मीरा बाई जयंती: जानिए, श्री कृष्ण की परम भक्त मीरा से जुड़ी कुछ खास बातें !!

meera bai jayanti 2024

Meera Bai Jayanti 2024:- मीराबाई का प्रारंभिक जीवन

मीराबाई के जीवन से सम्बंधित कोई भी ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं हैं। केवल कुछ ऐसी बातों को सुना व देखा जाता है जिसमे ही विद्वानों ने साहित्य और दूसरे स्रोतों से मीराबाई के जीवन के बारे में प्रकाश डालने की कोशिश की है। इन दस्तावेजों के अनुसार मीरा का जन्म राजस्थान के मेड़ता में सन 1498 में एक राजपरिवार में हुआ था।

उनके पिता रतन सिंह राठोड़ एक छोटे से राजपूत रियासत के शासक थे। वे अपनी माता-पिता की इकलौती संतान थीं और जब वे छोटी बच्ची थीं तभी उनकी माता का निधन हो गया था। उन्हें संगीत, धर्म, राजनीति और प्राशासन जैसे विषयों की शिक्षा दी गयी। मीरा का पालन-पोलन उनके दादा के देख-रेख में हुआ जो भगवान् विष्णु के गंभीर उपासक थे और एक योद्धा होने के साथ-साथ भक्त-हृदय भी थे और साधु-संतों का आना-जाना इनके यहाँ लगा ही रहता था। इस प्रकार मीरा बचपन से ही साधु-संतों और धार्मिक लोगों के सम्पर्क में आती रहीं।’

Meera Bai Jayanti 2024:- मीरा बाई जयंती 2024 तिथि

हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, शरद पूर्णिमा दिवस को मीराबाई की जयंती के रूप में मनाया जाता है।

मीराबाई की लगभग 526वाँ जन्म वर्षगाँठ

मीराबाई जयन्ती बृहस्पतिवार, अक्टूबर 17, 2024 को

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 16, 2024 को 08:40 पी एम बजे

पूर्णिमा तिथि समाप्त – अक्टूबर 17, 2024 को 04:55 पी एम बजे

Meera Bai Jayanti 2024:- मीरा बाई की शादी

मीरा का विवाह राणा सांगा के पुत्र और मेवाड़ के राजकुमार भोज राज के साथ सन 1516 में संपन्न हुआ। उनके पति भोज राज दिल्ली सल्तनत के शाशकों के साथ एक संघर्ष में सन 1518 में घायल हो गए और इसी कारण सन 1521 में उनकी मृत्यु हो गयी। उनके पति के मृत्यु के कुछ वर्षों के अन्दर ही उनके पिता और श्वसुर भी मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के साथ युद्ध में मारे गए।

ऐसा कहा जाता है कि उस समय की प्रचलित प्रथा के अनुसार पति की मृत्यु के बाद मीरा को उनके पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया किन्तु वे इसके लिए तैयार नही हुईं और धीरे-धीरे वे संसार से विरक्त हो गयीं और साधु-संतों की संगति में कीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं।

Meera Bai Jayanti 2024:- मीरा बाई कृष्ण भक्ति

पति के मृत्यु के बाद इनकी भक्ति दिनों-दिन बढ़ती गई। मीरा अक्सर मंदिरों में जाकर कृष्णभक्तों के सामने कृष्ण की मूर्ति के सामने नाचती रहती थीं। मीराबाई की कृष्णभक्ति और इस प्रकार से नाचना और गाना उनके पति के परिवार को अच्छा नहीं लगा जिसके वजह से कई बार उन्हें विष देकर मारने की कोशिश की गई।

ऐसा माना जाता है कि सन्‌ 1533 के आसपास मीरा को ‘राव बीरमदेव’ ने मेड़ता बुला लिया और  मीरा के चित्तौड़ त्याग के अगले साल ही सन्‌ 1534 में गुजरात के बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर कब्ज़ा कर लिया। इस युद्ध में चितौड़ के शासक विक्रमादित्य मारे गए तथा सैकड़ों महिलाओं ने जौहर किया। इसके पश्चात सन्‌ 1538 में जोधपुर के शासक राव मालदेव ने मेड़ता पर अधिकार कर लिया जिसके बाद बीरमदेव ने भागकर अजमेर में शरण ली और मीरा बाई ब्रज की तीर्थ यात्रा पर निकल पड़ीं। सन्‌ 1539 में मीरा बाई वृंदावन में रूप गोस्वामी से मिलीं। वृंदावन में कुछ साल निवास करने के बाद मीराबाई सन्‌ 1546 के आस-पास द्वारका चली गईं।

तत्कालीन समाज में मीराबाई को एक विद्रोही माना गया क्योंकि उनके धार्मिक क्रिया-कलाप किसी राजकुमारी और विधवा के लिए स्थापित परंपरागत नियमों के अनुकूल नहीं थे। वह अपना अधिकांश समय कृष्ण के मंदिर और साधु-संतों व तीर्थ यात्रियों से मिलने तथा भक्ति पदों की रचना करने में व्यतीत करती थीं।

