Aja Ekadashi 2023:- अजा एकादशी का व्रत कब है ? अजा एकादशी पर आजमाएं धन वृद्धि के ये उपाय, मां लक्ष्‍मी आएंगी आपके घर !

Aja Ekadashi 2023

Aja Ekadashi 2023 Details:- हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत अधिक महत्व है। 11 सितम्बर, 2023 को भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की एकादशी पड़ रही है। इस एकादशी को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है। अजा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। माना जाता है कि अजा एकादशी के दिन व्रत रखने से हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। इसके साथ ही अश्वमेध यज्ञ कराने के समान पुण्य फलों की प्राप्त होती है। इसके साथ ही श्रीहरि की कृपा हमेशा बनी रहती है।

Aja Ekadashi 2023:- अजा एकादशी व्रत पारण विधि तथा शुभ मुहूर्त क्या है ?

अजा एकादशी व्रत धारण करने वाले श्रद्धालु अगले दिन सुबह व्रत का शुभ मुहूर्त में पारण करते हैं। इसके लिए श्रेष्ठ मुहूर्त 05:55 से 08:23  तक 11 सितम्बर, 2023 को रहेगा इस शुभ मुहूर्त की अवधि 03 घंटा 15 मिनट रहेगी। श्रद्धालु शुभ मुहूर्त में अपने एकादशी व्रत का पारण करें।

 जो भी श्रद्धालु अजा एकादशी व्रत को धारण करते हैं उन्हें व्रत सात्विक भोजन के साथ पारण करना चाहिए। पहले अगर संभव हो तो ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए तथा  श्रद्धा अनुसार भेंट करनी चाहिए। इसके साथ ही गायों को हरा चारा खिलाना चाहिए। तत्पश्चात सात्विक भोजन के साथ अपना व्रत पारण कर सकते हैं। ऐसा करने से जातक अतिशय श्रेष्ठ फलों के हितकर बनते हैं।

Aja Ekadashi 2023:- अजा एकादशी पूजा विधि क्या है ?

  • अजा एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि कर लें। इसके बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर लें।
  • इसके बाद भगवान विष्णु के सामने जाकर हाथ में जल, पुष्प और अक्षत लेकर अजा एकादशी व्रत रखने का संकल्प लें।
  • पूजा स्थान पर एक चौकी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। फिर उनका अभिषेक करें।
  • पीले पुष्प, अक्षत, चंदन, धूप, दीप, फल, गंध, मिठाई आदि अर्पित करते हुए श्रीहरि की पूजा करें।
  • पंचामृत और तुलसी का पत्ता जरूर चढ़ाएं।
  • इसके बाद एकादशी व्रत कथा का पाठ करें या सुनें।
  • अंत में आरती करके भूल चूक के लिए क्षमा मांग लें।
  • दिनभर फलाहारी व्रत रखें। इसके साथ ही प्रसाद का वितरण कर दें।

Aja Ekadashi 2023:- अजा एकादशी पर क्या उपाय करें  ?

केसर और चंदन का उपाय

भगवान विष्‍णु और लक्ष्‍मी पूजा में चंदन और केसर का विशेष महत्‍व होता है। अजा एकादशी पर विधि विधान से भगवान विष्‍णु की पूजा करें और फिर पीले चंदन और केसर में गुलाब जल मिलाकर भगवान विष्‍णु को तिलक करें और स्‍वयं भी माथे पर टीका लगाकर घर से शुभ कार्य के लिए जाएं। ऐसा करने से आपके कार्य बिना बाधा के पूर्ण होंगे और मां लक्ष्‍मी का वास आपके घर में होगा।

पान के पत्‍ते का उपाय

अजा एकादशी पर पान के पत्‍ते पर रोली या फिर कुमकुम से श्री लिखें और ये पत्‍ते विष्‍णु भगवान को अर्पित करें। पूजा पूर्ण करने के बाद ये पत्‍ते लाल कपड़े में लपेटकर अपनी तिजोरी में रख लें। ऐसा करने से आपको नौकरी में नए-नए अवसर प्राप्‍त होते हैं और आपके बिजनस में भी लगातार वृद्धि होती है

