Sheetala Ashtami 2023:- शीतला अष्टमी 2023 कब है ? शीतला अष्टमी के दिन जरूर करें ये उपाय, घर में आएगी सकारात्मकता और खुशहाली !

Sheetala Ashtami 2023

Sheetala Ashtami 2023 Details:- शीतला अष्टमी को ’बसौड़ा पूजा’ के नाम से भी जाना जाता है। बसौड़ा पूजा, शीतला माता को समर्पित लोकप्रिय त्योहार है। यह त्योहार माघ मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। आमतौर पर यह होली के आठ दिनों के बाद पड़ता है लेकिन कई लोग इसे होली के बाद पहले सोमवार या शुक्रवार को मनाते हैं।

बसौड़ा या शीतला अष्टमी का यह त्योहार उत्तर भारतीय राज्यों जैसे गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में अधिक लोकप्रिय है। राजस्थान राज्य में शीतला अष्टमी का त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर मेलां व लोक संगीत के कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। भक्त इस पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास और भक्ति के साथ मनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस चुने हुए दिन पर व्रत रखने से उन्हें कई तरह की बीमारियों से बचाव होता है।

Sheetala Ashtami 2023:- शीतला अष्टमी पर क्या उपाय करें ?

शीतला अष्टमी के दिन कुछ खास उपाय करने से व्यक्ति के जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। आइए जानते हैं इन उपायों के बारे में-

नकारात्मता से छुटकारा पाने के लिए उपाय

नेगेटिव चीजों के छुटकारा पाने के लिए शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा करने के बाद नीम के पेड़ की पूजा करनी चाहिए। नीम के पेड़ में जल देने के बाद सात बार परिक्रमा करें।

बीमारियों से बचने के लिए उपाय

बीमारियों से परिवार की रक्षा करने के लिए शीतला अष्टमी के दिन माता को हल्दी अर्पित करें। पूजा के बाद इस हल्दी को परिवार के सभी सदस्यों को लगाएं।

परिवार में खुशहाली के लिए उपाय

शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता को जल अर्पित करें। इसके बाद इस जल को घर की सभी दिशाओं में छिड़कें सिवाए मुख्य द्वार के अलावा। इससे घर में सकारात्मकता आती है।

संपन्नता लाने के लिए उपाय

शीतला माता की पूजा के बाद गाय माता का पूजन करें। हिंदू धर्म में मान्यता है कि गाय में तैंतीस कोटि देवताओं का वास होता है। गाय की सेवा करने से सभी देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और परिवार में सुख समृद्धि और संपन्नता आती है।

Sheetala Ashtami 2023:- शीतला अष्टमी शुभ मुहूर्त:

इस साल 2023 में शीतलाष्टमी का पर्व 15 मार्च 2023 को यानि बुधवार को मनाई जाएगी।

शीतलाष्टमी की शुभ शुरआत 14 मार्च 2023 को रात 8 : 20 बजे शुरू होगी। और समाप्ति अगले दिन 15 मार्च 2023 को शाम को 6 : 40 बजे होगी।

इस शीतलाष्टमी के पर्व पर माता की खंडित मूर्तियों की पूजा की जाती है।

वहीं चैघड़िया मुहूर्त के आधार पर भी लोग पूजा करते हैं जिसमें समय के आधार पर भिन्न क्षेत्रों की पूजा के समय लाभ या हानि को बताया जाता है। इसमें दिन और रात की चैघड़ियों का अलग अलग समय है। यह चैघड़िया मुहूर्त स्थान के आधार पर मुख्य गणना द्वारा निकाला जाता है, इसलिए इसके बारे में जानने के लिए आपको विशेषज्ञ की सहायता लेनी पड़ेगी।

Sheetala Ashtami 2023:- शीतला अष्टमी का महत्व

शीतला माता को हिंदू पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण देवी माना जाता है। देवी को एक गधे पर बैठाया गया है और नीम के पत्ते, झाड़ू, सूप और एक बर्तन पकड़े हुए चित्रित किया गया है। कई धार्मिक शास्त्रों में उसकी भव्यता का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। स्कंद पुराण में शीतला अष्टमी की पूजा करने के लाभ के बारे में विस्तार से बताया गया है। शीतला माता स्तोत्र भगवान शिव द्वारा लिखित और जिसे ‘शीतलाष्टक’ के नाम से भी जाना जाता है, स्कंद पुराण में भी पाया जा सकता है।

कहा कि मां दुर्गा का अवतार हैं, शीतला माता एक अजीब देवी हैं जो गधे की सवारी करती हैं। वह अपने एक हाथ में झाड़ू, दूसरे में पानी का बर्तन, सिर पर एक झुलसा हुआ पंखा और गले में कड़वी नीम की एक माला लेकर चलती है। इनमें से प्रत्येक एक लौकिक विशेषता है जो उसके गुणों का प्रतीक है। जीतने वाला पंखा शुद्धिकरण का प्रतीक है, पानी का मिट्टी का बर्तन उपचार का प्रतिनिधित्व करता है, झाड़ू साफ करने या फैलाने के लिए कीटाणु है और नीम की पत्तियां बुखार को ठीक करने के लिए हैं, जबकि उसकी सीढ़ी, गधा विनम्रता का प्रतीक है। हरियाणा में, वह अक्सर गुरु द्रोणाचार्य की पत्नी के रूप में पूजनीय हैं।