Meera Bai Jayanti 2024:- मीराबाई के जीवन की महत्वपूर्ण बातें:

तुलसीदास के कहने पर प्रभु श्री राम की भक्ति

इतिहास में किसी स्थान पर, यह पाया जाता है कि मीरा बाई ने भी तुलसीदास को गुरु बनाया और भक्ति की। कृष्ण भक्त मीरा ने राम भजन भी लिखा है, हालांकि इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है, लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि पत्रों के माध्यम से मीराबाई और तुलसीदास के बीच एक संवाद था। ऐसा माना जाता है कि मीराबाई ने तुलसीदास जी को एक पत्र लिखा था कि उनके परिवार के सदस्य उन्हें कृष्ण की भक्ति नहीं करने देते। श्रीकृष्ण को पाने के लिए, मीराबाई ने अपने गुरु तुलसीदास से एक उपाय पूछा। तुलसी दास के कहने पर, मीरा ने कृष्ण के साथ भक्ति के भजन लिखे। जिसमें सबसे प्रसिद्ध भजन है \”पायो जी मैने राम रमन धन पायो

भगवान कृष्ण बचपन से ही भक्त थे

जोधपुर की राठौड़ रतन सिंह की इकलौती बेटी मीरा बाई बचपन से ही कृष्ण-भक्ति में डूबी थीं। कृष्ण की छवि मीराबाई के बालमन से तय हुई थी, इसलिए युवावस्था से लेकर मृत्यु तक उन्होंने कृष्ण को अपना सब कुछ माना। बचपन की एक घटना के कारण उनका कृष्ण प्रेम अपने चरम पर पहुंच गया। बचपन में एक दिन, उनके पड़ोस में एक अमीर व्यक्ति के पास एक बारात आई। सभी महिलाएं छत पर खड़ी होकर बारात देख रही थीं। बारात देखने मीराबाई भी छत पर आईं। बारात को देखकर, मीरा ने अपनी माँ से पूछा कि मेरी दुल्हन कौन है, जिस पर मीरा बाई की माँ ने उपहास में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति की ओर इशारा किया और कहा कि यह तुम्हारी दुल्हन है, यह बात मीराबाई के बालमन में एक गाँठ की तरह है। और कृष्ण को अपना पति मानने लगी।

Meera Bai Jayanti 2024:- मीरा बाई की कहानी 

मीरा बाई सदैव कृष्ण भक्ति में तल्लीन रहती थी. उनका विवाह महाराणा भोजराज के साथ हुआ था. विवाह के बाद भी मीरा के जीवन में कृष्ण भक्ति सर्वोपरि थी. उनका यह व्यवहार उनके ससुराल के लोगो को कतई पसंद नहीं था. वे ना ना प्रकार से मीरा को प्रताड़ित करते कि वे कृष्ण भक्ति छोड़ दे. लेकिन मीरा ने कभी ना सुनी.

मीरा को घर के सभी कार्य करने पड़ते थे. एक बार मीरा को सत्संग में जाना था, पर घर छोड़ वो जा नहीं सकती थी. तब ही भगवान् कृष्ण मीरा का रूप रख कर आये और उसके घर के सभी कार्य करने लगे और मीरा कृष्ण भक्ति के लिए चली गई और इस तरह भक्ति में लीन हो गई कि उसके प्राण ही भगवान में समा गये. उनके मृत शरीर का अन्य लोगो ने दहा संस्कार कर दिया. और दूसरी तरफ भगवान् कृष्ण मीरा बन उनके घर के कार्य में लगे रहे. यह देखा माता रुक्मणि को चिंता हुई और वे कृष्ण के सामने विनती करने लगी कि हे प्रभु ! मुझसे क्या भूल हुई हैं जो आप मुझे छोड़ यहाँ आ गये. तब कृष्ण ने माता रुक्मणि से कहा कि शमशान जाओं और मीरा की सभी अस्थियाँ लाकर उन्हें पुन : जीवित करो. तब ही मैं यहाँ से निकल सकता हूँ. माता ने कहा – मुझे कैसे समझ आएगा कि कौनसी अस्थि मीरा की हैं. श्री कृष्ण ने उत्तर दिया – जिस अस्थि में से तुम्हे मेरा नाम सुनाई देगा, वो सभी अस्थियाँ तुम एकत्र कर लेना. माता रुक्मणि ने वही किया. मीरा के अंतःकरण में समाहित भगवान् का नाम उसकी एक-एक अस्थि में सुनाई पड़ रहा था. उन अस्थियों को एकत्र कर माता ने उनका अमृत से स्नान कराया और उन्हें जीवन दान दिया. इसके बाद भगवान् कृष्ण अपने धाम वापस लौट सके. मीरा की भक्ति में इतनी शक्ति थी, कि उनके लिए स्वयम भगवान ने घर के छोटे- छोटे कार्य किये.

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