें देवी कि विजय हुई और तभी से देवी का नाम महिषासुर मर्दनी पड़ गया। गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा रचित दशम ग्रंथ ”चण्डी दी वार” के अनुसार दुर्गा ने महिषासुर का वध बीरखेत मे किया था । यह बीरखेत प्रसिद्ध शाकम्भरी देवी शक्तिपीठ मे ही शिवालिक पर्वत श्रृंखला मे मौजूद है।
पौराणिक सती कथा के अनुसार
नैना देवी मंदिर शक्ति पीठ मंदिरों मे से एक है। पूरे भारतवर्ष मे कुल 51 शक्तिपीठ है। जिन सभी की उत्पत्ति कथा एक ही है। यह सभी मंदिर भगवान शिव और माता शक्ति से जुड़े हुऐ है। धार्मिक ग्रंधो के अनुसार इन सभी स्थलो पर देवी के अंग गिरे थे। भगवान शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमे उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नही किया क्योंकि वह भगवान शिव को अपने बराबर का नही समझते थे। यह बात माता सती को काफी बुरी लगी और वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गयी। यज्ञ स्थल पर भगवान शिव का काफी अपमान किया गया जिसे माता सती सहन न कर सकीं और वह हवन कुण्ड में कुद गयीं। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और माता सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे। जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बांट दिया जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। कोलकाता में केश गिरने के कारण महाकाली, नगरकोट में स्तनों का कुछ भाग गिरने से माता बृजेश्वरी, ज्वालामुखी में जीह्वा गिरने से माता ज्वाला देवी, हरियाणा के पंचकुला के पास मस्तिष्क का अग्रिम भाग गिरने के कारण माता मनसा देवी, कुरुक्षेत्र में टखना गिरने के कारण माता भद्रकाली,सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने के कारण माता शाकम्भरी देवी, कराची के पास ब्रह्मरंध्र गिरने से माता हिंगलाज भवानी, असम में कोख गिरने से माता कामाख्या देवी, चरणों के कुछ अंश गिरने के कारण माता चिंतपूर्णी आदि शक्ति पीठ बन गए। मान्यता है कि नैना देवी मे माता सती के नेत्र गिरे थे।
नैना देवी मंदिर का इतिहास
नैना देवी मंदिर उस स्थान पर बनाया गया है जहां देवी सती की आंखें गिरी थीं। मान्यता है कि जब भगवान शिव सती का शव लेकर तांडव नृत्य कर रहे थे, तो विष्णु ने उनका शव अनेक भागों में काट दिया। इसके परिणामस्वरूप सती के नैन (आंख) यहाँ गिरे थे और यहाँ पर माता नैना देवी का मंदिर बना।
इस मंदिर के पास ही शताब्दियों पुराना एक पीपल का पेड़ है। मान्यता है कि इसी पेड़ के पास माता सती के नेत्र गिरे थे। यहां मंदिर में मुख्य द्वार के दाई ओर भगवान गणेश और हनुमान कि मूर्ति है। मंदिर के गर्भ ग्रह में मुख्य तीन मूर्तियां हैं। दाई तरफ माता काली, मध्य में नैना देवी और बाईं ओर भगवान गणेश जी की प्रतिमा है। मंदिर के समीप एक गुफा है जिसे नैना देवी गुफा के नाम से जाना जाता है।
नैना देवी मंदिर का महत्व
बिलासपुर स्थित नैना देवी मंदिर (Naina Devi Temple) हिमाचल प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे भारत के मुख्य पर्यटक स्थलों में से एक है। इस पवित्र तीर्थ स्थान पर वर्ष भर तीर्थयात्रियों और भक्तों का मेला लगा रहता है। खासतौर पर नवरात्रों में देशभर से यहां भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं।
स्थानीय लोग भी माता नैना देवी को अपनी रक्षा देवी मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
