शक्ति की साधना में मां बगलामुखी या फिर कहें मां पीतांबरा का विशेष महत्व है. मान्यता है कि मां बगलामुखी की साधना जीवन से जुड़े बड़े से बड़े कष्टों को पलक झपकते ही दूर कर देती है।
सभी प्रकार के संकट और शत्रुओं से बचाने वाली मां बगलामुखी के देश भर में तमाम पावन पीठ हैं. जहां दर्शन मात्र से साधक के सारी समस्याएं दूर और मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. मान्यता है कि दस महाविद्याओं में बगलामुखी माता में इतनी शक्ति है जो भाग्य में लिखी चीजों को भी बदल देती हैं. बगलामुखी देवी बाएं हाथ से शत्रुओं की जिह्वा का अग्रभाग तथा दाएं हाथ में मुद्गर पकड़े हुए शत्रुओं का नाश करने वाली हैं. मां बगलामुखी माता के स्तोत्र का श्रवण तथा पाठ करने से साधक को विद्या, लक्ष्मी, यश, कीर्ति, ऐश्वर्य, संतान सुख आदि की प्राप्ति होती है. मां बगलामुखी की साधना करने से कोर्ट-कचहरी के मामलों और राजनीति के मुकाबलों में विजय की प्राप्ति होती हैं.
मां बगलामुखी पूजा विधि
बगलामुखी जयंती के दिन प्रात:काल स्नान करें और साफ-सुथरा कपड़ा पहन लें. संभव हो तो इस दिन पीले रंग का वस्त्र धारण करें. अब मां बगलामुखी की पूजा प्रारंभ करें. पूजा करते समय मुंह पूर्व दिशा की तरफ रखें. मां बगलामुखी की पूजा के लिए चौकी पर पीले रंग का वस्त्र बिछाएं और मां को पीले रंग का फूल, फल और मिठाई का भोग लगाएं. इसके माता बगलामुखी की चालीसा पढ़ें और फिर आरती करें. शाम के समय मां मां बगलामुखी की कथा का पाठ करें. मां बगलामुखी जयंती पर व्रत करने वाले भक्त शाम के समय फल खा सकते हैं.
मां बगलामुखी मंत्र
‘ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धिं नाशय ह्लीं ॐ स्वाहा’
करें ये उपाय
1- संतान प्राप्ति के लिए: अशोक के पत्ते, कनेर के पुष्प, तिल व दुग्ध मिश्रित चावल से हवन करना चाहिए।
2- अत्यधिक धन प्राप्ति के लिए चंपा के पुष्प से हवन करना चाहिए।
3- देव-स्तवन एवं तंत्र-सिद्धि के लिए नमक, शक्कर, घी से हवन करना चाहिए।
4- आकर्षण के लिए सरसों से हवन करना चाहिए।
5- वशीकरण एवं उच्चाटन के लिए गिद्ध एवं कौए के पंख, तेल, राई, शहद, शक्कर से हवन करना चाहिए।
6- शत्रु नाश के लिए शहद, घी, दुर्वा से हवन करना चाहिए।
7- रोग नाश के लिए गुग्गल, घी से हवन करना चाहिए।
8- राजवश्यता के लिए गुग्गल व तिल से हवन करना चाहिए।
9- जेल से मुक्ति व गृह-शांति के लिए पीली सरसों, काले तिल, घी, लोभान, गुग्गल, कपूर, नमक, काली मिर्च, नीम की छाल से हवन करना चाहिए।
बगलामुखी जयंती का क्या महत्व है
• हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि जो भक्त देवी बगलामुखी की पूजा करते हैं, वे अपने शत्रुओं पर सम्पूर्ण नियंत्रण पा कर उनसेस छुटकारा पा लेते हैं।
• देवी व्यक्ति को उसकी भावनाओं और व्यवहार पर नियंत्रण की भावना भी प्रदान करती है अर्थात् क्रोध, मन के आवेग, जीभ और खाने की आदतों पर। आत्म-साक्षात्कार और योग की प्रक्रिया में, इस तरह के नियंत्रण की महत्वपूर्ण आवश्यकता है।
• यह भी माना जाता है कि देवी की पूजा करने से, भक्त खुद को काले जादू और अन्य गैर-घटनाओं से बचा सकते हैं।
• व्यक्ति दूसरों को सम्मोहित करने के लिए शक्तियों को प्राप्त करने के लिए भी देवता की पूजा करते हैं।
• किसी कानूनी समस्या से मुक्त होने के लिए भी देवता की पूजा की जाती है।
• जो भक्तिपूर्वक देवी की आराधना करता है, वह प्रभुत्व, वर्चस्व और शक्ति से परिपूर्ण हो जाता है।
बगलामुखी जयंती कैसे मनाई जाती है
• बगलामुखी जयंती के शुभ दिन, भक्त देवी बगलामुखी की पूजा और अर्चना करते हैं।
• छोटी लड़कियों की भी पूजा की जाती है और पवित्र भोजन उन्हें चढ़ाया जाता है क्योंकि उन्हें देवी का अवतार माना जाता है।
• मंदिरों में और पूजा स्थल पर, कीर्तन और जागरण आयोजित किए जाते हैं।
• भक्तगण अति उत्साह और समर्पण के साथ बगलामुखी पूजा करते हैं।
मां बगलामुखी की कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा. इससे चारों ओर हाहाकार मच जाता है और अनेक लोग संकट में पड़ जाते हैं और संसार की रक्षा करना असंभव हो जाता है. यह तूफान सब कुछ नष्ट-भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था जिसे देखकर भगवान विष्णुजी चिंतित हो गए.
इस समस्या का कोई हल न पाकर वे भगवान शिव का स्मरण करने लगे. तब भगवान शिव उनसे कहते हैं कि शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में ही जाएं. तब भगवान विष्णु हरिद्रा सरोवर के निकट पहुंचकर कठोर तप करते हैं. भगवान विष्णु ने तप करके महात्रिपुरसुन्दरी को प्रसन्न किया तथा देवी शक्ति उनकी साधना से प्रसन्न हुईं और सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीड़ा करतीं महापीत देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ.
उस समय चतुर्दशी की रात्रि को देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुईं. त्र्यैलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी ने प्रसन्न होकर विष्णुजी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रुक सका. देवी बगलामुखी को बीर रति भी कहा जाता है, क्योंकि देवी स्वयं ब्रह्मास्त्ररूपिणी हैं. इनके शिव को एकवक्त्र महारुद्र कहा जाता है इसीलिए देवी सिद्ध विद्या हैं. तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं. गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं.