कब और क्यों मनाया जाता है कंस वध मेला:-
कंस वध कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष के दसवे दिन मनाया जाता है | यह त्योहार दीपावली के बाद आता है | भगवान विष्णु के आठवे अवतार जो श्री कृष्ण के रूप में जाने जाते हैं उन्होंने अपने माता -पिता और अपने दादा उग्रसेन को बंदी ग्रह से आजाद करने के लिए और मथुरा की प्रजा को कंस के अत्याचारों से मुक्त करने के लिए कंस का वध किया | इस प्रकार अच्छाई की बुराई पर जीत हुई |
‘कंस वध’ बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. इस विशेष दिन पर भगवान कृष्ण ने ‘कंस का वध कर’ भारत के प्राथमिक शासक के रूप में राजा उग्रसेन को गद्दी पर बैठाया. हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह त्योहार शुक्ल पक्ष के दौरान कार्तिक माह में दसवें दिन (दशमी तिथि) को मनाया जाता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह दिन नवंबर के महीने में मनाया जाता है. हिंदू शास्त्रों और पौराणिक कथाओं के अनुसार, कंस को मथुरा के क्षेत्रों में एक दुष्ट शासक के रूप में मान्यता दी गई है. भगवान विष्णु ने अपने आठवें अवतार कृष्ण के रूप में जन्म लिया और कंस का वध कर डाला और अपने माता, पिता और दादा को जेल से रिहा कराया. ‘कंस वध ’का त्यौहार ब्रह्मांड में बुराई की समाप्ति और अच्छाई की बहाली का प्रतीक है. इसे अधर्म पर धर्म की जीत के रूप में मनाया जाता है. उत्तर प्रदेश और मथुरा में इस दिन को बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है.
कंस वध मेले में आखिर क्या–क्या होता है?
मथुरा के अंदर कंस वध मेला का आयोजन कंस टीले पर किया जाता है। उस दिन मेले में सभी युवक अपनी अपनी लाठियों को अच्छे से सजा कर कंस टीले तक जाते हैं। आगे -आगे कई झांकियां चलती हैं।
इस दौरान सुदामा-श्रीकृष्ण मिलाप जैसे कई दृश्यों का नाट्यरुपांतरण भी बीच बीच में लोगों को देखने को मिलता है। कंस टीले पर कंस का पुतला होता है जिसे मार कर नष्ट किया जाता है।
कंस के सिर को कंसखार पर तोड़ा जाता है। इसके बाद सब लोग विश्राम घाट पर आ जाते हैं और भगवान को विश्राम देकर उनका पूजन करते हैं। इस दौरान हर तरह भगवान श्री कृष्ण का जयकारा ही सुनाई पड़ता है।
पूरी मथुरा नगरी भगवान की स्तुति में लीन नजर आती है। ऐसा लगता है जैसे लोग पुराने समय में पहुंच गये हो।
महत्व :-
बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न कंस वध के उत्सव को दर्शाता है। इस विशेष दिन, भगवान श्रीकृष्ण ने ‘कंस’ की हत्या करके राजा उग्रसेन को भारत के मुख्य शासक बनाया था। कंस वध’ का त्यौहार बुराई के अंत और ब्रह्मांड में भलाई के स्थायित्व को दर्शाता है और इसे अधर्म पर धर्म की जीत के रूप में मनाया जाता है।
विधि:-
• कंस वध की पूर्व संध्या पर, भक्त राधारानी और भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करते हैं।
• देवताओं को खुश करने के लिए, कई तरह की मिठाईयां और कई अन्य व्यंजन तैयार किए जाते हैं।
• कंस की एक मूर्ति तैयार की जाती है और बाद में भक्त इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में जलाते हैं।
• यह त्यौहार ये भी दर्शाता है कि बुराई कम समय के लिए रहती है और अंततः हमेशा सच्चाई और भलाई की जीत होती है।
