Holika Dahan 2024:- होलिका दहन पर ये तांत्रिक उपाय दूर कर सकते हैं आपके घर का लड़ाई-झगड़ा

holika dahan 2024

 हिन्दू धर्म में होलिका दहन का आयोजन बड़े हर्षोल्लास के साथ किया जाता है। इस पर्व को फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाता है। साथ ही इससे जुड़ी कथा का भी विशेष महत्व है।

हिन्दू धर्म में कई प्रमुख व्रत एवं त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते हैं, जिनमें होली पर्व का विशेष महत्व है। होली पर्व की शुरुआत वास्तव में होलिका दहन से होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होलिका दहन पर्व को बुराई पर हुई अच्छाई की जीत के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों में होलिका दहन के सन्दर्भ में नारायण भक्त प्रह्लाद की कथा को वर्णित किया गया है। जिसमें बताया गया है कि कैसे अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यपु ने पुत्र की हत्या के लिए षड्यंत्र रचा था, जो भगवान नारायण की कृपा से सफल नहीं हो पाया। भारत के विभिन्न हिस्सों में होलिका दहन को छोटी होली और होलिका दीपक के नाम से भी जाना जाता है। साथ ही इस पर्व के अध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण दोनों छिपे हुए हैं।

 

कब और कैसे मनाई जाती है होलिका?

हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर प्रदोष काल में होलिका दहन का आयोजन किया जाता है। यह आयोजन गांव या मौहल्ले के किसी खुली जगह पर किया जाता है। खास लकड़ियों से तैयार की गई चिता पर गोबर से बने होलिका और भक्त प्रहलाद को स्थापित किया जाता है, जिसे गुलारी या बड़कुल्ला के नाम से जाना जाता है। इसके बाद होलिका दहन के शुभ मुहूर्त में होलिका के पास गोबर से बनी ढाल भी रखी जाती है और चार मालाएं जो मौली, फूल, गुलाल, ढाल और गोबर से बने खिलौनों से बनाई जाती है, उन्हें अलग से रख लिया जाता है। इनमें से एक माला पितरों के नाम समर्पित होती है, दूसरी माला हनुमान जी के लिए, तीसरी शीतला माता और चौथी माला घर परिवार के लिए रखी जाती है।

 

कैसे किया जाता है होलिका दहन
होलिका दहन में किसी पेड़ की शाखा को जमीन में गाड़कर उसे चारों ओर से लकड़ी, कंडे या उपले से ढककर निश्चित मुहूर्त में जलाया जाता है. इसमें छेद वाले गोबर के उपले, गेहूं की नई बालियां और उबटन जलाया जाता है, ताकि सालभर आरोग्य मिले.

 

 

घर की कलह दूर करने के लिए

यदि घर में पति-पत्नी के बीच आए दिन कलह होती है और ग्रह क्लेश से घर में शांति नहीं रहती है और घर में नकारात्मक ऊर्जा का संचार हो गया है तो जब भी होली जल जाए तो होली की अग्नि में आटा और जौ चढ़ाएं जिससे ग्रह कलेश शांत हो जाएगा और घर में सुख शांति पुनः स्थापित हो जाएगी।

 

व्यापार में मुनाफा पाने के लिए

यदि आपके व्यापार में लगातार गिरावट आ रही है और व्यापार चल नहीं रहा है तो होली के दिन पीले कपड़े में काली हल्दी, 11 गोमती चक्र और एक सिक्का चांदी का काले कपड़े में बांधकर होली की अग्नि की 11 बार परिक्रमा करके 108 बार मंत्र जपते हुए उस अग्नि में प्रवाहित कर देना चाहिए आपके व्यापार में वृद्धि होने लगेगी।

 

