कौन है श्री करणी माँ और क्यों इनके मंदिर में चलते है भक्त पैर घसीट कर,जाने माँ करणी से जुडी हर बात!!

jai maa karni

कौन है श्री करणी माँ और क्यों इनके मंदिर में चलते है भक्त पैर घसीट कर,जाने माँ करणी से जुडी हर बात!!

करणी माँ मंदिर

भारत में हिंदू धर्म (hindu dharm) उतना ही विविध धर्म है जितना कि यह लंबे समय से चला आ रहा है। आध्यात्मिकता और प्रतीकवाद इसके दो मूलभूत तत्व हैं। इसके अलावा, हिंदू धर्म के इन दो पहलुओं का एक गहरा हिस्सा जानवर हैं। जानवरों की हिंसा की प्रबल हिंदू मान्यता वास्तव में भारतीय संस्कृति के सबसे उल्लेखनीय पहलुओं में से एक है। कई प्राचीन भारतीय साहित्यिक ग्रंथों में इन प्राणियों को प्रेम और एकता के माध्यम, संस्कृति के प्रतीक और विकास के प्रेरक के रूप में माना गया है। एक जानवर का जीवन मनुष्य के समान ही माना जाता है, एकमात्र अंतर यह है कि जानवर के विपरीत उनकी इंद्रियाँ पूरी तरह से प्रकट नहीं हुई हैं। प्राणियों के वर्गीकरण से लेकर देवताओं के कई पशु अवतारों तक, प्रकृति के जानवरों की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी जोर दिया गया है। भारत में जानवरों के बारे में जितना अधिक सशक्त सन्दर्भ कोई सुनता है, वह उतना ही अधिक उत्सुक हो जाता है। वहीं राष्ट्र के भीतर असंख्य धार्मिक स्थलों का दौरा करने और उनकी पृष्ठभूमि में झाँकने से ही आप इस सदियों पुरानी संस्कृति की दहलीज से जुड़ना शुरू करते हैं। भारत में धार्मिक स्थलों में प्रमुख स्थान बीकानेर का प्रसिद्ध करणी माता मंदिर (karni mata mandir) है।

करणी माता मंदिर के नाम से मशहूर यह मंदिर बीकानेर (bikaner) में पर्यटकों के लिए सबसे आकर्षण का केंद्र है। यह मंदिर करणी माता (karni mata) को समर्पित है, जिन्हें स्थानीय लोग देवी दुर्गा का अवतार मानते हैं, जो हिंदू धर्म की सुरक्षात्मक देवी हैं। करणी माता चरण जाति की एक हिंदू योद्धा ऋषि थीं, जो चौदहवीं शताब्दी में रहती थीं। एक तपस्वी का जीवन जीते हुए, करणी माता स्थानीय लोगों द्वारा अत्यधिक पूजनीय थीं और उनके कई अनुयायी भी थे। जोधपुर और बीकानेर के महाराजाओं ने अनुरोध प्राप्त करने के बाद, उन्होंने मेहरानगढ़ और बीकानेर किलों की आधारशिला भी रखी। हालाँकि उन्हें समर्पित कई मंदिर हैं, लेकिन बीकानेर से 30 किलोमीटर की दूरी पर देशनोक शहर में यह मंदिर सबसे अधिक मान्यता प्राप्त है।

मंदिर की वास्तुकला

करणी माता मंदिर का निर्माण 20वीं शताब्दी की शुरुआत में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह द्वारा किया गया था। मंदिर की पूरी संरचना संगमरमर से बनी है और इसकी वास्तुकला मुगल शैली से मिलती जुलती है। बीकानेर की करणी माता की मूर्ति मंदिर के अंदर गर्भगृह के भीतर विराजमान है, जिसमें वह एक हाथ में त्रिशूल धारण किए हुए हैं। देवी की मूर्ति के साथ उनकी बहनों की मूर्ति भी दोनों ओर है।

प्रसाद में दी जाती है चूहों की जूठन

बीकानेर में करणी माता मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए ही लोकप्रिय नहीं है, बल्कि यह मंदिर 25,000 से ज्‍यादा चूहों का घर है, जिन्‍हें अक्‍सर ही यहां घूमते देखा जाता है। आमतौर पर कोई भी चूहों की झूठी चीज खाने के बजाय फेंक देता है, लेकिन यहां पर भक्‍तों को चूहों का झूठा प्रसाद ही दिया जाता है। यह इस मंदिर की पवित्र प्रथा है। यही वजह है कि भारत और विदेशों के विभिन्न कोनों से लोग इस अद्भुत नजारे को देखने आते हैं।

क्या है मंदिर का इतिहास

 करणी माता का मन्दिर एक प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर है जो राजस्थान के  बीकानेर जिले में स्थित है। इसमें देवी करणी माता की मूर्ति स्थापित है। यह बीकानेर से ३० किलोमीटर दक्षिण दिशा में देशनोक में स्थित है। करणी माता का जन्म चारण कुल में हुआ यह मन्दिर चूहों का मन्दिर भी कहलाया जाता है। मन्दिर मुख्यतः सफेद चूहों के लिए प्रसिद्ध है। इस पवित्र मन्दिर में लगभग 20,000 सफेद चूहे रहते हैं। इस मंदिर का निर्माण  बीकानेर के राजा गंगा सिंह द्वारा 20वीं शताब्‍दी में करवाया था। यह मंदिर काफी बड़ा और सुंदर है। यहां चूहों के अलावा, चांदी के बडे़-बड़े किवाड़, माता के सोने के छत्र और संगमरमर पर सुन्दर नक्काशियों को दर्शाया  गया है। इस मंदिर में चूहों की इतनी बहुतायत है कि लोगों को जमीन पर पैर उठाकर चलने की बजाय पैर घिसलाकर  करणी माता की मूर्ति तक पहुंचना होता है।

