Kaal Bhairav Jayanti 2023 आज काल भैरव जयंती है| मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाते हैं| हर माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मासिक कालाष्टमी मनाई जाती है| रुद्रावतार काल भैरव सभी दुखों को दूर करने वाले और अपने भक्तों को सुरक्षा और अभय प्रदान करने वाले हैं| ये तत्र-मंत्र के देवता हैं| इनकी पूजा निशिता काल में की जाती है| इनकी सवारी कुत्ता है और इनका स्वरूप विकराल एवं भयानक है| यह शत्रुओं में भय पैदा करने वाले महाकाल हैं| तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ कृष्ण कुमार भार्गव से जानते हैं काल भैरव जयंती की तिथि, निशिता पूजा मुहूर्त और काल भैरव की पूजा विधि के बारे में|
Kaal Bhairav Jayanti 2023: कब है काल भैरव जयंती
मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाई जाती है| इस साल यह तिथि 16 नवंबर, 2023 को पड़ रही है| ऐसे में काल भैरव जयंती 16 नवंबर को ही मनाई जाएगी| धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप का पूजन करने से अकाल मृत्यु का खतरा टल जाता है| इसके साथ ही रोग, कष्ट और बुरी शक्तियों के भी छुटकारा मिल जाता है|
Kaal Bhairav Jayanti 2023: काल भैरव जंयती शुभ मुहूर्त
काल भैरव जयंती हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह (माघ) के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को होगी।
मंगलवार, 05 दिसंबर 2023
अष्टमी तिथि प्रारंभ : 04 दिसंबर 2023 को रात्रि 09:59 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त : 06 दिसंबर 2023 को 12 बजकर 37 मिनट पर
काल भैरव जयंती का महत्व
धार्मिक मान्यता है कि भगवान काल भैरव की पूजा करने से भय से मुक्ति प्राप्त होती है। कहते हैं कि अच्छे कर्म करने वालों पर काल भैरव मेहरबान रहते हैं, लेकिन जो अनैतिक कार्य करता है वह उनके प्रकोप से बच नहीं पाता है। साथ ही कहा जाता है कि जो भी भगवान भैरव के भक्तों का अहित करता है उसे तीनो लोक में कहीं भी शरण प्राप्त नहीं होती है।
काल भैरवनाथ की पूजा विधि
काल भैरव जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करें और साफ कपड़े पहन लें। फिर भगवान शिव और माता पार्वती के साथ भैरवनाथ की भी पूजा करें। भैरवनाथ को हल्दी का तिलक लगाएं और फूल चढ़ाएं। पूजा में इमरती, पान, नारियल आदि चीजों का भोग अर्पित करें। इसके बाद एक चौमुखी दीपक जलाएं। पूजा के आखिर में काल भैरव और भगवान शिव की आरती करें। इस दिन शिव चालीसा का पाठ करना उत्तम होता है। साथ ही बटुक भैरव पंजर कवच का पाठ करना भी फलदायी होगा। काल भैरव का वाहन काला कुत्ता होता है और इनके हाथ में एक छड़ी भी होती है।
काल भैरव कथा
कालभैरव जयंती भगवान काल भैरव और भगवान शिव के अनुयायियों के लिए बहुत अहमियत और महत्व रखती है। भगवान कालभैरव को भगवान शिव का डरावना अवतार माना जाता है। शास्त्रों और हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, उदाहरण के लिए जब भगवान महेश, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा अपने वर्चस्व और शक्ति के बारे में चर्चा कर रहे थे, भगवान शिव देवता ब्रह्मा द्वारा कही कुछ टिप्पणियों के कारण उग्र हो गए। परिणामस्वरूप, भगवान कालभैरव भगवान शिव के माथे से प्रकट हुए और गुस्से में भगवान ब्रह्मा के पांच सिर में से एक सिर को काट दिया।
