वृन्दावन धाम कहा है और क्या है इसे प्रचलित कहानी? जाने श्री बांके बिहारी जी की नगरी से जुडी सारी जानकारी!!

वृन्दावन धाम कहा है और क्या है इसे प्रचलित कहानी? जाने श्री बांके बिहारी जी की नगरी से जुडी सारी जानकारी!!

वृन्दावन धाम

वृंदावन उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित एक ऐतिहासिक शहर है। यह ब्रज भूमि क्षेत्र के प्रमुख स्थानों में से एक है। भगवान श्री कृष्ण ने अपने बचपन के दिन यहीं बिताए थे। यह शहर मथुरा से लगभग 10 कि.मी. दूर है। आगरा-दिल्ली राजमार्ग पर स्थित वृंदावन धाम राधा और श्री कृष्ण की पूजा के लिए समर्पित है। यहां अनेक मंदिर हैं। वैसे तो वृंदावन धाम में वर्ष भर पर्यटक आते हैं लेकिन कृष्ण जन्माष्टमी के समय श्री कृष्ण की बाल लीलाएं तथा झांकियां देखने के लिए यहां भारी भीड़ जुटती है।

पुराणा में वृंदावनधाम की महिमा

हरिवंशपुराण, श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण आदि में  वृंदावन की महिमा का वर्णन किया गया है। कालिदास ने इसका उल्लेख रघुवंश में इंदुमती- स्वयंवर के प्रसंग में शूरसेनाधिपति सुषेण का परिचय देते हुए किया है। इससे कालिदास के समय में वृंदावन के मनोहारी उद्यानों के अस्तित्व का भान होता है।

श्रीमद्भागवत के अनुसार गोकुल से कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंदजी कुटुंबियों और सजातीयों के साथ वृंदावन में निवास के लिए आये थे। विष्णु पुराण में इसी प्रसंग का उल्लेख है। विष्णुपुराण में भी  वृन्दावन में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है। वर्तमान में टटिया स्थान, निधिवन, सेवाकुंज, मदनटेर,  बिहारी जी की बगीची, लता भवन प्राचीन नाम टेहरी वाला बगीचा आरक्षित वनों के रूप में दर्शनीय हैं ।

वृंदावन धाम का इतिहास

वृंदावन धाम का प्राचीन अतीत हिंदू संस्कृति और इतिहास से जुड़ा है। माना जाता है कि वल्लभाचार्य 11 वर्ष की उम्र में वृंदावन आये थे। बाद में उन्होंने भारत में तीन तीर्थस्थानों का प्रचार किया और नंगे पांव जाकर 84 स्थानों पर भगवद गीता का प्रवचन दिया। वह प्रत्येक वर्ष चार महीनें वृंदावन में रुकते थे। इस प्रकार वृंदावन में उनके पुष्टिमार्ग ने लोगों को बहुत प्रभावित किया।

वृंदावन का सार 16 वीं शताब्दी तक विलुप्त होने लगा था, जब इसे चैतन्य महाप्रभु द्वारा फिर से खोजा गया था। 1515 में, चैतन्य महाप्रभु ने भगवान श्रीकृष्ण के पारलौकिक अतीत से जुड़े खोए हुए पवित्र स्थानों का पता लगाने के उद्देश्य से वृंदावन की यात्रा की। यह माना जाता था कि उनकी दिव्य आध्यात्मिक शक्ति के द्वारा, वे कृष्ण के अतीत के सभी महत्वपूर्ण स्थानों का वृंदावन में और आसपास का पता लगाने में सफल हुए। इसके बाद मीराबाई भी मेवाड़ राज्य छोड़कर वृंदावन आ गई थीं। इस प्रकार वृंदावन धाम अपने प्राचीन इतिहास के कारण ही प्रसिद्ध है।

वृंदावन के प्रमुख मंदिर

श्री बांकेबिहारी मंदिर, श्री राधा बल्लभ मंदिर, राधादामोदर मंदिर, राधा श्याम सुंदर मंदिर, राधा गोपीनाथ मंदिर, राधारमण मंदिर, मदन मोहन मंदिर, गोकुलानंद मंदिर, गोविंददेव मंदिर, सेवाकुंज मंदिर, निधिवन, रंग जी मंदिर, कात्यायनी मंदिर, गोपेश्वर मंदिर, इस्कान मंदिर, प्रेम मंदिर, मां चामुंडा मंदिर, कृष्णकाली पीठ मंदिर।

