माता कामाख्या देवी मंदिर पूरे भारत में प्रसिद्ध है। यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। भारतवर्ष के लोग इसे अघोरियों और तांत्रिक का गढ़ मानते हैं। असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 10 किमी दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। मंदिर की खास बात यह है कि यहां न तो माता की कोई मूर्ति है और न ही कोई तस्वीर। बल्कि यहां एक कुंड है, जो हमेशा ही फूलों सें ढंका हुआ रहता है। इस मंदिर में देवी की योनी की पूजा होती है। आज भी माता यहां पर रजस्वला होती हैं। मंदिर से जुड़ी और भी ऐसी रहस्यमयी बातें हैं, जिन्हें जानने के बाद आप हैरत में पड़ जाएंगे। तो आइये जानते हैं कामाख्या देवी के मंदिर से जुड़ी दिलचस्प बातों के बारे में।
मंदिर की स्थापना
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवी सती ने यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी थी, तब भगवान शिव ने माता सती का जला हुआ शरीर लेकर पूरे संसार में भ्रमण किया, जिसके कारण उनका क्रोध बढ़ता ही जा रहा था. तब स्थिति को संभालने के लिए श्रीहरि ने अपने सुदर्शन चक्र से माता के पार्थिव के अंग काटना शुरू किया और धरती पर जिन 52 स्थानों पर देवी सती के श्रीअंग गिरे, वहीं पर 52 शक्तिपीठों की स्थापना हुई.
माना जाता है कि नीलांचल पर्वत पर माता की योनि गिरी थी, जिसके कारण यहां कामाख्या देवी शक्तिपीठ की स्थापना हुई. ऐसी मान्यता है कि माता की योनि नीचे गिरकर एक विग्रह में परिवर्तित हो गयी थी, जो आज भी मंदिर में विराजमान है और जिससे आज भी माता की वह प्रतिमा रजस्वला होती है.
शक्तिपीठ का नाम कैसे पड़ा कामख्या
मंदिर धर्म पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस शक्तिपीठ का नाम कामाख्या इसलिए पड़ा क्योंकि इस जगह भगवान शिव का मां सती के प्रति मोह भंग करने के लिए विष्णु भगवान ने अपने चक्र से माता सती के 51 भाग किए थे जहां पर यह भाग गिरे वहां पर माता का एक शक्तिपीठ बन गया और इस जगह माता की योनी गिरी थी, जोकी आज बहुत ही शक्तिशाली पीठ है। यहां वैसे तो सालभर ही भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेऊल, वसंती पूजा, मदानदेऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा पर इस मंदिर का अलग ही महत्व है जिसके कारण इन दिनों में लाखों की संख्या में भक्त यहां पहुचतें है।
मंदिर के पीछे की कहानी
कामाख्या मंदिर कामरूप के क्षेत्र में स्थित है, जहाँ मां की योनि गिरी थी। ये मंदिर काफी रहस्यों से घिरा हुआ है। जून (आषाढ़) के महीने में कामाख्या के पास से गुजरने वाली ब्रह्मपुत्र नदी लाल हो जाती है। ऐसा कहा जाता है कि नदी लाल होने का कारण है कि इस दौरान मां को मासिक धर्म हो रहे हैं। यह भी कहा जाता है कि मंदिर के चार गर्भगृहों में ‘गरवर्गीहा’ सती के गर्भ का घर है।
इन तीन दिनों बंद रहता है मंदिर
22 जून से 25 जून के बीच मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, जिस दौरान ब्रह्मपुत्र नदी का जल लाल रहता है। माना जाता है कि इन दिनों माता सती रजस्वला रहती हैं। इन 3 दिनों के लिए पुरुषों को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाती। वहीं, 26 जून को सुबह भक्तों के लिए मंदिर खोला जाता है, जिसके बाद भक्त माता के दर्शन कर सकते हैं। भक्तों को यहां पर अनोखा प्रसाद मिलता है। तीन दिन देवी सती के मासिक धर्म के चलते माता के दरबार में सफेद कपड़ा रखा जाता है। तीन दिन बाद कपड़े का रंग लाल हो जाता है, तो इसे भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।
कामख्या मंदिर से जुड़े कुछ ख़ास रहस्य
- यहां पर कोई भी मूर्ति नहीं स्थापित है। इस जगह पर एक समतल चट्टान के बीच बना विभाजन देवी की योनि का दर्शाता है। एक प्रकृतिक झरने के कारण यह जगह हमेशा गीला रहता है। इस झरने के जल को काफी प्रभावकारी और शक्तिशाली माना जाता है। माना जाता है कि इस जल के नियमित सेवन से आप हर बीमारी से निजात पा सकते है।
- यहां पर पशुओं की बलि दी जाती हैं। भैंस और बकरें की बलि तो आम है, लेकिन यहां पर किसी मादा जानवर की बलि नहीं दी जाती है। इसके साथ ही मान्यता है कि मां को प्रसन्न करने के लिए आप कन्या पूजन और भंडारा करा सकते है। जिससे आपकी हर मोनकामना पूर्ण हो जाएगी।
- इस जगह को तंत्र साधना के लिए सबसे महत्वपूर्ण जगह मानी जाती है। यहां पर साधु और अघोरियों का तांता लगा रहता है। यहां पर अधिक मात्रा में काला जादू भी किया जाता हैं। अगर कोई व्यक्ति काला जादू से ग्रसित है तो वह यहां आकर इस समस्या से निजात पा सकता है।
- कामाख्या के तांत्रिक और साधू चमत्कार करने में सक्षम होते हैं। कई लोग विवाह, बच्चे, धन और दूसरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कामाख्या की तीर्थयात्रा पर जाते हैं। कहते हैं कि यहां के तांत्रिक बुरी शक्तियों को दूर करने में भी समर्थ होते हैं। हालांकि वह अपनी शक्तियों का इस्तेमाल काफी सोच-विचार कर करते हैं।