कन्‍याओं को खीर खिलाएं

शास्‍त्रों में बताया गया है कि विशेष शुभ तिथियों पर कन्‍याओं की सेवा करने से बड़ा पुण्‍य कोई और नहीं है। अजा एकादशी पर सात कन्‍याओं को केसर की खीर खिलाएं और उनके पांव छूकर उन्‍हें उपहार देकर सम्‍मान के साथ विदा करें। आपके इस अच्‍छे कार्य को देखकर मां लक्ष्‍मी आपसे प्रसन्‍न होंगी और आपकी धन संबंधी समस्‍याएं भी दूर होंगी।

मनोकामना पूर्ति का उपाय

अजा एकादशी पर भगवान कृष्‍ण को नारियल और बादाम का भोग लगाएं और फिर 27 एकादशी तक इस उपाय को करने से आपको विशेष फल की प्राप्ति होगी और आपकी हर मनोकामना पूर्ण होगी। इन चढ़े हुए नारियल और बादाम को पूजा के बाद छोटे-छोटे बालकों को खाने को दें।

दक्षिणावर्ती शंख से करें पूजा

अजा एकादशी के अवसर पर भगवान कृष्‍ण और राधारानी की पूजा जरूर करें। भगवान विष्‍णु का दक्षिणावर्ती शंख में कच्‍चा दूध और केसर भरकर अभिषेक करें। ऐसा करने से आपके घर में कभी धन धान्‍य की कमी नहीं होती और न ही कोई अतिथि कभी खाली हाथ जाता है।

Aja Ekadashi 2023:- अजा एकादशी व्रत का महत्व क्या है ?

अजा एकादशी व्रत 2023  बहुत उद्देश्य हेतु रखा जाता है। तथा इसे धारण करने पर सुख शांति समृद्धि तथा सभी कष्टों से निवारण मिलता है। सभी एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होते हैं और जो भी जातक एकादशी व्रत धारण करते हैं उन्हें कभी भी शारीरिक, मानसिक, आर्थिक अन्य किसी प्रकार के कष्ट नहीं सताते।

यह व्रत महिलाओं द्वारा धारण किया जाता है तथा इसका महत्व है कि इस व्रत को धारण करने पर पुत्र की प्राप्ति होती है। पुत्र को हो रही व्याधि तथा कष्टों का निवारण होता है। इसलिए इस व्रत को धारण किया जाता है। कोई भी विवाहिता महिला जिसे अगर पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हो रही है, तो उन्हें अजा एकादशी व्रत धारण करना चाहिए। इस व्रत को धारण करने पर पुत्र प्राप्ति के साथ-साथ पुत्र को हो रही सभी व्याधियां दूर हो जाती है। इन्हीं कई मान्यताओं के चलते अजा एकादशी व्रत धारण किया जाता है।

Aja Ekadashi 2023:- अजा एकादशी व्रत कथा क्या है ?

बहुत समय पहले एक दानी और सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र हुऐ। राजा हरिश्चंद्र इतने प्रसिद्ध सत्यवादी और धर्मात्मा थे कि उनकी कीर्ति से देवताओं के राजा इन्द्र को भी डाह होने लगी । इन्द्र ने महर्षि विश्वामित्र को हरिश्चन्द्र की परीक्षा लेने के लिये उकसाया । इन्द्र के कहने से महर्षि विश्वामित्र जी ने राजा हरिश्चन्द्र को योगबल से ऐसा स्वप्न दिखलाया कि राजा स्वप्न में ऋषि को सब राज्य दान कर रहे हैं ।

दूसरे दिन महर्षि विश्वामित्र अयोध्या आये और अपना राज्य माँगने लगे । स्वप्न में किये दान को भी राजा ने स्वीकार कर लिया और विश्वामित्रजी को सारा राज्य दे दिया । महाराज हरिश्चन्द्र पृथ्वीभर के सम्राट् थे । अपना पूरा राज्य उन्होंने दान कर दिया था । अब दान की हुई भूमि में रहना उचित न समझकर स्त्री तथा पुत्र के साथ वे काशी आ गये ; क्योंकि पुराणों में यह वर्णन है कि काशी भगवान् शंकर के त्रिशूल पर बसी है । अत : वह पृथ्वी में होने पर भी पृथ्वी से अलग मानी जाती है ।

अयोध्या से जब राजा हरिश्चन्द्र जब चलने लगे तब विश्वामित्रजी ने कहा – ‘ जप , तप , दान आदि बिना दक्षिणा दिये सफल नहीं होते । तुमने इतना बड़ा राज्य दिया है तो उसकी दक्षिणा में एक हजार सोने की मोहरें और दो । राजा हरिश्चन्द्रके पास अब धन कहाँ था । राज्य – दान करने के साथ राज्य का सब धन तो अपने – आप दान हो चुका था । ऋषि से दक्षिणा देने के लिये एक महीने का समय लेकर वे काशी आये ।

