लहसुनिया रत्न पहनते समय बरतें क्या सावधानियां, जानें हर बात !!

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लहसुनिया रत्न कब धारण करें? लहसुनिया रत्न किसे धारण करना चाहिए? लहसुनिया रत्न क्यों धारण करना चाहिए?

हर किसी की जन्मपत्री में ग्रहों की कमजोर और बलवान दशा के अनुसार ही भाग्य में परिवर्तन आता रहता है. अशुभ ग्रहों को शुभ बनाना या शुभ ग्रहों को और अधिक शुभ बनाने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय करते हैं.

इसके लिए कोई मंत्र जाप, दान, औषधि स्नान, देव दर्शन आदि करता है. ऐसे में रत्न धारण एक महत्वपूर्ण एवं असरदार उपाय है. जिससे आपके जीवन में आ रही समस्त परेशानियों का हल निकल जाता है.

लहसुनिया रत्न

यह रत्न केतु के शुभ परिणामों को पाने के पहना जाता है। लहसुनिया रत्न को केतु की दशा के वक्त पहनने का सुझाव दिया जाता है। इस रत्न को आजीवन धारण नहीं किया जाता है। बस जब केतु कुंडली में गलत स्थान पर स्थित होता है, केवल तब ही इस रत्न को पहनते हैं।

लहसुनिया रत्न किस राशि के लोगों को पहनना चाहिए?

रत्न शास्त्र के अनुसार वृषभ, मकर, तुला, कुंभ, मिथुन राशि के जातकों के लिए केतु से संबंधित रत्न पहनना बहुत शुभ होता है, जो लोग लहसुनिया पहनते हैं उन्हें कभी किसी की बुरी नजर नहीं लगती । अगर जीवन में आर्थिक तंगी है तो लहसुनिया रत्न धारण करने से दरिद्रता से मुक्ति मिलती है।

लहसुनिया धारण करने की विधि ?  लहसुनिया किस वार को धारण करें ?  लहसुनिया धारण करने का मंत्र ,  लहसुनिया कितने रत्ती का धारण करें

रत्न शास्त्र के अनुसार सवा रत्ती लहसुनिया, चांदी की अंगूठी या लॉकेट में शनिवार के दिन धारण किया जा सकता है.

लहसुनिया को हमेशा मध्यमा उंगली में धारण करना चाहिए.

सवा रत्ती का लहसुनिया चांदी की अंगूठी अथवा लाकेट में पहनना चाहिए।

मान्यता के अनुसार विशाखा नक्षत्र में मंगलवार के दिन 7, 8 या 12 रत्ती लहसुनिया मध्यम उंगली में धारण करना शुभ माना जाता है.

लहसुनिया रत्न को पहनने से पहले इसे गंगाजल में अच्छी तरह से धो लें. इसके बाद इसे धूप-दीप दिखाकर केतु के मंत्र “ऊं क्लां क्लीं क्लूं स: केतवे स्वाहा:” का एक माला जाप करें.

केतु की अशुभ स्थितियां

ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार लहसुनिया धारण करने से केतु के दुष्प्रभाव दूर होते हैं।

जन्मकुंडली में केतु यदि शनि के साथ लग्न या पंचम भाव में हो तो अशुभफल देता है।

केतु यदि शुक्र के साथ वृषभ या मिथुन राशि में कहीं बैठा हो तो अशुभफलकारी होता है।

यदि केतु सूर्य के साथ या जन्मांग में सातवें या आठवें भाव में बैठा है तो दुष्प्रभाव देता है।

शत्रु क्षेत्री केतु मेष, कर्क, सिंह या वृश्चिक राशि का होकर द्वितीय, तृतीय, पंचम, सप्तम भावों में शनि से युक्त हो तथा सूर्य की उस पर दृष्टि हो तो इन सब स्थितियों में उसकी दशा-अंतर्दशाओं के अशुभ फल प्राप्त होते हैं।

गोचर में केतु 4, 8, 12वें भाव में हो तो लहसुनिया धारण करना चाहिए।

लहसुनिया रत्न पहनने के लाभ

– केतु ग्रह जीवन को बहुत संघर्ष पूर्ण बनाकर कड़ा सबक सिखाता है, लहसुनिया केतु का ही रत्न है, जो इस चुनौती भरी स्थिति में भी व्यक्ति को सुख-सुविधाओं का आनंद प्राप्त करवाता है।

– अध्यात्म के मार्ग पर जाने वाले लोगों के लिए भी लहसुनिया रत्न बहुत लाभकारी होता है, इसको धारण करने से सांसारिक मोह छूटता है और व्यक्ति अध्यात्म व धर्म की राह पर चलने पड़ता है ।

– लहसुनिया के प्रभाव से शारीरिक कष्ट भी दूर होते हैं । अवसाद, लकवा व कैंसर जैसी बीमारियों में भी यह रत्न लाभदायक होता है ।

– लहसुनिया मन को शांति प्रदान करता है और इसके प्रभाव से स्मरण शक्ति तेज होती है और व्यक्ति तनाव से दूर रहते हैं।

लहसुनिया रत्न धारण करने के नुकसान

– यदि लहसुनिया में चमक न हो तो यह धारण करने से धन का नाश न होता है।

– लहसुनिया में सफेद छींटे हो तो उसे धारण करने से मृत्यु तुल्य कष्ट होता है।

– ऐसा लहसुनिया जिसमें जाल दिखाई दे, उसे पहनने से पत्नी को कष्ट मिलता है।

– धब्बा युक्त लहसुनिया पहनने शरीर में रोगों की वृद्धि होती है।

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