पौष पुत्रदा एकादशी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण दिन है, इसे हिंदू धर्म में एक पवित्र दिन माना जाता है। यह व्रत पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। यह दिन पूरी तरह से भगवान विष्णु को समर्पित है और इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। पुत्रदा एकादशी को केवल इस नाम से ही जाना जाता है – “पुत्रों को देने वाली एकादशी”। यह एकादशी साल के दिसंबर-जनवरी महीने में आती है। पुत्रदा एकदशी साल में दो बार आती है जिसे श्रावण पुत्रदा एकदशी कहा जाता है जो जुलाई-अगस्त के महीने में आती है और दूसरी पौष पुत्रदा एकदशी जो दिसंबर-जनवरी के महीने में आती है। यह पौष पुत्रदा एकादशी उत्तर भारत में अधिक लोकप्रिय है, जबकि अन्य राज्य श्रावण को अधिक महत्व देते हैं।
यह दिन विशेष रूप से विष्णु के अनुयायी वैष्णवों द्वारा मनाया जाता है। हिंदू समाज में पुत्र को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि वह बुढ़ापे में माता-पिता की देखभाल करता है और मृत्यु के बाद श्राद्ध करता है। जबकि प्रत्येक एकादशी कुछ लक्ष्यों के लिए निर्धारित की जाती है, पुत्र प्राप्ति का लक्ष्य इतना महान है कि दो पुत्रदाएं एकादशियों को समर्पित की जाती हैं।
पौष पुत्रदा एकादशी 2024 कब है? (Pausha Putrada Ekadashi kab hai?)
समर्थ / वैष्णव / इस्कॉन / गौरिया – 21 जनवरी 2024, रविवार (स्थल – मुंबई, महाराष्ट्र)
व्रत तोड़ने(पारण) का समय – 22 जनवरी 2024 सुबह 07.18 मिनट से सुबह 9.30 मिनट तक
पौष पुत्रदा एकादशी तिथि (Pausha Putrada Ekadashi Tithi)
प्रारंभ – 20 जनवरी 2024 शनिवार शाम 07.26 मिनट से
समाप्ति – 21 जनवरी 2024 सोमवार सुबह 07.26 मिनट तक
पौष पुत्रदा एकादशी 2024 पर महत्वपूर्ण समय
सूर्योदय 21 जनवरी 2024 सुबह 7:14 बजे
सूर्यास्त 21 जनवरी 2024 शाम 6:01 बजे
एकादशी तिथि आरंभ 20 जनवरी 2024 शाम 7:27 बजे
एकादशी तिथि समाप्त 21 जनवरी 2024 शाम 7:27 बजे
हरि वासर अंत क्षण 22 जनवरी 2024 1:33 पूर्वाह्न
द्वादशी समाप्ति क्षण 22 जनवरी 2024 शाम 7:52 बजे
पारण का समय 22 जनवरी, सुबह 7:13 बजे – 22 जनवरी, सुबह 9:23 बजे
क्यों रखते हैं सावन पुत्रदा एकादशी व्रत?
सावन पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व आप इस व्रत के नाम से ही जान सकते हैं. पुत्रदा एकादशी का अर्थ है, वह एकादशी व्रत, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति को पुत्र की प्राप्ति होती है. जिन लोगों की वंश वृद्धि नहीं होती है या जो संतानहीन हैं, उनको पुत्रदा एकादशी का व्रत रखना चाहिए. विष्णु भगवान के अशीष से आपको पुत्र की प्राप्ति हो सकती है.
पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व:
हिंदू समाज में पुत्र पैदा करना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि वही बुढ़ापे में माता-पिता की देखभाल करता है। इसके अलावा हिंदू रीति-रिवाजों में, एक पुत्र ही अपने पूर्वजों को ‘श्राद्ध’ देने का हकदार है। इसलिए ‘पौष पुत्रदा एकादशी’ का यह दिन दंपत्तियों को पुत्र संतान प्रदान करने के लिए समर्पित है। हिंदू वर्ष में कुल 24 एकादशियाँ होती हैं, जिनमें से प्रत्येक का एक विशिष्ट लक्ष्य होता है। लेकिन किसी दंपत्ति को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद देने की शक्ति केवल दो ‘पुत्रदा’ एकादशियों में मौजूद है, जिनमें से एक पौष पुत्रदा एकादशियों में से एक है। साथ ही इस पवित्र व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पाप माफ हो जाएंगे और व्रतकर्ता सुखी और समृद्ध जीवन का आनंद उठाएगा। पौष पुत्रदा एकादशी की महिमा का उल्लेख ‘भविष्य पुराण’ में राजा युधिष्ठिर और भगवान कृष्ण के बीच हुई चर्चा के रूप में किया गया है। यह ज्ञात है कि पौष पुत्रदा एकादशी का पुण्य 100 राज सूय यज्ञ या 1000 अश्वमेघ यज्ञ करने से भी अधिक है।
संतान प्राप्ति की अपनी इच्छा कैसे पूरी करें?
- सुबह के समय पति-पत्नी दोनों को मिलकर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए।
- संतान गोपाल मंत्र का जाप करें।
- मंत्र जाप के बाद दोनों को प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।
- अपने मन की इच्छा के अनुसार चीजें दान करें और गरीबों को खाना खिलाएं।
व्रत विधि
जो महिलाएं पुत्र की कामना करती हैं वे पुत्रदा एकादशी का व्रत रखती हैं और विष्णु से प्रार्थना करती हैं। पति-पत्नी अपने बच्चों की सलामती के लिए भी भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। इस दिन अनाज, बीन्स, अनाज और कुछ सब्जियों और मसालों से परहेज किया जाता है। इस व्रत में पूरे दिन उपवास रखा जाता है. श्याम को भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और कथा पढ़नी चाहिए.
कथा (कहानी)
भविष्य पुराण में भगवान कृष्ण द्वारा राजा युधिष्ठिर को बताई गई पुत्रदा एकादशी की कहानी का पता चलता है। एक बार भद्रावती के राजा सुकेतुमान और उनकी रानी शैव्या संतान न होने से बहुत दुखी थे। दोनों को चिंता थी कि उनकी मृत्यु के बाद श्राद्ध किये बिना उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी।
निराश होकर, राजा और रानी अपना राज्य छोड़कर जंगल में चले गए, और सभी को पता नहीं चला। कई दिनों तक जंगल में भटकने के बाद सुकेतुमान पुत्रदा एकादशी के दिन मानसरोवर झील के किनारे कुछ ऋषियों के आश्रम में पहुंचे। ऋषियों ने बताया कि वे दस दिव्य विश्वदेव हैं। उन्होंने राजा और रानी को पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। राजा और रानी ने आज्ञा मानी और राज्य लौट आये। जल्द ही, राजा को एक पुत्र का आशीर्वाद मिला, जो बड़ा होकर एक बहादुर राजा बन गया।
पौष पुत्रदा एकादशी के दौरान अनुष्ठान:
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत मुख्य रूप से उन महिलाओं द्वारा रखा जाता है जो पुत्र को जन्म देने की इच्छा रखती हैं। इस दिन पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा की जाती है। जोड़े अपनी संतान की भलाई के लिए अपने देवता से प्रार्थना भी करते हैं। एकादशी के दौरान बिल्कुल भी खाना नहीं खाया जाता है और व्रत 24 घंटे की अवधि तक चलता है। यहां तक कि जो लोग पौष पुत्रदा एकादशी का पालन नहीं करते हैं, उन्हें भी इस दिन अनाज, चावल, बीन्स, अनाज और विशिष्ट मसालों और सब्जियों का सेवन करने से बचना चाहिए।
