Dhanu Sankranti 2023: – धनु संक्रांति उस दिन को चिह्नित करती है जब सूर्य धनु या धनु राशि में प्रवेश करता है। धनु संक्रांति हिंदू सौर कैलेंडर में नौवें महीने की शुरुआत का प्रतीक है। यह वैष्णव संप्रदाय के लिए शुभ धनु मास की शुरुआत का प्रतीक है।
इस दिन भगवान सूर्य या सूर्य देवता की पूजा की जाती है । भक्त गंगा, यमुना, गोदावरी, यमुना जैसी पवित्र नदियों में डुबकी लगाते हैं क्योंकि यह एक बहुत ही शुभ अनुष्ठान माना जाता है। यह त्यौहार ओडिशा में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ की पूजा की जाती है । ओडिशा में पौष का महीना बहुतायत का महीना माना जाता है। इसलिए फसल काटने के बाद उत्सव का आयोजन किया जाता है। मीठे चावल के टुकड़ों धनु मुअन से बना एक विशेष व्यंजन तैयार किया जाता है जिसे भगवान जगन्नाथ को चढ़ाया जाता है।
इस दिन ओडिशा के बरगढ़ शहर में एक नुक्कड़ नाटक आयोजित किया जाता है जिसमें भगवान कृष्ण के जीवन के विभिन्न प्रसंगों को दर्शाया जाता है। एक एपिसोड कंस द्वारा आयोजित धनुष समारोह को देखने के लिए कृष्ण की मथुरा यात्रा पर आधारित है। कंस ने कृष्ण और बलराम को मारने के बुरे इरादे से धनु यात्रा के अवसर पर आमंत्रित किया था। यह वार्षिक उत्सव भगवान कृष्ण के जन्म से लेकर उनके द्वारा राक्षस के वध तक के दृश्यों को प्रदर्शित करता है। इस अवसर पर बरगढ़ को मथुरा के रूप में, बरगढ़ शहर की सीमा पर जीरा नदी को जमुना के रूप में और नदी के दूसरी ओर एक छोटे से गांव अंबापाली को गोपपुरा के रूप में दिखाया गया है। आम का बगीचा वृन्दावन के समान कार्य करता है। बरगढ़ शहर के विभिन्न क्षेत्रों में भागवत पुराण में वर्णित विभिन्न दृश्यों का मंचन किया जाता है और शहर के लगभग सभी लोग इस नाटक में बड़े उत्साह के साथ भाग लेते हैं।
यह पौष शुक्ल षष्ठी से पौष पूर्णिमा तक मनाया जाता है और लगातार दस से ग्यारह दिनों तक मनाया जाता है। पाँच-छह किलोमीटर तक फैली पूरी टाउनशिप एक ओपन-एयर थिएटर के रूप में कार्य करती है। विश्व प्रसिद्ध धनु यात्रा भी इसी अवधि के दौरान कोशल (पश्चिमी) क्षेत्र के बैरागढ़ शहर में आयोजित की जाती है।
Dhanu Sankranti 2023: धनु संक्रांति का उत्सव
इस दिन ओड़ीसा के बरगड़ शहर में प्रतीक के रूप में एक नुक्कड़ नाट्य का आयोजन किया जाता है| नुक्कड़ नाटक मे श्री कृष्ण के जीवन का एक हिस्सा प्रदर्शित किया जाता है, जिसमे वह अपने मामा कंस द्वारा आयोजित धनुयात्रा के लिए अपने बड़े भाई बलराम के साथ मथुरा जाते है | श्रीकृष्ण के मामा कंस द्वारा आयोजित की गयी इस यात्रा का उद्देश्य श्रीकृष्ण की हत्या करना होता है, पर कंस अपने इस उद्देश्य मे सफल नही हो पाता है| इस नाट्य मे बरगड़ को मथुरा मान लिया जाता है| बरगड़ शहर की सीमा से लगकर बहने वाली ज़ीरा नदी को यमुना नदी माना जाता है | नदी के उस पार पास के ही एक गाँव अंबपाली को गोपापूर और पास ही बने आम के बगीचे को वृंदावन मानकर भागवतपुराण मे उल्लेखित कई प्रसंगों का यहाँ खूबसूरती से चित्रण किया जाता है |
इस पूरे उत्सव में लगभग पूरा ओड़ीसा बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता है| यह पूरा उत्सव पौष के शुक्लपक्ष से लेकर पूर्णिमा यानी 10-12 दिन तक चलता है| इस उत्सव के दौरान आसपास का लगभग 5-6 किलोमीटर का क्षेत्र खुले रंगमंच सा बन जाता है |
Dhanu Sankranti 2023: सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में पूजा
पुराणों और ज्योतिष ग्रंथों के मुताबिक प्रदोष व्रत में सूर्यास्त के बाद तकरीबन 90 मिनिट के समय को प्रदोष काल कहा जाता है। इस दौरान भगवान शिव-पार्वती की विशेष पूजा की परंपरा है। प्रदोष काल में की गई पूजा से शारीरिक, मानसिक और आर्थिक परेशानियां भी दूर हो जाती हैं। इस बार गुरुवार का शुभ संयोग बनने पर शिव पूजा का कई गुना शुभ फल मिलेगा।
Dhanu Sankranti 2023: पूजा विधि: पंचामृत से रूद्राभिषेक
सूर्यास्त होने के पहले नहा लें। इसके बाद पूजा की तैयारी करें। प्रदोष काल शुरू होने पर भगवान शिव का अभिषेक करें। इसके लिए पंचामृत का इस्तेमाल भी करना चाहिए। फिर चंदन, अक्षत, अबीर-गुलाल, बिल्वपत्र, धतूरा, मदार के फूल और अन्य पूजा सामग्री चढ़ाएं। इसके बाद भगवान शिव की धूप व दीपक से आरती करें। महादेव को भोग लगाएं।
व्रत विधि: शाम को शिव पूजा के बाद भोजन (Dhanu Sankranti vart vidhi)
इस दिन सूर्योदय से पहले नहा लें। फिर शिव मंदिर या घर पर ही पूजा स्थान पर बैठकर हाथ में जल लें और प्रदोष व्रत के साथ शिव पूजा का संकल्प लें। इसके बाद शिवजी की पूजा करें। फिर पीपल में जल चढ़ाएं। दिनभर प्रदोष व्रत के नियमों का पालन करें। यानी शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह सात्विक रहें। भोजन न करें। फलाहार कर सकते हैं। फिर शाम को महादेव की पूजा और आरती के बाद प्रदोष काल खत्म होने पर यानी सूर्यास्त से 72 मिनिट बाद भोजन कर सकते हैं।
सूर्यदेव के धनु राशि में प्रवेश करने के साथ ही आज से धनु खरमास भी आरंभ हो गया है। दरअसल जब सूर्यदेव धनु या मीन राशि में प्रवेश करते हैं और जब तक वहां पर स्थित रहते हैं, उस समय अवधि को खरमास का नाम दिया गया है। इस हिसाब से साल में दो बार खरमास आता है। खरमास के दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन संस्कार आदि वर्जित होते हैं, जबकि इस दौरान सूर्य देव की उपासना करना बड़ा ही फलदायी माना गया है। अतः अगले 30 दिनों के दौरान आपको इन बातों का ख्याल रखना चाहिए।