Jagannath Rath Yatra 2024:- हर साल ओडिशा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा निकलती है। ये आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकलती है। बता दें कि दो साल के लंबे इंतजार के बाद इस साल महाउत्सव में भक्तों को शामिल होने की अनुमति दी गई है। ऐसे में भगवान जगन्नाथ का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए देश-दुनिया से श्रद्धालू पहुंचे हैं।
Jagannath Rath Yatra 2024:- जगन्नाथ रथ यात्रा की तिथि और मुहूर्त क्या है ?
रथ यात्रा रविवार, जुलाई 7, 2024 को
द्वितीया तिथि प्रारम्भ – जुलाई 07, 2024 को 04:26 ए एम बजे
Jagannath Rath Yatra 2024:- रथ यात्रा के दौरान मनायी जाने वाली परंपराएँ क्या है ?
पहांडी:- पहांडी एक धार्मिक परंपरा है जिसमें भक्तों के द्वारा बलभद्र, सुभद्रा एवं भगवान श्रीकृष्ण को जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक की रथ यात्रा कराई जाती है। कहा जाता है कि गुंडिचा भगवान श्रीकृष्ण की सच्ची भक्त थीं, और उनकी इसी भक्ति का सम्मान करते हुए ये इन तीनों उनसे हर वर्ष मिलने जाते हैं।
छेरा पहरा:– रथ यात्रा के पहले दिन छेरा पहरा की रस्म निभाई जाती है, जिसके अंतर्गत पुरी के गजपति महाराज के द्वारा यात्रा मार्ग एवं रथों को सोने की झाड़ू स्वच्छ किया जाता है। दरअसल, प्रभु के सामने हर व्यक्ति समान है। इसलिए एक राजा साफ़-सफ़ाई वाले का भी कार्य करता है। यह रस्म यात्रा के दौरान दो बार होती है। एकबार जब यात्रा को गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है तब और दूसरी बार जब यात्रा को वापस जगन्नाथ मंदिर में लाया जाता है तब। जब जगन्नाथ यात्रा गुंडिचा मंदिर में पहुँचती है तब भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा एवं बलभद्र जी को विधिपूर्वक स्नान कराया जाता है और उन्हें पवित्र वस्त्र पहनाएँ जाते हैं। यात्रा के पाँचवें दिन हेरा पंचमी का महत्व है। इस दिन माँ लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ को खोजने आती हैं, जो अपना मंदिर छोड़कर यात्रा में निकल गए हैं।
Jagannath Rath Yatra 2024:- यात्रा का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व क्या है ?
इस यात्रा का धार्मिक एवं सांस्कृतिक दोनों महत्व है। धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो पुरी यात्रा भगवान जगन्नाथ को समर्पित है जो कि भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। हिन्दू धर्म की आस्था का मुख्य केन्द्र होने के कारण इस यात्रा का महत्व और भी बढ़ जाता है। कहते हैं कि जो कोई भक्त सच्चे मन से और पूरी श्रद्धा के साथ इस यात्रा में शामिल होते हैं तो उन्हें मरणोपरान्त मोक्ष प्राप्त होता है। वे इस जीवन-मरण के चक्र से बाहर निकल जाते हैं। इस यात्रा में शामिल होने के लिए दुनियाभर से लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। देश-विदेश के शैलानियों के लिए भी यह यात्रा आकृषण का केन्द्र मानी जाती है। इस यात्रा को पुरी कार फ़ेस्टिवल के नाम से भी जाना जाता है। ये सब बातें इस यात्रा के सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती हैं।
Jagannath Rath Yatra 2024:- जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास क्या है ?
पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा इन्द्रद्युम्न भगवान जगन्नाथ को शबर राजा से यहां लेकर आए थे तथा उन्होंने ही मूल मंदिर का निर्माण कराया था जो बाद में नष्ट हो गया। इस मूल मंदिर का कब निर्माण हुआ और यह कब नष्ट हो गया इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है। ययाति केशरी ने भी एक मंदिर का निर्माण कराया था। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान 65 मीटर ऊंचे मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चोल गंगदेव तथा अनंग भीमदेव ने कराया था। परंतु जगन्नाथ संप्रदाय वैदिक काल से लेकर अब तक मौजूद है।
Jagannath Rath Yatra 2024:- जगन्नाथ रथ यात्रा की 4 कथाएं कौन सी है ?
प्रभु जनन्नाथ स्वामी की रथ यात्रा कब से और किस कारण से प्रारंभ हुई इस संबंध में हमें कई तरह की कथाएं मिलती है। उन्हीं कथाओं में से चार कथा आप यहां संक्षिप्त में पढ़ें।
- पहली कथा : जब राजा इंद्रद्युम ने जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां बनवाई तो रानी गुंडिचा ने मूर्तियां बनाते हुए मूर्तिकार विश्वकर्मा और मूर्तियों को देख लिया जिसके चलते मूर्तियां अधूरी ही रह गई तब आकाशवाणी हुई कि भगवान इसी रूप में स्थापित होना चाहते हैं। इसके बाद राजा ने इन्हीं अधूरी मूर्तियों को मंदिर में स्थापित कर दिया। उस वक्त भी आकाशवाणी हुई कि भगवान जगन्नाथ साल में एक बार अपनी जन्मभूमि मथुरा जरूर आएंगे। स्कंदपुराण के उत्कल खंड के अनुसार राजा इंद्रद्युम ने आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के दिन प्रभु के उनकी जन्मभूमि जाने की व्यवस्था की। तभी से यह परंपरा रथयात्रा के रूप में चली आ रही है।
- दूसरी कथा : एक दूसरी कथा भी जिसके अनुसार सुभद्रा के द्वारिका दर्शन की इच्छा पूरी करने के लिए श्रीकृष्ण और बलराम ने अलग-अलग रथों में बैठकर यात्रा की थी। सुभद्रा की नगर यात्रा की स्मृति में ही यह रथयात्रा पुरी में हर साल होती है। इस रथयात्रा के बारे में स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण और ब्रह्म पुराण में भी बताया गया है।
- तीसरी कथा : एक बार राधा रानी कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण से मिलने पहुंची और वहां उन्होंने श्रीकृष्ण से वृंदावन आने का निवेदन किया। राधारानी के निेवेदन को स्वीकार करके एक दिन श्रीकृष्ण अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ वृंदावन के द्वार पहुंचे तो राधारानी, गोपियों और वृंदावनवासियों को इतनी खुशी हुई कि उन्होंने तीनों को रथ पर विराजमान करके उसके घोड़ों को हटाकर उस रथ को खुद की अपने हाथों से खींचकर नगर का भ्रमण कराया। इसके अलावा वृंदावनवासियों ने जग के नाथ अर्थात उन्हें जगन्नाथ कहकर उनकी जय-जयकार की। तभी यह यह परंपरा वृंदावन के अलावा जगन्नाथ में भी प्रारंभ हो गई।
- चौथी कथा : चारण परम्परा के अनुसार भगवान द्वारिकाधीशजी के साथ, बलराम और सुभद्राजी का समुद्र के किनारे अग्निदाह किया गया था। कहते हैं कि उस वक्त समुद्र के किनारे तूफान आ गया और द्वारिकाधीशजी के अधजले शव पुरी के समुद्र के तट पर बहते हुए पहुंच गए। पुरी के राजा ने तीनों शवों को अलग-अलग रथ में विराजित करवाया और पुरे नगर में लोगों ने खुद रथों को खींचकर घुमाया और अंत में जो दारु का लकड़ी शवों के साथ तैर कर आई थी उसीसे पेटी बनवा कर उन शवों को उनमें रखकर उसे भूमि में समर्पित कर दिया। इस घटना की स्मृति में ही आज भी इस परंपरा को निभाया जाता है। चारणों की पुस्तकों में इसका उल्लेख मिलता।