Gauri Pujan 2023 Details:- गौरी पूजन हेतु विवाहित महिलाएं आज के दिन अपने घर की सुख-समृद्धि और सौभाग्य प्राप्ति के व्रत रखती हैं। यह गौरी पूजन मां गौरा पार्वती से आशीर्वाद पाने के लिए रखा जाता है। यह व्रत प्रति वर्ष चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि को रखा जाता है। गौरी पूजन में महिलाएं माता पार्वती की आराधना करती हैं। मुख्य रूप से गौरी पूजन का पर्व महाराष्ट्र में मनाया जाता है। इस दिन देवी का आवाहन किया जाता है। उनकी प्रतिष्ठा की जाती है। दूसरे दिन मां की मुख्य पूजा होती है और तीसरे दिन देवी की विदाई होती है।
Gauri Pujan 2023:- गौरी पूजन क्यों करते हैं ?
गौरी पूजन आम तौर पर सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। देवी को प्रसन्न करने से घर में खुशहाली आती है व धन-धान्य बढ़ाता है। ये पति-पत्नी के रिश्तों को बेहतर बनाता है। इसके अलावा इससे शादी में आने वाली बाधाएं दूर होती है, मनचाहा एवं योगय जीवनसाथी मिलता है।
गौरी का स्वागत कैसे करें?
गौराई सोने के पैरों के साथ, माणिक मोती के पैरों के साथ आती है। उस दिन दरवाजे पर रंगोली बनाकर, लक्ष्मी के कदम पीछे खींचकर, थाली और चम्मच बजाकर गौरी के मुखौटों को घर में लाया जाता है। वे गौरी को सुंदर गहनों, फूलों की माला, नई साड़ियों से सजाते हैं। उसे शानदार भोजन परोसा जाता है। इसमें 16 सब्जियां, पंचकवन्ना शामिल हैं।
Gauri Pujan 2023:- गौरी पूजन विधि क्या है ?
- गौरी पूजन में सबसे पहले गणपति महाराज का पूजन करें।
- गणेश जी को सबसे पहले गंगाजल से स्नान कराएं।
- पंचामृत से फिर दोबारा गंगाजल से स्नान कराकर साफ कपड़े से पोछकर उन्हें आसन पर रखें।
- इसके बाद मां गौरी को आपके घर आने और आसन पर विराजमान होने के लिए उनका आवाहन करें।
- अब वस्त्र अर्पण कर उन्हें धूप-दीप दिखाएं और फूल-माल, प्रसाद व दक्षिणा चढ़ाएं।
- पूजन के समय ॐ गौर्ये नम: व ॐ पार्वत्यै नम: मंत्र का जाप करें।
Gauri Pujan 2023:- गौरी पूजन से क्या लाभ होता है ?
गौरी पूजन आमतौर पर सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। देवी को प्रसन्न करने से घर में खुशहाली आती है व धन-धान्य बढ़ाता है। ये पति-पत्नी के रिश्तों को बेहतर बनाता है। इसके अलावा इससे शादी में आने वाली बाधाएं दूर होती है और मनचाहा एवं योग्य जीवनसाथी मिलता है।
Gauri Pujan 2023:- गौरी पूजन कथा क्या है ?
प्राचीन काल में आनंद नगर में धर्मपाल नामक एक सेठ अपनी पत्नी के साथ सुख पूर्वक जीवन-यापन करता था। धर्मपाल के जीवन में धन, वैभव की कोई कमी नही थी, किन्तु उसे केवल एक बात का दुःख हमेशा सताता था कि उनकी कोई संतान नहीं थी। सेठ धर्मपाल नियमित पूजा-पाठ तथा दान-पुण्य किया करते थे। कुछ समय पश्चात पूजा-पाठ तथा अच्छे कार्यो से सेठ को पुत्र की प्राप्ति होती है।
जब सेठ धर्मपाल को पुत्र की आयु के सम्बन्ध में ज्ञात होता है कि उसका पुत्र अल्पायु है तो उसे अपने किस्मत पर बड़ा दुःख होता है। सेठ धर्मपाल व्यथित हो जाता है तब सेठ की पत्नी बोलती है भाग्य को कैसे बदला जा सकता है। अतः प्रभु की इच्छा में अपनी इच्छा निहित है। जो करेंगे प्रभु अच्छा ही करेंगे। कुछ समय पश्चात सेठ धर्मपाल अपने पुत्र का विवाह एक योग्य एवं संस्कारी कन्या से कर देता है। कन्या बचपन से ही माता गौरी का व्रत किया करती थी। अतः इस प्रभाव से कन्या को माता गौरी से अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है जिससे सेठ धर्मपाल का पुत्र दीर्घायु हो गया ।