Rama Ekadashi 2024:- रमा, मां लक्ष्मी का ही एक नाम है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। यह भगवान श्रीहरि के योग निद्रा से जागने से पहले की अंतिम एकादशी (Rama Ekadashi 2024) होती है। रमा एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। एकादशी व्रत में पूजन पाठ के साथ व्रत नियमों का भी विशेष महत्व होता है। शास्त्रों के अनुसार, एकादशी व्रत नियमों का पालन करने वाले भक्तों की भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
रमा एकादशी 2024 व्रत का महत्व
धर्मराज युधिष्ठिर के आग्रह पर भगवान श्री कृष्ण द्वारा सभी पापों से मानव को मुक्त करने वाली पावन रमा एकादशी के महात्म्य के बारे में बताते हैं| जो मनुष्य साल भर आने वाली एकादशी तिथि के व्रत धारण नहीं कर पाता है वो महज इस एकादशी का व्रत रखने से ही जीवन की दुर्बलता और पापों से मुक्ति पाकर आनन्दित जीवन जीने लगता हैं|
पद्म पुराण वर्णित इसके महत्व के बारे में बताया गया हैं कि जो फल कामधेनु और चिन्तामणि से प्राप्त होता है उसके समतुल्य फल रमा एकादशी के व्रत रखने से प्राप्त हो जाता हैं| सभी पापों का नाश करने वाली और कर्मों का फल देने वाली रमा एकादशी का व्रत रखने से धन धान्य की कमी भी दूर हो जाती हैं|
रामा एकादशी 2024 कब है
माता लक्ष्मी और भगवान् श्री विष्णु की पूजा करने का विधान है, ऐसा माना जाता है की इस व्रत और पूजा के करने से माता लक्ष्मी अति प्रसन्न होती है,और वे अपने भक्तो की सभी मनोकामना को पूर्ण करती है।
तारीख (Date) 28 अक्टूबर 2024
वार (Day) सोमवार
एकादशी तिथि प्रारम्भ (Ekadashi Started) अक्टूबर 27, 2024 को सुबह 05:23 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त (Ekadashi Ended) अक्टूबर 28, 2024 को सुबह 07:50 बजे तक
पारण (व्रत तोड़ने का) समय (Parana Time) 29 अक्टूबर 2024 को सुबह 06:31 से सुबह 08:44 तक
Rama Ekadashi 2024:-एकादशी के दिन क्या करें और क्या नहीं
संभव हो तो व्रत करें
एकादशी तिथि भगवान विष्णु को प्रिय होती है। अगर संभव हो तो इस पावन दिन व्रत रखें। इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु का आर्शीवाद प्राप्त होता है।
माता लक्ष्मी की पूजा भी करें
इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा- अर्चना भी करनी चाहिए। माता लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
सात्विक भोजन करें
इस पावन दिन सात्विक भोजन करना चाहिए। एकादशी के दिन मांस- मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन पहले भगवान को भोग लगाएं, उसके बाद ही भोजन ग्रहण करें।
चावल का सेवन न करें
एकादशी के दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन चावल का सेवन करना अशुभ माना जाता है।
ब्रह्मचर्य का पालन करें
एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और किसी के प्रति अपशब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
दान- पुण्य करें
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दान करने से कई गुना फल की प्राप्ति होती है। इस पावन दिन अपनी क्षमता के अनुसार दान जरूर करें।
भगवान विष्णु को तुलसी अर्पित करें
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु को तुलसी अतिप्रिय होती है। इस पावन दिन भगवान विष्णु को तुलसी जरूर अर्पित करें।
