इस दिन मनाया जाएगा रामायण के रचनाकर महर्षि वाल्मीकि का जन्मोत्सव, जानिए तिथि और महत्व !!

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Valmiki Jayanti 2022: हर वर्ष अश्विन महीने की पूर्णिमा तिथि को महर्षि वाल्मीकि जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। उन्होंने हिन्दू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण धर्मग्रन्थ रामायण की रचना कि थी। इस दिन देश भर में कई धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और महर्षि वाल्मीकि जी का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।

पौराणिक किवदंतियों के अनुसार इनका जन्म प्रख्यात महर्षि कश्यप और देवी अदिति के 9वें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चारशिनी से हुआ था। यह किवदन्ती भी प्रचलित है कि नारद मुनि से भेंट होने से पहले वह डकैत थे।

वाल्मीकि जयंती का महत्व

हिन्दू धर्म में वाल्मीकि जयंती बड़े धूम-धाम से मनाई जाती है। इस अवसर पर मंदिरों में पूजा-अर्चना, कीर्तन आदि का आयोजन किया जाता है। वहीं कई समाजसेवी संस्थाओं द्वारा इस मौके पर फलों और मिठाइयों का वितरण भी किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार रामायण महाकाव्य के रचियता महर्षि वाल्मीकि को माना जाता है और उन्हीं के जन्म दिवस के रुप में वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है। वाल्मीकि जयंती को प्रकट दिवस के नाम से भी जाना जाता है। इसके साथ ही इस पर्व पर वाल्मीकि जी के जीवन परिवर्तन की कथा सुनाई जाती है जिसमें व्यक्ति को जीवन में बुरे कार्यों को छोड़कर अच्छे कर्मों और भक्ति के मार्ग पर चलने का संदेश दिया जाता है।

वाल्मीकि जयंती कब है (Valmiki Jayanti 2022 Date) 

वाल्मीकि जयंती हर साल आश्विन के महीने में शरद पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है| इसी दिन महर्षि वाल्मीकि जी का जन्म हुआ था| पुरे देश में वाल्मीकि जयंती पुरे हर्षोल्लास और धूमधाम से मनाई जाती है| इस दिन वाल्मीकि जी की पूजा करके उनकी शोभा यात्रा निकाली जाती है, जिसमें लोग बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं| इस वर्ष 2022 में वाल्मीकि जयंती (Valmiki Jayanti 2022) 09 अक्टूबर को रविवार के दिन पड़ रही है| शरद पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 09 अक्टूबर 2022 को सुबह 03 बजकर 40 मिनट पर होगी और यह तिथि अगले दिन 10 अक्टूबर 2022 को सुबह 02 बजकर 25 मिनट पर समाप्त होगी|  

महर्षि बनने से पहले वाल्मीकि थे डकैत

शास्त्रों के अनुसार महर्षि वाल्मीकि जी का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था। लेकिन वह युवावस्था में डकैत प्रवित्ति के हो गए थे और उन्होंने कई निर्दोष लोगों को मारा था और उन्हें लूट लिया था। किन्तु जब उन्हें नारद मुनि के दर्शन हुए तो उनके व्यवहार और भावनाओं में विशाल अंतर आया। जिसके बाद उन्होंने राम भक्ति का पथ अपनाने का प्रण लिया। इस प्रवित्ति को बदलने के लिए उन्होंने कई वर्षों तक घोर तपस्या की जिसके बाद उन्हें वाल्मीकि की उपाधि प्राप्त हुई। उन्होंने नारद मुनि की देख-रेख में महाकाव्य रामायण की रचना कि जिसमें उन्होंने 24,000 श्लोक और साथ कांड लिखे थे।

महर्षि वाल्मीकि जी की यह कथा आज भी यह शिक्षा देती है कि अज्ञानता से पहले व्यक्ति ने जैसे भी कुकर्म किए हों, अगर वह सही समय पर और गुरु के सानिध्य में प्रयिश्चित कर लेता है तो वह भी विश्व में अपना और अपने कुल का नाम ऊंचा कर सकता है। इसी उद्देश्य को लेकर वाल्मीकि जयंती के दिन उनके जीवन की कथा सभी को सुनाई जाती है और व्यक्ति को बुरे कर्मों को छोड़कर भक्ति के मार्ग पर बिना किसी भय के चलने का संदेश दिया जाता है।

