Hartalika Teej 2023:- हरतालिका तीज क्यों मनाई जाती है ? हरतालिका का अर्थ और हरतालिका व्रत कथा क्या है ?

Hartalika Teej 2023

Hartalika Teej 2023:- हरतालिका तीज हिन्दूओं का एक प्रसिद्ध त्योहार है। यह त्योहार मुख्य रूप से महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह त्योहार भारत और नेपाल में मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन को पूर्णतयः समर्पित है। हरतालिका तीज के दौरान महिलायें पूरे दिन व्रत रखती है, तथा इस दिन निर्जला व्रत रखती है अर्थात् पूरे दिन पानी भी नहीं पीती है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए रखा था। इसलिए जो महिला इस व्रत को करती है, उन्हें सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष तृतीया के दौरान मनाया जाता है। इस दिन, भगवान शिव और देवी पार्वती की प्रतिमाओं को रेत से बनाया जाता है, और वैवाहिक आनंद और संतान के लिए पूजा की जाती है।

Hartalika Teej 2023:- हरतालिका तीज पूजा का मुहूर्त क्या है ?

हरितालिका तीज दिनांक सोमवार, 18 सितंबर 2023

प्रातःकाल हरतालिका पूजा मुहूर्त 06:12 AM से 08:38 AM

तृतीया तिथि शुरू 17 सितंबर 2023 को सुबह 11:08 बजे

तृतीया तिथि समाप्त 18 सितंबर, 2023 को दोपहर 12:39 बजे

Hartalika Teej 2023:- हरतालिका तीज क्यों मनाई जाती है ?

सौभाग्यवती महिलाएं अपने सुहाग को अखंड बनाए रखने के लिए हरतालिका तीज का व्रत करती हैं। अविवाहित युवतियां मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए इस दिन उपवास करती हैं। हरतालिका तीज को मनाने का एक कारण माता पार्वती और भगवान शिव हैं। मान्यता है कि माता पार्वती ने ही सबसे पहले हरतालिका तीज का व्रत करते भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया था। माता पार्वती का अनुसरण करते हुए महिलाएं शिवजी और माता पार्वती जैसा दांपत्य जीवन पाने की कामना करती हैं।

Hartalika Teej 2023:- हरतालिका तीज कैसे मनाई जाती है ?

हरतालिका तीज के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें। फिर हाथ में जल लेकर व्रत करने का संकल्प करें। माता पार्वती, शिव जी और गणेश जी की मिट्टी की प्रतिमाएं बनाकर एक चौकी पर स्थापित करें। देवी पार्वती को वस्त्र, चुनरी और अन्य श्रृंगार के सामान से तैयार करें। फिर फूल, धूप, चंदन अर्पित करें। शिव जी को भांग, धतूरा और सफेद फूल अर्पित करें। पूरा दिन निर्जला उपवास के बाद रात में भजन कीर्तन और फिर मुहूर्त पर पूजा करें।

Hartalika Teej 2023:- हरतालिका तीज व्रत पूजा विधि क्या है ?

हरतालिका तीज पर माता पार्वती और भगवान शंकर की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है:-

  • हरतालिका तीज प्रदोषकाल में किया जाता है। सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त को प्रदोषकाल कहा जाता है। यह दिन और रात के मिलन का समय होता है।
  • हरतालिका पूजन के लिए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू रेत व काली मिट्टी की प्रतिमा हाथों से बनाएं।
  • पूजा स्थल को फूलों से सजाकर एक चौकी रखें और उस चौकी पर केले के पत्ते रखकर भगवान शंकर, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
  • इसके बाद देवताओं का आह्वान करते हुए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का षोडशोपचार पूजन करें।
  • सुहाग की पिटारी में सुहाग की सारी वस्तु रखकर माता पार्वती को चढ़ाना इस व्रत की मुख्य परंपरा है।
  • इसमें शिव जी को धोती और अंगोछा चढ़ाया जाता है। यह सुहाग सामग्री सास के चरण स्पर्श करने के बाद ब्राह्मणी और ब्राह्मण को दान देना चाहिए।
  • इस प्रकार पूजन के बाद कथा सुनें और रात्रि जागरण करें। आरती के बाद सुबह माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं व ककड़ी-हलवे का भोग लगाकर व्रत खोलें।

Hartalika Teej 2023:- हरतालिका तीज व्रत का पौराणिक महत्व क्या है ?

