चिन्तपूर्णी देवी मंदिर
चिन्तपूर्णी देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश राज्य के छोटे से शहर उना में स्थित हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। चिन्तपूर्णी देवी यहां विराजमान देवी हैं जहाँ उन्हें सिर के बिना पिंडी रूप (गोल पत्थर) में दिखाया गया है। मान्यता हैं की अगर कोई भक्त देवी माता की सच्चे मन से प्रार्थना करता है तो चिन्तपूर्णी देवी उसके सभी कष्टों और विप्पतियों को हर लेती है। यह मंदिर माता सती को समर्पित 51 शक्तिपीठ में से एक है जहाँ सदियों से माता श्री छिन्नमस्तिका देवी के चरण कमलों के पूजा करने के लिए भक्तों का तांता लगा रहता हैं। बता दे यहाँ माता को छिन्नमस्तिका देवी के नाम से भी पुकारा जाता है।
सोला सिंघी रेंज की सबसे ऊंची चोटियों में से एक पर स्थित होने के कारण यह प्रसिद्ध मंदिर अपने सुन्दर परिवेश और खूबसूरत नजारों के लिए भी जाना जाता है, जो हर साल हजारों भक्तो और पर्यटकों को यहाँ आने पर मजबूर कर देता है।
किन शक्तियों के लिए जानी जाती हैं माता चिंतपूर्णी
कुछ लोगों के अनुसार माता चिंतपूर्णी मां ज्वालामुखी का दूसरा नाम और रूप हैं। जैसा कि आप जानते हैं ज्वालामुखी मंदिर हिमाचल में ही स्थित है, इसी आधार पर इस जगह की देवी का नाम चिंतपूर्णी पड़ा। देवी को चिंताओं को दूर करने वाली माता के रूप में जाना जाता है। जिस भी व्यक्ति के जीवन में सुख, धन और सम्पत्ति का अभाव है, उनके दुख को चिंतपूर्णी मां दूर कर देती हैं। इस मंदिर की इस कारण से इतनी मान्यता है कि भक्त दूर-दूर से अपनी समस्याएं मां के पास लेकर आते हैं।
चिंतपूर्णी मंदिर का तालाब
चिंतपूर्णी मंदिर में एक तलाब है, जिससे एक प्राचीन कहानी जुड़ी हुई है। कहानी के अनुसार, मां भगवती ने भक्त ‘मैदास जी’ को कन्या रूप में प्रत्यक्ष दर्शन दिए और उनकी चिंता दूर हो गई। देवी भगवती ने उन्हें कहा कि आप जिस भी पत्थर को उखाड़ेंगे, वहां से पानी निकलने लगा। अब इस जगह पर एक तलाब है, जहां से भक्त ने पत्थर को उखाड़ा था। इस तालाब का निर्माण पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था। इसके बाद चिंतपूर्णी सरोवर कार्य समिति के पूर्व अध्यक्ष अमर शहीद ने इस तालाब का रेनोवेशन किया। तालाब के ठीक ऊपर, मंदिर के संस्थापक श्री 1008 बाबा मैदान जी की समाधि है। मंदिर के पास एक पवित्र बावड़ी है, जिसके जल से सभी रोग दूर होते हैं।
चिंतपूर्णी में माँ का कौन सा भाग गिरा था
ये कहानी तो सभी को पता है दोस्तों की जब भगवान् विष्णु द्वारा माता सती के अधजले शरीर को 52 हिस्सों में विभाजित किया गया था तब वो हिसे पटिटवी के अलग अलग हस्सो में गिरे जो जगह शक्ति पीठ के नाम से प्रसिद्द हुई , यहाँ माँ सती के पैरो की पूजा होती है , मंदिर के समेत एक ववत वृक्ष है जिसके समेत माता का भव्य मंदिर स्थित है , मार्कण्डेय पुराण के अनुसार ऐसा माना जाता है की माता सती ने चंडी का रूप धारण कर दुष्टो पर विजय प्राप्त की थी , और इसी दौरान माता के दो शिष्य अजय और विजय ने माता से अपने खून की प्यास शांत करने की गुहार लगाई तब माँ ने अपना सर काट कर अपने शिष्यों की खून की प्यास बुझाई थी तब से माँ चिंतपूर्णी को छिन्मस्तिका के नाम से भी जाना जाता है , मा के दर्शन करने आज बहोत दूर दूर से श्रद्धालु ए है जो माँ की भक्ति में लिप्त है और बेफिक्री से माँ के चरणों की सेवा का लाभ उठा रहे है |
माता के मंदिर के समीप एक साधना ग्रह भी बनाया हुआ है जहाँ मंदिर के दर्शन के बाद यहाँ बैठ कर माँ की साधना और कर सकते है , बहोत से लोग यहाँ बैठे हुए लोगो को प्रशाद वितरण भी करते है और यहाँ सेवा का कार्य पंजाबियों के द्वारा ज्यादा किया जाता है ,
शीघ्र फल देने वाली मानी जाती हैं छिन्नमस्तिका
विश्वभर में प्रचलित कुल व कुल परंपराओं की दस महाविद्याओं में से एक श्री छिन्नमस्तिका भक्तों को शीघ्र फल देने वाली मानी जाती हैं। भगवान शिव व पार्वती के तेज से उत्पन्न मां छिन्नमस्तिका के समक्ष सच्चे मन से की गई मनोकामना पूरी होती है। भगवान शिव के वरदान से यहां की गई साधना शीघ्र फलित होती है। लुप्तप्राय: हो चुकी तंत्र साधना को पुन: प्रचारित करने का श्रेय जालंधर पीठ में उपासना करने वाले साधकों को ही जाता है। कांगड़ा के आचार्य शंभूनाथ व उनकी शिष्य मंडली के अभिनव दासगुप्त का नाम आज भी प्राचीन ग्रंथों में देखने को मिलता है।
माता करती है हर मनोकामना पूरी
चिंतपूर्णी माता मंदिर के पुजारी राजेश कालिया का कहना है मां चिंतपूर्णी सभी भक्तों की चिंता हरती हैं। मां के चरणों में जिस भक्त ने भी सच्चे मन से शीश नवाया, मां उसकी हर मनोकामना पूरी कर देती है। मां चिंतपूर्णी के मंदिर में लाखों श्रद्धालुओं की आस्था व श्रद्धा है।