महर्षि वाल्मीकि जयंती कैसै मनाई जाती हैरिवाज एवं परंपरा

महर्षि वाल्मीकि जयंती के पर्व को पूरे देश भर में काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है और इस दिन कई स्थानों पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। इसके साथ ही इस दिन कई जगहों पर महर्षि वाल्मीकि की मूर्तियों को सजाकर शोभा यात्रा निकालते हुए लोगों द्वारा मिठाई, फल तथा विभिन्न तरह के पकवान वितरित किये जाते है।

महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर लोगो को उनके के जीवन का ज्ञान दिया जाता है, ताकि लोग उनके जीवन से सीख लेते हुए हर तहर के बाधाओं को पार करके अपने जीवन में सत्य तथा धर्म के मार्ग रक चल सके।

क्योंकि महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि तथा एक महान गुरु के रुप में भी जाना जाता है। इसलिए छात्रों तथा शिक्षकों द्वारा भी उनके इस जयंती को काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।

महर्षि वाल्मीकि जयंती की आधुनिक परंपरा

आज के बदलते समय मे महर्षि वाल्मीकि जयंती मनाने के तरीकों में भी काफी परिवर्तन आया है। वर्तमान में इस पर्व का स्वरुप पहले के अपेक्षा और भी विस्तृत हो गया है आज के समय में लोग इस दिन महर्षि वाल्मीकि की मूर्ति को सजाकर शोभा यात्रा निकालते हैं। इस पर्व का सबसे भव्य आयोजन तिरुवन्मियोर, चेन्नई में देखने को मिलता है। इस स्थान को लेकर ऐसा कहा जाता है कि महर्षि वाल्मीकि ने रामायण लिखने के पश्चात अपना जीवन इसी स्थान पर व्यतीत किया था।

महर्षि वाल्मीकि की जीवन की कथा आज के युग में भी काफी महत्वपूर्ण है। उनके रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि बनने की कथा को जेल में कैदियों को भी सुनाया जाता है। जिसके द्वारा कैदियों यह बताने का प्रयास किया जाता है कि जीवन में सही मार्ग को अपनाने के लिए कभी भी देर नही होती है और अपने प्रयासों के द्वारों हम बड़े से बड़े समस्याओं पर भी विजय प्राप्त कर सकते है।

हमें उनके जीवन के इस संदेश को अधिक से अधिक लोगो तक पहुचाने का प्रयास करना चाहिए। ताकि उनकी ही तरह अपराध तथा गलत मार्ग पर चलने वाले व्यक्तियों को जीवन में सही दिशा दी जा सके।

वाल्मीकि जयंती का इतिहास

महर्षि वाल्मीकि के बचपन का नाम रत्नाकर था। बचपन में एक भीलनी द्वारा इनका अपहरण कर लिया गया और फिर उनकी परवरिश भील समाज में ही हुई। भील परिवार के लोग उस वक्त जंगल में लोगों को लूटने का कार्य करते थे, इस कारण रत्नाकर भी एक डाकू बन गये। रत्नाकर जंगल से गुजरने वाले लोगों से लूट-पाट करता था।

एक बार जंगल से जब नारद मुनि गुजर रहे थे तो रत्नाकर ने उन्हें भी बंदी बना लिया। तभी नारद ने उनसे पूछा कि ये सब पाप तुम क्यों करते हो? इस पर रत्नाकर ने जवाब दिया, ‘मैं ये सब अपने परिवार के लिए करता हूँ’। नारद मुनि हैरान हुए और उन्होंने फिर उससे पूछा, “क्या तुम्हारा परिवार तुम्हारे पापों का फल भोगने को तैयार है?” रत्नाकर ने निसंकोच हां में जवाब दिया।

तभी नारद मुनि ने कहा इतनी जल्दी जवाब देने से पहले एक बार परिवार के सदस्यों से पूछ तो लो। रत्नाकर घर लौटा और उसने परिवार के सभी सदस्यों से पूछा कि क्या कोई उसके पापों का फल भोगने को आगे आ सकता है? यह सुनकर सभी ने मना कर दिया। इस घटना के बाद रत्नाकर काफी दुखी हुआ और उसने सभी गलत काम छोड़ने का फैसला कर लिया। फिर उन्होंने नारदजी से मुक्ति का उपाय पूछा। तब नारदजी ने उनको राम नाम का मंत्र दिया। आगे चलकर रत्नाकर ही महर्षि वाल्मीकि कहलाए।

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