भगवान कालभैरव कुत्ते पर सवार होते हैं और बुरे कार्य करने वाले को दंडित करने के लिए एक छड़ी भी रखते हैं। भक्त कालभैरव जयंती की शुभ संध्या पर भगवान कालभैरव की पूजा करते हैं ताकि सफलता और अच्छे स्वास्थ्य के साथ-साथ सभी अतीत और वर्तमान के पापों से छुटकारा पा सकें। यह भी माना जाता है कि, भगवान कालभैरव की पूजा करने से, भक्त अपने सभी ‘शनि’ और ‘राहु’ दोषों को समाप्त कर सकते हैं।
Kaal Bhairav Jayanti 2023: इन उपायों से प्रसन्न होंगे भैरवनाथ
1- मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करें और स्वच्छ कपड़े पहनें| फिर कुश के आसन पर बैठकर काल भैरव की विधिवत पूजा करें| पूजा में ‘’ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:” मंत्र का रुद्राक्ष की माला से कम से कम 5 माला जाप करें|
2- इस दिन शमी पेड़ के नीचे सरसों तेल का दीपक जलाना चाहिए| इससे वैवाहिक जीवन में चल रही परेशानियां दूर होती हैं|
3- काल भैरव जंयती के दिन किसी भैरव मंदिर में जाकर उनकी प्रतिमा पर सिंदूर व तेल अर्पित करें| साथ ही नारियल और जलेबी का भोग लगाएं| इस उपाय से भैरवनाथ प्रसन्न होते हैं|
4- इस दिन एक रोटी को सरसों तेल में चुपड़कर किसी काले कुत्ते को खिलाएं, इससे व्यक्ति का व्यक्तित्व मजबूत होता है और वह अपने कार्यक्षेत्र में बेहतर ढंग से कार्य करता है|
Kaal Bhairav Jayanti 2023: कैसे हुए बाबा भैरव की उत्पत्ति
काल भैरव की उत्पत्ति की पुराणों में काफी रोचक कथा है। बताया गया है कि एक बार श्रीहरि विष्णु और भगवान ब्रह्मा में इस बात को लेकर बहस हो गई, कि सर्वश्रेष्ठ कौन है। दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ गया, कि दोनों युद्ध करने को उतारू हो गए। इसके बीच में बाकी सभी देवताओं ने बीच में आकर वेदों से इसका उत्तर जानने का निर्णय लिया। जब वेदों से इसका उत्तर पूछा, तो उत्तर मिला कि जिसमें चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान सबकुछ समाया हुआ है, वहीं इस जगह में सर्वश्रेष्ठ हैं। इसका सीधा अर्थ था कि भगवान शिव सबसे श्रेष्ठ हैं। श्रीहरि विष्णु वेदों की इस बात से सहमत हो गए, लेकिन ब्रह्मा जी इस बात से नाखुश हो गए। उन्होंने आवेश में आकर भगवान शिव के बारे में बहुत बुरा भला कह दिया। ब्रह्माजी के इस दुर्व्यवहार को कारण शिवजी क्रोधित हो उठे, तभी उनकी दिव्य़ शक्ति से काल भैरव की उत्पत्ति हुई, और भगवान शिव को लेकर अपमान जनक शब्द कहने पर दिव्य शक्ति से संपन्न काल भैरव ने अपने बाएं हाथ की छोटी अंगुली से ही ब्रह्मा जी का पांचवां सिर काट दिया। फिर भगवान ब्रह्मा ने भोलेनाथ से क्षमा मांगी, जिस पर भोलेनाथ ने उन्हें क्षमा कर दिया। हालांकि, ब्रह्मा जी के पांचवें सिर की हत्या का पाप भैरव पर चढ़ चुका था। तभी भगवान शिव ने उन्हें काशी भेज दिया, जहां उन्हें हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई। इसके बाद बाबा काल भैरव को काशी का कोतवाल नियुक्त कर दिया गया। आज भी बाबा काल भैरव की पूजा काशी में नगर कोतवाल के रूप में होती है। ऐसा माना जाता है कि काशी विश्वनाथ के दर्शन काशी के कोतवाल बाबा भैरव के बिना अधूरे हैं।
बाबा काल भैरव की पूजा करने से आपके हर दुख का निवारण हो सकता है। इस साल आप बाबा काल भैरव की जयंती को संपूर्ण विधि विधान से ही संपन्न कराएं।