Karka Sankranti 2025:- सूर्य राशि परिवर्तन
वर्तमान समय में सूर्य देव मिथुन राशि में विराजमान हैं। इस राशि में सूर्य देव 15 जुलाई तक रहेंगे। इसके अगले दिन सूर्य देव मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में गोचर करेंगे। सूर्य देव 16 जुलाई को शाम 05 बजकर 40 मिनट पर कर्क राशि में गोचर करेंगे। इस राशि में सूर्य देव एक महीने तक रहेंगे। इसके बाद सूर्य देव कर्क राशि से निकलकर सिंह राशि में गोचर करेंगे।
Karka Sankranti 2025:- कर्क संक्रांति शुभ मुहूर्त
सूर्य देव के कर्क राशि में गोचर करने की तिथि पर कर्क संक्रांति मनाई जाती है। इस प्रकार 16 जुलाई को कर्क संक्रांति मनाई जाएगी। इस दिन पुण्य काल सुबह 05 बजकर 40 मिनट से लेकर शाम 05 बजकर 40 मिनट तक है। वहीं, महा पुण्य काल दोपहर 03 बजकर 22 मिनट से लेकर शाम 05 बजकर 40 मिनट तक है।
Karka Sankranti 2025:- पुण्य काल का सही समय
कर्क संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा पुण्य काल और महा पुण्य काल में करनी शुभ होती है। इस दिन प्रात: काल 05 बजकर 40 मिनट से लेकर शाम 05 बजकर 40 मिनट तक पुण्य काल है। जबकि महा पुण्य काल 16 जुलाई को दोपहर 03 बजकर 22 मिनट से लेकर शाम 05 बजकर 40 मिनट तक रहेगा।
Karka Sankranti 2025:- कर्क संक्रांति की पूजा विधि
- ब्रह्म मुहूर्त में उठें।
- स्नान आदि कार्य करने के बाद लाल या पीले रंग के शुद्ध कपड़े धारण करें।
- सूर्य देव की पूजा करें।
- तांबे के लोटे में जल, रोली, फूल और अक्षत डालकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। इस दौरान सूर्य मंत्रों का जाप करें।
- आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
- अपनी क्षमता के अनुसार दान करें।
Karka Sankranti 2025:- कर्क संक्रांति का महत्व
कर्क संक्रांति मानसून के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है, जो कृषि गतिविधियों के दौर की शुरुआत करता है। यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि हमारे देश में लाखों लोगों के लिए कृषि आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। मकर संक्रांति के साथ दक्षिणायन समाप्त होता है और उसके बाद उत्तरायण शुरू होता है। दक्षिणायन के चार महीनों के दौरान, लोग भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। जो लोग अपने पूर्वजों के लिए पितृ तर्पण करना चाहते हैं, वे कर्क संक्रांति का इंतज़ार करते हैं ताकि दिवंगत आत्माओं को शांति प्रदान करने वाले अनुष्ठान किए जा सकें।
Karka Sankranti 2025:- कर्क संक्रांति से जुड़ी विशेष बातें–
सूर्यदेव जब किसी राशि का संक्रमण करते हैं तो उसे संक्रांति कहा जाता है. सूर्यदेव हर राशि में संक्रमण करते हैं, इसीलिए पूरे साल में 12 संक्रांति या मनाई जाती है. इन सभी संक्रांतिओं में मकर संक्रांति और कर्क संक्रांति का विशेष महत्व माना गया है. जिस प्रकार मकर संक्रांति से अग्नि तत्व में बढ़ोतरी होती है और चारों ओर सकारात्मक और शुभ ऊर्जा फैलने लगती है, उसी प्रकार कर्क संक्रांति से जल तत्व की अधिकता बढ़ जाती है. जिसकी वजह से वातावरण में चारों तरफ नकारात्मक ऊर्जा फैलने लगती है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सूर्य के उत्तरायण होने से सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है, वही सूर्यदेव के दक्षिणायन होने से नकारात्मक शक्तियां असरकारक हो जाती हैं और देवताओं की शक्तियां क्षीण पड़ने लगती हैं. यही कारण है कि दक्षिणायन से आरंभ संक्रांति के दिन से चातुर्मास का प्रारंभ हो जाता है और सभी प्रकार के शुभ कार्य बंद हो जाते हैं. इन 4 महीनों में लोग सूर्योदय के समय पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और सूर्य देव की पूजा करते हैं. इन 4 महीनों में भगवान शिव और भगवान विष्णु के साथ सूर्य देवता की पूजा का विशेष महत्व होता है. कर्क संक्रांति के दिन से लेकर 4 महीनों तक विष्णु सहस्त्रनाम का जाप किया जाता है. कर्क संक्रांति के दिन से दान पूजन और सभी प्रकार के पुण्य कर्म शुरू हो जाते हैं. शास्त्रों के अनुसार इन 4 महीनों में किसी भी नए कार्य को आरंभ नहीं करना चाहिए.