पुत्र की इच्छा रखने वाले दंपत्तियों को पति-पत्नी दोनों को पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। यदि कोई पूर्ण उपवास नहीं रख सकता है, तो आंशिक उपवास की अनुमति है और यह भी उतना ही फलदायी है।
पौष पुत्रदा एकादशी के दिन दंपत्ति को सोने से बचना चाहिए और भगवान विष्णु के भक्ति गीत गाकर जागरण करना चाहिए। ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ और अन्य वैदिक मंत्रों का पाठ करना भी शुभ माना जाता है। भक्त भगवान विष्णु के नजदीकी मंदिरों में भी जाते हैं क्योंकि इस दिन विशेष पूजा और भजन कीर्तन का आयोजन किया जाता है।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha)
प्राचीनकाल में भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नामक राजा राज्य करता था। वह संतानसुख से वंचित था। उसकी भार्या का नाम शैव्या था। वह भी संतानसुख की लालसा में अत्यंत चिंतित रहा करती थी। राजा को अब धन-धान्य, स्त्री, बांधव, राज्य, वैभव इन सब में से किसी से भी सुख की अनुभूति प्राप्त नहीं हो रही थी। राजा के पितर भी रो रो कर पिंड का स्वीकार किया करते थे उन्हें भी अब यह चिंता रहती थी की अब इसके बाद हमें कौन पिंड दान करेगा।
राजा अब सदैव यही चिंता में रहता की मेरी मृत्यु के पश्चात कौन मुझे पिंड दान देगा? बगैर पुत्र के देवताओं और पितरो का ऋण कैसे चूका पाउँगा? जिस घर में पुत्र ना हो उस घर में सदैव अंधकार निवास करता है। अतः संतान प्राप्ति हेतु सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिये।
राजा अब पुत्र प्राप्ति हेतु सदैव चिंता में रहने लगे। जिनके घर में पुत्र की प्राप्ति होती है वह धन्य है। उनको इस लोक में यश और परलोक में शांति की प्राप्ति होती है अतः उनको दोनों लोक सुधर जाते है। पूर्व जन्म के कर्म के फल स्वरुप ही मनुष्य इस जन्म में धनवान और पुत्रवान बनता है।
निःसंतान राजा ने हताशा में एक समय अपना देह त्यागाने का निर्णय ले लिया किन्तु आत्महत्या सबसे बड़ा पाप होने के कारण उन्होंने अपने निर्णय को बदल दिया। एक दिन राजा अपनी इसी चिंता में वन की और शांति की खोज में निकल पड़ा और मार्ग में आनेवाले पेड़, पौधे, पशु, पक्षीओ को देखने लगा। उसने देखा वन में मृग, सिँह, सूअर, सर्प, बन्दर, भालू आदि सब भ्रमण कर रहे है। हाथी अपने शिशु और हाथनी के साथ वन में विचार रहा है।
कंही पर उसे गीदड़ जे कर्कश स्वर सुनाई पड़ रहे थे तो कंही पर उल्लू अपने तीक्ष्ण स्वर में कुछ कह रहे थे। राजा वन में विचरते विचरते यही सब दृश्य देखता हुआ सोच विचार में पड़ गया। देखते ही देखते आधा दिन बीत गया था। वह सोचने लगे मेने पुत्र प्राप्ति हेतु कई यज्ञ किए, ब्रह्मणों को स्वादिस्ट भोजन खिलाकर तृप्त किया किन्तु फिर भी उन्हें संतानसुख की प्राप्ति ना हुई, आखिर क्यों ऐसा उनके साथ हो रहा था वो समझ नहीं पर रहे थे।
वन में विहरते विहरते उन्हें प्यास लगी और अत्यंत दुःख के मारे वो जल की तलाश में यंहा वंहा फिरने लगे। थोड़ी ही दुरी पर राजा को एक सरोवर दिखाई दिया। सरोवर के पास आने पर राजा ने देखा की सरोवर में मगरमच्छ, सारस, हंस आदि विहार कर रहे थे और सरोवर की चारो और ऋषि मुनि के आश्रम विद्यमान थे। राजा जल स्तोत्र को देख वंहा जल पिने अपने अश्व से निचे उतरा उसी क्षण उसके दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा इसे कोई शुभ संकेत मान वंहा बने आश्रम की और तुरंत दौड़ पड़ा। आश्रम में स्तिथ मुनिओं सादर वंदन करते हुए वंही पर बैठ गया।
राजा को अपने समक्ष पा कर ऋषिगन अत्यंत प्रसन्न हुए और कहा –
ऋषिगन – “हे राजन, हम तुम्हारे अदार भाव से अत्यंत प्रसन्न है अतः तुम हमसे जो मांगना चाहते हो कहो..!!”