काशी में उन्होंने अपनी पत्नी रानी शैव्या को एक ब्राह्मण के हाथ बेच दिया । राजकुमार रोहिताश्व छोटा बालक था । प्रार्थना करने पर ब्राह्मण ने उसे अपनी माता के साथ रहने की आज्ञा दे दी । स्वयं अपने को राजा हरिश्चन्द्र ने एक चाण्डालके हाथ बेच दिया और इस प्रकार ऋषि विश्वामित्र को एक हजार मोहरें दक्षिणा में दीं । महारानी शैव्या अब ब्राह्मण के घर में दासी का काम करने लगीं । चाण्डाल के सेवक होकर राजा हरिश्चन्द्र श्मशानघाट की चौकीदारी करने लगे ।

वहाँ जो मुर्दे जलाने के लिए लाये जाते , उनसे कर लेकर तब उन्हें जलाने देने का काम चाण्डाल ने उन्हें सौंपा था। एक दिन शमशान भूमि की तरफ गौतम ऋषि आ गए राजा ने ऋषि को प्रणाम किया गौतम ऋषि ने कहा कि किसी पूर्व जन्म के पाप के कारण आप की यह दशा हुई है यदि तुम भाद्रपद कृष्ण एकादशी का व्रत करो और अजा एकादशी व्रत कथा सुनो तो तुम्हारा इस हालत से उद्धार हो जाएगा।

राजा ने ऋषि की बात मानकर अजा एकादशी का व्रत करने लगे । एक दिन राजकुमार रोहिताश्व ब्राह्मण की पूजा के लिये फूल चुन रहा था कि उसे साँपने काट लिया । साँप का विष झटपट फैल गया और रोहिताश्व मरकर भूमि पर गिर पड़ा। उसकी माता महारानी शैव्याको न कोई धीरज बंधानेवाला था और न उनके पुत्र की देह श्मशान पहुँचाने वाला था । वह रोती – बिलखती पुत्र की देह को हाथों पर उठाये अकेली रात के समय में श्मशान पहुंचीं ।

वह पुत्र की देह को जलाने जा रही थी कि हरिश्चन्द्र वहाँ आ गये और मरघट का कर माँगने लगे । बेचारी रानी के पास तो पुत्रकी देह ढकने को कफन तक नहीं था । उन्होंने राजा को स्वर से पहचान लिया और गिड़गिड़ा कर कहने लगीं – ‘ महाराज ! यह तो आपका ही पुत्र है जो मरा पड़ा है । मेरे पास कर देने के लिए कुछ नहीं है । ‘ राजा हरिश्चन्द्र को बड़ा दुःख हुआ किंतु वे अपने धर्मपर स्थिर बने रहे ।

उन्होंने कहा – रानी मैं यहाँ चाण्डाल का सेवक हूँ । मेरे स्वामी ने मुझे कह रखा है कि बिना कर दिये कोई यहाँ मुर्दा न जला पावे । मैं अपने धर्म को नहीं छोड़ सकता। तुम मुझे कुछ देकर पुत्रकी देह जलाओ । रानी फूट – फूटकर रोने लगी और बोलीं – मेरे पास तो यही एक साड़ी है , जिसे मैं पहिने हूँ , आप इसी में से आधा ले लें । जैसे ही रानी अपनी साड़ी फाड़ने चलीं , वैसे ही वहाँ भगवान् नारायण , इन्द्र , धर्मराज आदि देवता और महर्षि विश्वामित्र प्रकट हो गये ।

महर्षि विश्वामित्रने बताया कि कुमार रोहित मरा नहीं है । यह सब तो ऋषि ने योग माया से दिखलाया था । राजा हरिश्चन्द्र को खरीदने वाले चाण्डाल के रूपमें साक्षात् धर्मराज थे । सत्य साक्षात् नारायणका स्वरूप है । अजा एकादशी व्रत के प्रभाव से तुम्हारे पाप नष्ट हो गए हैं सत्य के प्रभाव से राजा हरिश्चन्द्र महारानी शैव्या के साथ भगवान के धाम मे चले गये । महर्षि विश्वामित्र ने राजकुमार रोहिताश्व को अयोध्या का राजा बना दिया।

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