Shardiya Navratri 2023 :- इस साल शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 15 अक्तूबर 2023, रविवार से हो रही है। मां दुर्गा को समर्पित यह पर्व 03 अक्तूबर से शुरू होकर 11 अक्तूबर 2024, तक चलेगा। वहीं 24 अक्टूबर को विजयादशमी यानी दशहरा का पर्व मनाया जाएगा। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा की जाती है। वैसे तो माता रानी सिंह की सवारी करती हैं, लेकिन नवरात्रि में जब धरती पर आती हैं तो उनकी सवारी बदल जाती है। मां जगदंबे के आगमन की सवारी नवरात्रि के प्रारंभ वाले दिन पर निर्भर करती है। यानी नवरात्रि की शुरुआत जिस दिन होती है, उस दिन के आधार पर उनकी सवारी तय होती है। इसी प्रकार से वह जिस दिन विदा होती हैं, उस दिन के आधार पर प्रस्थान की सवारी तय होती है। ऐसे में चलिए जानते हैं नवरात्रि में माता रानी के अलग-अलग वाहन और उनके संकेतों के बारे में…
शारदीय नवरात्रि 2024 मुहूर्त
शारदीय नवरात्रि की कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 03 अक्टूबर, 2024 प्रात: 12 बजकर 18 मिनट से शुरू होकर 4 अक्टूबर प्रात: 02 बजकर 58 मिनट तक रहेगी. कलश स्थापना का मुहूर्त सुबह 06.15 से 07.21 यानी 1 घंटे 6 मिनट तक रहेगा। शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन घटस्थापना के बाद मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
शरद नवरात्रि 2024 विशेष तिथि
शारदीय नवरात्रि के दौरान कलश स्थापना या घट स्थापना का विशेष महत्व रखती है। इस दौरान घट स्थापना और नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करने का विधान है। इस वर्ष नवरात्रि का प्रारंभ 03 अक्टूबर, 2024 गुरुवार से होगा। साथ ही इसका समापन 11 अक्टूबर शुक्रवार के दिन होगा।
माता की सवारी और उनके महत्व
मान्यता के अनुसार यदि नवरात्रि सोमवार या रविवार से शुरू हो रही है तो मां दुर्गा का वाहन हाथी होता है, जो अधिक वर्षा के संकेत देता है। वहीं यदि नवरात्रि मंगलवार और शनिवार शुरू होती है, तो मां का वाहन घोड़ा होता है, जो सत्ता परिवर्तन का संकेत देता है। इसके अलावा गुरुवार या शुक्रवार से शुरू होने पर मां दुर्गा डोली में बैठकर आती हैं जो रक्तपात, तांडव, जन-धन हानि का संकेत बताता है। वहीं बुधवार के दिन से नवरात्रि की शुरुआत होती है, तो मां नाव पर सवार होकर आती हैं। नाव पर सवार माता का आगमन शुभ होता है।
इस बार क्यों है शारदीय नवरात्रि खास–
इस बार शारदीय नवरात्र नौ दिनों का हैं, जिसे ज्योतिषशास्त्र में शुभ माना गया है। साल 2024 के शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर पृथ्वी पर आ रही हैं। यानी इस साल माता रानी का वाहन हाथी है। जब नवरात्रि रविवार और सोमवार के शुरू होते हैं तो मां दुर्गा की सवारी हाथी होता है। मां आदिशक्ति के हाथी पर सवार होने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है और दुनिया भर में शांति के प्रयास सफल होने की मान्यता है।
नवरात्रि में होगी मां दुर्गा की आप पर कृपा करें ये काम
घर की करें साफ–सफाई
वास्तु के अनुसार, नवरात्रि प्रारंभ होने से पहले घर की साफ-सफाई कर लेनी चाहिए। नवरात्रि में साफ- सफाई का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां दुर्गा का वास उन्हीं घरों में होता है, जहां साफ-सफाई होती है।
घटस्थापना वाले स्थान को करें साफ–सुथरा–
नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि पर घटस्थापना या कलश स्थापना की जाती है। मान्यता है कि घटस्थापना वाले स्थान को अच्छे से साफ करना चाहिए। इसके बाद गंगाजल से उस स्थान को शुद्ध करना चाहिए।
मुख्य द्वार पर बनाएं स्वास्तिक