यहां का वातावरण बहुत ही शांतिपूर्ण है जिससे भक्तों को शांति और सुकून प्राप्त होता है। नैना देवी के दर्शनों के लिए भक्तों की भारी भीड़ रहती है। भक्त बहुत आस्था के साथ माँ के दरबार में अर्जी लगाते है। माँ सभी भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करती है।
गाय को लेकर एक ऐसी लोककथा
एक अन्य दंत कथा के अनुसार, मंदिर को लेकर एक अन्य कहानी भी प्रचलित है। कहा जाता है कि नैना नाम का एक लड़का था, जो एक बार अपने मवेशियों को चराने निकला। उस दौरान उसने देखा कि एक सफेद गाय एक पत्थर पर दूध बरसा रही है। ऐसा उसे अगले कई दिनों तक देखने के लिए मिलता रहा। फिर एक रात जब वह सो रहा था तो माता नैना उसके सपने में आईं और उसे बताया कि वह पत्थर उनका ही पिंड स्वरूप है। इसके बाद नैना नामक उस लड़के ने अपने सपने के बारे में राजा बीर चंद को बताया। तब राजा ने उसी स्थान पर श्री नैना देवी नाम के मंदिर का निर्माण करवा दिया।
प्रमुख आयोजन
प्रतिवर्ष नंदा अष्टमी को यहां पर विशाल मेला आयोजित किया जाता है। दरअसल, वर्ष 1880 में भयानक भूकंप में पूरा क्षेत्र ध्वस्त हो गया था। उसके बाद इसी जगह पर पूजन सामग्री, शंख आदि मिलने पर मंदिर की स्थापना की गई। 1903 में नंदाष्टमी के अवसर पर भव्य आयोजन की शुरुआत हुई।
तभी से हर भाद्रपद मास की पंचमी को महोत्सव का आरंभ होता है। षष्ठमी के दिन केले के तनों की पूजा-अर्चना करने के बाद सप्तमी को इनसे मां नंदा की मूर्तियां बनाई जाती हैं। अष्ठमी के दिन मंदिर में स्थापित कर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। दशमी के दिन मां नंदा के डोले के साथ नगर में विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है।
इसके अलावा शरदीय व चैत्र नवरात्र में यहां काफी संख्या में माता के भक्त दर्शनों को आते हैं। अष्टमी व नवमी को विशेष कन्या पूजन होता है।
मंदिर की विशेषता व मान्यता
नैनीताल आने वाले पर्यटक हों या विशिष्ट व्यक्ति, नयना देवी मंदिर जाना कभी नहीं भूलते। बांज व ओक प्रजाति के पेड़ों से लकदक पहाड़ी की तलहटी में स्थापित मंदिर की तुलना हिमाचल प्रदेश के नैनादेवी मंदिर से होती है। मंदिर के डिजाइन को पुरातन शैली में तैयार किया गया है। मां नयना देवी अमर उदय ट्रस्ट की ओर से मंदिर का विस्तार कर बारह अवतार मंदिर भी बनाया गया है। पूरे मंदिर परिसर को सुविधाओं से लैस किया गया है।
नैना देवी मंदिर की वास्तुकला
नैना देवी मंदिर (naina devi mandir) की वास्तुकला पारंपरिक और आधुनिक शैलियों का मिश्रण है। मंदिर परिसर एक बड़े क्षेत्र और ऊंचाई से हरी-भरी पहाड़ियों और घाटियों में फैला हुआ है। यह मंदिर मध्य में पैगोडा शैली में बनाया गया है और इसका अग्रभाग सुंदर सफेद संगमरमर से बना है। मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार विभिन्न हिंदू देवी-देवताओं की जटिल नक्काशी और मूर्तियों से सुसज्जित है। मंदिर में कई हॉल और कमरे हैं, जिनमें से प्रत्येक अलग-अलग देवी-देवताओं को समर्पित है।
नैना देवी मंदिर में मनाये जाने वाले त्यौहार
नैना देवी मंदिर कई हिंदू त्योहारों के भव्य उत्सव के लिए जाना जाता है। मंदिर हर साल 9-दिवसीय नवरात्रि उत्सव का आयोजन करता है, जिसके दौरान हजारों भक्त मंदिर में आते हैं और देवी की पूजा करते हैं। मंदिर दिवाली, होली और जन्माष्टमी (janmashtami) के त्योहार भी बड़े उत्साह से मनाता है। मंदिर तक जाने के लिए, जबकि बहुत से लोग उस पहाड़ी की चोटी तक ट्रेक करना पसंद करते हैं जिस पर मंदिर स्थित है, जय माता दी का नारा लगाते हुए, कई लोग आरामदायक सवारी के लिए पालकी लेते हैं। रास्ते में आराम और जलपान की सुविधाएं उपलब्ध हैं, जहां पर्यटक कुछ देर आराम कर सकते हैं और जलपान कर सकते हैं।