साल की अंतिम मार्गशीर्ष पूर्णिमा , स्नान/दान का खास महत्व !!

purnima

हिंदू पंचांग के अनुसार, चंद्रमास में नए माह का आरंभ पूर्णिमा तिथि के अनुसार होता है। हर माह पूर्णिमा तिथि के बाद अगले दिन प्रतिपदा से नए मास का आरंभ हो जाता है। इस बार 19 नबंवर 2021 को कार्तिक पूर्णिमा पड़ रही है। इसके अगले दिन यानी 20 नबंवर से मार्गशीर्ष मास का आरंभ होगा, जिसका समापन 19 दिसंबर 2021 को होगा। यह हिंदू वर्ष का नौंवा माह होता है। प्रत्येक चंद्रमास का नाम उसके नक्षत्र के आधार पर रखा जाता है। मार्गशीर्ष माह में मृगशिरा नक्षत्र होता है इसलिए इसे मार्गशीर्ष कहा जाता है। आम बोलचाल की भाषा में इसे अगहन मास के नाम से भी जाना जाता है। इस माह में भगवान कृष्ण की उपासना करने का विशेष महत्व माना गया है। मार्गशीर्ष माह में भी कई मुख्य व्रत-त्योहार पड़ेंगे। तो चलिए जानते हैं मार्गशीर्ष मास में पड़ने वाले मुख्य व्रत व त्योहारों की तारीखें, ताकि आपको किसी भी व्रत आदि की तारीख को लेकर कोई असमंजस की स्थिति न रहे।

मार्गशीर्ष पूर्णिमा 2021 तिथि

पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 18 दिसंबर दिन शनिवार को प्रात: 07 बजकर 24 मिनट से होगा. पूर्णिमा तिथि अगले दिन 19 दिसंबर दिन रविवार को सुबह 10 बजकर 05 मिनट तक मान्य है. ऐसे में मार्गशीर्ष पूर्णिमा 2021 18 दिसंबर को है.

मार्गशीर्ष पूर्णिमा 2021 चंद्रोदय

मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन चंद्रमा शाम 04 बजकर 46 मिनट पर उदय होगा. उस दिन चंद्रास्त का समय प्राप्त नहीं है.

मार्गशीर्ष महीने में क्या करना चाहिए

मार्गशीर्ष या अगहन के महीने में भगवान कृष्ण की आराधना बहुत ही उत्तम मानी गई है. इस महीने किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करना बहुत ही पुण्य दायक माना जाता है. मान्यताओं के मुताबिक मार्गशीर्ष महीने में मोटे कपड़े पहनना प्रारंभ कर देना चाहिए. अगहन में जीरा (मसाला) का त्याग कर देना चाहिए. अगहन के महीने में शरीर पर तेल मालिश करना बहुत ही उत्तम माना गया है.

दामोदराय नमः

मार्गशीर्ष मास के प्रारम्भ में ही हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि अपनी दिनचर्या के दौरान आप किसी की न तो निंदा करें और न ही सुनें. अगर किसी व्यक्ति के मन में किसी की निंदा करने का विचार आए तो मन ही मन ॐ दामोदराय नमः बोलकर अपने इष्ट को प्रणाम करें. इतना कहकर अपनी बात आरंभ करते हैं.

मार्गशीर्ष पूर्णिमा का विशेष महत्व 

पूर्णिमा तिथि पर चन्द्रमा पृथ्वी और जल तत्व को पूर्ण रूप से प्रभावित करता है. इस दिन को दैवीयता का दिन माना जाता है. इसे महीनों में सबसे पवित्र माह का अंतिम दिन कहा जाता है. इस दिन ध्यान, दान और स्नान करना विशेष लाभकारी होता है. इस दिन श्री हरि या शिव की पूजा अवश्य करनी चाहिए. इस दिन चन्द्रमा को अमृत से सिंचित किया गया था, इसलिए इस दिन चन्द्रमा की उपासना भी करनी चाहिए. 

मार्गशीर्ष पूर्णिमा पूजा विधि

मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर भगवान नारायण का मन ही मन में ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें. स्नान के समय जल में थोड़ा गंगाजल और तुलसी के पत्ते डालें फिर जल को मस्तक पर लगाकर भगवान को याद कर प्रणाम करें. इसके बाद स्नान करें. पूजा स्थान पर चौक वगैरह बनाकर श्रीहरि की माता लक्ष्मी के साथ वाली तस्वीर स्थापित करें. उन्हें याद करें फिर रोली, चंदन, फूल, फल, प्रसाद, अक्षत, धूप, दीप आदि अर्पित करें. इसके बाद पूजा स्थान पर वेदी बनाएं और हवन के लिए अग्नि प्रज्जवलित करें. इसके बाद ‘ॐ नमो भगवते वासु देवाय नम: स्वाहा इदं वासु देवाय इदं नमम’ बोलकर हवन सामग्री से 11, 21, 51, या 108 आहुति दें. हवन खत्म होने के बाद भगवान का ध्यान करें. उनसे अपनी गलती की क्षमायाचना करें.

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