सेहत में सुधार के लिए

यदि आपकी सेहत खराब रहती है और रोग से मुक्ति नहीं मिल रही है तो होलिका दहन के बाद बची हुई राख से थोड़ी राख घर ले आए और उस भभूति को तकिए के नीचे रख दें रोगी स्वस्थ हो जाएगा और पुरानी से पुरानी बीमारी सही हो जाएगी।

 

फालतू खर्च को रोकने के लिए

यदि घर पर बचत नहीं हो रही है और बेवजह पैसे खर्च हो रहे हैं तो बचत करने के लिए होलिका दहन के दूसरे दिन बची हुई राख को एक लाल कपड़े में बांधकर यह कपड़ा अपने पर्स में रख लें।

 

बच्चे का मन पढ़ाई में  लग रहा हो तो

यदि आपके बच्चे का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा हो तो और मेहनत के बाद भी फल नहीं मिल रहा हो तो उस बच्चे के हाथ से नारियल पान सुपारी का दान होलिका के स्थान पर कराएं या होलिका में डाल दें बच्चे का मन पढ़ाई में लगने लगेगा और उसे अपेक्षित परिणाम की प्राप्ति होगी।

 

वास्तु दोष से मुक्ति पाने के लिए

वास्तु दोष से मुक्ति पाने के लिए होलिका दहन के अगले दिन सर्वप्रथम उठकर स्नान कर स्वच्छ होकर अपने इष्टदेव को गुलाल अर्पित करें और अपने इष्टदेव का निवास स्थान ईशान कोण में रखकर पूजन करें। यह उपाय करने से ग्रह दोष वास्तु दोष समाप्त हो जाता है और घर में शांति सुख सुविधा और धन वर्षा होती है।

 

व्यापार में वृद्धि के लिए

अगर व्यापार में वृद्धि नहीं हो रही है तो होली के पहले पड़ने वाले शनिवार को एक पेड़ ढूंढ़ लें जहां चमगादड़ निवास करते हो और उस पेड़ की डाली को सूर्योदय से पूर्व तोड़ लें रात में पूजन के कुछ समय बाद उस टहनी के पत्तों को तोड़कर अपनी गद्दी या तिजोरी के नीचे रखना चाहिए व्यवसाय में खूब वृद्धि होगी और धन प्राप्ति होगी।

 

होलिका दहन 2024 मुहूर्त
इस वर्ष फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा 06 मार्च को शाम 04 बजकर 17 मिनट से लेकर अगले दिन 07 मार्च को शाम 04 बजकर 17 मिनट तक रहेगी. इसलिए होलिका दहन का शुभ मुहूर्त मंगलवार, 07 मार्च को शाम 06 बजकर 12 मिनट से लेकर रात 08 बजकर 39 मिनट तक रहेगा.

 

 

होलिका दहन की कथा

किवदंतियों के अनुसार पृथ्वी पर हिरण्यकशिपु नामक एक राजा शासन करता था, जो भगवान विष्णु का सबसे बड़ा शत्रु माना जाता था। उसने अपने राज्य में सभी को यह आदेश किया था कि कोई भी ईश्वर की पूजा नहीं करेगा। लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। जब हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को भगवान की पूजा करते हुए देखा तो उससे सहा नहीं गया और अपने ही पुत्र को दंड देने की ठान ली। हिरण्यकशिपु ने प्रहलाद को कई बार कष्ट देना चाहा, लेकिन भगवान विष्णु ने हर समय प्रहलाद का साथ दिया।

अंत में अत्याचारी राजा ने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। होलिका को यह वरदान था कि उसे अग्नि नहीं जला सकती है। इसलिए होलिका प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश कर गई। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका उस अग्नि में भस्म हो गई और प्रहलाद बच गया। तब से होलिका दहन पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।

 

 

