Mithun Sankranti 2023:- साल में 12 संक्रांति होती है, जिसमें सूर्य अलग-अलग राशि, नक्षत्र पर विराज होता है। इन सभी संक्रांति में दान-दक्षिणा, स्नान, पुन्य का बहुत महत्व रहता है। मिथुना संक्रांति उनमें से ही एक है। मिथुना संक्रांति से सौर मंडल में बहुत बड़ा बदलाव आता है, मतलब इसके बाद से वर्षा ऋतु शुरू हो जाती है। इस दिन सूर्य वृषभ राशी से निकलकर मिथुन राशी में प्रवेश करता है। जिससे सभी राशियों में नक्षत्र की दिशा बदल जाती है। ज्योतिषों के अनुसार सूर्य में आये इस बदलाव को बहुत बड़ा माना जाता है, इसलिए इस दिन पूजन अर्चन का विशेष महत्व है। देश के विभिन्न क्षेत्र में इसे अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है, साथ ही इसे अलग नाम से पुकारते है।
Mithun Sankranti 2023:- मिथुना संक्रांति कैसे मनाते है ?
मिथुना संक्रांति में भगवान् सूर्य की पूजा की जाती है। उनसे आने वाले जीवन में शांति की उपासना करते है। पर्व के चार दिन शुरू होने के पहले वाले दिन को सजबजा दिन कहते है, इस दिन घर की औरतें आने वाले चार दिनों के पर्व की तैयारी करती है। सिल बट्टे को अच्छे से साफ करके रख दिया जाता है। मसाला पहले से पीस लेती है, क्यूंकि आने वाले चार दिन सिल बट्टे का प्रयोग नहीं किया जाता है।
चार दिनों के इस पर्व में शुरू के तीन दिन औरतें एक जगह इकठ्ठा होकर मौज मस्ती किया करती है। नाच, गाना, कई तरह के खेल होते है। बरगत के पेड़ में झूले लगाये जाते है, सभी इसमें झूलकर गीत गाती है। इस पर्व में अविवाहित भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती है। वे ट्रेडिशनल साडी पहनती है, मेहँदी लगाती है। अविवाहित अच्छे वर की चाह में ये पर्व मनाती है। कहते है जैसे धरती बारिश के लिए अपने आप को तैयार करती है, उसी तरह अविवाहित भी अपने आप को तैयार करती है, और सुखमय जीवन के लिए प्रार्थना करती है।
Mithun Sankranti 2023:- सिलबट्टे की पूजा का विधान क्या है ?
मिथुन संक्रांति पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है। इस पर्व में सिलबट्टे की पूजा का विधान है। दरअसल, सिलबट्टे को लोग भूदेवी मानकर इसकी पूजा करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन सिलबट्टे को दूध और पानी से पहले स्नान कराया जाता है। फिर सिलबट्टे को सिंदूर, चंदन लगाकर उस पर फूल और हल्दी चढ़ाई जाती है।
Mithun Sankranti 2023:- सूर्य की साधना किस विधि से करें ?
सूर्यदेव की पूजा के लिए सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। इसके पश्चात् उगते हुए सूर्य का दर्शन करते हुए उन्हें ॐ घृणि सूर्याय नम: कहते हुए जल अर्पित करें। सूर्य को दिए जाने वाले जल में लाल रोली, लाल फूल मिलाकर जल दें। सूर्य को अर्घ्य देने के पश्चात्प लाल आसन में बैठकर पूर्व दिशा में मुख करके सूर्य के मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें।
स्नान-दान का महत्व क्या है ?
मिथुन संक्रांति के दिन पवित्र नदी, जलकुंड में स्नान करने एवं दान देने का भी बड़ा महत्व है। इस दिन ब्राह्मणों, गरीबों और जरूरतमंदों को दान देने से भगवान सूर्य प्रसन्न होते हैं। सूर्यदेव के आशीर्वाद से जीवन में संपन्नता, समाज में मान-सम्मान, उच्च-पद प्रतिष्ठा प्राप्त होता है।
Mithun Sankranti 2023:- मिथुन संक्रांति के दिन क्या उपाय करें ?
- मिथुन संक्रांति के दिन सुबह सूर्योदय से पहले स्नान करके उगते सूरज को धूप दीप और आरती करें। उसके बाद प्रणाम करते हुए 7 बार परिक्रमा करें।
- गरीब और जरूरतमंद को दान करें। इससे सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं। हरे वस्तु का दान करना उत्तम होता है।
- मिथुन संक्रांति के दिन बिना नमक खाए व्रत रखें। इससे सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं।
- सूर्य देव की पूजा में तांबे की थाली और तांबे के लोटे का इस्तेमाल करें।
- मिथुन संक्रांति के दिन पालक, मूंग और हरे रंग के वस्त्रों का दान करें। इसका दान अत्यंत शुख फलदायी होता है।
Mithun Sankranti 2023:- मिथुन संक्रांति कथा क्या है ?
मिथुन संक्रांति कथा प्रकृति ने महिलाओं को मासिक धर्म का वरदान दिया है। इसी वरदान से मातृत्व का सुख मिलता है। मिथुन संक्रांति कथा के अनुसार जिस तरह महिलाओं को मासिक धर्म होता है वैसे ही भूदेवी या धरती मां को शुरुआत के तीन दिनों तक मासिक धर्म हुआ था जिसको धरती के विकास का प्रतीक माना जाता है। तीन दिनों तक भूदेवी मासिक धर्म में रहती हैं वहीं चौथे दिन में भूदेवी जिसे सिलबट्टा भी कहते हैं उन्हें स्नान कराया जाता है। इस दिन धरती माता की पूजा की जाती है। उडीसा के जगन्नाथ मंदिर में आज भी भगवान विष्णु की पत्नी भूदेवी की चांदी की प्रतिमा विराजमान है।