हिंदू धर्म में स्वास्तिक का बहुत अधिक महत्व होता है। यह निशान मंगलकारी और शुभ संकेत दर्शाता है। नवरात्रि से पूर्व ही घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक का निशान बना लेना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और भक्तों पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखती हैं।
इन कामों को करने की है सख्त मनाही
पूजा करते समय उठें नहीं
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक पूजा में किसी मंत्र जाप, चालीसा और दुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय बीच में किसी से भी बोलना नहीं चाहिए और न ही किसी अन्य काम के लिए उठना चाहिए। मान्यता है कि इससे आपकी पूजा का उचित फल प्राप्त नहीं हो पाता और आपके आसपास नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है।
साफ–सफाई का खास ख्याल रखें
नवरात्रि के समय माता की चौकी, मंदिर के साथ ही अपनी स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। नौ दिनों तक रोजाना सुबह स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और उसके बाद ही पूजा स्थल में आएं।
चमड़े की बैल्ट या अन्य चीजें न पहनें
शास्त्रों में पूजा के समय चमड़े की कोई भी चीज पहनना वर्जित माना गया है। इसलिए ध्यान रखें कि मां दुर्गा की पूजा करते समय या नवरात्रि व्रत रखने वाले लोगों को पूजाघर में चमड़े से कोई भी चीज़ लेकर या पहनकर नहीं जाना चाहिए।
दिन में ना सोएं
विष्णु पुराण के अनुसार कहा गया है कि नवरात्रि व्रत के समय दिन में सोने की मनाही है। व्रतधारी लोगों को चाहिए कि वह नवरात्रि के दिनों में पूजा के अलावा खाली समय में भजन-कीर्तन करते हुए माता का ध्यान करना चाहिए।
प्याज, लहसुन न खाएं
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि के दिनों में प्याज, लहसुन और मांसाहारी भोजन नहीं खाना चाहिए और न ही घर में बनाएं। नवरात्रि के नौ दिनों में सात्विक भोजन ही करें।
नाखून तथा दाढ़ी–मूंछ न कांटे
शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों तक दाढ़ी-मूंछ, बाल न कटवाएं और न ही नाखून काटने चाहिए।
कलश स्थापना के चरण (शारदीय नवरात्रि घटस्थापना विधि)
नवरात्रि के दौरान कलश स्थापना के लिए इन चरणों का पालन करें:
- नवरात्रि के पहले दिन सुबह जल्दी स्नान कर लें और स्वश्च कपडे पहन लें।
- मंदिर या निर्दिष्ट क्षेत्र की सफाई करने के बाद, भगवान गणेश का आह्वान करें और फिर देवी दुर्गा के नाम पर एक अखंड दीपक (अखंड ज्योति) जलाएं।
- मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बो दें।
- तांबे के लोटे के ऊपरी भाग पर रोली से स्वस्तिक का चिन्ह बनाएं।
- मटके के गले में मौली बांधें।
- लोटे में पानी भरें और कुछ गंगाजल की बूंदें डालें।
- अब बर्तन में सवा रुपये, लौंग, इलायची, कपूर और अक्षत (बिना टूटे चावल के दाने) डालें।
- कलश के ऊपर आम या अशोक के पांच पत्ते रखें।
- नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर मौली से बांध दें।
- नारियल को कलश के ऊपर रखें।
- कलश को मिट्टी से भरे उस गमले के बीच में रखें जहां आपने जौ के बीज बोए हैं।
- कलश स्थापना के साथ ही नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्रि व्रत का संकल्प लें।
- वैकल्पिक रूप से, आप देवी के नाम पर अखंड ज्योति भी जला सकते हैं।
- देवी दुर्गा के आशीर्वाद का आह्वान करते हुए, माँ दुर्गा की आरती कीजिये और नवरात्री की प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा कीजिये।
