अपरा एकादशी 2024 : पूजा विधि, महत्व, कथा और अचुक उपाय!!
अपरा एकादशी (जिसे अचला एकादशी भी कहा जाता है), हिंदुओं का धार्मिक महत्व और उपवास का दिन है जो हिन्दू पंचांग के ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी पर मनाया जाता है. यह एकादशी ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार मई-जून के महीनों में आती है. ऐसा माना जाता है कि अपरा एकादशी व्रत का पालन करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं. यह एकादशी अचला एकादशी के नाम से भी लोकप्रिय है और दिव्य और शुभ फल देती है. सभी एकादशियों की तरह अपरा एकादशी भी भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए समर्पित हैं.
अपरा एकादशी 2024 : अपरा एकादशी तिथि और मुहूर्त समय (Apara Ekadashi Date and Timings in 2024)
हिन्दू पंचांग के अनुसार अपरा एकादशी ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की में आती हैं. वर्ष 2024 में यह 2 जून रविवार को हैं.
तारीख (Date) 2 जून, 2024
एकादशी तिथि प्रारम्भ (Ekadashi Started) 02 जून को सुबह 05 बजकर 04 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त (Ekadashi Ended) 3 जून को रात 02 बजकर 41 मिनट तक
पारण (व्रत तोड़ने का) समय (Parana Time) 08:08:02 से 08:09:36 तक 3, जून को
अपरा एकादशी 2024 : अपरा एकादशी का महत्व (Apara Ekadashi Significance)
हिंदी में ‘अपार’ शब्द का अर्थ है ‘असीम’. इस व्रत को मानने पर व्यक्ति को असीमित धन की प्राप्ति होती है इसीलिए इस एकादशी को ‘अपरा एकादशी’ कहा जाता हैं. अपरा एकादशी का महत्व ‘ब्रह्म पुराण’ में बताया गया है. अपरा एकादशी को पूरे देश में पूरी प्रतिबद्धता के साथ मनाया जाता है. इसे भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न नामों से जाना जाता है. पंजाब, जम्मू-कश्मीर और हरियाणा राज्य में अपरा एकादशी को ‘भद्रकाली एकादशी’ के रूप में मनाया जाता है और इस दिन देवी भद्र काली की पूजा की जाती है. उड़ीसा में इसे ‘जलक्रीड़ा एकादशी’ के रूप में जाना जाता है और वहां इस दिन भगवान जगन्नाथ की पूजा की जाती जाता है.
अपरा एकादशी 2024 : अपरा एकादशी पूजन विधि (Apara Ekadashi Puja Vidhi)
अपरा एकादशी के उपासक को पूजा का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है. सभी अनुष्ठानों को पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ किया जाना चाहिए. इस व्रत का पालन करने वाले को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए. इस दिन भक्त भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते, फूल, धूप और दीप अर्पित करते हैं.
इस अवसर के लिए मिठाई तैयार की जाती है और प्रभु को अर्पित की जाती है. श्रद्धालु अपरा एकादशी व्रत कथा या कथा का भी पाठ करते हैं. ‘आरती’ की जाती है और ’प्रसाद’ अन्य भक्तों में वितरित किया जाता है. भक्त शाम को भगवान विष्णु के मंदिरों में भी जाते हैं.
इस एकादशी का व्रत दशमी तिथि से शुरू होता है. इस दिन व्यक्ति केवल एक समय भोजन करता है ताकि एकादशी के दिन पेट खाली रहे. कुछ भक्त कड़े उपवास रखते हैं और बिना कुछ खाए-पिए दिन बिताते हैं. आंशिक व्रत उन लोगों के लिए भी रखा जा सकता है जो सख्त उपवास का पालन करने के लिए अयोग्य हैं. फिर वे पूरे दिन फलाहार खा सकते हैं. उपवास सूर्योदय से शुरू होता है और द्वादशी तिथि के सूर्योदय पर समाप्त होता है. अपरा एकादशी के दिन सभी प्रकार के अनाज और चावल खाना सभी के लिए निषिद्ध है. शरीर पर तेल लगाने की भी अनुमति नहीं है.
इस एकादशी के व्रत का अर्थ केवल खाने को नियंत्रित करना नहीं है, बल्कि मन को सभी नकारात्मक विचारों से मुक्त रखना चाहिए. इस व्रत के पालनकर्ता को झूठ नहीं बोलना चाहिए और न ही दूसरों के बारे में बुरा बोलना चाहिए. उनके मन में केवल भगवान विष्णु के बारे में विचार होना चाहिए. इस दिन ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ का पाठ करना शुभ माना जाता है. अपरा एकादशी व्रत के पालनकर्ता भगवान विष्णु की स्तुति में भजन और कीर्तन करना चाहिए.
अपरा एकादशी 2024 : अपरा एकादशी कथा(Apara Ekadashi Story)
एक बार की बात है महिध्वज नाम का एक धार्मिक राजा रहता था. उनका छोटा भाई, भारद्वाज एक क्रूर, पापी और अन्यायी व्यक्ति था. वह महिध्वज से घृणा करता था. एक रात उसने अपने बड़े भाई की हत्या कर दी और उसके शव को पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया. इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा. एक दिन उस पेड़ के समीप से संयोगवश धौम्य नामक ॠषि गुजर रहे थे. पीपल के पेड़ पर उन्होंने प्रेत को देखा. उन्होंने अपने तपोबल की शक्ति से प्रेतात्मा के अतीत में देखा.
राजा द्वारा किये गए कर्मों से ऋषि अत्यंत प्रसन्न होते हैं और प्रेतात्मा को पेड़ से उतारकर तथा परलोक विद्या का उपदेश देते हैं. उसी स्थान पर धौम्य रजा के स्थान पर अपरा एकादशी का व्रत और पूजा हवन करते हैं जिसे राजा की आत्मा को मोक्ष प्राप्ति होती हैं और वह प्रेत योनी से मुक्त होकर ॠषि को धन्यवाद देता हुआ स्वर्ग को चला जाता हैं.
अपरा एकादशी 2024 : अपरा एकादशी उपाय (Apara Ekadashi Upay)
तुलसी दल – श्रीहरि को तुलसी अति प्रिय है. एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसी की माला अर्पित करें और साथ ही शाम के समय तुलसी में दीपक लगाएं. इस दिन भूलकर भी तुलसी तोड़े नहीं, न ही उसमें जल चढ़ाएं. मान्यता है कि माता तुलसी भी एकादशी का निर्जला व्रत करती हैं. इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं धन के भंडार भर जाते हैं.
पीपल में दीप – धर्म शास्त्रों में पीपल के पेड़ में देवताओं का निवास स्थान बताया गया है, इसलिए श्रीहरि विष्णु को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए अपरा एकादशी के दिन पीपल के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाएं और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें. ऐसा करने पर पितर प्रसन्न होते हैं और गंभीर बीमारियों से मुक्ति मिलती है.
हल्दी की गांठ – अपरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु को दो साबुत हल्दी अर्पित करें और ‘ॐ केशवाय नमः’ मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें. नौकरी और व्यापार में उन्नति के लिए ये उपाय अचूक है.