Pitrupaksha Begins 2024:- पितृपक्ष की शुरुआत कैसे हुई ? पितरों को प्रसन्न करने के लिए क्या उपाय क्या है ? जानें श्राद्ध की तिथियां, नियम, विधि और महत्व|

Pitrupaksha Begins 2024

Pitrupaksha Begins 2024 Details:- हिंदू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष 18 सितंबर 2024, शुक्रवार को भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से आरंभ होंगे. पितृ पक्ष का समापन 02 अक्टूबर 2024, शनिवार को आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को होगा. इस दिन को आश्विन अमावस्या, बड़मावस और दर्श अमावस्या भी कहा जाता है. यदि आपकों श्राद्ध की तिथि ज्ञात नहीं है. अक्सर लोगों को अपने मृत परिजनों की तिथि ज्ञात नहीं होती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि उनका श्राद्ध करें। किसी सुहागिन महिला का देहांत हो गया हो और  तिथि का ज्ञात नहीं है तो अवस्था नवमी तिथि के दिन  श्राद्ध क्रिया की जानी चाहिए।

Pitrupaksha Begins 2024:- पितृ पक्ष आखिर क्या होता है ?

यह वर्ष का वह दिन होता है जिसमें जातक देव पूजा से पहले अपने पूर्वजों की पूजा करते हेतु उनके मृत्योपरांत इन दिनों को मनाया जाता है। माना जाता है पितृ पक्ष के दिनों में यदि जातक अपने पितरों को प्रसन्न कर देते हैं तो उससे देवता भी खुश हो जाते हैं। लोक से मुक्ति प्राप्त करने के लिए पितृ पक्ष का समय काल होता है। पितृ पक्ष 15 दिनों तक चलता हैं। पितृ पक्ष वह समय होता है जब हमारे पूर्वज पृथ्वी पर निवास करते हैं और अपनी पीढी से जुड़े मोह के कारण उन पर अपनी दृष्टि डालते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि देव ऋण पितृ ऋण और ऋषि ऋण ऐसे ऋण है जिनको पूरे जीवनकाल में की गई पूजा अराधना से नहीं चुकाया जा सकता है।

इसलिए पितरों को खुश रखने का कोई अवसर छोड़ना नहीं चाहिए। पितृ पक्ष में श्राद्ध द्वारा आस्था और श्रद्धा से किए गए भोजन व अन्य दान को हमारे पितर बहुत खुशी स्वीकार कर बहुत प्रसन्न होते हैं। इसलिए पितृ पक्ष का समय हिंदुओं के लिए बहुत उत्तम समय होता है जिसमें वह अपने पूर्वजों की आत्मा को इस लोक से मुक्ति दिला सकते हैं। अपने पूर्वजों के प्रति इस अनुष्ठान को न करने से उनकी आत्मा कभी तृप्त नहीं हो पाती और कई बार तो जातकों को दोष लग जाता है।

दोष के चलते जीवन में कई समस्याएं आती है और उनकी आत्मा भूत प्रेत का रूप धारण कर पृथ्वी पर भटकती रहती हैं। कई बार परिस्थियां इतनी गंभीर हो जाती कि यह प्रेत आत्माएं अपनी ही पीढ़ी को हानिा पहुंचाने का प्रयास करती हैं। पितृ दोष को कुंडली में लगने वाला सबसे जटिल दोष माना जाता है। इसलिए इसे हलके में नहीं लेना चाहिए और पूर्वजों के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरी निष्ठा से करना चाहिए।

पितृ पक्ष 2024 प्रारंभ तिथि कब?

