Kal Sarp Dosh:- कुंडली में जब सारे ग्रह राहू और केतु के बीच में आ जाते है तब कालसर्प योग बनता है। ज्योतिष में इस योग को अशुभ माना गया है। लेकिन कभी कभी यह योग शुभ फल भी देता है, ज्योतिष में राहू को काल तथा केतु को सर्प माना गया है। राहू को सर्प का मुख तथा केतु को सर्प का पूंछ कहा गया है। वैदिक ज्योतिष में राहू और केतु को छाया ग्रह संज्ञा दी गई है, राहू का जन्म भरणी नक्षत्र में तथा केतु का जन्म अश्लेषा में हुआ है जिसके देवता “काल “एवं “सूर्य “है | राहू को शनि का रूप और केतु को मंगल ग्रह का रूप कहा गया है ,राहु मिथुन राशि में उच्च तथा धनु राशि में नीच होता है,राहु के नक्षत्र आर्द्रा स्वाति और शतभिषा है, राहु प्रथम द्वितीय चतुर्थ पंचम सप्तम अष्टम नवम द्वादस भावों में किसी भी राशि का विशेषकर नीच का बैठा हो तो निश्चित ही आर्थिक मानसिक भौतिक पीडायें अपनी महादशा अन्तरदशा में देता है।
कुंडली में क्यों बनता है कालसर्प दोष ?
राहु और केतु ग्रहों को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है फिर भी ये व्यक्ति के जीवन को बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं। ज्योतिष में इन दोनों ग्रहों को पापकर्म ग्रह माना गया है। किसी भी व्यक्ति की कुंडली में जातक की कुंडली में कालसर्पदोष राहु और केतु के कारण ही लगता है। जब किसी की जन्म कुंडली में राहु और केतु के मध्य सभी ग्रह आ जाते हैं तो कालसर्प योग बनता है।
मनुष्य को अपने पूर्व दुष्कर्मो के फलस्वरूप यह दोष लगता है जैसे शर्प को मारना या मरवाना , भ्रूण हत्या करना या करवाने वाले को अकाल मृत्यु ( किसी बीमारी या दुर्घटना में होने के कारण ) उसके जन्म जन्मान्तर के पापकर्म के अनुसार ही यह दोष पीढ़ी दर पीढ़ी चला आता है।
मनुष्य को इसका आभास भी होता है, जैसे – जन्म के समय सूर्य ग्रहण, चंद्रग्रहण जैसे दोषों के होने से जो प्रभाव जातक पर होता है, वही प्रभावकाल सर्प योग होने पर होता है।
Kal Sarp Dosh:- कालसर्प दोष के लक्षण क्या है ?
अकल्पित, असामयिक घटना दुर्घटना का होना, जन-धन की हानि होना। परिवार में अकारण लड़ाई-झगड़ा बना रहना। पति/तथा पत्नी वंश वृद्धि हेतु सक्षम न हों। आमदनी के स्रोत ठीक-ठाक होने तथा शिक्षित एवम् सुंदर होने के बावजूद विवाह का न हो पाना। बारबार गर्भ की हानि (गर्भपात) होना। बच्चों की बीमारी लगातार बना रहना, नियत समय के पूर्व बच्चों का होना, बच्चों का जन्म होने के तीन वर्ष की अवधि के अंदर ही काल के गाल में समा जाना।धन का अपव्यय होना। जातक व अन्य परिवार जनों को अकारण क्रोध का बढ़ जाना, चिड़चिड़ापन होना। परीक्षा में पूरी तैयारी करने के बावजूद भी असफल रहना, या परीक्षा-हाल में याद किए गए प्रश्नों के उत्तर भूल जाना, दिमाग शून्यवत हो जाना, शिक्षा पूर्ण न कर पाना। घर में वास्तु दोष सही कराने, गंडा-ताबीज बांधने, झाड़-फूंक कराने का भी कोई असर न होना। ऐसा प्रतीत होना कि सफलता व उन्नति के मार्ग अवरूद्ध हो गए हैं। जातक व उसके परिवार जनों का कुछ न कुछ अंतराल पर रोग ग्रस्त रहना, सोते समय बुरे स्वप्न देख कर चौक जाना या सपने में शर्प दिखाई देना या स्वप्न में परिवार के मरे हुए लोग आते हैं। किसी एक कार्य में मन का न लगना,शारीरिक ,आर्थिक व मानसिक रूप से परेशान तो होता ही है, इन्सान इस प्रकार के विघ्नों से घिरा होता है प्रायः इसी योग वाले जातको के साथ समाज में अपमान ,परिजनों से विरोध ,मुकदमेबाजी आदि कालसर्प योग से पीड़ित होने के लक्षण हैं।
कालसर्प योग के कारण परेशानी क्या होती है ?
