Indira Ekadashi 2023 Details:- हिंदू धर्म में सभी एकादशी का विशेष महत्व है। इनमें से एक है इंदिरा एकादशी। इंदिरा एकादशी का व्रत पितृपक्ष में पड़ने वाली एकादशी के दिन रखा जाता है। हिंदू धर्म में इंदिरा एकादशी के व्रत का अहम महत्व है। इसे ‘एकादशी श्राद्ध’ भी कहा जाता है। एकादशी व्रत का मुख्य उद्देश पितरों को मोक्ष देना है, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिल सके। इस व्रत को रखने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा बनी रहती हैं। इस व्रत के दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करनी चाहिए व व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए।
Indira Ekadashi 2023:- इंदिरा एकादशी व्रत मुहूर्त क्या है ?
मंगलवार, 10 अक्टूबर 2023
एकादशी तिथि शुरू: 09 अक्टूबर 2023 दोपहर 12:36 बजे
एकादशी तिथि समाप्त: 10 अक्टूबर 2023 अपराह्न 03:08 बजे
Indira Ekadashi 2023:- इंदिरा एकादशी का महत्व क्या है ?
पद्म पुराण के अनुसार श्राद्ध पक्ष में आने वाली इस एकादशी का पुण्य अगर पितृगणों को दे दिया जाए तो नरक में गए पितृगण भी नरक से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। इस व्रत को करने से सभी जीवत्माओं को उनके सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को यमलोक की यातना का सामना नहीं करना पड़ता एवं इस एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति के सात पीढ़ियों तक के पितृ तर जाते हैं एवं व्रत करने वाला भी स्वयं स्वर्ग में स्थान पाता है। शास्त्रों में उल्लेख है कि यदि कोई पूर्वज जाने-अनजाने में हुए पाप कर्मों के कारण दंड भोग रहा होता है तो इस दिन विधि-विधान से व्रत कर उनके नाम से दान-दक्षिणा देने से पितर स्वर्ग में चले जाते हैं। उपनिषदों में भी कहा गया है कि भगवान विष्णु की पूजा से पितृ संतुष्ट होते हैं।
Indira Ekadashi 2023:- इंदिरा एकादशी व्रत नियम और पूजन विधि क्या है ?
सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प कर पहले सूर्य को अर्घ्य दें। इस एकादशी पर विष्णुजी के स्वरुप शालिग्राम की पूजा का विधान शास्त्रों में बताया गया है। भगवान शालिग्राम को पंचामृत से स्नान करवाकर गंगाजल मिले हुए जल से स्न्नान करवाएं। पूजा में पीला चंदन,अबीर, गुलाल, अक्षत, मोली, फूल,तुलसी पत्र अर्पित करें। इसके बाद भोग लगाकर प्रभु की आरती करें। फिर एकादशी की कथा का श्रवण या वाचन करना चाहिए। इस दिन अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है, फलाहार लेकर व्रत रख सकते हैं।जितना हो सके ‘ॐनमो भगवते वासुदेवाय ‘ का जप करें एवं विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ करें। एकादशी पर आंवला, तुलसी, अशोक, चंदन या पीपल का पेड़ लगाने से भगवान विष्णु के साथ हमारे पितर भी प्रसन्न होते हैं।
Indira Ekadashi 2023:- इंदिरा एकादशी के दिन क्या काम न करें ?
एकादशी के दिन किसी भी प्रकार के तामसिक भोजन का सेवन करने से बचें। इंदिरा एकादशी के दिन भोग-विलास से दूर रहना चाहिए। एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। ध्यान रहें कि इस दिन घर में झाड़ू नहीं लगाना चाहिए और न ही बाल, दाढ़ी, नाखुन काटने जैसे कार्य नहीं करने चाहिए। एकादशी के दिन जितना संभव हो मौन का धारण करना चाहिए। इस दिन झूठ बोलना, निंदा करना, चोरी करना, गुस्सा करना जैसे काम नहीं करने चाहिए।
Indira Ekadashi 2023:- इंदिरा एकादशी व्रत पूजा विधि क्या है ?
यह श्राद्ध पक्ष की एकादशी है। इसके प्रभाव से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस एकादशी की पूजा विधि इस प्रकार है:
- अन्य एकादशी की तरह इस व्रत के धार्मिक कर्म भी दशमी से शुरू हो जाते हैं। दशमी के दिन घर में पूजा-पाठ करें और दोपहर में नदी में तर्पण की विधि करें।
- श्राद्ध की तर्पण विधि के पश्चात ब्राह्मण भोज कराएं और उसके बाद स्वयं भी भोजन ग्रहण करें। याद रखें दशमी पर सूर्यास्त के बाद भोजन न करें।
- एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर व्रत का संकल्प लें और स्नान करें।
- एकादशी पर पुन: श्राद्ध विधि करें एवं ब्राह्मणों को भोजन कराएं। इसके बाद गाय, कौए और कुत्ते को भी भोज्य पदार्थ दें।
- व्रत के अगले दिन यानि द्वादशी को पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। इसके बाद परिवार के साथ मिलकर भोजन करें।
Indira Ekadashi 2023:- इंदिरा एकादशी की व्रत कथा क्या है ?
सतयुग में इंद्रसेन नाम के एक राजा माहिष्मती नामक क्षेत्र में शासन करते थे। इंद्रसेन भगवान विष्णु के परम भक्त और धर्मपरायण राजा थे। वह सुचारू रूप से राज-काज कर रहे थे। एक दिन अचानक देवर्षि नारद का उनकी राज सभा में आगमन हुआ। राजा ने देवर्षि नारद का स्वागत सत्कार कर उनके आगमन का कारण पूछा। देवर्षि नारद जी ने बताया कि कुछ दिन पूर्व वो यमलोक गए थे वहां पर उनकी भेंट राजा इंद्रसेन के पिता से हुई। राजन आपके पिता ने आपके लिए संदेश भेजा है। उन्होंने कहा कि जीवन काल में एकादशी का व्रत भंग हो जाने के कारण उन्हें अभी तक मुक्ति नहीं मिली है और उन्हें यमलोक में ही रहना पड़ रहा है। मेरे पुत्र और संतान से कहिएगा कि यदि वो आश्विन कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखें तो उसके भाग से मुझे मुक्ति मिल जाएगी।
नारद मुनि की बात सुनकर राजा इंद्रसेन ने व्रत का विधान पूछा और व्रत करने का संकल्प लिया। राजा ने पितृ पक्ष की एकादशी तिथि पर विधि पूर्वक व्रत का पालन किया। पितरों के निमित्त मौन रह कर ब्राह्मण भोज और गौ दान किया। इस प्रकार राजा इंद्रसेन के व्रत और पूजन के भाग से उनके पिता को यमलोक से मुक्ति और बैकुंठ लोक की प्राप्ति हुई। उस दिन से ही इस व्रत का नाम इंदिरा एकादशी पड़ गया। पितृ पक्ष में पड़ने वाली इस इंदिरा एकादशी के व्रत से पितरों को अधोगति से मुक्ति मिलती है और आपको उनका आशीर्वाद।