पंचांग के अनुसार, अश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि 19 सितंबर 2024,मंगलवार के दिन पड़ रही है। ऐसे में इसी दिन से पितृ पक्ष का शुभारंभ हो जाएगा। बता दें कि पितृ पक्ष का समापन अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन हो जाता है, जो 02 अक्टूबर 2024,बुधवार शनिवार के दिन पड़ रहा है। बता दें कि विक्रम संवत 2080 में पितृ पक्ष की शुरुआत 15 दिन देरी से हो रही है। ऐसा अधिक मास या पुरुषोत्तम मास के कारण हुआ है।

पितृ पक्ष 2023 कैलेंडर

17 सितम्बर 2024, मंगलवार         पूर्णिमा श्राद्ध       भाद्रपद, शुक्ल पूर्णिमा

18 सितम्बर 2024, बुधवार           प्रतिपदा श्राद्ध      आश्विन, कृष्ण प्रतिपदा

19 सितम्बर 2024, गुरूवार          द्वितीया श्राद्ध       अश्विना, कृष्ण द्वितीया

20 सितम्बर 2024, शुक्रवार          तृतीया श्राद्ध        अश्विना, कृष्ण तृतीया

21 सितम्बर 2024, शनिवार          चतुर्थी श्राद्ध        अश्विना, कृष्ण चतुर्थी

21 सितम्बर 2024, शनिवार          महा भरणी         अश्विना, भरणी नक्षत्र

22 सितम्बर 2024, रविवार           पंचमी श्राद्ध        अश्विना, कृष्ण पंचमी

23 सितम्बर 2024, सोमवार          षष्ठी श्राद्ध           अश्विना, कृष्ण षष्ठी

23 सितम्बर 2024, सोमवार          सप्तमी श्राद्ध       आश्विन, कृष्ण सप्तमी

24 सितम्बर 2024, मंगलवार         अष्टमी श्राद्ध        आश्विन, कृष्ण अष्टमी

25 सितम्बर 2024, बुधवार           नवमी श्राद्ध         अश्विना, कृष्ण नवमी

26 सितंबर 2024, गुरुवार दशमी श्राद्ध        अश्विना, कृष्ण दशमी

27 सितम्बर 2024, शुक्रवार          एकादशी श्राद्ध    आश्विन, कृष्ण एकादशी

29 सितम्बर 2024, रविवार           द्वादशी श्राद्ध       अश्विना, कृष्ण द्वादशी

29 सितम्बर 2024, रविवार           माघ श्राद्ध           अश्विना, मघा नक्षत्र

30 सितम्बर 2024, सोमवार          त्रयोदशी श्राद्ध     आश्विन, कृष्ण त्रयोदशी

1 अक्टूबर 2024, मंगलवार           चतुर्दशी श्राद्ध      आश्विन, कृष्ण चतुर्दशी

2 अक्टूबर 2024, बुधवार सर्व पितृ अमावस्या          आश्विन, कृष्ण अमावस्या  

Pitrupaksha Begins 2024:- पितृ पक्ष का इतिहास (पौरणिक कथा) क्या है ?

प्राचीन भारतीय इतिहास के अनुसार, जब महाभारत के युद्ध के दौरान कर्ण का निधन हो गया और उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंच गई, तो उन्हें नियमित भोजन नहीं मिला। इसके बदले में उसे खाने के लिए सोना और गहने दिए गए। उसकी आत्मा निराश हो गई और उसने इस बात को भगवान इंद्र (स्वर्ग के भगवान) को बताया कि उसे वास्तविक भोजन क्यों नहीं दिया जा रहा है? तब भगवान इंद्र ने वास्तविक कारण का खुलासा किया कि उन्होंने अपने पूरे जीवन में इन सभी चीजों को दूसरों को दान किया लेकिन कभी भी अपने पूर्वजों को नहीं दिया। तब कर्ण ने उत्तर दिया कि वह अपने पूर्वजों के बारे में नहीं जानता है और उसे सुनने के बाद, भगवान इंद्र ने उसे 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर वापस जाने की अनुमति दी ताकि वह अपने पूर्वजों को भोजन दान कर सके। 15 दिनों की इस अवधि को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है।

 

पितृ पक्ष का महाभारत से एक प्रसंग

श्राद्ध का एक प्रसंग महाभारत महाकाव्य से इस प्रकार है, कौरव-पांडवों के बीच युद्ध समाप्ति के बाद, जब सब कुछ समाप्त हो गया, दानवीर कर्ण मृत्यु के बाद स्वर्ग पहुंचे। उन्हें खाने मे सोना, चांदी और गहने भोजन के जगह परोसे गये। इस पर, उन्होंने स्वर्ग के स्वामी इंद्र से इसका कारण पूछा।