Rama ekadashi 2024:- रमा एकादशी की पूजन विधि
रमा एकादशी के पर भगवान विष्णु का माता लक्ष्मी के पूजन का विधान है। इस दिन सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। पूजन के लिए सबसे पहले एक चौकी पर पीले रंग का आसन बिछा कर, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें। भगवान का हल्दी मिश्रित जल चढ़ा कर अभिषेक करें। उन्हें धूप, दीप, और चंदन का टीका लगाना चाहिए। एकादशी के पूजन में विष्णु जी को पीले रंग के फूल और वस्त्र अर्पित करें और मां लक्ष्मी को गुलाबी रंग के। गुड़ और चने की दाल का भोग लगा कर व्रत कथा का पाठ करना चाहिए। पूजन का अंत लक्ष्मी रमणा की आरती गा कर किया जाता है।
Rama Ekadashi 2024:- रमा एकादशी व्रत कथा
पौराणिक युग में मुचुकुंद नामक प्रतापी राजा थे, इनकी एक सुंदर कन्या थी, जिसका नाम चन्द्रभागा था। इनका विवाह राजा चन्द्रसेन के बेटे शोभन के साथ किया गया। शोभन शारीरिक रूप से अत्यंत दुर्बल था तथा भूख को बर्दाशत नहीं कर सकता था। एक बार दोनों मुचुकुंद राजा के राज्य में गये। उसी दौरान रमा एकादशी व्रत की तिथी थी। चन्द्रभागा को यह सुन चिंता हो गई क्योंकि उसके पिता के राज्य में एकादशी के दिन पशु भी अन्न आदि नहीं खा सकते थे तो मनुष्य की तो बात ही दूर रही। उसने यह बात अपने पति शोभन से कही और कहा अगर आपको कुछ खाना है, तो इस राज्य से दूर किसी अन्य राज्य में जाकर भोजन ग्रहण करना होगा। पूरी बात सुनकर शोभन ने निर्णय लिया कि वह रमा एकादशी का व्रत करेंगे, इसके बाद ईश्वर पर छोड़ देंगे।
रमा एकादशी व्रत संकल्प प्रारम्भ हुआ। शोभन का व्रत बहुत कठिनाई से बीत रहा था, व्रत होते-होते रात बीत गई और शोभन ने प्राण त्याग दिये। पूर्ण विधि विधान के साथ उनकी अंत्येष्टि की गई और उसके बाद उनकी पत्नी चन्द्रभागा अपने पिता के घर ही रहने लगी। उसने अपना पूरा मन पूजा-पाठ में लगाया और विधि के साथ एकादशी का व्रत किया। दूसरी तरफ शोभन को एकादशी व्रत का पुण्य मिलता है और वो मरने के बाद एक बहुत भव्य देवपुर का राजा बनता है, जिसमें असीमित धन और एश्वर्य हैं।
एक दिन सोम शर्मा नामक ब्रह्माण उस देवपुर के पास से गुजरता है और शोभन को देख पहचान लेता है। उससे पूछता है कि कैसे यह सब ऐश्वर्य प्राप्त हुआ। तब शोभन उसे बताता हैं कि यह सब रमा एकादशी का प्रताप है लेकिन यह सब अस्थिर है। कृपा कर मुझे इसे स्थिर करने का उपाय बताएं। इसके पश्चात सोम शर्मा उससे विदा लेकर शोभन की पत्नी से मिलने जाते हैं और शोभन के देवपुर का सत्य बताते हैं। चन्द्रभागा यह सुन बहुत खुश होती है और सोम शर्मा से कहती है कि आप मुझे अपने पति से मिलवा दो। तब सोम शर्मा उसे बताते हैं कि यह सब ऐश्वर्य अस्थिर है। तब चन्द्रभागा कहती है कि वो अपने पुण्यो से इस सब को स्थिर कर देगी।
सोम शर्मा अपने मन्त्रों एवं ज्ञान के द्वारा चन्द्रभागा को दिव्य बनाते हैं और शोभन के पास भेजते हैं। तब चन्द्रभागा उससे कहती है मैंने पिछले आठ वर्षाे से नियमित रमा एकादशी का व्रत किया है। मेरे उन सब जीवन भर के पुण्यों का फल मैं आपको अर्पित करती हूं। उसके ऐसा कहते ही देव नगरी का ऐश्वर्य स्थिर हो जाता है। इस प्रकार रमा एकादशी का महत्व पुराणों में बताया गया है। इसके पालन से जीवन की दुर्बलता कम होती है तथा जीवन पापमुक्त होता है।