राजा – “हे मुनिश्रेष्ठ..!! आप कौन है? और यहाँ किस प्रयोजन से आये हुए है कृपा कर मुझे बताइए..!!”
ऋषिगन – “हे राजन, आज संतान सुख प्रदान करने वाली पुत्रदा एकादशी का पर्व है। हम सभी ऋषिगन विश्वदेव है और इस पवन सरोवर में स्नान करने हेतु यंहा आये है।
यह सुनकर राजा अत्यंत हर्षित हो उठे और कहा –
राजा – “हे भूदेव..!! मुझे भी कोई संतान नहीं है। यदि आप मेरे सेवाभाव से प्रसन्न है तो मुझे एक पुत्र प्राप्ति का वरदान दे।”
ऋषिगन – “हे राजन..!! आज संतान सुख प्रदान करने वाली पुत्रदा एकादशी(Pausha Putrada Ekadashi) है अतः आप अवश्य इस एकादशी का व्रत रखे। आपको निश्चित रूप से पुत्र प्राप्ति होंगी।”
मुनि के वचनो से प्रभावित हो कर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किआ और अगले दिन द्वादाशी तिथि को व्रत का पारण कर व्रत का समापन किआ। इसके पश्चात सर्व मुनिओं को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद ग्रहण करके वह पुनः अपने महल में आ गया। व्रत के प्रभाव से कुछ ही माह में महारानी ने गर्भ धारण किआ और नौ माह की अवधि समाप्त होते ही उन्हें एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। वह पुत्र बहोत तेजस्वी और शूरवीर होने के साथ ही साथ प्रजापलक भी हुआ।
श्री कृष्ण बोले – “हे धर्मराज..!! हर मनुष्य को पुत्र प्राप्ति हेतु इस पुत्रदा एकादशी(Pausha Putrada Ekadashi) का व्रत अवश्य रखना चाहिये। जो भी मनुष्य इस व्रत के महात्मय को पढ़ता या सुनता है उसे अंत समय में निश्चित रूप से स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।”
पौष पुत्रदा एकादशी के बारे में आप सभी को पता होना चाहिए
प्रत्येक अनुष्ठान के लिए विधि के उचित ज्ञान और समझ की आवश्यकता होती है। तो आइए जानते हैं पौष पुत्रदा एकादशी की विधि के बारे में:
- भक्तों को सुबह जल्दी उठकर अच्छे से स्नान करना चाहिए।
- आपको दिनभर विष्णु सहस्रनाम के स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
- यह उपवास पूरे 24 घंटे का होता है, आप अपने स्वास्थ्य और शरीर की आवश्यकता के आधार पर इसे आंशिक उपवास के रूप में भी कर सकते हैं।
- पुराने समय में भक्तों को चावल और अनाज का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
- अगर दंपत्ति को बच्चे के जन्म से परेशानी है तो दोनों पौष पुत्रदा एकादशी के सभी नियमों का पालन करते हुए व्रत रख सकते हैं।
- इस दिन भक्त को अपना सारा समय भजन-कीर्तन करके भगवान विष्णु की आराधना में लगाना चाहिए।
- इस शुभ दिन पर आपको एक विशेष पूजा करनी होगी
- भक्तों को पास के भगवान विष्णु या भगवान कृष्ण के मंदिर में जाना चाहिए और भगवान को भोजन अर्पित करना चाहिए।
- आपको सभी विधि-विधान के साथ आरती भी करनी होगी।
- आपको मंत्रों का जाप करना होगा जैसे – ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र, विष्णु अष्टोत्रम्, और विष्णु सहस्रनाम स्तोत्रम्।
- भक्तों को सोने से बचना चाहिए और चलते-फिरते भजन के साथ जागरण करना चाहिए।
- आपको पौष पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा सुननी या पढ़नी चाहिए।