प्रेम मंदिर

भव्यता से परिपूर्ण, प्रेम मंदिर एक विशाल मंदिर है, जिसे वर्ष 2001 में जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज द्वारा बनवाया गया था। ये मंदिर “भगवान के प्रेम का मंदिर” के रूप में जाना जाता है। यह भव्य धार्मिक स्थान राधा कृष्ण के साथ-साथ सीता राम को भी समर्पित है। उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के पवित्र शहर वृंदावन में स्थित यह मंदिर पवित्रता और शांति से भरपूर है। इस मंदिर में आप रोजाना सुबह 8:30 से दोपहर के 12 बजे के बीच जा सकते हैं या फिर शाम के 4:30 बजे से रात के 8:30 बजे के बीच भी जा सकते हैं।

इस्कॉन मंदिर, वृंदावन

वृंदावन स्थित इस्कॉन मंदिर यहां आने वाले लोगों के बीच आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर के संस्थापक स्वामी प्रभुपाद थे, जिन्होंने खुद इसकी नींव रखी थी। यहां देश ही नहीं, बल्कि विदेश से भी भक्त दर्शन करने पहुंचते हैं। इस मंदिर श्री कृष्ण बलराम मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।

गोविंद देव मंदिर

वृंदावन में मौजूद भगवान कृष्ण के इस को राजा मानसिंह ने सन 1590 में बनवाया था। ऐसा माना जाता है कि यह वृंदावन के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। अपने दौर में यह मंदिर 7 मंजिल का हुआ करता था, लेकिन मुगलकाल के दौरान तत्कालीन मुगल आक्रांता औरंगजेब ने इस मंदिर की चार मंजिलों को गिरा दिया था। तब से लेकर अब तक यह मंदिर तीन मंजिल का ही है।

श्री रंगनाथ मंदिर

वृंदावन-मथुरा मार्ग पर स्थित श्री रंगनाथ मंदिर वृंदावन के प्रमुख मंदिरों में से एक है। यह मंदिर अपनी दक्षिण शैली की बनावट के लिए काफी मशहूर है। साथ ही यहां का मुख्य आकर्षण दूल्हे के रूप में मौजूद कृष्ण की मूर्ति है। यह मंदिर खासतौर पर एक दक्षिण भारतीय वैष्णव संत- भगवान श्री गोदा रणगमन्नार और कृष्ण के अवतार- भगवान रंगनाथ को समर्पित है।

रात में निधिवन के अंदर क्यों नहीं जा सकते हैं?

धने पेड़-पौधों से घिरा वृंदावन का निधिवन बाकी जंगलों की तरह ही है लेकिन कृष्ण के आगमन से यह जगह खास और पावन मानी जाती है. यहीं पर पेड़ों के बीच एक छोटा-सा महल है, जिसे रंग महल के नाम से जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, निधिवन के रंग महल में हर रात श्रीकृष्ण अपनी गोपियों के संग रासलीला रचाने आते हैं. ऐसा कहते हैं कि इस रासलीला को जिसने देखना चाहा है उसका मानसिक संतुलन खराब हो गया है. यही वजह है कि निधिवन में शाम के समय अंदर जाने की मनाही होती है. वहीं, शरद पूर्णिमा की रात पर निधिवन में प्रवेश पूरी तरह बंद रहता है.

निधिवन से जुड़ी मान्यता

निधिवन के रंग महल में सूरज ढलने के बाद कान्हा के लिए माखन-मिश्री का भोग और साथ में पानी रखा जाता है. इसके अलावा राधा रानी के लिए श्रृंगार का सामान और दातुन भी रखा जाता है. ऐसी मान्यता है कि जब सुबह मंदिर के कपाट खुलते हैं तो पानी का बर्तन खाली रहता है और दातुन गीली मिलती है. लोगों का कहना है कि कृष्ण हर रोज यहां आकर इन सब का भोग लगाते हैं.

दिन में खुला रहता है मंदिर

सूरज ढलते ही निधिवन को खाली करा लिया जाता है और 7 तालों से यहां के कपाट बंद कर दिया जाता है लेकिन वृंदावन आने वाले श्रद्धालु दिन में किसी भी समय निधिवन में प्रवेश कर सकते हैं. निधिवन के इस जंगल में तुलसी, मेहंदी और कदम्ब के पेड़ हैं. कहा जाता है कि निधिवन में स्थित तुलसी के पेड़ रात के समय गोपियों के रूप में आ जाते हैं. निधिवन में रंग महल के अलावा राधा रानी का प्रसिद्ध मंदिर भी मौजूद है

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