सुंदरता भी मोह लेती है मन

मान्यताओं के अनुसार, करणी माता मंदिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने 20वी शताब्दी में करवाया था। मंदिर पूरी तरह से संगमरमर का बना हुआ है और इसके मुख्य दरवाजे चांदी से बने हुए हैं। करणी माता की मूर्ति में उन्होंने एक हाथ में त्रिशूल पकड़ा हुआ है, साथ ही वह मुकुट और मालाओं से भी सुसज्जित हैं। माता की मूर्ति पर एक सोने का छत्र भी स्थापित है। देवी की मूर्ति के साथ दोनों ओर उनकी बहनों की मूर्तियां भी हैं।

श्री करणी माता अवतरण कथा

श्री करणी माता के जन्म से पहले उनके घर में 5 कन्याओ का जन्म हो चूका था, इस कारणवश मेहाजी बहुत ज्यादा उदास रहते थे। कई वर्ष ऐसे ही गुजर गए और एकदिन मेहाजी ने अपनी आराध्या देवी हिंगलाज माता ( वर्तमान पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ) के दर्शन करने का विचार किया और माता के दर्शन हेतु यात्रा प्रारम्भ की और हिंगलाज माता के धाम पहुँच गए।

 हिंगलाज माता की कई दिनों तक भक्ति और सेवा से मेहाजी पर माता प्रसन्न हुई और प्रकट होकर वर मांगने को कहाँ इस पर मेहाजी ने मातारानी से आश्रीवाद स्वरुप माँगा की उनके वंश का नाम चलता रहे, इस वर पर माँ हिंगलाज ने उनको तथास्तु कहाँ और अंतर्ध्यान हो गई। इस वरदान को प्राप्त कर मेहाजी बहुत प्रसन्न थे, और इसके कुछ बाद ही देवल देवी जी गर्भवती हो गई थी।

कहते हे की यह गर्भकाल 21 महीने चला था, जब प्रसव का समय आया तब मेहाजी को इस बार लड़का होने का पूर्ण विश्वास था। कथाओं के अनुसार एक रात्रि को देवल देवी को सपने में माँ हिंगलाज ने दर्शन दिए और कहाँ की उचित समय आने पर में खुद आपके घर में अवतरित हूँगी। अतः आप परेशान ना होवे। वि. सं. 1444 अश्विनी शुक्ल सप्तमी शुक्रवार को श्री करणी माता का जन्म हुवा और समस्त गाँव में खुशियों की लहर दौड़ गई।

जब रीधु बाई ( करणी माता ) का जन्म हुवा तब उनकी भुवा वही थी और उन्होंने अपने भाई के घर 6वी लड़की पैदा होने पर गुस्से में कहाँ की एक बार फिर पत्थर पैदा हुवा है घर मे इस बात पर माता करणी का चमत्कार दिखाई दिया और भुवा जी की उंगलियों को टेढ़ा कर दिया और विश्व में लड़का-लड़की एक समान होने का पहला उपदेश दिया था।

चूहे हैं  करणी माता की संतान

ऐसा माना जाता है कि ये चूहे करणी माता की संतान हैं। इसकी पौराणिक कथा के अनुसार एक बार करणी माता का सौतेला पुत्र जिसका नाम लक्ष्मण था सरोवर में पानी पी रहा था तभी उसकी डूब कर मृत्यु हो गई। जब  करनी माता को यह पता चला तो उन्होंने, यमराज को उसे पुनः जीवित करने की प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना से विवश होकर यमराज ने उसे चूहे के रूप में पुनर्जीवित कर दिया। तभी से चूहों की इस मंदिर में पूजा की जाती है और उन्हें  करणी माता की संतान माना जाता है। मंदिर में 20,000 काले चूहों के बीच कुछ सफ़ेद चूहे भी मौजूद हैं। मान्यता है कि को सफ़ेद चूहे के दर्शन होते हैं उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

करणी माता किसकी कुलदेवी है?

करणी माता बीकानेर व जोधपुर के शाही परिवार की कुलदेवी हैं। इसीलिए, पूरे बीकानेर व जोधपुर के लोग भी करणी माता को अपनी कुलदेवी मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं।

करणी माता का ससुराल

कहा जाता है कि करणी माता की शादी सथिका गांव के किपोजी चारण नामक व्यक्ति के साथ हुआ था, जिनके शादी के बाद ही माता ने तपस्वी जीवन में प्रवेश कर लिया और अपनी छोटी बहन गुलाब की शादी अपने पति के साथ करवा दी। गुलाब के पुत्रों को माता अपने पुत्रों के समान ही मानती थीं।

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