मनसा देवी को भगवान शिव और माता पार्वती की सबसे छोटी पुत्री माना जाता है । इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। महाभारत के अनुसार इनका वास्तविक नाम जरत्कारु है और इनके समान नाम वाले पति महर्षि जरत्कारु तथा पुत्र आस्तिक जी हैं। इनके भाई बहन गणेश जी, कार्तिकेय जी , देवी अशोकसुन्दरी , देवी ज्योति और भगवान अय्यपा हैं ,इनके प्रसिद्ध मंदिर एक शक्तिपीठ पर हरिद्वार में स्थापित है।समय आने पर भगवान शिव ने अपनी पुत्री का विवाह जरत्कारू के साथ किया और इनके गर्भ से एक तेजस्वी पुत्र हुआ जिसका नाम आस्तिक रखा गया। आस्तिक ने नागों के वंश को नष्ट होने से बचाया। राजा नहुष और नात्सय इनके बहनोई हैं।
इनके बड़े भाई भगवान कार्तिकेय और भगवान अय्यपा हैं तथा इनकी बड़ी बहन देवी अशोकसुन्दरी, और देवी ज्योति हैं। भगवान गणेश इनके छोटे भाई हैं। इस कथा का पूरा साथ इस लेख में दिया गया है जो कि मां मनसा देवी की पौराणिक कथा है।
माँ मनसा देवी अपने भक्तो को बहुत प्रेम करती है और इनकी उपासना अनेक प्रकार से की जा सकती है।
हरिद्वार में है मां मनसा का शक्तिपीठ
हरिद्वार से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर शिवालिक पहाड़ियों के बिलवा पहाड़ में मां मनसा देवी का प्रसिद्ध मंदिर है. श्रद्धालु यहां अपनी मुराद लेकर आते हैं. माना जाता है कि यहां आने वाले हर भक्त की मुरादें मां जरूर पूरी करती हैं. हरिद्वार स्थित मां मनसा का यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में एक है.
मंदिर तक पैदल पहुंचने के लिए करीब डेढ़ किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है. इसके अलावा केबल कार (उड़नखटोला), कार या बाइक आदि के जरिए भी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है. हरिद्वार के अलावा राजस्थान के अलवर, सीकर, कोलकाता, बिहार के सीतामढ़ी आदि में भी मनसा देवी के मंदिर हैं.
मां मनसा की महिमा
जो भी मां के द्वार पर पहुंचता है मां मनसा देवी उन भक्तों की सभी मन्नते पूरी करती हैं. मां के नाम का ही अर्थ इच्छा पूरी करने वाला है. मनसा का अर्थ ‘इच्छा’ है. मां मनसा के मंदिर आकर लोग अपनी मुरादें पूरी करने के लिए यहां पेड़ की शाखा में एक पवित्र धागा बांधते हैं और इच्छा पूर्ण हो जाने के बाद दोबारा आकर धागे को खोलते हैं और मां मनसा का आशीर्वाद भी लेते हैं.
मनीमाजरा के महाराज ने बनवाया था मंदिर
मंदिर का इतिहास बताता है कि मनीमाजरा के महाराज गोपाल सिंह ने मनोकामना मांगी थी और जब मनोकामना पूरी हुई. तब इस मंदिर का निर्माण करवाया था. उनके महल से लेकर माता मनसा देवी मंदिर तक एक गुफा भी थी. जिसके माध्यम से राजा रोज इस गुफा से होते हुए मंदिर पहुंचे थे और माता मनसा देवी की पूजा अर्चना करते थे. इस मंदिर में कई सालों से श्रद्धालु माथा टेकने के लिए आते हैं. पंचकूला माता मनसा देवी श्राइन बोर्ड द्वारा माता के दरबार में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए विशेष प्रबंध भी किए गए हैं
पौने दो सौ साल पहले राजा ने बनवाया था मंदिर
माता मनसा देवी का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि अन्य सिद्ध शक्तिपीठों का। माता मनसा देवी के सिद्ध शक्तिपीठ पर बने मदिंर का निर्माण मनीमाजरा के राजा गोपाल सिंह ने अपनी मनोकामना पूरी होने पर आज से लगभग पौने दो सौ साल पहले चार साल में अपनी देखरेख में सन् 1815 में पूर्ण करवाया था।
मुख्य मदिंर में माता की मूर्ति स्थापित है। मूर्ति के आगे तीन पिंडियां हैं, जिन्हें मां का रूप ही माना जाता है। ये तीनों पिंडियां महालक्ष्मी, मनसा देवी तथा सरस्वती देवी के नाम से जानी जाती हैं। मंदिर की परिक्रमा पर गणेश, हनुमान, द्वारपाल, वैष्णवी देवी, भैरव की मूर्तियां एवं शिवलिंग स्थापित है। हरियाणा सरकार ने मनसा देवी परिसर को 9 सितम्बर 1991 को माता मनसा देवी पूजा स्थल बोर्ड का गठन करके इसे अपने हाथ में ले लिया था।
यह है धार्मिक महत्व
मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण में भी आता है। इसमें मनसा देवी को दसवीं देवी माना गया है। मान्यता है कि एक बार जब महिसासुर नामक राक्षस ने देवताओं को पराजित कर दिया। इसके बाद देवताओं ने देवी का स्मरण किया।