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्पदोष का निर्माण होता है तो माना जाता है कि यदि उसका निवारण न किया जाए तो उसे जीवन के 42 वर्षों तक संघर्ष करना पड़ता है। जातक की सफलता में बाधाएं बनी रहती हैं, इसलिए कुंडली में राहु केतु की दशा को सही करने के लिए समय-समय पर उपाय करते रहना चाहिए।
Kal Sarp Dosh:- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 12 प्रकार के कालसर्प योग बनते हैं।
(1) अनंत काल सर्प योग,
(2) कुलिक काल सर्प योग,
(3) वासुकी काल सर्प योग,
(4) शंखपाल काल सर्प योग,
(5) पदम् काल सर्प योग,
(6) महापद्म काल सर्प योग,
(7) तक्षक काल सर्प योग,
(8) कर्कोटक काल सर्प योग,
(9) शंख्चूर्ण काल सर्प योग,
(10) पातक काल सर्प योग,
(11) विषाक्त काल सर्प योग,
(12) शेषनाग काल सर्प योग,
काल सर्प योग के शुभ फल क्या है ?
कुंडली में कालसर्प योग को कमजोर बनाने वाले महत्वपूर्ण योग केंद्र में स्वगृही या उच्च का गुरु, शुक्र,शनि, मंगल, चंद्र इनमें से कोई भी ग्रह स्वगृही या उच्च का होने पर कालसर्प योग भंग होता है। उच्च का बुध और सूर्य हो तो बुधादित्य योग होने पर कालसर्प योग कमजोर होता है। केंद्र में स्वगृही या उच्च के चंद्र मंगल से चंद्र मांगल्य योग बनता हो तो कालसर्प योग भंग होता है। प्रत्येक जातक की आयु के 25 वर्ष राहु व केतु के आधिपत्य में रहते हैं। (18 वर्ष राहु की महादशा + 7 वर्ष केतु की महादशा = दोनों का योग 25 वर्ष हुआ)। ”ज्योतिष शास्त्र का एक मुखय सूत्र है कि 3, 6, 11 भावों में पाप ग्रहों की उपस्थिति शुभ फलदायक रहती है। सामान्य रूप से 3, 6, 11 वें भाव में स्थित राहु को शुभ माना गया है।
कालसर्प दोष के उपाय क्या है ?
- कालसर्प दोष के अशुभ प्रभावों से मुक्ति पाने के लिए दूध में मिश्री मिलाकर शिवलिंग पर अभिषेक करना चाहिए और शिवतांडव स्त्रोत का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए।
- कालसर्प दोष के निवारण के लिए श्रावण मास बहुत ही उत्तम समय माना जाता है। श्रावण मास में भगवान शिव का रूद्राभिषेक अवश्य करवाना चाहिए। इससे व्यक्ति को कालसर्प दोष के अशुभ प्रभावों से मुक्ति प्राप्त होती है।
- कालसर्प दोष का निवारण करने से पहले योग्य ज्योतिष से जानकारी अवश्य लेनी चाहिए तभी किसी प्रकार का उपाय करना चाहिए।
कालसर्प योग की शांति के वैदिक उपाय ( Vedic Remedies of Kalsarp Yoga )
- अगर आप की कुंडली में पित्रदोश या कालसर्प दोष है तो आप किसी विद्वान पंडित से इसका उपाय जरुर कराएँ।
- काल के स्वामी महादेव शिव जी है जो इस योग से मुक्ति दिला सकते है क्योंकि नाग जाति के गुरु महादेव शिव हैं।
- जातक किसी भी मंत्र का जप करना चाहे, तो निम्न मंत्रों में से किसी भी मंत्र का जप-पाठ आदि कर सकता है।
- ऊँ नम शिवाय मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए और शिवलिंग के उपर गंगा जल, काले तिल चढ़ाये ।
- सोमवती अमावश्या या नाग पंचमी के दिन रूद्राभिषेक करना चाहिए।
- नाग के जोड़े चांदी या सोने में बनवाकर उन्हें बहते पानी में प्रवाहित कर दें।
- सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से भी इस दोष में कमी होती है या फिर प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा वस्त्र भेंट करने से पितृ दोष कम होता है।
- शनिवार के दिन पीपल की जड़ में गंगा जल, काले तिल चढ़ाये । पीपल और बरगद के वृ्क्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है।
- नागपंचमी के दिन व्रत रखकर नाग देव की पूजा करनी चाहिए।
- कालसर्प गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए।
- ‘ॐ काल शर्पेभ्यो नम:’ अगर कोई इस मंत्र को बोल कर कच्चे दूध को गंगाजल में मिलाकर उसमें काले तिल डाले और बरगद के पेड़ में दूध की धारा बनाकर 11 बार परिक्रमा करें , या शिवलिंग पर ॐ नमः शिवाय बोलकर चढ़ाये तो कालसर्प दोष से मुक्ति मिलेगी।