सर्वपितृ अमावस्या कब है? जानें इस दिन क्या करना चाहिए और क्या नहीं !!

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Sarva Pitru Amavasya 2022 :- सर्वपितृ अमावस्या को पितृ विसर्जनी अमावस्या भी कहा जाता है. पितृ पक्ष की आखिरी तारीख को सर्वपितृ अमावस्या कहते हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार पितृ पक्ष में वैसे तो पूर्वजों की मृत्यु तिथि पर पिंडदान और तर्पण करने की परंपरा है, लेकिन अगर किसी वजह से उस तिथि में श्राद्ध करना संभव नहीं हो सके तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों के निमित्त, पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोजन करवा सकते हैं.

जानिए पितृ अमावस्या तिथि

वैदिक पंचांग के मुताबिक सर्वपितृ अमावस्या इस बार 25 सितंबर को पड़ रही है। आश्विन कृष्ण अमावस्या तिथि की शुरुआत 25 सितंबर को सुबह 3 बजकर 11 मिनट से आरंभ हो रही है। वहीं अमावस्या तिथि की समाप्ति 26 सितंबर को सुबह 3 बजकर 22 मिनट पर होगी।

सर्वपितृ अमावस्या जानिए महत्व

सनातन धर्म में महालय अमावस्या या सर्वपितृ अमावस्या का विशेष महत्व है। इस दिन पितरों को दर्पण देते हुए उन्हें तरह-तरह के व्यंजन बनाकर अर्पित करते हैं। वहीं पितृ पृथ्वी लोक पर आकर अपने परिजनों को आशीर्वाद देते हैं। इस दिन कई तरह के भोजन बनाकर कौए, गाय व कुत्ते को दिया जाना चाहिए। इसके अलावा इस दिन ब्राह्मणों को भोज कराने का भी विशेष महत्व है। ऐसा करने से व्यक्ति पितृ दोष से मुक्ति पाता है व नौकरी व्यापार में आ रही परेशानियों से भी छुटकारा पाता है।

पितृ अमावस्या के दिन करें ये काम

 पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए पितृ अमावस्या के दिन ब्राह्मणों को घर पर बुलाकर आदर से उन्हें भोजन कराना चाहिए.आज के दिन गाय, कुते और कौए को भी भोजन कराने से पितृ प्रसन्न होते हैं. इस दिन चीटियों को शक्कर मिला हुआ आटा और गाय को हरा चारा खिलाने से कष्टों से मुक्ति मिलती है. पितृ अमावस्या के दिन गरीबों को भोजन कराने से पुण्य मिलता है. संध्याकाल में पूजा स्थान पर गाय के घी का दीपक जलाने से घर में सुख-समृद्धि आती है. तालाब या नदी के किनारे जाकर मछलियों को आटे की गोलियां खिलाने से पितर प्रसन्न होते हैं.

पितृ अमावस्या के दिन नहीं करने चाहिए ये काम

सर्वपितृ अमावस्या के दिन जो किसी भी जरूरतमंद को अपने दरवाजे से खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए. इस दिन भूलकर भी मांस-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए वरना आपको पितृ दोष लग सकता है. पितृ अमावस्या के दिन बाल और नाखून काटना अशुभ माना जाता है. पुरुषों को इस दिन दाढ़ी भी नहीं बनानी चाहिए. इस दिन किसी का भी अपमान करने से घर में पितृ दोष लगता है.

सर्व पितृ अमावस्या पर इस विधि से करें पितरों को विदा

सर्व पितृ विसर्जनी अमावस्या पर स्नाेनकर सफेद वस्त्र पहनें और पितरों के नाम तर्पण करें. इसके लिए दक्षिण की ओर मुखकर तांबे के लोटे में काला तिल, कच्चा  दूध, कुश का टुकड़ा और एक पुष्प  डालकर तर्पण दें. तर्पण करते वक्त इस मंत्र का जाप करें. ‘ॐ पितृ गणाय विद्महे जगधारिण्ये धीमहि तन्नो पितरो प्रचोदयात्’ और पितरों की शांति की प्रार्थना करें. इसके बाद ब्राह्रण समेत गाय, कुत्ते, कौए और चींटियों को खाना खिलाएं. इसके बाद ब्राह्मणों को वस्त्र और सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा विदा करें.