इस पर, इंद्र ने कर्ण को बताया कि पूरे जीवन में उन्होंने सोने, चांदी और हीरों का ही दान किया, परंतु कभी भी अपने पूर्वजों के नाम पर कोई भोजन नहीं दान किया। कर्ण ने इसके उत्तर में कहा कि, उन्हें अपने पूर्वजों के बारे मैं कोई ज्ञान नही था, अतः वह ऐसा करने में असमर्थ रहे।

तब, इंद्र ने कर्ण को पृथ्वी पर वापस जाने के सलाह दी, जहां उन्होंने इन्हीं सोलह दिनों के दौरान भोजन दान किया तथा अपने पूर्वजों का तर्पण किया। और इस प्रकार दानवीर कर्ण पित्र ऋण से मुक्त हुए।

पितृ पक्ष में पूर्वज़ों का श्राद्ध कैसे करें?

जिस पूर्वज, पितर या परिवार के मृत सदस्य के परलोक गमन की तिथि अगर याद हो तो पितृपक्ष में पड़ने वाली उसी तिथि को ही उनका श्राद्ध करना चाहिये। यदि देहावसान की तिथि ज्ञात न हो तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध किया जा सकता है, जिसे सर्वपितृ अमावस्या को महालय अमावस्या भी कहा जाता है। समय से पहले यानि कि किसी दुर्घटना अथवा आत्मदाह आदि से अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है।

श्राद्ध तीन पीढि़यों तक करने का विधान बताया गया है। यमराज हर वर्ष श्राद्ध पक्ष में सभी जीवों को मुक्त कर देते हैं, जिससे वह अपने स्वजनों के पास जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। तीन पूर्वज में पिता को वसु के समान, रुद्र देवता को दादा के समान तथा आदित्य देवता को परदादा के समान माना जाता है। श्राद्ध के समय यही अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते हैं।

 

सर्वपितृ अमावस्या(02 October 2024)

पितृ पक्ष के अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या या महालया अमावस्या के रूप में जाना जाता है। महालया अमावस्या पितृ पक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। जिन व्यक्तियों को अपने पूर्वजों की पुण्यतिथि की सही तारीख / दिन नहीं पता होता, वे लोग इस दिन उन्हें श्रद्धांजलि और भोजन समर्पित करके याद करते हैं।

 

भरणी श्राद्ध(21 September 2024)

भरणी श्राद्ध पितृ पक्ष के दौरान एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है और इसे ‘महाभरणी श्राद्ध’ के नाम से भी जाना जाता है। भरणी श्राद्ध में अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूजा की जाती है। जो लोग अपने पूरे जीवन में कोई तीर्थ यात्रा नहीं कर पाते हैं। ऐसे लोगों की मृत्यु के बाद भरणी श्राद्ध किया जाता है ताकि उन्हें मातृगया, पितृ गया, पुष्कर तीर्थ और बद्री केदार आदि तीर्थों पर किए गए श्राद्ध का फल मिले।

भरणी श्राद्ध पितृ पक्ष के भरणी नक्षत्र में किया जाता है। किसी की मृत्यु के पहले वर्ष में भरणी श्राद्ध नहीं किया जाता क्योंकि प्रथम वार्षिक वर्ष श्राद्ध करने तक मृत व्यक्ति की आत्मा जीवित रहती है। लेकिन प्रथम वर्ष के बाद भरणी श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

 

भरणी श्राद्ध के दौरान अनुष्ठान:

❀ पवित्र ग्रंथों के अनुसार, भरणी श्राद्ध को गया, काशी, प्रयाग, रामेश्वरम आदि पवित्र स्थानों पर करने का सुझाव दिया गया है।

❀ भरणी श्राद्ध करने का शुभ समय कुतप मुहूर्त और रोहिणा आदि मुहूर्त है, उसके बाद दोपहर का त्योहार समाप्त होने तक। श्राद्ध के अंत में तर्पण किया जाता है।