होलिका दहन पूजा विधि :
इस दिन होलिका दहन पूजन किया जाता है। भगवान विष्णु के चौथे अवतार भगवान नरसिंह की पूजा की जाती है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर उत्तर दिशा की तरफ मुख करके होलिका का पूजन करना चाहिए। होलिका दहन से पहले अपने आसपास पानी की बूंदे छिड़कें। इसके बाद गाय के गोबर से होलिका का निर्माण करें। पूजा में माला, रोली, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, पांच प्रकार के अनाज में गेहूं की बालियां और साथ में एक लोटा अवश्य रखें। इसके बाद भगवान नरसिंह की प्रार्थना करें और होलिका पर रोली, अक्षत, फूल, बताशे अर्पित करें और मौली को होलिका के चारों ओर लपेटें। इसके उपरान्त होलिका पर प्रह्लाद का नाम लेते हुए पुष्प अर्पित करें। भगवान नरसिंह का नाम लेते हुए 5 अनाज चढ़ाएं। इस विधि से पूजा संपन्न करने के बाद होलिका दहन करें और उसकी परिक्रमा करना ना भूलें। फिर होलिका की अग्नि में गुलाल डालें और घर के बुजुर्गों के पैरों पर गुलाल लगाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।

 

होलिका दहन का वैज्ञानिक कारण

होली वसंत के मौसम में खेली जाती है, जो सर्दी के अंत और गृष्म ऋतू के बीच की अवधि होती है। ऐसे में पुराने समय में सर्दियों के दौरान लोग नियमित रूप से स्नान नहीं करते थे। जिसके कारण त्वचा रोग का खतरा बढ़ जाता था। इसलिए होलिका दहन के पीछे छिपा वैज्ञानिक कारण यह है कि इस पर्व के दौरान जलाई गई लकड़ियों से वातावरण में फैले हुए खतरनाक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं और होलिका की परिक्रमा करने से शरीर पर जमे हुए कीटाणु भी अलाव की गर्मी से मर जाते हैं। वहीं देश के कुछ हिस्सों में होलिका दहन के बाद लोग अपने माथे और शरीर पर होलिका की राख लगाते हैं, जिसे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है।

 

 

होलिका दहन किवदंती और महत्त्व
होलिका दहन एक त्यौहार है जो बुराई के ऊपर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, उस किवदंती के कारण जो इसके साथ जुडी हुई है। होलिका दहन की कहानी शैतान के मजबूत होने के बावजूद ईमानदार और अच्छे की जीत के बारे में है।
होलिका दहन कहानी मूल रूप से हिरण्यकश्यपु नामक एक दुष्ट राजा, उसकी शैतान बहन होलिका और राजा के पुत्र प्रह्लाद के इर्द-गिर्द घूमती है।
जैसा कि किंवदंती है, राजा हिरण्यकशिपु को भगवान ब्रह्मा से वरदान मिला था कि वह मनुष्य या जानवर द्वारा, न दिन में या रात में, न अंदर या बाहर और न ही किसी गोला-बारूद से मारा जा सकता है। इससे राजा घमंडी हो गया और उसने सभी को आदेश दिया कि वह उसे ईश्वर मान ले और उसकी पूजा करे।
हालाँकि, उनके पुत्र प्रह्लाद ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया क्योंकि वह एक विष्णु भक्त था और भगवान विष्णु की पूजा करता रहा।
इससे राजा बहुत क्रोधित हो गया और उसने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को मारने के लिए कहा। होलिका को अग्नि से प्रतिरक्षित होने का वरदान प्राप्त था। इसलिए वह प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी गोद में उस के साथ एक अलाव में बैठ गयी। हालाँकि, भगवान विष्णु ने होलिका को मार दिया क्योंकि उसने खुद को जला दिया था और प्रह्लाद आग से बिना एक निशान के भी जीवित बाहर आ गया ।
सर्वशक्तिमान में विश्वास बहाल हो गया क्योंकि बुराई नष्ट हो गई और पुण्य जीत गया। यही कारण है कि यह त्योहार भगवान विष्णु के भक्तों के लिए असीम धार्मिक श्रद्धा रखता है।

 

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