गोर्वधन पूजा (Govardhan Puja) का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है। दिवाली के अगले दिन यानी कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा की जाती है। इसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गोवर्धन पर्वत और भगवान श्रीकृष्ण के अलावा गौ माता की भी पूजा होती है। इस साल गोर्वधन पूजा 5 नवंबर को है।
कैसे हुआ गोवर्धन पूजा की शुरुआत?
हिंदू धार्मिक मान्यताओं अनुसार जब इंद्र ने अपना मान जताने के लिए ब्रज में तेज बारीश की थी तब भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर ब्रज वासियों की मूसलाधार बारिश से रक्षा की थी। जब इंद्रदेव को इस बात का ज्ञात हुआ कि भगवान श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं तो उनका अहंकार टूट गया। इंद्र ने भगवान श्री कृष्ण से क्षमा मांगी। गोवर्धन पर्वत के नीचे सभी गोप-गोपियाँ, ग्वाल-बाल, पशु-पक्षी सुख पूर्वक और बारिश से बचकर रहे। कहा जाता है तभी से गोवर्धन पूजा मनाने की शुरुआत हुई।
गोवर्धन पूजा का महत्व
गोर्वधन पूजा का भारतीय लोकजीवन में काफी महत्व है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा होती है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्रदेव की पूजा करने बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा था। उन्होंने ऐसा इसलिए कहा था, क्योंकि गोवर्धन पर्वत से ही पूरे ब्रज की गाय को चारा मिलता था। इस दिन गाय को स्नान कराकर सजाया जाता। गाय को गुड़ और चावल खिलाया जाता है।
शास्त्रों में बताया जाता है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती है, जैसे नदियों में गंगा पवित्र होती। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी माना गया है। जिस तरह से देवी लक्ष्मी सुख समृद्धि प्रदान करती हैं, उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती है।
गोवर्धन पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा:
धार्मिक मान्यता के अनुसार एक बार देव राज इंद्र को अपनी शक्तियों का घमंड हो गया था। इंद्र के इसी घमंड को दूर करने के लिए भगवान कृष्ण ने लीला रची। एक बार गोकुल में सभी लोग तरह-तरह के पकवान बना रहे थे और हर्षोल्लास के साथ नृत्य-संगीत कर रहे थे। यह देखकर भगवान कृष्ण ने अपनी मां यशोदा जी से पूछा कि आप लोग किस उत्सव की तैयारी कर रहे हैं? भगवान कृष्ण के सवाल पर मां यशोदा ने उन्हें बताया हम देव राज इंद्र की पूजा कर रहे हैं। तब भगवान कृष्ण ने उनसे पूछा कि, हम उनकी पूजा क्यों करते हैं?
यशोदा मैया ने उन्हें बताया कि, भगवान इंद्र देव की कृपा हो तो अच्छी बारिश होती है जिससे हमारे अन्न की पैदावार अच्छी होती है और हमारे पशुओं को चारा मिलता है। माता की बात सुनकर भगवान कृष्ण ने कहा कि, अगर हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाय तो वहीं चारा चरती हैं और वहां लगे पेड़-पौधों की वजह से ही बारिश होती है।
भगवान कृष्ण की बात मानकर गोकुल वासी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे यह सब देखकर इंद्र देव क्रोधित हो गए और उन्होंने इसे अपना अपमान समझा और ब्रज के लोगों से बदला लेने के लिए मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। बारिश इतनी विनाशकारी थी कि गोकुल वासी घबरा गए। तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊँगली पर उठाया और सभी लोग इसके नीचे आकर खड़े हो गए।
गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त
गोवर्धन पूजा दो समय सुबह और शाम को होती है। सुबह के समय भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत की धूप, फल, फूल, खील-खिलौने आदि से पूजा-अर्चना और कथा-आरती की जाती है। शाम को अन्नकूट का भोग लगाकर आरती होती है। इस साल गोवर्धन पूजा के लिए सुबह का शुभ मुहूर्त प्रात: 6:36 बजे से प्रात: 8:47 बजे तक है। शाम की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त दोपहर 3:02 बजे से लेकर रात 8 बजे तक रहेगा।
गोवर्धन पूजा विधि:
लोग अपने घर में गोबर से गोवर्धन पर्वत का चित्र बनाकर उसे फूलों से सजाते हैं। गोवर्धन पर्वत के पास ग्वाल-बाल और पेड़ पौधों की आकृति भी मनाई जाती है। इसके बीच में भगवान कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है। इसके बाद षोडशोपचार विधि से पूजन किया जाता है। गोवर्धन पूजा सुबह या फिर शाम के समय की जाती है। पूजन के समय गोवर्धन पर धूप, दीप, जल, फल, नैवेद्य चढ़ाएं जाते हैं। तरह-तरह के पकवानों का भोग लगाया जाता है। इसके बाद गोवर्धन पूजा की व्रत कथा सुनी जाती है और प्रसाद सभी में वितरित करना होता है। इस दिन गाय-बैल और खेती के काम में आने वाले पशुओं की पूजा होती है। पूजा के बाद गोवर्धन जी की सात परिक्रमाएं लगाते हुए उनकी जय बोली जाती है। परिक्रमा हाथ में लोटे से जल गिराते हुए और जौ बोते हुए की जाती है।
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परिवार के लोग साथ करें पूजा
परिवार के सभी लोग एक साथ मिलकर पूजा करें. अलग-अलग होकर गोवर्धन पूजा करना अशुभ माना जाता है. गोवर्धन पूजा के दिन गंदे कपड़े पहनकर गोवर्धन की परिक्रमा न करें. परिवार के लोग साफ कपड़े पहनें.
नंगे पैर करें परिक्रमा
गोवर्धन की परिक्रमा हमेशा नंगे पैर करनी चाहिए. वहीं, अगर कोई व्यक्ति कमजोर हो तो वो रबड़ या कपड़े के जूते पहन सकता है. अगर आपने गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा शुरू कर दी हो तो कभी भी उसे बीच में अधूरा नहीं छोड़ें. गोवर्धन की परिक्रमा बीच में छोड़ना अशुभ माना जाता है.
न करें नशीली चीजों का सेवन
गोवर्धन पूजा या परिक्रमा करते समय किसी भी प्रकार की नशीली वस्तु का सेवन नहीं करना चाहिए. पूजन में सम्मिलित लोग हल्के पीले या नारंगी रंग के वस्त्र पहनें तो उत्तम रहेगा. भूलकर भी काले रंग के कपड़े न पहनें.
किसी को इस दिन न सताएं
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट का आयोजन बंद कमरे में न करें. गायों की पूजा करते हुए ईष्टदेव या भगवान कृष्ण की पूजा करना न भूलें. गोवर्धन पूजा के समय गाय, पौधों, जीव जंतु आदि को भूलकर भी न सताएं और न ही कोई नुकसान पहुंचाएं.