❀ भरणी श्राद्ध के दिन कौओं को भी भोजन खिलाना चाहिए, क्योंकि उन्हें भगवान यमराज का दूत माना जाता है। कौवे के अलावा कुत्ते और गाय को भी भोजन कराया जाता है।

❀ ऐसा माना जाता है कि भरणी श्राद्ध अनुष्ठान को धार्मिक और पूरी श्रद्धा के साथ करने से मुक्त आत्मा को शांति मिलती है और वे बदले में अपने वंशजों को शांति, सुरक्षा और समृद्धि प्रदान करते हैं।

 

भरणी श्राद्ध का महत्व:

कहा गया है कि भरणी श्राद्ध के गुण गया श्राद्ध के समान होते हैं इसलिए इसकी बिल्कुल भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। यह दिन महालया अमावस्या के बाद पितृ श्राद्ध अनुष्ठान के दौरान सबसे अधिक मनाया जाता है।

 

Pitrupaksha Begins 2024:- पितरों को प्रसन्न करने के लिए क्या उपाय क्या है ?

  • श्रद्धा पूर्वक तर्पण और पिंडदान करने से पितृ प्रसन्न होते हैं।
  • श्राद्ध पक्ष में पंचबलि कर्म अर्थात देव, पीपल, गाय, कुत्ते और कौवे को अन्न जल देने से पितृदेव प्रसन्न होते हैं। इसी के साथ ही चीटीं और मछलियों को भी अन्न देना चाहिए।
  • श्राद्ध में 10 तरह के दान दिए जाते हैं। 1.जूते-चप्पल, 2.वस्त्र, 3.छाता, 4.काला‍ तिल, 5.घी, 6.गुड़, 7.धान्य, 8.नमक, 9.चांदी-स्वर्ण और 10.गौ-भूमि। आप चाहे तो सिर्फ आटा, गुड़, घी, नमक और शक्कर का दान कर सकते हैं।
  • ब्राह्मण भोज भी कराना चाहिए। इस दिन सभी को अच्छे से पेटभर भोजन खिलाकर दक्षिणा दी जाती है। ब्राह्मण का निर्वसनी होना जरूरी है और ब्राह्मण नहीं हो तो अपने ही रिश्तों के निर्वसनी और शाकाहार लोगों को भोजन कराएं। खासकर जमाई, भांजा, मामा, गुरु और नाती को भोजन करूर कराएं।
  • पितृ पक्ष के दौरान प्रतिदिन अपने द्वारा पर पितरों के निमित्त एक दीप जरूर जालाएं। दक्षिण दिशा में पितरों के निमित्त 2, 5, 11 या 16 दीपक जरूर जलाएं। आप अपनी गैलरी में भी जला सकते हैं या आप प्रतिदिन पीपल के पेड़ के पास भी दीप जलाकर पितरों की मुक्ति हेतु प्रार्थना कर सकते हैं।
  • पितृसुक्त या गीता का पाठ करें। श्राद्ध पक्ष में 16 दिन गीता का पाठ करना चाहिए। आप चाहे तो संपूर्ण गीता का पाठ करें नहीं तो पितरों की शांति के लिए और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए और उन्हें मुक्ति प्रदान का मार्ग दिखाने के लिए गीता के 2रे और 7वें अध्याय का पाठ जरूर करें।
  • गुड़ घी को मिलाकर सुगंधित धूप दें, जब तक वह जले तब तक ‘ॐ पितृदेवताभ्यो नम’: का जप करें और इसी मंत्र से आहुति दें।
  • भगवान विष्णु सहित इन दिव्य पितरों की पूजा करें। जैसे यमराज, काव्यवाडनल, सोम, अर्यमा, अग्निष्व, सोमसद, बहिर्पद, चित्रगुप्तजी, अग्रिष्वात्त, बहिर्पद आज्यप, सोमेप, रश्मिप, उपदूत, आयन्तुन, श्राद्धभुक व नान्दीमुख, आदित्य, वसु, रुद्र तथा दोनों अश्विनी कुमार आदि।
  • सर्वपितृ अमावस्या के दिन शास्त्रों में मृत्यु के बाद और्ध्वदैहिक संस्कार, पिण्डदान, तर्पण, श्राद्ध, एकादशाह, सपिण्डीकरण, अशौचादि निर्णय, कर्म विपाक आदि के द्वारा पापों के विधान का प्रायश्चित कहा गया है।
  • परिवार के सभी सदस्यों से बराबर मात्रा में सिक्के इकट्ठे करके उन्हें मंदिर में दान करें।