शारदीय नवरात्रि पूजा विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। साफ वस्त्र पहनें। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना की विधि को पूरा करें। कलश में गंगाजल भरें और कलश के मुख पर आम के पत्ते रखें। नाारियल को लाल चुनरी के साथ लपेटें। नारियल को आम के पत्ते के ऊपर रखें। कलश को मिट्टी के बर्तन के पास या फिर उसके ऊपर रखें। मिट्टी के बर्तन पर जौके बीज बोएं और नवमी तक हर रोज कुछ पानी छिड़कें। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करें।फूल, कपूर, अगरबत्ती, और व्यंजनों के साथ पूजा करनी चाहिए। साथ ही घर पर नौ कन्याओं को आमंत्रित करें। उन्हें एक साफ और आरामदायक जगह पर बैठाकर उनके पैर धोएं। उनकी पूजा करें और उनके माथे पर तिलक लगाएं। साथ ही उन्हें स्वादिष्ट भोजन परोसें। दूर्गा पूजा के बाद अंतिम दिन घट विसर्जन कर दें।
नवरात्रि: देवी दुर्गा के नौ अवतार ( Navratri Dates )
नौ रातों तक, लोग त्योहार को अत्यंत भक्ति और प्रार्थना के साथ मनाते हैं। प्रत्येक दिन दुर्गा मां के एक अवतार को समर्पित है। इसके आधार पर भक्तों को प्रत्येक दिन सही रंग धारण करना होता है और दिन के हिसाब से पूजा करनी होती है ।
दिन 1: शैलपुत्री / प्रतिपदा ( Shailputri )
प्रतिपदा के दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। शैला का अर्थ है पर्वत और पुत्री का अर्थ है बेटी। चूंकि देवी पार्वती पर्वत देवता की पुत्री हैं, इसलिए उन्हें इस दिन महत्व दिया जाता है।
दिन 2: ब्रह्मचारिणी/द्वित्य ( Brahmcharini )
द्वितीया पर, देवी ब्रह्मचारिणी दुर्गा देवी का एक रूप हैं और वह क्रोध को कम करने वाली हैं। इसलिए, दूसरा दिन इस देवी को समर्पित है।
दिन 3: चंद्रघंटा / तृतीया ( Chandraghanta )
तृतीया पर, भक्त चंद्रघंटा की पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि उसकी तीसरी आंख है और वह दुष्ट राक्षसों से लड़ती है। पूजा के दौरान उसे प्रसन्न करने के लिए चमेली के फूल चढ़ाए जाते हैं।
दिन 4: कुष्मांडा / चतुर्थी ( Kushmanda )
चतुर्थी का दिन देवी कूष्मांडा को समर्पित है। उसके नाम का अर्थ है ब्रह्मांडीय अंडा और वह सभी में ऊर्जा और गर्मजोशी फैलाने के लिए जानी जाती है।
दिन 5: स्कंदमाता/पंचमी ( Skandamata )
पंचमी पर, देवी स्कंदमाता वह हैं जो बुद्ध (बुध ग्रह) पर शासन करती हैं। वह पूजनीय है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि वह उग्र और प्रेम करने वाली है।
दिन 6 : कात्यायिनी / षष्ठी ( Katyayini )
कहा जाता है कि षष्ठी के छठे दिन, दुर्गा ने देवी कात्यायनी का रूप धारण किया था ताकि वह राक्षसों के राजा को मार सकें। महिलाएं शांतिपूर्ण वैवाहिक और पारिवारिक जीवन पाने के लिए प्रार्थना करती हैं।
दिन 7 : कालरात्रि / सप्तमी ( Kalratri )
सप्तमी को यह दिन विशेष रूप से देवी कालरात्रि को समर्पित है। उसे भयंकर कहा जाता है और उसने पूरे ब्रह्मांड में बुरी आत्माओं को भी डरा दिया है। वह काली देवी का सबसे विनाशकारी अवतार है और भगवान शनि (शनि ग्रह) पर शासन करती है।
दिन 8 : महागौरी / अष्टमी ( Mahagauri )
आठवें दिन लोग महागौरी की पूजा करते हैं। वह इस खास दिन केवल सफेद कपड़े पहनती हैं और एक बैल की सवारी करती हैं। इस दिन, कन्या पूजा होती है- युवा कुंवारी लड़कियों के लिए समर्पित एक विशेष कार्यक्रम। इस दिन को महाष्टमी या महा दुर्गाष्टमी के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन को नृत्य, मस्ती और प्रार्थना के साथ मनाया जाता है।
दिन 9 : सिद्धिदात्री/नवमी ( Siddhidatri )
नवमी के दिन देवी सिद्धिदात्री को महत्व दिया जाता है। वह आपकी सभी इच्छाओं को पूरा करने के लिए शक्तिशाली है और इसलिए नौवां दिन उन्हें समर्पित है।
दिन 10 : विजयादशमी (दशहरा)
9 दिनों की प्रार्थना के बाद दसवां दिन विजयदशमी के लिए अलग रखा जाता है। एक दिन जब जीवन में नई चीजें शुरू हो सकती हैं। इसे विद्यारंभम भी कहा जाता है- एक ऐसा आयोजन जहां बच्चों को शिक्षा की दुनिया से परिचित कराया जाता है। सिंदूर खेला विजयदशमी पर अनुष्ठान का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है।