पौराणिक क्था के अनुसार उनके पिता हिमालय ने उनका विवाह भगवान विष्णु से करने प्रस्ताव रखा तब माता ने भगवान विष्णु से विवाह करने से मना कर दिया। क्योंकि माता पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी। एक देवी पार्वती की सहेली ने उन्हें भगवान शिव से विवाह करने के लिए तपस्या करने के लिए कहा। माता पार्वती ने रेत से एक शिव लिंग बनाया और घोर तपस्या की। तपस्या के दौरान माता ने ना तो कुछ खाया और ना ही पानी पीया। भगवान शिव, देवी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए तथा देवी पार्वती को दर्शन दियें। तब भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह करने का वचन दिया। तब से इस दिन को हरतालिका तीज से रूप में मनाया जाने लगा।

Hartalika Teej 2023:- हरतालिका तीज व्रत के नियम क्या है ?

  • हरतालिका तीज व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है। व्रत के बाद अगले दिन जल ग्रहण करने का विधान है।
  • हरतालिका तीज व्रत करने पर इसे छोड़ा नहीं जाता है। प्रत्येक वर्ष इस व्रत को विधि-विधान से करना चाहिए।
  • हरतालिका तीज व्रत के दिन रात्रि जागरण किया जाता है। रात में भजन-कीर्तन करना चाहिए।
  • हर तालिका तीज व्रत कुंवारी कन्या, सौभाग्यवती स्त्रियां करती हैं। शास्त्रों में विधवा महिलाओं को भी यह व्रत रखने की आज्ञा है।

Hartalika Teej 2023:- हरतालिका तीज पर किन मंत्रों का जाप करें ?

उपवास के दौरान आप मंत्रों का जाप कर सकते हैं। भगवान शिव की पूजा करते समय ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करें। मां पार्वती का पूजन करते समय ‘ॐ उमायै नम:’ मंत्र का जाप करें।

Hartalika Teej 2023:- हरतालिका का अर्थ और हरतालिका व्रत कथा क्या है ?

हरतालिका शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला शब्द है ‘हरत’ जिसका अर्थ होता है हरण करना, और दूसरा शब्द है ‘आलिका’ जिसका अर्थ होता है सखी। इस व्रत के पीछे जो पौराणिक कथा है वो कुछ इस प्रकार है कि माता पार्वती ने अपने 107 जन्म लेने के बाद 108वां जन्म गिरिराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया था। शैलपुत्री के रूप में उन्होंने 12 वर्षों तक कठोर निर्जल तपस्या की थी, जिसमें हर एक ऋतु के कठोर प्रहार को भी उन्होंने सहन किया था। गिरिराज अपनी पुत्री की ऐसी दशा को देखकर चिंतित थे। ऐसे में एक दिन नारद ऋषि उनसे मिलने आए और उन्होंने गिरिराज को बताया की भगवान विष्णु उनकी पुत्री की कठोर तपस्या से प्रसन्न है और उनसे विवाह करना चाहते है। चिंतित गिरिराज के लिए यह प्रस्ताव किसी वरदान से कम नहीं था इसीलिए उन्होंने तुरंत इसे स्वीकार कर लिया। जब यह बात माता पार्वती को यह बात पता चली तो वह बहुत व्याकुल हो उठी और अपनी सखियों को अपनी दुविधा बताई की वे भगवान विष्णु से नहीं बल्कि भगवान शिव से विवाह करना चाहती है।

उनकी सखियों ने पार्वती की मदद करने के लिए उनका हरण करके एक घने जंगल में ले जाकर गुफा में छिपा दिया। इस गुफा में पार्वती ने रेत से शिवलिंग बनाया और निराहार-निर्जला रहकर भगवान शिव की पूरी तल्लीनता से आराधना की। यह पूजा-आराधना इतनी कठिन थी कि भगवान शिव का आसन कांपने लगा और उन्होंने माता पार्वती को दर्शन दिये। जब माता पार्वती ने उन्हें बताया कि वे उन्हें बहुत पहले ही अपने पति रूप में स्वीकार कर चुकी है, तब भोलेनाथ ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अपनी अर्धांगिनी बनाने का वचन दिया। यह दिन हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल की तृतीया का ही दिन था। शिव जी से मिले वचन के पश्चात माता पार्वती ने उस शिवलिंग और पूजन सामग्री को जल में विसर्जित कर दिया और अपने व्रत का पारण किया। गिरिराज को जब यह पूरा घटनाक्रम पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु से क्षमा मांगकर शिव-पार्वती के विवाह को स्वीकृति दे दी।

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