सर्वपितृ अमावस्या की कथा

यह माना जाता है कि देवताओं के पितृगण ‘अग्निष्वात्त’ है जो सोमनाथ में निवास करती है। और उनकी कन्या मानसी, ‘अच्छोदा’ के नाम से एक नदी के रूप में अवस्थित हुई। तथा मत्स्य पुराण में भी अच्छोदा नदी नदी और अच्छोदा सरोवर का वर्णन मिलता है। जो वर्तमान में कश्मीर में स्थित है।

एक बार अच्छोद एक हजार वर्ष तक तपस्या की और जिससे प्रसन्न होकर देवताओं के पितृगण अग्निष्वात्त और और बर्हिषपद अपने अन्य पितृगण अमावसु के साथ अच्छोदा को वरदान देने के लिए आश्विन अमावस्या के दिन उपस्थित हुए। और उन्होने अक्षोदा हे पुत्री हम सभी तुम्हारी तपस्या से बहुत प्रसन्न हुए हैं। इसलिए जो चाहे वर सकती हो। परंतु अक्षोदा ने अपने पितरों की तरफ ध्यान नहीं देते हुए अति तेजस्वी पितृ अमावसु की तरफ ही देखती रही। पितरों के बार बार पूछने पर उसने कहा कि हे भगवान आप मुझे सचमुच वरदान देना चाहते हैं? अक्षोदा के यह वचन सुनकर तेजस्वी पितृ अमावसु ने कहा कि हे पुत्री और दान पर तुम्हारा अधिकार  सिद्ध है इसलिए तुम बिना किसी संकोच के वरदान मांग सकती हो।

तब अक्षोदा कहा कि हे भगवान जी आप मुझे वरदान देना चाहते हैं तो मैं तत्क्षण आपके साथ रमण कर आनंद लेना चाहती हूं।’ अक्षोदा  के इस तरह कई जाने पर  सभी पितृ क्रोधित हो गए। और उन्होंने अक्षोदा को शाप दिया। कि वह पितृलोक से पृथ्वी लोक पर आ जाएगी। पितरों के इस तरह शाप देने पर अक्षोदा अपनी पितरों के पैरों में गिर कर रोने लगी। सब पितरों को उस पर तरस आ गया और उन्होंने कहा कि तुम पतित योनि में श्राप मिलने के कारण मत्स्य कन्या के रूप में जन्म लोगी। तथा पितरों ने उसे आगे कहा कि तुम्हें महर्षि पाराशर भगवान ब्रह्मा जी के वंशज पति के रूप में प्राप्त होंगे। तथा तुम्हारे गर्व से भगवान व्यास जी का जन्म होगा। और इसके बाद अन्य दिव्य 1 शो में जन्म देती हुई तुम अंत को शराब मुक्त होकर वापस इंद्रलोक में ही आ जाओगी। पितरों के यह वचन सुनकर अक्षोदा शांत हुई। और वरदान दिया कि इस अमावस्या की तिथि को अमावस के नाम से जाना जाएगा। और जो भी किसी भी दिन किसी कारणवश श्राद्ध ना कर पाए तो वह अमावस्या के दिन तर्पण और श्राद्ध करता है तो उसे बीते 14 दिनों का जिससे मैं पितरों को तृप्त कर सकता है। और उसी दिन से अमावस्या तिथि को हिंदू धर्म में बहुत महत्व दिया जाता है इस तिथि को सर्वपितृ श्राद्ध के नाम से जाना जाता है।

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