हिंदू धर्म में सोमनाथ मंदिर का महत्व अत्याधिक है। कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण चंद्रदेव ने किया था। यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना जाता है। यह गुजरात प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे स्थित है। इस मंदिर को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसकी जानकारी हम आपको यहां दे रहे हैं।
पुराणों के अनुसार, दक्ष प्रजापति की सत्ताइस कन्याएं थीं। इन सभी का विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था। लेकिन चंद्रमा का प्रेम रोहिणी के लिए रहता था। यह देख दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याएं बेहद अप्रसन्न रहती थीं। उन्होंने अपनी व्यथा अपने पिता से कही। दक्ष ने चंद्रमा को हर तरह से समझाने की कोशिश की। लेकिन चंद्रमा रोहिणी से बेहद प्रेम करते थे ऐसे में उनपर किसी के समझाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
क्यों इतना महत्वपूर्ण है सोमनाथ मंदिर?
सोमनाथ मंदिर एक महत्वपूर्ण मंदिर है, जिसकी गिनती 12 ज्योतिर्लिंगों में पहले ज्योतिर्लिंग के रूप में होती है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने करवाया था। लोककथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ़ गया। इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है।
लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कराया था इसका पुनर्निर्माण
स्वतंत्र भारत की एक प्रमुख परियोजना में से सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण भी एक रही है. मौजूदा मंदिर का पुनर्निर्माण स्वतंत्रता के बाद लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 1951 में करवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया था. बता दें कि जूनागढ़ रियासत को भारत का हिस्सा बनाने के बाद तत्कालीन भारत के गृहमंत्री सरदार पटेल ने जुलाई 1947 में सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का आदेश दिया था.
गांधी जी के कहने पर पर जनता से पैसे इकट्ठे किए गए
सोमनाथ मंदिर को फिर से बनवाने का प्रस्ताव लेकर सरदार पटेल महात्मा गांधी के पास गए थे. गांधी जी ने इस प्रस्ताव की तारीफ की और जनता से धन इकट्ठआ करने का सुझाव दिया. सरदार पटेल की मृत्यु के बाद मंदिर पुनर्निर्माण का काम के एम मुंशी के निर्देशन में पूरा हुआ था. मुंशी उस समय भारत सरकार के खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री थे.
सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण, स्वतंत्र भारत की सबसे प्रतिष्ठित और सम्मानित परियोजना के रूप में जाना जाता है. जिसे सोमनाथ महा मेरू प्रसाद के नाम से जाना जाता है, के काम को पारंपरिक भारतीय नागर शैली के मंदिरों के डिजाइन बनाने में महारत हासिल सोमपुरा परिवार ने ही अंजाम दिया था.
सोमनाथ शिव मंदिर का इतिहास
सोमनाथ में दूसरा शिव मंदिर वल्लभी के यादव राजाओं के द्वारा 649 ई. वी. में बनाया गया था. जिसे 725 ई. वी. में सिंध के गवर्नर अल- जुनैद द्वारा नष्ट कर दिया गया था.
बाद में गुर्जर प्रतिहार वंश के राजा नागभट्ट द्वितीय द्वारा 815 ई. वी. में तीसरी बार शिव मंदिर का निर्माण किया गया. इस मंदिर का निर्माण लाल बलुआ पत्थरों के द्वारा किया गया था. नागभट्ट द्वारा सौराष्ट्र में सोमनाथ मंदिर के दर्शन का ऐतिहासिक प्रमाण भी मिलता है.
बाद में चालुक्य राजा मुलराज द्वारा 997 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया. 1024 ई. वी. में सोमनाथ मंदिर को तुर्क शासक महमूद गजनवी ने तोड़ दिया.
महमूद ने मंदिर से करीब 20 मिलियन दीनार लूट कर ज्योतिर्लिंग को तोड़ दिया था. इसके साथ ही करीब 50000 हजार लोगों की मंदिर की रक्षा करने के दौरान हत्या कर दी गई थी.
महमूद के हमले के बाद राजा कुमारपाल ने 1169 ई. वी. में उत्कृष्ट पत्थरों द्वारा इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था. जिसे अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात विजय के दौरान 1299 ई. वी. में नष्ट कर दिया था.
इस मंदिर का पुनर्निर्माण सौराष्ट्र के राजा महीपाल द्वारा 1308 ई. वी. में किया गया था. 1395 में इस मंदिर को एक बार फिर गुजरात के गवर्नर जफर खान द्वार नष्ट कर दिया गया. साथ ही गुजरात के शासक महमूद बेगड़ा द्वारा इसे अपवित्र भी किया गया.
सोमनाथ मंदिर को अंतिम बार 1665 ई.वी. में मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा इस तरह नष्ट कर दिया गया कि इसे फिर से पुनर्निर्माण नहीं किया जा सके. बाद में सोमनाथ मंदिर के स्थान पर 1706 में एक मस्जिद बना दी गई थी. 1950 में मंदिर पुनर्निर्माण के दौरान इस मस्जिद को यहां से हटा दिया गया था.
सोमनाथ मंदिर की पौराणिक कथाएं
स्कंद पुराण (Skand Puran) के प्रभास खंड में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा (Somnath Temple Katha) बताई गई है. चंद्रमा ने दक्ष की 27 पुत्रियों से विवाह किया था लेकिन रोहिणी (Rohini) से उनको इतना प्रेम था कि अन्य 26 खुद को उपेक्षित और अपमानित महसूस करने लगी थीं. उन्होंने अपने पति से निराश होकर अपने पिता से शिकायत की. पुत्रियों की वेदना से पीड़ित दक्ष ने अपने दामाद चंद्रमा को दो बार समझाने का प्रयास किया परंतु चंद्रमा नहीं माने. प्रयास विफल हो जाने पर दक्ष ने चंद्रमा को ‘क्षयी’ होने का शाप दे दिया.
सभी देवता चंद्रमा के दुख से व्यथित होकर ब्रह्मा जी के पास जाकर उनसे श्राप के निवारण का उपाय पूछने लगे. ब्रह्मा जी ने प्रभास क्षेत्र में महामृत्युंजय के जाप से वृण्भध्वज शंकर की उपासना करना एक मात्र उपाय बताया. चंद्रमा के 6 मास तक पूजा करने पर शंकर जी प्रकट हुए और उन्होंने चंद्रमा को एक पक्ष में प्रतिदिन उनकी एक-एक कला नष्ट होने और दूसरे पक्ष में प्रतिदिन बढ़ने का वर दिया. देवताओं पर प्रसन्न होकर उस क्षेत्र की महिमा बढ़ाने और चंद्रमा (सोम) के यश के लिए सोमेश्वर नाम से शिवजी वहां अवस्थित हो गए. देवताओं ने उस स्थान पर सोमेश्वर कुंड की स्थापना की.
कहते हैं कि इस कुंड में स्नान कर सोमेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजा से सब पापों से निस्तार और मुक्ति की प्राप्ति हो जाती है. सोमेश्वर से सोम अर्थात चंद्रमा, इसलिए यह ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ. इस स्थान को ‘प्रभास पट्टन’ के नाम से भी जाना जाता है.