Vat Savitri Vrat 2023 Details:-हर साल सुहागिनें पति की लंबी उम्र के लिए ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को वट सावित्री व्रत रखती हैं। इस दिन स्त्रियां अपने सुहाग के उत्तम स्वास्थ और सुखी दांपत्य जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। वट सावित्री का व्रत करवा चौथ जितना ही फलदायी माना गया है। विवाहित महिलाओं के लिए वट सावित्री व्रत का दिन त्योहार के समान विशेष महत्व रखता है. इस व्रत को स्त्रीत्व का प्रतीक माना गया है। भारत के कुछ राज्यों में वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा पर भी रखा जाता है।
वट सावित्री व्रत मुहूर्त क्या है ?
तारीख 06 जून 2024
दिन गुरूवार
अमावस्या तिथि प्रारम्भ 05 जून 2024, 07:54 पी एम बजे
अमावस्या तिथि समाप्त 06 जून 2024, 06:07 पी एम बजे
Vat Savitri Vrat 2023:- वट सावित्री पूजा सामग्री क्या है ?
वट सावित्री व्रत की पूजन सामग्री में सावित्री-सत्यवान की मूर्तियां, धूप, दीप, घी, बांस का पंखा, लाल कलावा, सुहाग का समान, कच्चा सूत, चना (भिगोया हुआ), बरगद का फल, जल से भरा कलश आदि शामिल करना चाहिए।
Vat Savitri Vrat 2023:- वट सावित्री व्रत का महत्व क्या है ?
प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक जब देवी सावित्री के पति सत्यवान की मृत्यु हो गई थी तो मृत्यु के देवता यमराज उनके प्राण लेने के लिए पहुंचे लेकिन वहां पर सावित्री के सतीत्व से प्रभावित होकर उन्होंने उसे दूसरा जीवनदान दे दिया। उसी दिन से इस व्रत को रखने का सिलसिला शुरू हो गया. इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा और परिक्रमा की जाती है।
Vat Savitri Vrat 2023:- वट सावित्री व्रत पूजा विधि क्या है ?
वट सावित्री व्रत की पूजा के लिए एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज रखे जाते हैं जिसे कपड़े के दो टुकड़ों से ढक दिया जाता है। एक दूसरी बांस की टोकरी में देवी सावित्री की प्रतिमा रखी जाती है। वट वृक्ष पर महिलायें जल चढ़ा कर कुमकुम, अक्षत चढ़ाती हैं। फिर सूत के धागे से वट वृक्ष को बांधकर उसके सात चक्कर लगाए जाते हैं और चने गुड़ का प्रसाद बांटा जाता है। इसके बाद महिलाएं कथा सुनती हैं।
Vat Savitri Vrat 2023:- वट सावित्री की पूजा महिलाएं कैसे करें ?
- महिलाएं सुबह उठकर स्नान कर नए वस्त्र पहनें और सोलह श्रृंगार करें।
- अब निर्जला व्रत का संकल्प लें और घर के मंदिर में पूजन करें।
- अब 24 बरगद फल (आटे या गुड़ के) और 24 पूरियां अपने आंचल में रखकर वट वृक्ष पूजन के लिए जाएं।
- अब 12 पूरियां और 12 बरगद फल वट वृक्ष पर चढ़ा दें।
- इसके बाद वट वृक्ष पर एक लोट जल चढ़ाएं।
- फिर वट वक्ष को हल्दी, रोली और अक्षत लगाएं।
- अब फल और मिठाई अर्पित करें।
- इसके बाद धूप-दीप से पूजन करें।
- अब वट वृक्ष में कच्चे सूत को लपटते हुए 12 बार परिक्रमा करें।
- हर परिक्रमा पर एक भीगा हुआ चना चढ़ाते जाएं।
- परिक्रमा पूरी होने के बाद सत्यवान व सावित्री की कथा सुनें।
- अब 12 कच्चे धागे वाली एक माला वृक्ष पर चढ़ाएं और दूसरी खुद पहन लें।
- अब 6 बार माला को वृक्ष से बदलें और अंत में एक माला वृक्ष को चढ़ाएं और एक अपने गले में पहन लें।
- पूजा खत्म होने के बाद घर आकर पति को बांस का पंख झलें और उन्हें पानी पिलाएं।
- अब 11 चने और वट वृक्ष की लाल रंग की कली को पानी से निगलकर अपना व्रत तोड़ें।
Vat Savitri Vrat 2023:- वट सावित्री व्रत कथा क्या है ?
पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्र देश के एक राजा थे, जिनका नाम अश्वपति था। राजा अश्वपति के कोई संतान न थी. उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियां दीं। करीब 18 वर्षों तक वह ऐसा करते रहे। इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी। सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने के कारण से कन्या का नाम सावित्री रखा गया। कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान हुई। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे. उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा।
सावित्री तपोवन में भटकने लगी. वहां साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे, क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया। ऋषिराज नारद को जब यह बात पता चली तो वह राजा अश्वपति के पास पहुंचे और कहा कि हे राजन! यह क्या कर रहे हैं आप? सत्यवान गुणवान हैं, धर्मात्मा हैं और बलवान भी हैं, पर उसकी आयु बहुत छोटी है, वह अल्पायु हैं। एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी।
ऋषिराज नारद की बात सुनकर राजा अश्वपति घोर चिंता में डूब गए। सावित्री ने उनसे कारण पूछा, तो राजा ने कहा, पुत्री तुमने जिस राजकुमार को अपने वर के रूप में चुना है वह अल्पायु हैं। तुम्हे किसी और को अपना जीवन साथी बनाना चाहिए।
इस पर सावित्री ने कहा कि पिताजी, आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं, राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है। सावित्री हठ करने लगीं और बोलीं मैं सत्यवान से ही विवाह करूंगी। राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया।
सावित्री अपने ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा करने लगी। समय बीतता चला गया. नारद मुनि ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था। वह दिन जैसे-जैसे करीब आने लगा, सावित्री अधीर होने लगीं. उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद मुनि द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया।
हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने जंगल चले गये साथ में सावित्री भी गईं। जंगल में पहुंचकर सत्यवान लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गये। तभी उसके सिर में तेज दर्द होने लगा, दर्द से व्याकुल सत्यवान पेड़ से नीचे उतर गये। सावित्री अपना भविष्य समझ गईं।
सत्यवान के सिर को गोद में रखकर सावित्री सत्यवान का सिर सहलाने लगीं। तभी वहां यमराज आते दिखे। यमराज अपने साथ सत्यवान को ले जाने लगे। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ीं। यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की कि यही विधि का विधान है। लेकिन सावित्री नहीं मानी।
सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देख कर यमराज ने सावित्री से कहा कि हे देवी, तुम धन्य हो। तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो। सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें। यमराज ने कहा ऐसा ही होगा। जाओ अब लौट जाओ। लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान के पीछे-पीछे चलती रहीं।
यमराज ने कहा देवी तुम वापस जाओ। सावित्री ने कहा भगवन मुझे अपने पतिदेव के पीछे-पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है। पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है। यह सुनकर उन्होने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिए कहा। सावित्री बोलीं हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुन: वापस दिला दें। यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया और कहा अब तुम लौट जाओ, लेकिन सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं।
यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा। इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्य का वरदान मांगा। यमराज ने इसका वरदान भी सावित्री को दे दिया। सावित्री ने यमराज से कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। यमराज अंतध्यान हो गए और सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था।
सत्यवान जीवंत हो गया और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य की ओर चल पड़े। दोनों जब घर पहुंचे तो देखा कि माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है। इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे।