Pitru Paksha 2023: पितृ पक्ष कब से शुरू, जानें श्राद्ध की तिथियां, नियम, विधि और महत्व

pitru paksh 2023

Pitru Paksha 2023: सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष में स्नान-ध्यान तर्पण श्राद्ध कर्म इत्यादि से व्यक्ति को पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और पूर्वजों की आत्मा को तृप्ति प्राप्त होती है। इस अवधि में पितर अपने परिवार के सदस्यों से मिलने के लिए मृत्युलोक पर आते हैं। आइए जानते हैं कब से शुरू हो रहा है पितृ पक्ष?पितृ पक्ष 29 सितंबर से 14 अक्टूबर तक चलेंगे.

 

Pitru Paksha 2023:पितृ पक्ष 2023 प्रारंभ तिथि कब?

पंचांग के अनुसार, अश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि 29 सितंबर 2023, शुक्रवार के दिन पड़ रही है। ऐसे में इसी दिन से पितृ पक्ष का शुभारंभ हो जाएगा। बता दें कि पितृ पक्ष का समापन अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन हो जाता है, जो 14 अक्टूबर 2023, शनिवार के दिन पड़ रहा है। बता दें कि विक्रम संवत 2080 में पितृ पक्ष की शुरुआत 15 दिन देरी से हो रही है। ऐसा अधिक मास या पुरुषोत्तम मास के कारण हुआ है।

 

Pitru Paksha 2023:पितृ पक्ष 2023 कैलेंडर

  • 29 सितंबर 2023, शुक्रवार: पूर्णिमा श्राद्ध
  • 30 सितंबर 2023, शनिवार: द्वितीया श्राद्ध
  • 01 अक्टूबर 2023, रविवार: तृतीया श्राद्ध
  • 02 अक्टूबर 2023, सोमवार: चतुर्थी श्राद्ध
  • 03 अक्टूबर 2023, मंगलवार: पंचमी श्राद्ध
  • 04 अक्टूबर 2023, बुधवार: षष्ठी श्राद्ध
  • 05 अक्टूबर 2023, गुरुवार: सप्तमी श्राद्ध
  • 06 अक्टूबर 2023, शुक्रवार: अष्टमी श्राद्ध
  • 07 अक्टूबर 2023, शनिवार: नवमी श्राद्ध
  • 08 अक्टूबर 2023, रविवार: दशमी श्राद्ध
  • 09 अक्टूबर 2023, सोमवार: एकादशी श्राद्ध
  • 11 अक्टूबर 2023, बुधवार: द्वादशी श्राद्ध
  • 12 अक्टूबर 2023, गुरुवार: त्रयोदशी श्राद्ध
  • 13 अक्टूबर 2023, शुक्रवार: चतुर्दशी श्राद्ध
  • 14 अक्टूबर 2023, शनिवार: सर्व पितृ अमावस्या

 

Pitru Paksha 2023:पितृ पक्ष का महाभारत से एक प्रसंग

श्राद्ध का एक प्रसंग महाभारत महाकाव्य से इस प्रकार है, कौरव-पांडवों के बीच युद्ध समाप्ति के बाद, जब सब कुछ समाप्त हो गया, दानवीर कर्ण मृत्यु के बाद स्वर्ग पहुंचे। उन्हें खाने मे सोना, चांदी और गहने भोजन के जगह परोसे गये। इस पर, उन्होंने स्वर्ग के स्वामी इंद्र से इसका कारण पूछा।

इस पर, इंद्र ने कर्ण को बताया कि पूरे जीवन में उन्होंने सोने, चांदी और हीरों का ही दान किया, परंतु कभी भी अपने पूर्वजों के नाम पर कोई भोजन नहीं दान किया। कर्ण ने इसके उत्तर में कहा कि, उन्हें अपने पूर्वजों के बारे मैं कोई ज्ञान नही था, अतः वह ऐसा करने में असमर्थ रहे।

तब, इंद्र ने कर्ण को पृथ्वी पर वापस जाने के सलाह दी, जहां उन्होंने इन्हीं सोलह दिनों के दौरान भोजन दान किया तथा अपने पूर्वजों का तर्पण किया। और इस प्रकार दानवीर कर्ण पित्र ऋण से मुक्त हुए।

 

Pitru Paksha 2023:पितृ पक्ष में पूर्वज़ों का श्राद्ध कैसे करें?