देवी ने प्रकट होकर महिषासुर नामक राक्षस का वध कर दिया। इस पर देवताओं ने देवी की पूजा अर्चना की और देवी से कहा कि हे देवी जिस प्रकाश आपने हमारी मनसा को पूरा किया इसी प्रकार कलियुग में भी भक्तों की मनसा को पूरा कर उनकी विपत्ति को दूर करें।
कहते हैं कि इस पर देवी ने हरिद्वार के शिवालिक मालाओं के मुख्य शिखर के पास ही विश्राम किया गया। इसी कारण से यहां मनसा देवी मंदिर की स्थापना हुई। मान्यता है कि इसी जगह पर मनसा देवी की मूर्ति प्रतिष्ठित हुई। कालांतर में यहां मंदिर बनाया गया और मंदिर में आज भी मां मनसा देवी की मूर्ति विराजमान है।
भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं मां मनसा देवी
इस मंदिर में मां की 2 मूर्तियां स्थापित हैं। इनमें से एक मूर्ति की पंचभुजाएं और एक मुख है और वहीं दूसरी मूर्ति की 8 भुजाएं हैं। यहां मां दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। जैसा कि मां का नाम है मनसा यानी मन की कामना। ममता की मूर्ति मां मनसा अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। यहां पर आने वाले भक्त अपनी मुराद लेकर एक पेड़ पर धागा बांधते हैं। फिर इच्छा पूर्ण हो जाने के बाद उस धागे को खोलते हैं और फिर मां का आशीर्वाद लेकर चले जाते हैं।
पौराणिक मान्यताएं
अलग-अलग पुराणों में मां मनसा देवी का वर्णल अलग-अलग प्रकार से किया गया है। पुराणों में बताया गया है कि इनका जन्म कश्यप ऋत्रि के मस्तिष्क से हुआ था और मनसा किसी भी विष से अधिक शक्तिशाली थी इसलिये ब्रह्मा ने इनका नाम विषहरी रखा। वहीं विष्णु पुराण के चतुर्थ भाग में एक नागकन्या का वर्णन है जो आगे चलकर मनसा के नाम से प्रचलित हुई। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अंतर्गत एक नागकन्या थी जो शिव तथा कृष्ण की भक्त थी।
मनसा देवी से जुड़ी प्रचलित कथा
सती बेहुला चम्पक नगरी में चन्द्रधर नामक एक धनी वैश्य था.वह परम शिव भक्त था। लेकिन उसका शिव पुत्री मनसा देवी से बड़ा विरोध था। इस विरोध का मुख्य कारण यह था कि, मनसा देवी चंद्रधर से अपनी खुद कि पूजा करवाना चाहती थीं। क्योंकि चंद्रधर के बारे में मशहूर था कि, वह भगवान शिव का अनन्य भक्त है। और वह उनके अलावा किसी और का नाम तक नहीं लेता है। इसी विरोध के कारण मनसा देवी ने चन्द्रधर के छह पुत्रों को विषधर नागों से डंसवा कर मरवा दिया था। और उसके सातवें पुत्र लक्ष्मीचंद्र का विवाह उज्जयिनी के धार्मिक साधु नामक वैश्य की परम सुन्दरी साध्वी कन्या बेहुला के साथ हुआ था। लक्ष्मीचंद्र की कुण्डली देखकर ज्योतिषियों ने बता दिया था कि, विवाह की प्रथम रात्रि में ही सांप के काटने से इसकी मृत्यु हो सकती है। जिसके कारण चन्द्रधर ने लोहे का ऐसा मजबूत घर बनवाया था, जिसमें वायु भी प्रवेश नही कर सके। मगर मनसा देवी ने भी भवन निर्माता से उसके घर में छोटा सा छेद छोड़ देने के लिए कह दिया था। और विवाह रात्रि को ही नागिन ने लक्ष्मीचंद्र को डंस लिया था जससे उसकी मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु से सारे घर में शोर मच गया था तब उसकी पत्नी बेहुला ने केले के पौधे की नाव बनवाई और अपने पति को ठीक करवाने के लिए पति के शव को लेकर उस नाव में बैठ गई। उसने लाल साड़ी पहन रखी थी और सिन्दूर लगा रखा था। नदी की लहरें उस शव को बहुत दूर ले गईं.वह अपने पति को पुन: जिन्दा करने पर तुली हुई थी। बहुत दिनों तक उसने कुछ नहीं खाया था जिससे उसका शरीर सूख गया था। साथ ही मरे हुए लक्ष्मीचंद्र के शरीर से दुर्गन्ध भी आने लगी थी। उसके सारे शरीर में कीड़े पड़ गए थे मात्र उसका कंकाल ही शेष रह गया था.बेहुला नाव को किनारे की ओर ले चली। उसने वहां एक धोबिन के मुख से तेज टपकते देखा। उसके कठोर तप को देख कर ही मनसा देवी ने उसे वहां भेजा था। उसने बेहुला से कहा- तुम मेरे साथ देवलोक में चल कर अपने नृत्य से महादेव को रिझा दो.तो तुम्हारे पति पुन: जिन्दा हो जाएंगे.बेहुला ने उसकी सलाह मान ली। वह उसके साथ चल पड़ी पति की अस्थियां उसके वक्षस्थल से चिपकी थीं। वह अपने पति की स्मृति से उन्मत्त होकर वह नृत्य करने लगी। सारा देव समुदाय द्रवित हो गया.मनसा देवी भी द्रवित हो गईं। इसके बाद लक्ष्मीचंद्र जीवित हो गया और इसके साथ ही बेहुला का नाम भी अमर हो गया.