Aja Ekadashi 2022: एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की पूजा को समर्पित होता है। प्रत्येक माह दो एकादशी व्रत होते हैं। एक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि और दूसरी कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को। सभी एकादशी को अलग-अलग नाम से जाना जाता है। भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह व्रत बहुत पुण्यदायी माना जाता है। जो व्यक्ति इस दिन व्रत व पूजन करता है उसके पापों से मुक्ति मिलती है और अध्वमेध यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है। इस बार अजा एकादशी का व्रत 23 अगस्त 2022 को रखा जाएगा। जानते हैं इस व्रत की पूजा विधि और महत्व के बारे में विस्तार से।
अजा एकादशी शुभ मुहूर्त 2022
एकादशी व्रत धारण करने वाले श्रद्धालु अगले दिन सुबह व्रत का शुभ मुहूर्त में पारण करते हैं। इसके लिए श्रेष्ठ मुहूर्त 05:56 से 08:30 तक 24 अगस्त को रहेगा इस शुभ मुहूर्त की अवधि 03 घंटा 15 मिनट रहेगी। श्रद्धालु शुभ मुहूर्त में अपने एकादशी व्रत का पारण करें।
अजा एकादशी 2022 का महत्व।
राजा हरिश्चंद्र द्वारा किए गए व्रतों का प्रताप सत्यता की परीक्षा अब समाप्त होने वाली थी। जैसे ही राजा हरिश्चंद्र ने रोहिताश को अग्नि देने की कोशिश की तभी वर्षा होती है और चीता बुझ जाती है। साक्षात भगवान विष्णु वहां पर प्रकट होते हैं। राजा हरिश्चंद्र को उसकी सत्यता पर बधाई देते हैं। इसी समय राजा हरिश्चंद्र का पुत्र जीवित हो उठता है और उनकी स्त्री जो कि किसी के यहां पर बेची जा चुकी थी वह भी वहां पर एक रानी के रूप में प्रकट हो जाती है। राजा हरिश्चंद्र यह देखकर समझ नहीं पाते हैं। तब भगवान स्वयं कहते हैं कि यह आपकी एक सत्यता की परीक्षा थी। राजा हरिश्चंद्र इस बात पर अति से प्रसन्न होते हैं। तथा भगवान से कहते हैं कि हे प्रभु ! इस प्रकार की कठिन परीक्षा आप किसी आम आदमी की मत लेना। क्योकि सत्यता की इतनी कठिन परीक्षा शायद कोई नहीं दे पाएगा।
राजा हरिश्चंद्र द्वारा किए गए अजा एकादशी व्रत के प्रताप से राजा हरिश्चंद्र को संपूर्ण सुख शांति तथा राज्य की प्राप्ति हुई और उनका पुत्र और स्त्री दोनों राजभवन में सकुशल लौट आए। इसीलिए अजा एकादशी व्रत धारण किया जाता है और जिन्हें पुत्र कष्ट होता है उन्हें इस कष्ट से निवारण होता हैं। इन्हीं कई धार्मिक मान्यताओं के चलते अजा एकादशी व्रत धारण किया जाता है।
भूलकर भी न करें ये गलतियां
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी के पावन दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चावल का सेवन करने से मनुष्य का जन्म रेंगने वाले जीव की योनि में होता है। इस दिन जो लोग व्रत नहीं रखते हैं, उन्हें भी चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।
- एकादशी के दिन शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए, इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है।
- एकादशी का पावन दिन भगवान विष्णु की अराधना का होता है, इस दिन सिर्फ भगवान का गुणगान करना चाहिए। एकादशी के दिन गुस्सा नहीं करना चाहिए और वाद-विवाद से दूर रहना चाहिए।
- एकादशी के दिन महिलाओं का अपमान करने से व्रत का फल नहीं मिलता है। सिर्फ एकादशी के दिन ही नहीं व्यक्ति को किसी भी दिन महिलाओं का अपमान नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति महिलाओं का सम्मान नहीं करते हैं उन्हें जीवन में कई तरहों की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- एकादशी के पावन दिन मांस- मंदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन ऐसा करने से जीवन में तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस दिन व्रत करना चाहिए। अगर आप व्रत नहीं करते हैं तो एकादशी के दिन सात्विक भोजन का ही सेवन करें।
अजा एकादशी पूजा विधि
अजा एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठे और स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनें। लेकिन इस दिन बाल धोकर स्नान नहीं करना चाहिए। यदि आप बाल धोना भी चाहे तो केवल पानी से धोएं साबुन या शैम्पू का प्रयोग न करें। पूजा के लिए पूर्न दिशा में एक चौकी तैयार करें और इसपर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर आसन तैयार करें। फिर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें और चंदन का तिलक लगाकर पुष्प की माला पहनाएं।भगवान को रोली, अक्षत, पुष्प, पंचामृत, फल और नैवेद्य अर्पित करें। साथ ही तुलसी दल भी अवश्य चढ़ाएं। इसके बाद अजा एकादशी की व्रत कथा पढ़ें और आरती करें। इस दिन विष्णु चालीसा का पाठ और विष्णु स्तुति भी उत्तम होता है।
अजा एकादशी व्रत कथा ( Aja Ekadashi Vrat Katha)
युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि हे माधव ! अजा एकादशी व्रत क्या है? तथा इसे क्यों धारण किया जाता है ? इसको धारण करने से क्या लाभ होगा? सभी प्रश्नों को सुनते हुए भगवान मधुसूदन श्री कृष्ण युधिस्टर से कहते हैं की हे युधिष्ठिर ! इस व्रत की धारण शक्ति सब प्रकार के समस्त पापों का नाश करने वाली है। इस एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु जी की पूजा की जाती है। जो मनुष्य इस दिन भगवान ऋषिकेश की पूजा करता है। उसको वैकुंठ की प्राप्ति अवश्य होती है। अब आप इसकी कथा सुनिए।
प्राचीन काल में हरिशचंद्र नामक एक चक्रवर्ती राजा राज्य करता था। राजा हरिश्चंद्र अपनी सभ्यता पर अडिग थे। तथा उन्हें सत्य के अलावा कुछ भी नहीं दिखाई देता था और उनके मुख से कभी भी असत्य शब्द नहीं निकला करते थे। कहते हैं जब भी किसी को सत्य के ऊपर अधिक रहने की प्रतिज्ञा की हो तो उन्हें परीक्षा भी देनी पड़ती है। इसी के चलते हरिश्चंद्र को अपने सत्य की परीक्षा देनी पड़ी और चल समय की गति ऐसी बनी कि उन्हें अपना राजपाट छोड़ना पड़ा। यहां तक कि उन्हें अपने पुत्र तथा पत्नी को बेचना पड़ा। ऐसी ही कई कष्ट राजा हरिशचंद्र सहते आ रहे थे। परंतु अपनी सत्यता को नहीं छोड़ सकते थे।