जिस पूर्वज, पितर या परिवार के मृत सदस्य के परलोक गमन की तिथि अगर याद हो तो पितृपक्ष में पड़ने वाली उसी तिथि को ही उनका श्राद्ध करना चाहिये। यदि देहावसान की तिथि ज्ञात न हो तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध किया जा सकता है, जिसे सर्वपितृ अमावस्या को महालय अमावस्या भी कहा जाता है। समय से पहले यानि कि किसी दुर्घटना अथवा आत्मदाह आदि से अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है।

श्राद्ध तीन पीढि़यों तक करने का विधान बताया गया है। यमराज हर वर्ष श्राद्ध पक्ष में सभी जीवों को मुक्त कर देते हैं, जिससे वह अपने स्वजनों के पास जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। तीन पूर्वज में पिता को वसु के समान, रुद्र देवता को दादा के समान तथा आदित्य देवता को परदादा के समान माना जाता है। श्राद्ध के समय यही अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते हैं।

 

 

सर्वपितृ अमावस्या(14 October 2023)

पितृ पक्ष के अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या या महालया अमावस्या के रूप में जाना जाता है। महालया अमावस्या पितृ पक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। जिन व्यक्तियों को अपने पूर्वजों की पुण्यतिथि की सही तारीख / दिन नहीं पता होता, वे लोग इस दिन उन्हें श्रद्धांजलि और भोजन समर्पित करके याद करते हैं।

 

भरणी श्राद्ध(2 October 2023)

भरणी श्राद्ध पितृ पक्ष के दौरान एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है और इसे ‘महाभरणी श्राद्ध’ के नाम से भी जाना जाता है। भरणी श्राद्ध में अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूजा की जाती है। जो लोग अपने पूरे जीवन में कोई तीर्थ यात्रा नहीं कर पाते हैं। ऐसे लोगों की मृत्यु के बाद भरणी श्राद्ध किया जाता है ताकि उन्हें मातृगया, पितृ गया, पुष्कर तीर्थ और बद्री केदार आदि तीर्थों पर किए गए श्राद्ध का फल मिले।

भरणी श्राद्ध पितृ पक्ष के भरणी नक्षत्र में किया जाता है। किसी की मृत्यु के पहले वर्ष में भरणी श्राद्ध नहीं किया जाता क्योंकि प्रथम वार्षिक वर्ष श्राद्ध करने तक मृत व्यक्ति की आत्मा जीवित रहती है। लेकिन प्रथम वर्ष के बाद भरणी श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

भरणी श्राद्ध के दौरान अनुष्ठान:

❀ पवित्र ग्रंथों के अनुसार, भरणी श्राद्ध को गया, काशी, प्रयाग, रामेश्वरम आदि पवित्र स्थानों पर करने का सुझाव दिया गया है।

❀ भरणी श्राद्ध करने का शुभ समय कुतप मुहूर्त और रोहिणा आदि मुहूर्त है, उसके बाद दोपहर का त्योहार समाप्त होने तक। श्राद्ध के अंत में तर्पण किया जाता है।

❀ भरणी श्राद्ध के दिन कौओं को भी भोजन खिलाना चाहिए, क्योंकि उन्हें भगवान यमराज का दूत माना जाता है। कौवे के अलावा कुत्ते और गाय को भी भोजन कराया जाता है।

❀ ऐसा माना जाता है कि भरणी श्राद्ध अनुष्ठान को धार्मिक और पूरी श्रद्धा के साथ करने से मुक्त आत्मा को शांति मिलती है और वे बदले में अपने वंशजों को शांति, सुरक्षा और समृद्धि प्रदान करते हैं।

भरणी श्राद्ध का महत्व:

कहा गया है कि भरणी श्राद्ध के गुण गया श्राद्ध के समान होते हैं इसलिए इसकी बिल्कुल भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। यह दिन महालया अमावस्या के बाद पितृ श्राद्ध अनुष्ठान के दौरान सबसे अधिक मनाया जाता है।

 

Pitru Paksha 2023:पितर चालीसा (Pitar Chalisa)

