धनु संक्रांति में मनुष्य की जलवायु, प्रकृति और व्यवहार में भी परिवर्तन देखा जाता है। किसी भी प्रकार के शुभ कार्यों, विशेषकर विवाह के लिए खरमास को शुभ नहीं माना जाता है। इसी वजह से माना जाता है कि इस अवधि में विवाह से बचना चाहिए।
Dhanu Sankranti 2022: धनु संक्रांति का उत्सव
इस दिन ओड़ीसा के बरगड़ शहर में प्रतीक के रूप में एक नुक्कड़ नाट्य का आयोजन किया जाता है| नुक्कड़ नाटक मे श्री कृष्ण के जीवन का एक हिस्सा प्रदर्शित किया जाता है, जिसमे वह अपने मामा कंस द्वारा आयोजित धनुयात्रा के लिए अपने बड़े भाई बलराम के साथ मथुरा जाते है | श्रीकृष्ण के मामा कंस द्वारा आयोजित की गयी इस यात्रा का उद्देश्य श्रीकृष्ण की हत्या करना होता है, पर कंस अपने इस उद्देश्य मे सफल नही हो पाता है| इस नाट्य मे बरगड़ को मथुरा मान लिया जाता है| बरगड़ शहर की सीमा से लगकर बहने वाली ज़ीरा नदी को यमुना नदी माना जाता है | नदी के उस पार पास के ही एक गाँव अंबपाली को गोपापूर और पास ही बने आम के बगीचे को वृंदावन मानकर भागवतपुराण मे उल्लेखित कई प्रसंगों का यहाँ खूबसूरती से चित्रण किया जाता है |
इस पूरे उत्सव में लगभग पूरा ओड़ीसा बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता है| यह पूरा उत्सव पौष के शुक्लपक्ष से लेकर पूर्णिमा यानी 10-12 दिन तक चलता है| इस उत्सव के दौरान आसपास का लगभग 5-6 किलोमीटर का क्षेत्र खुले रंगमंच सा बन जाता है |
Dhanu Sankranti 2022: सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में पूजा
पुराणों और ज्योतिष ग्रंथों के मुताबिक प्रदोष व्रत में सूर्यास्त के बाद तकरीबन 90 मिनिट के समय को प्रदोष काल कहा जाता है। इस दौरान भगवान शिव-पार्वती की विशेष पूजा की परंपरा है। प्रदोष काल में की गई पूजा से शारीरिक, मानसिक और आर्थिक परेशानियां भी दूर हो जाती हैं। इस बार गुरुवार का शुभ संयोग बनने पर शिव पूजा का कई गुना शुभ फल मिलेगा।
Dhanu Sankranti 2022: पूजा विधि: पंचामृत से रूद्राभिषेक
सूर्यास्त होने के पहले नहा लें। इसके बाद पूजा की तैयारी करें। प्रदोष काल शुरू होने पर भगवान शिव का अभिषेक करें। इसके लिए पंचामृत का इस्तेमाल भी करना चाहिए। फिर चंदन, अक्षत, अबीर-गुलाल, बिल्वपत्र, धतूरा, मदार के फूल और अन्य पूजा सामग्री चढ़ाएं। इसके बाद भगवान शिव की धूप व दीपक से आरती करें। महादेव को भोग लगाएं।
व्रत विधि: शाम को शिव पूजा के बाद भोजन (Dhanu Sankranti vart vidhi)
इस दिन सूर्योदय से पहले नहा लें। फिर शिव मंदिर या घर पर ही पूजा स्थान पर बैठकर हाथ में जल लें और प्रदोष व्रत के साथ शिव पूजा का संकल्प लें। इसके बाद शिवजी की पूजा करें। फिर पीपल में जल चढ़ाएं। दिनभर प्रदोष व्रत के नियमों का पालन करें। यानी शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह सात्विक रहें। भोजन न करें। फलाहार कर सकते हैं। फिर शाम को महादेव की पूजा और आरती के बाद प्रदोष काल खत्म होने पर यानी सूर्यास्त से 72 मिनिट बाद भोजन कर सकते हैं।
सूर्यदेव के धनु राशि में प्रवेश करने के साथ ही आज से धनु खरमास भी आरंभ हो गया है। दरअसल जब सूर्यदेव धनु या मीन राशि में प्रवेश करते हैं और जब तक वहां पर स्थित रहते हैं, उस समय अवधि को खरमास का नाम दिया गया है। इस हिसाब से साल में दो बार खरमास आता है। खरमास के दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन संस्कार आदि वर्जित होते हैं, जबकि इस दौरान सूर्य देव की उपासना करना बड़ा ही फलदायी माना गया है। अतः अगले 30 दिनों के दौरान आपको इन बातों का ख्याल रखना चाहिए।
- मेष राशि
सूर्यदेव आपके नवे स्थान पर गोचर करेंगे। जन्म कुंडली में नवा स्थान भाग्य का स्थान है। इस स्थान पर सूर्य के गोचर से आपके भाग्य में वृद्धि होगी। आप अपने काम में जितनी मेहनत करेंगे, उसका शुभ फल आपको अवश्य ही मिलेगा। साथ ही धार्मिक कार्यों में भी आपकी रुचि बढ़ेगी। अतः अगले 30 दिनों के दौरान सूर्य के शुभ फलों को सुनिश्चित करने के लिए घर में पीतल के बर्तनों का इस्तेमाल करें। साथ ही प्रतिदिन सूर्यदेव को नमस्कार करें। इससे आपको अपने कार्यों में भाग्य का साथ मिलेगा।
- वृष राशि
सूर्यदेव आपके आठवें स्थान पर गोचर करेंगे। जन्म कुंडली में यह स्थान आयु से संबंध रखता है। इस स्थान पर सूर्य के गोचर से आपकी आयु में वृद्धि होगी और आपका स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा। अतः अगले 30 दिनों के दौरान सूर्य के शुभ फल सुनिश्ति करने के लिए- काली गाय या बड़े भाई की सेवा करें। इससे आपकी आयु में वृद्धि होगी और आपका स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा।