Yogini Ekadashi 2023 Details:- योगिनी एकादशी का व्रत हर वर्ष आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। इस साल ये व्रत शुक्रवार 14 जून 2023 को रखा जाएगा। शुक्रवार को ये व्रत होने के कारण इस बार लोगों को भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी का भी आशीर्वाद मिलेगा। कहा जाता है कि योगिनी एकादशी का व्रत रखने वाले लोगों को हजारों ब्राह्मणों के भोजन कराने जितना पुण्य मिलता है। इसलिए आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का बहुत महत्व है।
Yogini Ekadashi 2023:- य़ोगिनी एकादशी तिथि और मुहूर्त क्या है ?
योगिनी एकादशी 2023 बुधवार, जून 14, 2023
15 जून को पारण का समय 05:23 ए एम से 08:10 ए एम
पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय जून 14, 2023, 05:23 ए एम से 08:10 ए एम
एकादशी तिथि प्रारंभ जून 13, 2023 को 09:28 ए एम बजे
एकादशी तिथि समाप्त जून 14, 2023 को 08:48 ए एम बजे
Yogini Ekadashi 2023:- योगिनी एकादशी का महत्व क्या है ?
वेदांगों के पारगामी विद्वान ब्राह्मण को सहस्त्र गोदान करने से जो पुण्य होता है,उससे सौ गुना पुण्य एकादशी व्रत करने वाले को होता है। इनमें ‘योगिनी एकादशी ‘तो प्राणियों को उनके सभी प्रकार के अपयश और चर्म रोगों से मुक्ति दिलाकर जीवन सफल बनाने में सहायक होती है। यह देह की समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुंदर रूप,गुण और यश देने वाली है। इस व्रत का फल 88 हज़ार ब्राह्मणों को भोजन कराने के फल के समान है। योगिनी एकादशी महान पापों का नाश करने वाली और महान पुण्य-फल देने वाली है। इसके पड़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। योगिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सुख और समृद्धि का वास होता है। साथ ही भगवान विष्णु जी के साथ-साथ मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।
Yogini Ekadashi 2023:- योगिनी एकादशी व्रत पूजा विधि क्या है ?
यह एकादशी व्रत पुण्य फलदायी होता है। इस व्रत की विधि इस प्रकार है:
- इस व्रत के नियम एक दिन पूर्व शुरू हो जाते है। दशमी तिथि की रात्रि में ही व्यक्ति को जौं, गेहूं और मूंग की दाल से बना भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।
- वहीं व्रत वाले दिन नमक युक्त भोजन नहीं करना चाहिए, इसलिए दशमी तिथि की रात्रि में नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
- एकादशी तिथि के दिन प्रात: स्नान आदि कार्यो के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है।
- इसके बाद कलश स्थापना की जाती है, कलश के ऊपर भगवान विष्णु की प्रतिमा रख कर पूजा की जाती है। व्रत की रात्रि में जागरण करना चाहिए।
- यह व्रत दशमी तिथि की रात्रि से शुरू होकर द्वादशी तिथि के प्रात:काल में दान कार्यो के बाद समाप्त होता है।
Yogini Ekadashi 2023:- योगिनी एकादशी व्रत से क्या लाभ होगा ?
योगिनी एकादशी का व्रत करना कई तरह से शुभकारी होता है। इस व्रत के करने से सभी पापों का नाश होता है और जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि इस व्रत के करने से स्वर्गलोग की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि मात्र इस व्रत के करने से आपको 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने का फल मिलता है।
Yogini Ekadashi 2023:- योगिनी एकादशी व्रत की कथा क्या है ?
योगिनी एकादशी व्रत की ये कथा काफी प्रचलित है। इस कथा को युधिष्ठिर के कहने पर स्वयं श्री कृष्ण ने कही थी। भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि हे राजन्! सुनो मैं तुमसे पुराणों में वर्णित योगिनी एकादशी की कथा कहता हूं।
एक बार की बात है जब स्वर्ग लोक में कुबेर नाम का एक राजा रहता था, वो शिव भक्त था। प्रतिदिन नियमित रूप से शिव आराधना करता था। उसका हेम नाम का एक माली था, जो हर दिन पूजा के लिए फूल लाता था। माली की विशालाक्षी नाम की बहुत सुंदर पत्नी थी, जिसके सौंदर्य पर माली आसक्त रहता था। एक दिन प्रातः काल हेम माली मानसरोवर से फूल तोड़ लाया परंतु घर पर अपनी रूपवती स्त्री से कामासक्त होकर दोपहर तक राजा के यहां नहीं पहुंचा। राजा कुबेर को पूजा के लिए विलंब हो गया। विलंब का कारण जानकर कुबेर बहुत क्रोधित हुआ और उसने माली को श्राप दे दिया। कुबेर ने कहा कि तुमने ईश्वर भक्ति से ज्यादा कामासक्ति को प्राथमिकता दी है, तुम्हारा स्वर्ग से पतन होगा और तुम धरती पर स्त्री वियोग और कुष्ठ रोग का कष्ट भोगोगे।
कुबेर के श्राप के फलित होते ही माली हेम धरती पर आ गिरा, उसे कुष्ठ रोग हो गया और उसकी स्त्री भी चली गयी। हेम वर्षों तक पृथ्वी पर अनेकों कष्ट सहता रहा। एक दिन उसे मार्कण्डेय ऋषि के दर्शन हुए। उसने अपनी सारी व्यथा उन्हें सुनाई और अपने प्रायश्चित का मार्ग पूछा। मार्कण्डेय ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी के व्रत के महात्म के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि भगवान विष्णु को समर्पित ये योगिनी एकादशी का व्रत तुम्हारे समस्त पापों को समाप्त कर देगा और तुम पुनः भगवत् कृपा से स्वर्ग लोक को प्राप्त करोगे। हेम, माली ने पूरी श्रद्धा के साथ योगिनी एकादशी का व्रत रखा। भगवान विष्णु ने उसके समस्त पापों को क्षमा करके उसे पुनः स्वर्ग लोक में स्थान प्रदान किया।