।। दोहा ।।

हे पितरेश्वर आपको दे दियो आशीर्वाद,

चरणाशीश नवा दियो रखदो सिर पर हाथ।

सबसे पहले गणपत पाछे घर का देव मनावा जी,

हे पितरेश्वर दया राखियो करियो मन की चाया जी।।

।। चौपाई ।।

पितरेश्वर करो मार्ग उजागर, चरण रज की मुक्ति सागर।

परम उपकार पित्तरेश्वर कीन्हा, मनुष्य योणि में जन्म दीन्हा।

मातृ-पितृ देव मनजो भावे, सोई अमित जीवन फल पावे।

जै-जै-जै पित्तर जी साईं, पितृ ऋण बिन मुक्ति नाहिं।

चारों ओर प्रताप तुम्हारा, संकट में तेरा ही सहारा।

नारायण आधार सृष्टि का, पित्तर जी अंश उसी दृष्टि का।

प्रथम पूजन प्रभु आज्ञा सुनाते, भाग्य द्वार आप ही खुलवाते।

झुंझुनू में दरबार है साजे, सब देवों संग आप विराजे।

प्रसन्न होय मनवांछित फल दीन्हा, कुपित होय बुद्धि हर लीन्हा।

पित्तर महिमा सबसे न्यारी, जिसका गुणगावे नर नारी।

तीन मण्ड में आप बिराजे, बसु रुद्र आदित्य में साजे।

नाथ सकल संपदा तुम्हारी, मैं सेवक समेत सुत नारी।

छप्पन भोग नहीं हैं भाते, शुद्ध जल से ही तृप्त हो जाते।

तुम्हारे भजन परम हितकारी, छोटे बड़े सभी अधिकारी।

भानु उदय संग आप पुजावै, पांच अँजुलि जल रिझावे।

ध्वज पताका मण्ड पे है साजे, अखण्ड ज्योति में आप विराजे।

सदियों पुरानी ज्योति तुम्हारी, धन्य हुई जन्म भूमि हमारी।

शहीद हमारे यहाँ पुजाते, मातृ भक्ति संदेश सुनाते।

जगत पित्तरो सिद्धान्त हमारा, धर्म जाति का नहीं है नारा।

हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, सब पूजे पित्तर भाई।

हिन्दू वंश वृक्ष है हमारा, जान से ज्यादा हमको प्यारा।

गंगा ये मरुप्रदेश की, पितृ तर्पण अनिवार्य परिवेश की।

बन्धु छोड़ना इनके चरणाँ, इन्हीं की कृपा से मिले प्रभु शरणा।

चौदस को जागरण करवाते, अमावस को हम धोक लगाते।

जात जडूला सभी मनाते, नान्दीमुख श्राद्ध सभी करवाते।

धन्य जन्म भूमि का वो फूल है, जिसे पितृ मण्डल की मिली धूल है।

श्री पित्तर जी भक्त हितकारी, सुन लीजे प्रभु अरज हमारी।

निशदिन ध्यान धरे जो कोई, ता सम भक्त और नहीं कोई।

तुम अनाथ के नाथ सहाई, दीनन के हो तुम सदा सहाई।

चारिक वेद प्रभु के साखी, तुम भक्तन की लज्जा राखी।

नाम तुम्हारो लेत जो कोई, ता सम धन्य और नहीं कोई।

जो तुम्हारे नित पाँव पलोटत, नवों सिद्धि चरणा में लोटत।

सिद्धि तुम्हारी सब मंगलकारी, जो तुम पे जावे बलिहारी।

जो तुम्हारे चरणा चित्त लावे, ताकी मुक्ति अवसी हो जावे।

सत्य भजन तुम्हारो जो गावे, सो निश्चय चारों फल पावे।

तुमहिं देव कुलदेव हमारे, तुम्हीं गुरुदेव प्राण से प्यारे।

सत्य आस मन में जो होई, मनवांछित फल पावें सोई।

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई, शेष सहस्र मुख सके न गाई।

मैं अतिदीन मलीन दुखारी, करहु कौन विधि विनय तुम्हारी।

अब पित्तर जी दया दीन पर कीजै, अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै।

।। दोहा ।।

पित्तरों को स्थान दो, तीरथ और स्वयं ग्राम।

श्रद्धा सुमन चढ़ें वहां, पूरण हो सब काम।।

झुंझुनू धाम विराजे हैं, पित्तर हमारे महान।

दर्शन से जीवन सफल हो, पूजे सकल जहान।।

जीवन सफल जो चाहिए, चले झुंझुनू धाम।

पित्तर चरण की धूल ले, हो जीवन सफल महान।।

 

Pitru Paksha 2023:पितृ पक्ष में जरूर करें ये उपाय

  • शास्त्रों में यह विदित है कि पितृ पक्ष में स्नान-दान और तर्पण इत्यादि का विशेष महत्व है। इस अवधि में किसी ज्ञानी द्वारा ही श्राद्ध कर्म या पिंडदान इत्यादि करवाना चाहिए। साथ ही किसी ब्राहमण को या जरूरतमंद को अन्न, धन या वस्त्र का दान करें। ऐसा करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  • पितृ पक्ष पूर्वजों की मृत्यु के तिथि के अनुसार श्राद्ध कर्म या पिंडदान किया जाता है। किसी व्यक्ति को यदि अपने पूर्वजों की मृत्यु का तिथि याद नहीं है तो वह अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन यह कर्म कर सकते हैं। ऐसा करने से भी पूर्ण फल प्राप्त होता है।

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