Jyeshtha Purnima 2023:- ज्येष्ठ पूर्णिमा 2023 कब है ? ज्येष्ठ पूर्णिमा पर क्या करें ? ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत कथा क्या है ?

Jyeshtha Purnima 2023

Jyeshtha Purnima 2023 Details:- ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत विवाहित हिंदू महिलाओं द्वारा किया जाता है जो देवी सावित्री को अपना आदर्श मानती हैं। यह पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है जो हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ के महीने में आता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह शुभ दिन मई या जून के महीने में आता है।

यह दिन भारत में विवाहित जीवन जीने वाली महिलाओं के वैवाहिक प्रेम और पवित्रता का प्रतीक है। सावित्री के अलावा, महिलाएं इस दिन भगवान ब्रह्मा, यम और नारद की पूजा करती हैं। सावित्री के पति, सत्यवान, जिसे भगवान यम ने देवी की प्रार्थना के बाद पुर्नजीवित कर दिया था, जिसके लिए देवी ने तपस्या की थी। यह माना जाता है कि इस दिन प्रार्थना और उपवास करने वाली महिलाओं को एक सामंजस्यपूर्ण विवाहित जीवन और पति या पत्नी की दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है।

Jyeshtha Purnima 2023:- ज्येष्ठ पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त क्या है ?

इस वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा का पर्व 04 जून 2023 को मनाया जाएगा। शास्त्रों में ज्येष्ठ पूर्णिमा का बहुत महत्व होता है। इसी दिन कलश भर कर शहद का दान करने का विधान भी है। इस दिन ये कार्य करने से व्यक्ति के जीवन में खुशियां आती हैं और प्रेम भाव बना रहता है।

जून 03, 2023 को 11:17 से पूर्णिमा आरम्भ।

जून 04, 2023 को 09:12 पर पूर्णिमा समाप्त।

Jyeshtha Purnima 2023:- ज्येष्ठ पूर्णिमा का महत्व क्या है ?

ज्येष्ठ पूर्णिमा (Jyeshtha Purnima) का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। इस दिन से श्रद्धालु गंगाजल लेकर अमरनाथ यात्रा के लिए निकलते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, हिंदू कैलेंडर का तीसरा महीना ज्येष्ठ है। इस समय पृथ्वी जबरदस्त गर्म हो जाती है। यही कारण है कि कई नदियां और तालाब सूख जाते हैं या उनका जल स्तर कम हो जाता है।

इसी वजह से इस महीने में पानी की आवश्यकता का महत्व अन्य महीनों की तुलना में 10 गुना बढ़ जाता है। गंगा दशहरा, निर्जला एकादशी आदि त्योहारों को ज्येष्ठ के महीने में मनाया जाता है, ताकि यह समझाया जा सके कि पृथ्वी पर जीवन के लिए पानी कितना महत्वपूर्ण है।

साहसी स्त्री सावित्री की कहानी ज्येष्ठ पूर्णिमा से जुड़ी है। वह पवित्र और उत्कृष्ट वैवाहिक जीवन का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करती है। किंवदंतियों के अनुसार, उन्होंने भगवान यम से अपने पति (सत्यवान) का जीवनदान मांगा था, जिनकी पहले ही मृत्यु हो गई थी।

Jyeshtha Purnima 2023:- ज्येष्ठ पूर्णिमा पर क्या करें ?

इस दिन चंद्रमा को जल में दूध, चीनी, अक्षत और फूल मिलाकर अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से चंद्र दोष दूर होते हैं।

इस दिन विधि-विधान से देवी लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है। आर्थिक तंगी दूर होती है।

इस दिन देवी लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं और कन्याओं को खीर का प्रसाद बांटें।

ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन स्नान और दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

इस दिन सफेद चीजों का दान करें। सफेद कपड़े, चावल, दही, चांदी, मोती और सफेद फूल का दान करें।

चंद्रमा से जुड़ी वस्तुओं का दान करने से चंद्रमा मजबूत होता है और सुख-समृद्धि प्राप्ति होती है।

ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन घर में सत्यनारायण भगवान की पूजा रखें। इससे धन, संपत्ति और वैभव की प्राप्ति होती है।

Jyeshtha Purnima 2023:- ज्येष्ठ पूर्णिमा पूजा विधि क्या है ?

  • ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करने का महत्व माना गया है।
  • प्रातः जल्दी स्नान आदि से निवृत होने के पश्चात भगवान का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लें।
  • अब मंदिर में धूप-दीप प्रज्जवलित करें और अक्षत, रोली फल, फूल से पूजा करें।
  • इसके बाद पूरे दिन व्रत रखें शाम के समय पुनः भगवान विष्णु का पूजन करें।
  • पूजन के लिए सूजी यागेहूं के आटे को भूनकर सूखा प्रसाद बनाएं, साथ ही में पंचामृत भी बनाएं।
  • विधिवत मां लक्ष्मी और विष्णु जी का पूजन करें एवं चंद्र दर्शन पूजन करें। इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें।
  • चंद्रमा को अर्घ्य देने के पश्चात प्रसाद खाकर व्रत खोले और तत्पश्चात भोजन करें।

Jyeshtha Purnima 2023:- ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत कथा क्या है ?

पौराणिक व्रत कथा के अनुसार राजा अश्वपति के घर देवी सावित्री के अंश से एक पुत्री का जन्म हुआ, जिसका नाम महाराज ने सावित्री रखा। पुत्री युवा अवस्था को प्राप्त हुई देखकर राजा ने मंत्रियों से सलाह की। इसके बाद राजा ने सावित्री से कहा तुम्हें योग्य वर देने का समय आ गया है। मैं विचार कर तुम्हारी आत्मा के अनुरूप वर खोज नहीं पा रहा हू, इसलिए हे पुत्री मैं तुमको अपना वर चुनने की अनुमति देता हूं। पिता की आज्ञा प्राप्त कर सावित्री अपना वर खोजने के लिए निकल पड़ी और एक दिन उसने सत्यभान को देखा और उसे अपना वर चुन लिया। जब उसने देव ऋषि नारद् जी को यह बात बताई, तब नारद् जी सावित्री के पास आए और कहने लगे कि तुम्हारा पति अल्प आयु है। तुम कोई दूसरा वर देख लों, लेकिन सावित्री ने कहा कि मै एक हिंदू नारी हूं, पति को एक ही बार चुनती हूं। सावित्री की बात सभी ने स्वीकार की और एक दिन उन दोनों का विवाह हो गया।

एक दिन सत्यभान के सिर में अत्यधिक पीड़ा होने लगी। सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे अपनी गोद में पति के सिर को रखकर उसे लिटा दिया। उस ही समय सावित्री ने देखा कि अनेक यमदूतों के साथ यमराज आ पहुंचे हैं। सत्यभान के जीव को दक्षिण दिशा की ओर लेकर जा रहे हैं। यह देख सावित्री भी यमराज के पीछे पीछे चल देती है। उन्हें आता देख यमराज ने कहा कि हे पतिव्रता नारी पृथ्वी तक ही पत्नि अपने पति का साथ देती है। अब तुम वापस लौट जाओं। उनकी इस बात पर सावित्री ने कहा कि जहां मेरे पति रहेगे, वहां मै रहूंगी, यही मेरा पत्नि धर्म है। सावित्री के मुख से यह उत्तर सुनकर यमराज बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सावित्री को वर मांगने को कहा और बोले मै तुम्हें तीन वर देता हूं तुम कौन कौन से तीन वर लोगी तब सावित्र ने सास ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी, ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मांगा और अपने पति सत्यभान के पुत्रों की मां बनने का वर मांगा। सावित्री के ये तीनों वरदान सुनने के बाद यमराज ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा कि तथास्तु ऐसा ही होगा। सावित्री ने अपनी बुद्धिमता से यमराज को उलझा लिया। पति के बिना पुत्रवती होना जितना असंभव था, उतना ही यमराज का अपने वचन से मुख फेरना। अंत में उन्हें सत्यभान के प्राण वापस करने ही पड़े। सावित्री पुन उसी वट वृक्ष के पास लौट आई। जहां सत्यभान मृत पड़ा था। सत्यभान के मृत शरीर मे फिर से संचार हुआ। इसलिए सावित्री ने अपने पतिव्रता व्रत के प्रभाव से न केवल अपने पति को पुन जीवित करवाया, बल्कि सास ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करते हुए, उनके ससुर को खोया हुआ राज्य दिलवाया।

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