देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ धाम सबसे ज्यादा ऊंचाई पर बसा है. ये धाम मंदाकिनी नदी के किनारे 3581 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. ये उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है. जो पत्थरों के शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है. ये ज्योतिर्लिंग त्रिकोण आकार का है और इसकी स्थापना के बारे में कहा जाता है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ प्रकट हुए और उन्हे ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वरदान दिया.
केदारनाथ मंदिर की कथा
केदारनाथ मंदिर के विषय में प्रचलित कथा के अनुसार, पांडवों की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव नें उन्हें हत्या के पाप से मुक्त कर दिया था. मान्यता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव अपने भाईयों की हत्या से मुक्ति के लिए भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते थे. परंतु, भगवान उनसे कर्म से खुश नहीं थे, इसलिए वे केदारनाथ चले गए.
पांडव भी उनके दर्शन के लिए केदारनाथ पहुंच गए. पांडवों को वहां पहुंचने पर भगवान शिव में भैंसे का रूप धारण कर लिया. जिसके बाद वे अन्य पशुओं के बीच में चले गए ताकि पांडल भगवान शिव के उस रूप को ना पहचान पाए. कहते हैं कि भीम ने विशालकाय शरीर धारण कर दो पहाड़ों पर अपने पैर फैला दिए.
जिसके बाद उस पहाड़ के नीचे से सभी पशु तो निकल गए, लेकिन वहां मौजूद एक भैंस ने ऐसा नहीं किया. जिसके बाद भीम पूरी शक्ति से भैंस की ओर झपटे, लेकिन वह जमीन में समाने लगा. तभी भीम ने उसकी की पीठ का पिछला हिस्सा पकड़ लिया. कहा जाता है कि भगवान शिव ने भैंसे का रूप बनाया था. मान्यता है कि भगवान शिव पांडवों की ईच्छाशक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन देकर हत्या के पाप से मुक्त होने का आशीर्वाद दिया. धार्मिक मान्यता है कि उसी समय से केदारानाथ में भैंस की पीठ को शिव का रूप मानकर पूजा होने लगी.
केदारनाथ मन्दिर का महत्व :
केदारनाथ मन्दिर दिव्य दर्शियों के लिए यह ‘सबसे नशीला आध्यात्मिक स्थान’ माना जाता है। केदारनाथ मन्दिर को हिमालय की गोद में बना हुआ भी कहते है।इस मंदिर में शिव भगवन के बारह ज्योतिर्लिंग में से एक विराजमान है। इसकी गिनती चार धाम की यात्रा में की जाती है। इसे पंच केदार में भी गिना जाता है। एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान माना जा रहा है। यहां की जलवायु के कारण मन्दिर केवल अप्रैल से नवंबर तक ही दर्शन के लिए खुलता है। बाकी महीनों में आप यहां के दर्शन नहीं कर सकते, क्योंकि यहा बर्फ जमी रहती है। जिसके चलते कपाट बंद कर दिए जाते है।
पत्थरों से बना केदारनाथ मन्दिर :
बताते चलें, केदारनाथ मन्दिर पत्थरों से बना हुआ है। इस मंदिर 3,593 मीटर की ऊँचाई पर बना है, जो देखने में अद्भुत और बहुत ही सुन्दर है। इसका निर्माण पाण्डव वंश के जनमेजय ने कराया था। इस मंदिर का शिवलिंग बहुत ही प्राचीन है। मन्दिर में मुख्य भाग मण्डप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में नन्दी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। इस मंदिर का नाम सतयुग के राजा केदार के नाम पर केदार पड़ा। उनकी एक पुत्री थी वृंदा, जिसके नाम पर इस स्थान को वृंदावन भी कहा जाता है।
केदारनाथ मन्दिर की मान्यता:
केदारनाथ की बड़ी महिमा है। यहां के दर्शन करने से चार धाम में से एक धाम की यात्रा पूरी हो जाती है। केदारनाथ के संबंध में लिखा गया है कि, ‘जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है। केदारनाथ सहित नर-नारायण-मूर्ति के दर्शन का करने से समस्त पापों के नाश हो जाता है और जीवन पाप मुक्त हो जाता है। यह ऊर्जा से भरा हुआ ऐसा आध्यात्मिक स्थान है, जैसा सारी दुनिया में कहीं और नहीं है।
इस मंदिर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य :
- यह मन्दिर एक छह फीट ऊँचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है
- इतनी ऊंचाई पर इस मंदिर का निर्माण कैसे हुआ इस बारे में कोई आज तक नहीं जान पाया है।
- प्रात:काल में शिव-पिण्ड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है
- भगवान को विविध प्रकार के चित्ताकर्षक ढंग से सजाया जाता है।
- केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते हैं।
- केदारनाथ में भक्तगण केवल दूर से ही दर्शन कर सकते हैं।
- इस मन्दिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं।
- इस मंदिर की मूर्ति (शिव-पिण्ड) चार हाथ लम्बी और डेढ़ हाथ मोटी है।
- मंदिर के बड़े धूसर रंग की सीढ़ियों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ खुदा हैं, जिसे स्पष्ट पड़ना मुश्किल है।
- वैज्ञानिकों के मुताबिक केदारनाथ मंदिर 400 साल तक बर्फ में दबा रहा फिर भी इस मंदिर को कुछ नहीं हुआ, इसलिए वैज्ञानिक इस बात से हैरान नहीं है कि, ‘जल प्रलय में यह मंदिर बच गया।’
मंदाकिनी के घाट पर बना है ये मंदिर :
जानकारी के लिए बता दें, केदारनाथ मंदिर मंदाकिनी के घाट पर बना हुआ हैं। इस मंदिर के भीतर अन्धकार रहता है और दीपक के सहारे ही शंकर जी के दर्शन होते हैं। इस मंदिर की शिवलिंग स्वयंभू है। सम्मुख की ओर यात्री जल-पुष्पादि चढ़ाते हैं और दूसरी ओर भगवान को घृत अर्पित कर बांह भरकर मिलते हैं। मंदिर के जगमोहन में द्रौपदी सहित पांच पाण्डवों की विशाल मूर्तियां हैं। मंदिर के पीछे कई कुण्ड हैं, जिनमें आचमन तथा तर्पण किया जा सकता है। केदारनाथ हजारों-लाखों योगियों और ईश्वर-प्रेमियों का ठिकाना रहा है। उनकी ऊर्जा का अनुभव हम यहां कर सकते हैं। यहां हर साल काफी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते है।
पांडवों ने क्यों बनवाया था केदारनाथ मंदिर?
धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध में विजय के पश्चात पांडवों में सबसे बड़े युधिष्ठिर को हस्तिनापुर के नरेश के रूप में राज्याभिषेक किया गया. उसके बाद करीब चार दशकों तक युधिष्ठिर ने हस्तिनापुर पर राज्य किया. इसी दौरान एक दिन पांचों पांडव भगवान श्री कृष्ण के साथ बैठकर महाभारत युद्ध की समीक्षा कर रहे थे. समीक्षा में पांडवों ने श्री कृष्ण से कहा हे नारायण हम सभी भाइयों पर ब्रम्ह हत्या के साथ अपने बंधु बांधवों की हत्या कलंक है.
इस कलंक को कैसे दूर किया जाए? तब श्रीकृष्ण ने पांडवों से कहा कि ये सच है कि युद्ध में भले ही जीत तुम्हारी हुई है लेकिन तुमलोग अपने गुरु और बंधु बांधवों को मारने के कारण पाप के भागी बन गए हो. इन पापों के कारण मुक्ति मिलना असंभव है. परन्तु इन पापों से सिर्फ महादेव ही मुक्ति दिला सकते हैं. अतः महादेव की शरण में जाओ. उसके बाद श्री कृष्ण द्वारका लौट गए.
उसके बाद पांडव पापों से मुक्ति के लिए चिंतित रहने लगे और मन ही मन सोचते रहे कि कब राज पाठ को त्याग कर शिवजी की शरण में जाएं.
उसी बीच एक दिन पांडवों को पता चला कि वासुदेव ने अपना देह त्याग दिया है और वो अपने परमधाम लौट गए हैं. ये सुनकर पांडवों को भी पृथ्वी पर रहना उचित नहीं लग रहा था. गुरु, पितामह और सखा सभी तो युद्धभूमि में ही पीछे छूट गए थे. माता, ज्येष्ठ, पिता और काका विदुर भी वनगमन कर चुके थे. सदा के सहायक कृष्ण भी नहीं रहे थे. ऐसे में पांडवों ने राज्य परीक्षित को सौंप दिया और द्रौपदी समेत हस्तिनापुर छोड़कर शिव जी की तलाश में निकल पड़े.
हस्तिनापुर से निकलने के बाद पांचों भाई और द्रौपदी भगवान शिव के दर्शन के लिए सबसे पहले पाण्डवकाशी पहुंचे, पर वो वहां नहीं मिले. उसके बाद उन लोगों ने कई और जगहों पर भगवान शिव को खोजने का प्रयास किया परन्तु जहां कहीं भी ये लोग जाते शिव जी वहां से चले जाते. इस क्रम में पांचों पांडव और द्रौपदी एक दिन शिव जी को खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे.
यहां पर भी शिवजी ने इन लोगों को देखा तो वो छिप गए परन्तु यहां पर युधिष्ठिर ने भगवान शिव को छिपते हुए देख लिया. तब युधिष्ठिर ने भगवान शिव से कहा कि हे प्रभु आप कितना भी छिप जाएं लेकिन हम आपके दर्शन किए बिना यहां से नहीं जाएंगे और मैं ये भी जनता हूं कि आप इसलिए छिप रहे हैं क्यूंकि हमने पाप किया है.
युधिष्ठिर के इतना कहने के बाद पांचों पांडव आगे बढ़ने लगे. उसी समय एक बैल उन पर झपट पड़ा. ये देख भीम उससे लड़ने लगे. इसी बीच बैल ने अपना सिर चट्टानों के बीच छुपा लिया जिसके बाद भीम उसकी पुंछ पकड़कर खींचने लगे तो बैल का धड़ सिर से अलग हो गया और उस बैल का धड़ शिवलिंग में बदल गया और कुछ समय के बाद शिवलिंग से भगवान शिव प्रकट हुए. शिव ने पंड़ावों के पाप क्षमा कर दिए.
आज भी इस घटना के प्रमाण केदारनाथ का शिवलिंग बैल के कुल्हे के रूप में मौजूद हैं. भगवान शिव को अपने सामने साक्षात् देखकर पांडवों ने उन्हें प्रणाम किया और उसके बाद भगवान शिव ने पांडवों को स्वर्ग का मार्ग बतलाया और फिर अंतर्ध्यान हो गए. उसके बाद पांडवों ने उस शिवलिंग की पूजा-अर्चना की और आज वही शिवलिंग केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है.
क्यूंकि यहां पांडवों को स्वर्ग जाने का रास्ता स्वयं शिव जी ने दिखाया था इसलिए हिन्दू धर्म में केदार स्थल को मुक्ति स्थल मन जाता है और ऐसी मान्यता है कि अगर कोई केदार दर्शन का संकल्प लेकर निकले और उसकी मृत्यु हो जाए तो उस जीव को पुनः जन्म नहीं लेना पड़ता है.