• कंस वध की पूर्व संध्या पर, एक विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है, जहां सैकड़ों भक्त पवित्र मंत्र ‘हरे राम हरे कृष्ण’ का उच्चारण करते हैं।
कथा:-
मथुरा के राजा उग्रसेन जो कि यदुवंशी थे |उनका विवाह विदर्भ के राजा सत्यकेतु की पुत्री पद्मावती के साथ हुआ |महाराजा अग्रसेन अपनी पत्नी पद्मावती से बेहद प्रेम करते थे एक दिन पद्मावती के पिता सत्यकेतु को अपनी पुत्री की याद सताने लगी |उन्होंने अपने दूत को मथुरा में राजा उग्रसेन के पास भेजा|दूत ने राजा उग्रसेन से कहा कि राजा सत्यकेतु अपनी पुत्री पद्मावती से मिलना चाहते हैं|
राजा उग्रसेन ने ना चाहते हुए भी दूत के साथ रानी पद्मावती को विदर्भ जाने की आज्ञा दे दी| रानी पद्मावती अपने पिता के घर विदर्भ में सकुशल पहुंच गई| एक दिन वह अपनी सखियों के साथ एक पर्वत के पास पहुंची | पर्वत पर बेहद ही सुंदर वन था और वहां पर एक तालाब बना हुआ था तालाब का नाम सर्वतोभद्रा था| रानी पद्मावती अपनी सखियों के साथ तालाब में स्नान करने लगी|
उसी समय आकाश मार्ग से गोभिल नामक दैत्य गुजर रहा था | उसकी नजर रानी पद्मावती पर पड़ी |वह रानी पद्मावती पर मोहित हो गया और उसे हासिल करने के लिए उसने महाराज उग्रसेन का रूप धारण करा और गीत गाने लगा |रानी पद्मावती राजा उग्रसेन के स्वर में गाना सुनकर आश्चर्यचकित हो गई और वह उस मधुर गीत की आवाज की तरफ दौड़ी चली गई| वहां गोभिल दैत्य जोकि उग्रसेन का रूप धरकर बैठा हुआ था | पद्मावती राजा उग्रसेन को वहां देखकर बेहद हैरान हो गई और उन्होंने उग्रसेन बने गोभिल दैत्य से कहा कि आप अचानक यहां पर कैसे |तो उग्रसेन बने गोभिल दैत्य ने कहा कि मेरा तुम्हारे बिना मन नहीं लग रहा था, सो मैं यहां आ गया| दोनों एक दूसरे के प्यार में सब कुछ भूल गए |तभी अचानक रानी पद्मावती की नजर गोभिल दैत्य के शरीर पर पड़े एक निशान गई, जो राजा उग्रसेन के शरीर पर नहीं था |रानी पद्मावती ने गोभिल दैत्य से कहा तुम मेरे पति नहीं हो| तो गोभिल दैत्य अपने असली रूप में आ गया, परंतु तब तक देर हो चुकी थी| तब गोभिल दैत्य ने रानी पद्मावती से कहा हमारे मिलन से जो संतान उत्पन्न होगी उसके अत्याचारों से पूरी दुनिया आतंकित हो जाएगी |कुछ समय बीतने के बाद रानी पद्मावती उग्रसेन के पास वापस गई| रानी पद्मावती ने सारी बात राजा उग्रसेन से सच-सच बता दी |परंतु सच जानने के पश्चात भी राजा उग्रसेन ने रानी पद्मावती से उतना ही प्रेम किया |रानी पद्मावती ने दस साल तक गर्भधारण करने के पश्चात एक बालक को जन्म दिया, जिसका नाम कंस रखा गया|
कंस की एक बहन भी थी जिसका नाम था देवकी| कंस अपनी बहन देवकी से बेहद प्रेम करता था |देवकी का विवाह वासुदेव के साथ संपन्न हुआ| विवाह के पश्चात जब देवकी वासुदेव के साथ अपने ससुराल जा रही थी तो कंस स्वयं उन के रथ को चला रहे थे | थोड़ी दूर पहुंचने पर एक आकाशवाणी हुई कि देवकी की आठवीं संतान तेरा वध करेगी | यह आकाशवाणी सुनकर कंस बेहद घबरा गया और उसने देवकी की हत्या करने के लिए तलवार निकाली तब वसुदेव ने कहा कि वह अपनी आठवीं संतान को जन्म लेते ही कंस के हवाले कर देगा|
यह बात सुनकर कंस मान गया |लेकिन उसने देवकी और वासुदेव दोनों को कारागार में डलवा दिया| इस प्रकार जब देवकी की पहली संतान हुई तो कंस वहां पर आया और बच्चे को मारने के लिए उठा लिया | देवकी रोती हुई बोली भैया हमने तो आपको आठवीं संतान देने का वादा किया था यह तो हमारी पहली संतान है| परंतु कंस ने देवकी की कोई बात न सुनी और उसकी संतान को कारागृह की दीवार पर देकर मार दिया| इसी प्रकार कंस ने देवकी और वासुदेव की छः संतानों की हत्या कर दी| अब सातवीं संतान देवकी के गर्भ में आ चुकी थी |परंतु योगबल से वह सातवीं संतान वासुदेव की पहली पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दी गई| जिसका पता कंस को ना चल सका और यह खबर कंस तक पहुंची की देवकी का गर्भपात हो गया है और वह सातवीं संतान रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न हुई जिनका नाम बलराम था|
अब देवकी की आठवीं संतान का जन्म समय करीब आ गया था| कंस ने कारागार में पहरा और बड़वा दिया और यह आदेश किया कि जैसे ही आठवीं संतान हो उसे तुरंत खबर करी जाए और देवकी ने अपनी आठवीं संतान के रूप में भगवान श्री कृष्ण को जन्म दिया |श्री कृष्ण के जन्म लेते ही कारागार के सभी सैनिक गहरी नींद में सो गए |कारागार के द्वार और वासुदेव की बेड़ियां अपने आप खुल गई और वासुदेव अपने पुत्र कृष्ण को एक टोकरी में रखकर अपने मित्र नंद के यहां पहुंचे |उसी समय नंद की पत्नी यशोदा ने पुत्री को जन्म दिया था| नंद ने यशोदा के पास से अपनी पुत्री को चुपचाप उठाकर वासुदेव को दे दिया और वासुदेव के पुत्र कृष्ण को यशोदा के पास लेटा दिया |इस बात का किसी को पता ना चला| नंद ने अपनी पुत्री को वासुदेव को देते हुए कहा कि वह कंस से कहें कि उनके पुत्र नहीं पुत्री हुई है| वासुदेव ने नंद की पुत्री को ले जाने से मना कर दिया कि कंस उनकी पुत्री को मार डालेगा| तब नंद ने कहा कि वह कन्या को मार कर क्या करेगा उसने तो तुम्हारे पुत्र को मारने की बात कही थी, यह तो कन्या है ऐसा विचार कर वासुदेव नंद की पुत्री को लेकर कारागार में आ गए|उनके कारागार में प्रवेश करते ही कारागार के सारे द्वार बंद हो गए और सैनिक जाग गए| सैनिकों ने तुरंत जाकर कंस को सूचित किया कि देवकी ने एक पुत्री को जन्म दिया है| कंस तुरंत ही कारागार में आया और कन्या को उठाकर कारागार की दीवार पर फेंकने लगा तभी वह कन्या एक रोशनी के रूप में उत्पन्न हो गई और कंस से बोली कि तेरा काल तो जन्म ले चुका है|
कंस ने सब नवजात शिशु की हत्या करने का आदेश दे दिया |परंतु श्री कृष्ण की लीलाओं की वजह से कंस द्वारा किए गए सभी प्रयास असफल रहे औरअंत में कंस ने श्री कृष्ण और बलराम को मथुरा आने का निमंत्रण दिया| परंतु कंस को पता नहीं था कि वह अपनी मृत्यु को मथुरा बुला रहा है| कंस ने कृष्ण और बलराम के पीछे पागल हाथी को छोड़ दिया जिसे उन्होंने मौत के घाट उतार दिया |इसके बाद मल युद्ध के लिए उन्हें ललकारा गया एक-एक करके बलराम और श्री कृष्ण ने सब को मौत के घाट उतार दिया और अंत में श्री कृष्ण अपने मामा कंस का सुदर्शन चक्र से सर अलग कर दिया और अपने पिता वासुदेव और मां देवकी को कारागृह से आजाद कराया और सब को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई|