श्री गणेश परिचय
भगवान गणेश देवो के देव भगवान शिव और माता पार्वती के सबसे छोटे पुत्र हैं। भगवान गणेश की पत्नी का नाम रिद्धि और सिद्धि है। रिद्धि और सिद्धि भगवान विश्वकर्मा की पुत्रियां हैं। भगवन गणेश का नाम हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य करने से पहले लिया जाता है।
जन्म समय:- भाद्रपद की चतुर्थी को मध्यान्ह के समय। जन्म समय माथुर ब्राह्मणों के इतिहास अनुसार अनुमानत: 9938 विक्रम संवत पूर्व भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय हुआ था। पौराणिक मत के अनुसार सतुयग में हुआ था।
स्थान:- कैलाश मानसरोवार या उत्तरकाशी जिले का डोडीताल।
अवतार
पुराणों में उनके 64 अवतारों का वणर्न है। सतयुग में कश्यप व अदिति के यहां महोत्कट विनायक नाम से जन्म लेकर देवांतक और नरांतक का वध किया। त्रेतायुग में उन्होंने उमा के गर्भ जन्म लिया और उनका नाम गुणेश रखा गया। सिंधु नामक दैत्य का विनाश करने के बाद वे मयुरेश्वर नाम से विख्यात हुए। द्वापर में माता पार्वती के यहां पुन: जन्म लिया और वे गणेश कहलाए। ऋषि पराशर ने उनका पालन पोषण किया और उन्होंने वेदव्यास के विनय करने पर सशर्तमहाभारत लिखी।
भगवान गणेश जी के जन्म की कहानी
हम सभी उस कथा को जानते हैं, कि कैसे गणेश जी हाथी के सिर वाले भगवान बने। जब पार्वती शिव के साथ उत्सव क्रीड़ा कर रहीं थीं, तब उन पर थोड़ा मैल लग गया। जब उन्हें इस बात की अनुभूति हुई, तब उन्होंने अपने शरीर से उस मैल को निकाल दिया और उससे एक बालक बना दिया। फिर उन्होंने उस बालक को कहा कि जब तक वे स्नान कर रहीं हैं, वह वहीं पहरा दे।
जब शिवजी वापिस लौटे, तो उस बालक ने उन्हें पहचाना नहीं और उनका रास्ता रोका। तब भगवान शिव ने उस बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया और अंदर चले गए।
यह देखकर पार्वती बहुत हैरान रह गयीं। उन्होंने शिवजी को समझाया कि वह बालक तो उनका पुत्र था, और उन्होंने भगवान शिव से विनती करी कि वे किसी भी कीमत पर उसके प्राण बचाएं।
तब भगवान शिव ने अपने सहायकों को आज्ञा दी कि वे जाएं और कहीं से भी कोई ऐसा मस्तक लेकर आएं जो उत्तर दिशा की ओर मुहँ करके सो रहा हो। तब शिवजी के सहायक एक हाथी का सिर लेकर आए, जिसे शिवजी ने उस बालक के धड़ से जोड़ दिया और इस तरह भगवान गणेश का जन्म हुआ।
भगवान श्री गणेश का सिर कटने के बाद इस जगह गिरा
भगवान श्री गणेश का सिर कटने के बाद एक गुफा में रखा गया। मान्यता है कि भगवान शिव ने गणेश जी के सिर को सुरक्षित एक गुफा में रख दिया था। जिसे पाताल भुवनेश्वर गुफा के नाम से जाना जाता है। इस गुफा में भगवान श्री गणेश की प्रतिमा भी स्थापित की गई है। भगवान श्री गणेश जी की गुफा की खोज आदिशंकराचार्य ने की थी।
इस प्रदेश में है भगवान श्री गणेश के वास्तविक सिर की गुफा
उत्तर प्रदेश के अलग होकर बने नए राज्य उत्तराखंड की एक गुफा को ही पाताल भुवनेश्वर गुफा के नाम से जाना जाता है। इसी गुफा में भगवान श्री गणेश की वास्तविक प्रतिमा स्थापित है। मान्यता है कि भगवान शिव ने श्री गणेश जी का सिर काटने के बाद इसी गुफा में स्थापित किया था। यह गुफा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट से 14 किलोमीटर दूर स्थित है।
मान्यता है कि इस गुफा के भीतर स्थापित भगवान श्री गणेश के वास्तविक सिर की रक्षा स्वयं त्रिकालदर्शी भगवान शिव करते हैं।
गणेश जी की पत्नियां कौन हैं?
मान्यता के अनुसार एक बार गणेशजी अपनी तपस्या कर रहे थे। तभी वहां से तुलसी जी गुजर रही होती हैं और वो गणेश जा को देखकर मोहित हो जाती हैं। तुलसी जी ने विवाह का प्रस्ताव गणेश जी के पास लेकर गई। लेकिन गणेश जी ने खुद को ब्रह्मचारी बताया और तुलसी जी से विवाह करने से मना कर दिया था। विवाह प्रस्ताव ठुकराने की वजह से तुलसी माता नाराज हो गई और उन्होंने गणेश जी को श्राप दे दिया। उन्होंने श्राप देते वक्त कहा कि उनका एक विवाह कभी नहीं होगा और उनके दो विवाह ही होंगे।
श्री गणेश इस बात से अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने माता तुलसी को श्राप दे दिया कि और कहा कि ‘तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा’। आपको बता दें कि भगवान गणेश की पूजा में तुलसी का प्रयोग इस कारण से नहीं किया जाता है। आपको बता दें कि भगवान गणेश ब्रह्मचारी रहना चाहते थे क्योंकि वह अपने शरीर से नाराज रहते थे। उन्हें अपना मुख हाथी जैसे लगता था। उन्हें ऐसा लगता था कि उनसे कोई विवाह नहीं करना चाहता था। इसलिए भगवान गणेश ब्रह्मचारी रहना चाहते थे। नाराज गणेश जी जहां भी शादी होती थी, वहां विघ्न डाल देते थे, ताकी विवाह ना हो सके। उन्हें ऐसा लगता था कि उनका विवाह नहीं हो पा रहा है तो वह किसी का विवाह नहीं होने देंगे।
इस वजह से देवी-देवता काफी परेशान थे। वह सभी अपनी परेशानी लेकर ब्रह्माजी के पास गए। तब ब्रह्माजी ने अपनी शक्तियों से दो कन्याएं को प्रकट किया। दो कन्याओं का नाम रिद्धि और सिद्धि हैं। उन्होंने रिद्धि और सिद्धि को गणेश जी के पास ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेजा। फिर कुछ समय बाद उन दोनों का विवाह गणेश जी के साथ हो गया। लेकिन इसके अलावा गणेश जी की तीन और पत्नियां भी हैं जिनका नाम तुष्टि, पुष्टि और श्री है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि गणेश जी की पांच पत्नियां हैं।
गणेश जी के बेटे और पोते कौन हैं?
श्री गणेश के दो पुत्र हैं जिनके नाम लाभ और शुभ है। शुभ हमारे धन, ज्ञान और ख्याति को सुरक्षित रखते हैं। यानि पुरुषार्थ से कमाई गई हर चीज को सुरक्षित रखते हैं। लाभ पुत्र उसमें वृद्धि देने का कार्य करते हैं। लाभ हमें धन, यश आदि में निरंतर बढ़ोत्तरी देता है।
गणेश जी की पुत्री का नाम संतोषी है।आपको बता दें कि गणेश जी के भाई कार्तिकेय है और गणपति जी की तीन बहनें हैं जिनका नाम अशोक सुंदरी, ज्योकति और देवी मनसा है।गणपति जी के दो पोतें हैं जिनका नाम आमोद और प्रमोद है। गणेश जी शुभता और ज्ञान के देवता के रूप में जाने जाते हैं।
गणेश जी ने बिना रुके लिखी थी महाभारत की कथा
भगवान गणेश जी ने ही महाभारत काव्य अपने हाथों से लिखा था. पौराणिक कथा के अनुसार विद्या के साथ साथ भगवान गणेश को लेखन कार्य का भी अधिपति माना गया है. गणेश जी को सभी देवी देवताओं में सबसे अधिक धैर्यवान माना गया है. उनका चित्त स्थिर और शांत बताया गया है. कैसी भी परिस्थिति हो वे अपना धैर्य नहीं खोते हैं. शांत भाव से अपने कार्य को करते रहते हैं. इसी कारण उनकी लेखन की शक्ति भी अद्वितीय मानी गई है.
महर्षि वेद व्यास भगवान गणेश के इसी खूबी के चलते अति प्रभावित थे. जब महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना करने का मन बनाया तो उन्हें महाभारत जैसे महाकाव्य के लिए एक ऐसे लेखक की तलाश थी जो उनके कथन और विचारों को बिना बाधित किए लेखन कार्य करता रहे. क्योंकि बाधा आने पर विचारों की सतत प्रक्रिया प्रभावित हो सकती थी.
महर्षि वेद व्यास ने सभी देवी देवताओं की क्षमताओं का अध्ययन किया लेकिन वे संतुष्ट नहीं हुई तब उन्हें भगवान गणेश जी का ध्यान आया. महर्षि वेद व्यास ने गणेशजी से संपर्क किया और महाकाव्य लिखने का आग्रह किया. भगवान गणेश जी ने वेद व्यास जी के आग्रह को स्वीकार कर लिया लेकिन एक शर्त उनके सम्मुख रख दी. शर्त के अनुसार काव्य का आरंभ करने के बाद एक भी क्षण कथा कहते हुए रूकना नहीं है. क्योंकि ऐसा होेने पर गणेश ने कहा कि वे वहीं लेखन कार्य को रोक देंगे. गणेश जी की बात को महर्षि वेद व्यास ने स्वीकार कर लिया, लेकिन उन्होनें भी एक शर्त गणेशजी के सामने रख दी. महर्षि वेद व्यास जी ने कहा कि बिना अर्थ समझे वे कुछ नहीं लिखेंगे. इसका अर्थ ये था कि गणेश जी को प्रत्येक वचन को समझने के बाद ही लिखना होेगा. गणेश जी ने महर्षि वेद व्यास की इस शर्त को स्वीकार कर लिया. इसके बाद महाभारत महाकाव्य की रचना आरंभ हुई. कहा जाता है कि महाभारत के लेखन कार्य पूर्ण होने में तीन वर्ष का समय लगा. इन तीन वर्षों में गणेश जी ने एक बार भी महर्षि वेद व्यास जी को एक पल के लिए भी नहीं रोका, वहीं महर्षि ने भी अपनी शर्त पूरी की. इस तरह से महाभारत पूर्ण हुआ.