Sheetala Ashtami 2023:- शीतला अष्टमी की पूजा विधि

शीतलाष्टमी के एक दिन पहले यानी सप्तमी की शाम को किचन की साफ-सफाई करके प्रसाद के लिए भोजन बनाकर रख देते हैं। अगले दिन यानी बसौड़ा के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करके व्रत का संकल्प लेते हैं और शीतला माता के मंदिर जाकर पूजा करते हैं और फिर बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। इस दिन मुख्य रूप से दही, रबड़ी, चावल, हलवा, पूरे आदि का भोग लगाया जाता है। इसके बाद घर आकर जहां होलिका दहन हुआ था, वहां पूजा की जाती है और घर के बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया जाता है। इस दिन चूल्हा नहीं जलता और ताजा खाना अगली सुबह से ही किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन के बाद से बासी भोजन खाना बंद कर दिया जाता है। यह पूजा माता शीतला का प्रसन्न करने के लिए किया जाता है ताकि गर्मी के दिनों में होने वाली बीमारियों से घर की रक्षा की जा सके।

Sheetala Ashtami 2023:- शीतला अष्टमी की कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार: एक गांव में ब्राह्मण दंपति रहते थे। दंपति के दो बेटे और दो बहुएं थीं। दोनों बहुओं को लंबे समय के बाद बेटे हुए थे। इतने में शीतला सप्तमी (जहां अष्टमी को पर्व मनाया जाता है वे इसे अष्टमी पढ़ें) का पर्व आया। घर में पर्व के अनुसार ठंडा भोजन तैयार किया। दोनों बहुओं के मन में विचार आया कि यदि हम ठंडा भोजन लेंगी तो बीमार होंगी,बेटे भी अभी छोटे हैं। इस कुविचार के कारण दोनों बहुओं ने तो पशुओं के दाने तैयार करने के बर्तन में गुप-चुप दो बाटी तैयार कर ली।

बाद में सास तो शीतला माता के भजन करने के लिए बैठ गई। दोनों बहुएं बच्चे रोने का बहाना बनाकर घर आई। दाने के बरतन से गरम-गरम रोटला निकाले,चूरमा किया और पेटभर कर खा लिया। सास ने घर आने पर बहुओं से भोजन करने के लिए कहा। बहुएं ठंडा भोजन करने का दिखावा करके घर काम में लग गई। सास ने कहा,”बच्चे कब के सोए हुए हैं,उन्हे जगाकर भोजन करा लो’।

बहुएं जैसे ही अपने-अपने बेंटों को जगाने गई तो उन्होंने उन्हें मृतप्रायः पाया। ऐसा बहुओं की करतूतों के फलस्वरुप शीतला माता के प्रकोप से हुआ था। बहुएं विवश हो गई। सास ने घटना जानी तो बहुओं से झगडने लगी। सास बोली कि तुम दोनों ने अपने बेटों की बदौलत शीतला माता की अवहेलना की है इसलिए अपने घर से निकल जाओ और बेटों को जिन्दा-स्वस्थ लेकर ही घर में पैर रखना।

अपने मृत बेटों को टोकरे में सुलाकर दोनों बहुएं घर से निकल पड़ी। जाते-जाते रास्ते में एक जीर्ण वृक्ष आया। यह खेजडी का वृक्ष था। इसके नीचे ओरी शीतला दोनों बहनें बैठी थीं। दोनों के बालों में विपुल प्रमाण में जूं थीं। बहुओं ने थकान का अनुभव भी किया था। दोनों बहुएं ओरी और शीतला के पास आकर बैठ गई। उन दोनों ने शीतला-ओरी के बालों से खूब सारी जूं निकाली। जूंओं का नाश होने से ओरी और शीतला ने अपने मस्तक में शीतलता का अनुभव किया। कहा,’तुम दोनों ने हमारे मस्तक को शीतल ठंडा किया है,वैसे ही तुम्हें पेट की शांति मिले।

दोनों बहुएं एक साथ बोली कि पेट का दिया हुआ ही लेकर हम मारी-मारी भटकती हैं,परंतु शीतला माता के दर्शन हुए नहीं है। शीतला माता ने कहा कि तुम दोनों पापिनी हो,दुष्ट हो,दूराचारिनी हो,तुम्हारा तो मुंह देखने भी योग्य नहीं है। शीतला सप्तमी के दिन ठंडा भोजन करने के बदले तुम दोनों ने गरम भोजन कर लिया था।

यह सुनते ही बहुओं ने शीतला माताजी को पहचान लिया। देवरानी-जेठानी ने दोनों माताओं का वंदन किया। गिड़गिड़ाते हुए कहा कि हम तो भोली-भाली हैं। अनजाने में गरम खा लिया था। आपके प्रभाव को हम जानती नहीं थीं। आप हम दोनों को क्षमा करें। पुनः ऐसा दुष्कृत्य हम कभी नहीं करेंगी।

उनके पश्चाताप भरे वचनों को सुनकर दोनों माताएं प्रसन्न हुईं। शीतला माता ने मृतक बालकों को जीवित कर दिया। बहुएं तब बच्चों के साथ लेकर आनंद से पुनः गांव लौट आई। गांव के लोगों ने जाना कि दोनों बहुओं को शीतला माता के साक्षात दर्शन हुए थे। दोनों का धूम-धाम से स्वागत करके गांव प्रवेश करवाया। बहुओं ने कहा,’हम गाँव में शीतला माता के मंदिर का निर्माण करवाएंगी।

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