Pitrupaksha Begins 2024:- पितृ पक्ष श्राद्ध प्रथा और परंपराएँ क्या है ?

पितृ पक्ष के दौरान, श्राद्ध किया जाता है। इस अनुष्ठान की प्रक्रिया एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न हो सकती है लेकिन आमतौर पर, इसके 3 भाग होते हैंः-

पहले भाग को पिंड दान के रूप में कहा जाता है जहाँ पिंड को पितृों (पूर्वजों) को अर्पित किया जाता है। पिंड चावल के गोले, शहद, चावल, बकरी के दूध, चीनी और कभी-कभी जौ के साथ बनाए जाने वाले चावल के अलावा कुछ भी नहीं है।

दूसरे भाग को तर्पण के रूप में जाना जाता है, जहाँ आटा, जौ, कुशा घास और काले तिल के साथ मिश्रित पानी पितरों को चढ़ाया जाता है।

इस समारोह का तीसरा और अंतिम भाग ब्राह्मण पुजारियों को भोजन प्रदान करता है। भक्तों को पवित्र ग्रंथों से कथा पढ़नी चाहिए।

 

पितृ पक्ष में जरूर करें ये उपाय

  • शास्त्रों में यह विदित है कि पितृ पक्ष में स्नान-दान और तर्पण इत्यादि का विशेष महत्व है। इस अवधि में किसी ज्ञानी द्वारा ही श्राद्ध कर्म या पिंडदान इत्यादि करवाना चाहिए। साथ ही किसी ब्राहमण को या जरूरतमंद को अन्न, धन या वस्त्र का दान करें। ऐसा करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  • पितृ पक्ष पूर्वजों की मृत्यु के तिथि के अनुसार श्राद्ध कर्म या पिंडदान किया जाता है। किसी व्यक्ति को यदि अपने पूर्वजों की मृत्यु का तिथि याद नहीं है तो वह अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन यह कर्म कर सकते हैं। ऐसा करने से भी पूर्ण फल प्राप्त होता है।

पितृ दोष निवारण पूजा – पितृ दोष के हानिकारक प्रभावों को दूर करे।

ऊपर वर्णित इन प्रक्रियाओं के अलावा, भक्तों को कुछ चीजों से बचना चाहिए। उदाहरण के लिए, पितृ पक्ष के दौरान जैसे कि गैर-शाकाहारी भोजन नहीं खाया जाना चाहिए, बालों को नहीं काटा जाना चाहिए, और किसी को लहसुन, प्याज आदि जैसे तामसिक भोजन नहीं खाने चाहिए। कोई भी नया प्रोजेक्ट, नया घर या नई गाड़ी खरीदने का प्रयास नहीं करना चाहिए।

सर्व पितृ अमावस्या उन सभी पूर्वजों को समर्पित है जिनकी मृत्यु तिथि को भुला दिया गया है या अज्ञात है।

Subscribe to our Newsletter

To Recieve More Such Information Add The Email Address ( We Will Not Spam You)

Share this post with your friends

Leave a Reply

Related Posts

jaggannath puri

Jagannath Puri:- क्या सच में जगन्नाथ पूरी में धड़कता है श्री कृष्ण का दिल? जाने जगन्नाथ पुरी की खासयित और इससे जुडी इतिहासिक और पौराणिक कथा!!

Jagannath Puri:- क्या सच में जगन्नाथ पूरी में धड़कता है श्री कृष्ण का दिल? जाने जगन्नाथ पुरी की खासयित और इससे जुडी इतिहासिक और पौराणिक कथा!!