Parashuram Jayanti 2023:- परशुराम जी को ब्राह्मण कुल के कुलगुरु माना गया है। परशुराम जयंती वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। वर्ष 2023 में परशुराम जयन्ती शनिवार, अप्रैल 22 को मनाई जाएगी। इसे जयंती को परशुराम द्वादशी भी कहा जाता है। ये दिन पुण्य के रूम में माना जाता है और कहा जाता है की इस दिन किया गया पुण्य कर्म फल देने वाला होता है।
Parashuram Jayanti 2023:- परशुराम जयंती शुभ मुहूर्त क्या है ?
परशुराम जयंती यानी अक्षय तृतीया की तिथि मंगलवार 22 अप्रैल 2023 को 7 बजकर 50 मिनट से शुरुआत और समाप्ति 23 अप्रैल 2023, बुधवार को सुबह 7 बजकर 50 मिनट तक है।
Parashuram Jayanti 2023:- परशुराम शब्द का अर्थ क्या है ?
परशुराम दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है। परशु अर्थात “कुल्हाड़ी” तथा “राम” । इन दो शब्दों को मिलाने पर “कुल्हाड़ी के साथ राम” अर्थ निकलता है। जैसे राम, भगवान विष्णु के अवतार हैं, उसी प्रकार परशुराम भी विष्णु के अवतार हैं। इसलिए परशुराम को भी विष्णुजी तथा रामजी के समान शक्तिशाली माना जाता है।
परशुराम के अनेक नाम हैं। इन्हें रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, भृगुवंशी (ऋषि भृगु के वंशज), जमदग्न्य (जमदग्नि के पुत्र) के नाम से भी जाना जाता है।
Parashuram Jayanti 2023:- भगवान परशुराम जयंती का महत्व क्या है ?
वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि त्रेतायुग आरम्भ की तिथि मानी जाती है और इसे अक्षय तृतीया भी कहते है इसी दिन भगवान परशुराम जी का जन्म हुआ था। भागवत अनुसार हैहयवंश राजाओं के निग्रह के लिए अक्षय तृतीया के दिन जन्म परशुराम जी का जन्म हुआ। जमदग्नि व रेणुका की पांचवी सन्तान रूप में परशुराम जी पृथ्वी पर अवतरीत होते हैं इनके चार बड़े भाई रूमण्वन्त, सुषेण, विश्व और विश्वावसु थे अक्षय तृतीया को भगवान श्री परशुराम जी का अवतार हुआ था जिस कारण यह परशुराम जयंती के नाम से विख्यात है। भगवान परशुराम जी शास्त्र एवम् शस्त्र विद्या के ज्ञाता थे। प्राणी मात्र का हित ही उनका सर्वोपरि लक्ष्य रहा। परशुराम जी तेजस्वी, ओजस्वी, वर्चस्वी महापुरूष रहे। परशुराम जी अन्याय का निरन्तर विरोध करते रहे उन्होंने दुखियों, शोषितों और पीड़ितों की हर प्रकार से रक्षा व सहायता की। भगवान परशुराम जी की जयंती की अक्षततिथि तृतीया का भी अपना एक अलग महत्त्व है। इस तारीख को किया गया कोई भी शुभ कार्य फलदायक होता है। अक्षत तृतीया तिथि को शुभ तिथि माना जाता है इस तिथि में बिना योग निकाले भी कार्य होते हैं। भगवान परशुराम की जयंती हिंदू धर्मावलंबियों द्वारा बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती है। प्राचीन ग्रंथों में इनका चरित्र अलौकिक लगता है। महर्षि परशुराम उनका वास्तविक नाम तो राम ही था जिस वजह से यह भी कहा जाता है कि ‘राम से पहले भी राम हुए हैं’।
Parashuram Jayanti 2023:- परशुराम जयंती पूजा विधि कैसे करें ?
- सबसे पहले आप अपने आसपास किसी नदी में जाकर स्नान कर लें और यदि आपके आसपास कोई नदी नही है तो गंगाजल थोड़े पानी में मिलाकर भी स्नान कर सकते है।
- आपको व्रत करना है जिसमे आपको किसी भी प्रकार का अन्न नही खाना है अगर कोई बच्चा या बड़ा भी भूख लगे तो फलाहार कर सकते है।
- भगवान परशुराम की तस्वीर के सामने आकर दीप जला लें और पूजा करके भोग लगा दें।
- भोग लगाने के बाद आपको कुछ मात्रा में प्रसाद लेना है तो अपने आसपास बांट दे या हिंदू गरीबों में बांट दे और आपको हिंदू धार्मिक ग्रंथ श्रीमद भागवत का पाठ नियमित तौर पर करना चाहिए।
Parashuram Jayanti 2023:- परशुराम जयंती वंश के विनाश की पीछे की कहानी ?
भगवान परशुराम ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र थे। उनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था। जब उनका जन्म हुआ था तो आकाश मंडल में छह ग्रहों का उच्च योग बना हुआ था। तब उनके पिता और सप्त ऋषि में सम्मिलित ऋषि जमदग्नि को पता चल गया था कि उनका बालक बेहद पराक्रमी होगा।
हैहय वंश के राजा सहस्त्रार्जुन ने अपने बल और घमंड के कारण लगातार ब्राह्राणों और ऋषियों पर अत्याचार कर रहा था। प्राचीन कथा और कहानियों के अनुसार एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी सेना सहित भगवान परशुराम के पिता जमदग्रि मुनि के आश्रम में पहुंचा। जमदग्रि मुनि ने सेना का स्वागत और खान पान की व्यवस्था अपने आश्रम में की।
मुनि ने आश्रम की चमत्कारी कामधेनु गाय के दूध से समस्त सैनिकों की भूख शांत की। कामधेनु गाय के चमत्कार से प्रभावित होकर उसके मन में लालच पैदा हो गई। इसके बाद जमदग्रि मुनि से कामधेनु गाय को उसने बलपूर्वक छीन लिया। जब यह बात परशुराम को पता चली तो उन्होंने सहस्त्रार्जुन का वध कर दिया।
सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने बदला लेने के लिए परशुराम के पिता का वध कर दिया और पिता के वियोग में भगवान परशुराम की माता चिता पर सती हो गयीं। पिता के शरीर पर 21 घाव को देखकर परशुराम ने प्रतिज्ञा ली कि वह इस धरती से समस्त क्षत्रिय वंशों का संहार कर देंगे। इसके बाद पूरे 21 बार उन्होंने पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।
भगवान परशुराम को क्रोध भी अधिक आता था। उनके क्रोध से स्वयं गणपति महाराज भी नहीं बच पाए थे। एक बार जब परशुराम भगवान शिव के दर्शन करने के लिए कैलाश पहुंचे, तो गणेश जी ने उन्हें उनसे मिलने नहीं दिया। इस बात से क्रोधित होकर उन्होंने अपने फर से भगवान गणेश का एक दांत तोड़ डाला। इस कारण से भगवान गणेश एकदंत कहलाने लगे।