निर्जला एकादशी का है खास महत्व, इस दिन व्रत करने वाले रखे इन बातों का ध्यान !!

gauna nirjala

निर्जला एकादशी का व्रत विधान करके कैसे आप अपनी समस्याओं से मुक्त हो सकते हैं और भगवान विष्णु की कृपा पा सकते है. ज्येष्ठ मास में शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी और भीमसेनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है. इस एकादशी व्रत में पानी पीना वर्जित माना जाता है इसलिए इस एकादशी को निर्जला कहते है. निर्जला एकादशी पर निर्जल रहकर भगवान विष्णु की आराधना की जाती है और दीर्घायु और मोक्ष का वरदान प्राप्त किया जा सकता है. निर्जला एकादशी का व्रत रखने से साल की सभी एकादशी का व्रत फल मिलता है और भगवान विष्णु की कृपा होती है.

निर्जला एकादशी पर कैसे करें पूजा अर्चना
निर्जला एकादशी का व्रत एक दिन पहले अर्थात दशमी तिथि की रात्रि से ही आरम्भ हो जाता है और रात्रि में अन्न का सेवन नहीं किया जाता है. निर्जला एकादशी के व्रत में सूर्योदय से लेकर अगले दिन द्वादशी तिथि के सूर्य उदय तक जल और भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है.
निर्जला एकादशी के दिन प्रात काल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु की पीले चंदन पीले फल फूल से पूजा करें और पीली मिठाई भगवान विष्णु को अर्पण करें. एक आसन पर बैठकर ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का 108 बार जाप करें. जाप के बाद गुलाब या आम के शरबत का भोग भगवान विष्णु को लगाएं और जरूरतमंद लोगों में बांटे. ऐसा करने से मन की इच्छा पूरी होगी और पारिवारिक कलह क्लेश खत्म होंगे.

निर्जला एकादशी 2022
• सोमवार, 10 जून 2022
• एकादशी तिथि प्रारंभ: 10 जून, 2022 पूर्वाह्न 07:25 बजे
• एकादशी तिथि समाप्त: 11 जून, 2022 पूर्वाह्न 05:45 बजे

निर्जला एकादशी व्रत का महत्त्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, कहा जाता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन के साथ इस व्रत को करता है उसे समस्त एकादशी व्रत में मिलने वाला पुण्य प्राप्त होता है. वह सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त हो जाता है. व्रत के साथ-साथ इस दिन दान कार्य भी किया जाता है। दान करने वाले व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है. कलश दान करना बेहद ही शुभ माना जाता है। इससे व्यक्ति को सुखी जीवन और दीर्घायु प्राप्त होती है.

व्रत के दौरान रखे इन बातों का विशेष ध्यान
जो लोग निर्जला एकादशी का व्रत कर रहे हैं उन्हें इस व्रत की तैयारी एक दिन पहले कर लेनी चाहिए और दशमी तिथि या व्रत के पहले दिन सात्विक भोजन करना चाहिए।
-व्रती को इस दिन साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
अगर व्रत रखने वाला व्यक्ति स्नान करने किसी पवित्र नदी में नहीं जा सकता तो उसे घर में स्नान करते समय सभी पवित्र नदियों के नामों का जाप करे। ऐसा करने से घर पर ही गंगा स्नान का पुण्य मिल सकता है।
-स्नान के बाद भगवान विष्णु के सामने व्रत करने का संकल्प करें। भगवान के सामने कहें कि आप ये व्रत करना चाहते हैं और इसे पूरा करने की शक्ति भगवान आपको प्रदान करें।
-भगवान विष्णु को पीले फल, पीले फूल अथवा पीले पकवान का भोग लगाएं।
-दीपक जलाकर भगवान विष्णु की आरती करें और ऊं नमों भगवते वासुदेवाय का जाप करें।
-निर्जला एकादशी पर पानी का दान शुभ माना जाता है। इस दिन पानी का दान करें । किसी प्याऊ में मटकी का दान करें। अगर संभव हो तो किसी गौशाला में धन का भी दान करें।
-एकादशी के दिन तुलसी जी की भी विशेष पूजा की जाती है। शाम को तुलसी के पास दीपक जलाएं और परिक्रमा करें।
-पारण वाले दिन यानी द्वादशी तिथि पर ब्राह्मण और गरीब को भोजन कराएं।
-निर्जला एकादशी पर पानी नहीं पिया जाता। लेकिन अगर आप बीमार हैं तो फल के जूस या फल खाकर इस व्रत को कर सकते हैं।

व्रत रखने की विधि:
निर्जला एकादशी के दिन प्रात:काल स्नान कर सूर्य देवता को जल अर्पित करें. इसके बाद पीले वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु या भगवान कृष्ण की पूजा करें. इन्हें पीले फूल, पंचामृत और तुलसी दल अर्पित करें. इसके बाद भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करें.
हिंदू धर्म में दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है और अगले दिन के सूर्योदय तक एक दिवस माना जाता है. इस नियमानुसार ही निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाता है.

निर्जला एकादशी की कथा:
शास्त्रों के अनुसार, ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी कहा जाता है. धार्मिक कथाओं के अनुसार, भीम, पांडव भ्राताओं में सबसे बलशाली माने जाते थे. उन्हें भूख बर्दाश्त नहीं थी. इस कारण उनके लिए किसी भी व्रत को रखना संभव नहीं था.
लोगों के बहुत समझाने पर उन्होंने एकमात्र निर्जला एकादशी का व्रत किया. भूख बर्दाश्त ना होने पर शाम होते ही वो मूर्छित हो गए. चूंकि भीमसेन के साथ इस एकादशी का संबंध है. इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं. शास्त्रों के अनुसार, इस दिन बिना जल के उपवास रखने से साल की सारी एकादशियों का पुण्य फल मिलता है.
निर्जला एकादशी का व्रत करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है. इसके अलावा, इस दिन उपवास करने से अच्छी सेहत और सुखद जीवन का वरदान प्राप्त होता है. इस दिन व्रत करने से पापों का नाश होता है और मन शुद्ध होता है. इस एकादशी को त्याग और तपस्या की सबसे बड़ी एकादशी माना जाता है.

Subscribe to our Newsletter

To Recieve More Such Information Add The Email Address ( We Will Not Spam You)

Share this post with your friends

Leave a Reply

Related Posts

Daily horoscope (1)

आज का राशिफल-22-09-24 (रविवार) abc

आज का राशिफल-10-12-24 (मंगलवार) aries daily horoscope –10-12-24 (मंगलवार) मेष राशि: आज का राशिफल 10-12-24 (मंगलवार) आज का दिन आपके लिए कठिनाइयों से भरा रहने

chintapurni maa

कौन है माँ चिंतपूर्णी? जाने पल में भक्तों की इच्छा पूरी करने वाली माँ चिंतपूर्णी के बारे में!!

चिन्तपूर्णी देवी मंदिर चिन्तपूर्णी देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश राज्य के छोटे से शहर उना में स्थित हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। चिन्तपूर्णी देवी

Ganga Saptmi 2024

गंगा सप्तमी कब है? क्या है गंगा सप्तमी का अर्थ और सनातन धर्म में महत्व, कैसे करें पूजा-अनुष्ठान?

Ganga Saptmi 2024:- गंगा सप्तमी कब है? क्या है गंगा सप्तमी का अर्थ और सनातन धर्म में महत्व, कैसे करें पूजा-अनुष्ठान? Ganga Saptmi 2024:- गंगा