पौष पुत्रदा एकादशी 2022: पुण्यदायक और श्रेष्ठ व्रतों में से प्रमुख व्रत है एकादशी। जैसा कि सब जानते हैं कि एकादशी का दिन भगवान विष्णु का दिन माना जाता है। साल में 24 एकादशी पड़ती है, जिनके अलग अलग नाम है। नया साल आरंभ हो चुका है और इस साल पहली एकदशी 13 जनवरी 2022 को पड़ेगी। इस एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। चूंकि पुत्रद एकादशी साल में दो बार पड़ती है एक पौष मास में और दूसरी श्रावण मास में। याहपौष मास है और इसलिए इस मास मनाई जाने वाली एकादशी पौष पुत्रदा एकादशी कहलाती है। जैसा कि नाम से ही समझ आ रहा है ये व्रत संतान प्राप्ति की कामना करने वाले लोगों के लिए अत्यंत उत्तम माना गया है।
पुत्रदा एकादशी 2022 तारीख एवं पूजा मुहूर्त
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 12 जनवरी दिन बुधवार को शाम 04 बजकर 49 मिनट पर होगा, इस तिथि का समापन 13 जनवरी दिन गुरुवार को शाम 07 बजकर 32 मिनट पर होगा. उदयातिथि को देखते हुए पुत्रदा एकादशी का व्रत 13 जनवरी दिन गुरुवार को रखा जाएगा.
गुरुवार के दिन एकादशी व्रत का विशेष महत्व है. इस दिन व्रत रखने से गुरुवार व्रत का भी पुण्य लाभ प्राप्त होता है. इस दिन शुभ योग दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक है और रवि योग प्रात: 07 बजकर 15 मिनट से शाम 05 बजकर 07 मिनट तक है. ऐसे में आप पुत्रदा एकादशी के दिन प्रात:काल से ही भगवान विष्णु की पूजा कर सकते हैं. इस दिन प्रात:काल से ही मुहूर्त बना हुआ है.
कैसे रखें पौष पुत्रदा एकादशी व्रत
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत करने वाले सभी भक्तों को दशमी तिथि के दिन सूर्यास्त के पहले भोजन कर लेना चाहिए. जो भी भोजन करें वो तामसी ना हो, यानी कि लहसुन-प्याज आदि का इस्तेमाल भोजन में नहीं करना चाहिए.इसके बाद एकादशी के दिन सुबह सवेरे उठकर स्नान आदि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लें. इसके बाद भगवान को धूप-दीप, फूल, अक्षत, चंदन और नैवेद्य आदि चढ़ाएं. पूजा के बाद पुत्रदा एकादशी व्रत कथा पढ़ें.
अगर आप व्रत हैं तो इस विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी जरूर करें. इसके बाद संतान-कामनी की पूर्ति के लिए संतान गोपाल मंत्र का जाप करना शुभ होता है. इसके साथ ही भगवान कृष्ण के बाल स्वरुप की पूजा भी संतान की सुख-समृद्धि के लिए शुभ है. इस दिन गरीबों को दान आदि भी अपने क्षमता के अनुसार दें.
पौष पुत्रदा एकादशी पूजा विधि
पौष पुत्रदा एकादशी के दिन श्रद्धापूर्वक भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। इस व्रत की विधि इस प्रकार है-
- पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वाले श्रद्धालुओं को व्रत से पूर्व दशमी के दिन एक समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। व्रती को संयमित और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
- प्रातःकाल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर भगवान का ध्यान करें। गंगा जल, तुलसी दल, तिल, फूल पंचामृत से भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए।
- इस व्रत में व्रत रखने वाले बिना जल के रहना चाहिए। यदि व्रती चाहें तो संध्या काल में दीपदान के पश्चात फलाहार कर सकते हैं।
- व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिये।
पुत्रदा एकादशी महत्व-
संतान की लंबी आयु और संतान प्राप्ति की कामना करने वाली महिलाएं पुत्रदा एकादशी के व्रत को करती हैं। पुत्रदा एकादशी को साल में दो बार आती है। साल की पहली पुत्रदा एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी या पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी कहते हैं। यह एकादशी दिसंबर या जनवरी महीने में आती है। दूसरी पुत्रदा एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहते हैं। यह जुलाई या अगस्त के महीने में आती है।
पौराणिक कथा
किसी समय भद्रावती नगर में राजा सुकेतु का राज्य था। उसकी पत्नी का नाम शैव्या था। संतान नहीं होने की वजह से दोनों पति-पत्नी दुःखी रहते थे। एक दिन राजा और रानी मंत्री को राजपाठ सौंपकर वन को चले गये। इस दौरान उनके मन में आत्महत्या करने का विचार आया लेकिन उसी समय राजा को यह बोध हुआ कि आत्महत्या से बढ़कर कोई पाप नहीं है। अचानक उन्हें वेद पाठ के स्वर सुनाई दिये और वे उसी दिशा में बढ़ते चलें। साधुओं के पास पहुंचने पर उन्हें पौष पुत्रदा एकादशी के महत्व का पता चला। इसके बाद दोनों पति-पत्नी ने पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत किया और इसके प्रभाव से उन्हें संतान की प्राप्ति हुई। इसके बाद से ही पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व बढ़ने लगा। वे दंपती जो निःसंतान हैं उन्हें श्रद्धा पूर्वक पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।