मां सरस्वती की उत्पत्ति
श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी बताते हैं कि मां सरस्वती ने ही इस सृष्टि को वाणी प्रदान की थी. उनसे ही ज्ञान का प्रकाश सभी मनुष्यों को प्राप्त हुआ है. पौराणिक कथा के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना का कार्य संपन्न कर दिया तो उन्होंने पाया कि सृष्टि में सबकुछ है, लेकिन सब मूक, शांत और नीरस है.
तब उन्होंने अपने कमंडल से जल निकाला और छिड़क दिया, जिससे मां सरस्वती वहां पर प्रकट हो गईं. उन्होंने अपने हाथों में वीणा, माला और पुस्तक धारण कर रखा था. मां सरस्वती ने अपनी वीणा से वसंत राग छेड़ा. इसके फलस्वरूप सृष्टि को वाणी और संगीत की प्राप्ति हुई. उस तिथि को माघ शुक्ज पंचमी थी, इस वजह से इस तिथि को हर साल वसंत पंचमी मनाई जाती है और माता सरस्वती की पूजा की जाती है.
माता सरस्ववती स्वेत और पीत वस्त्र क्यों धारण करती हैं
माता सरस्वती को ज्ञान की देवी कहा जाता है। सृष्टि में ज्ञान विज्ञान और जितनी भी विद्याएं हैं सबकी देवी माता सरस्वती हैं। माता सरस्वती ज्ञान की प्रकाष्ठा हैं इसलिए इन पर सांसारिक रंग चढ ही नहीं सकता है। इसलिए माता शांति और आत्मिक शुद्धि का प्रतीक रंग रंग का वस्त्र धारण करती हैं। जबकि पीत वस्त्र त्याग और भक्ति भाव का प्रतीक है। पीले रंग का संबंध गुरु ग्रह से भी माना जाता है जो ज्ञान के कारक ग्रह हैं। इसलिए देवी सरस्वती को ज्ञान का प्रतीक रंग पीला भी प्रिय है। इसलिए देवी सरस्वती को प्रसाद के रूप में पीले फल और मिठाई का भोग लगाया जाता है।
देवी सरस्वती के हाथों में पुस्तक का रहस्य
देवी सरस्वती ज्ञान की देवी हैं और पुस्तक ज्ञान का भंडार है। कहते हैं सृष्टि का संपूर्ण ज्ञान वेदों में छिपा है बस उसे समझने की जरूरत है। देवी सरस्वती ज्ञान की उसी प्रतिमूर्ति वेदों को अपने हाथों में धारण करती हैं। वेद माता की हाथों की शोभा हैं। इसलिए सरस्वती पूजा के दिन बच्चे उन पुस्तकों को माता सरस्वती के समीप रखते हैं और उनकी पूजा करते हैं जो उन्हें कठिन जान पड़ता है। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि माता सरस्वती की कृपा होने से कठिन विषय भी समझना सरल हो जाता है।
माता सरस्वती की पौराणिक कहानी
एक समय की बात है, देवों और असुरों के बीच भयंकर संग्राम चल रहा था. असुरों के शक्तिशाली राजा ब्रह्मासुर ने अपनी शक्ति से देवों को पराजित किया और स्वर्ग का अधिपति बन गया.
इस समय में ब्रह्मासुर ने अपनी दुर्बलता के कारण देवों का प्रभु बनने का सपना देखा. उसने अपनी देवी के साथ तपस्या की और ईश्वर को ब्रह्मा से भी ऊपर स्थान प्राप्त किया.
इस समय में देवों की परेशानी बढ़ गई और उन्होंने भगवान विष्णु की शरण ली. विष्णु ने उन्हें सरस्वती के साथ संधि करने की सलाह दी.
विष्णु ने उसे उसके तीर्थस्थान में आकर अपनी समस्त शक्ति का त्याग किया. इसके बाद, उन्होंने ब्रह्मासुर का वध किया और देवों को पुनः स्वर्ग में स्थान प्राप्त कराया.
इस प्रकार, माता सरस्वती ने अपनी शक्ति को समर्पित करके धर्म की रक्षा की और देवों को पुनः स्वर्ग में स्थान प्राप्त करवाया. इस कारण, वह विद्या, कला और बुद्धि की देवी के रूप में पूजी जाती हैं
विद्या और बुद्धि की देवी माता सरस्वती का वाहन हंस क्यों है?
सरस्वती को विद्या और बुद्धि की देवी माना गया है। जिस तरह भगवान शंकर का वाहन नंदी, विष्णु का गरुड़, कार्तिकेय का मोर, दुर्गा का सिंह और श्रीगणेश का वाहन चूहा है, उसी तरह सरस्वती का वाहन हंस है। यहां जानिए देवी सरस्वती का वाहन हंस क्यों है?
देवी की द्वादश नामावली में इस बात का उल्लेख मिलता है-
प्रथमं भारती नाम द्वितीयं च सरस्वती। तृतीयं शारदा देवी चतुर्थं हंसवाहिनी॥ अर्थात सरस्वती का पहला नाम भारती, दूसरा सरस्वती, तीसरा शारदा और चौथा हंसवाहिनी है। यानी हंस उनका वाहन है।
सहज ही यह जिज्ञासा होती है कि आखिर हंस सरस्वती का वाहन क्यों है? सबसे पहले तो यह बात समझना होगी कि यहां वाहन का अर्थ यह नहीं है कि देवी उस पर विराजमान होकर आवागमन करती हैं। यह एक संदेश है, जिसे हम आत्मसात कर अपने जीवन को श्रेष्ठता की ओर ले जा सकते हैं। हंस को विवेक का प्रतीक कहा गया है। संस्कृत साहित्य में नीर-क्षीर विवेक का उल्लेख है। इसका अर्थ होता है- दूध का दूध और पानी का पानी करना। यह क्षमता हंस में विद्यमान होती है –
इसका अर्थ है कि हंस में ऐसा विवेक होता है कि वह दूध और पानी पहचान लेता है।
हंस का रंग शुभ्र (सफेद) होता है। यह रंग पवित्रता और शांति का प्रतीक है। शिक्षा प्राप्ति के लिए पवित्रता आवश्यक है। पवित्रता से श्रद्धा और एकाग्रता आती है। शिक्षा की परिणति ज्ञान है। ज्ञान से हमें सही और गलत या शुद्ध और अशुद्ध की पहचान होती है। यही विवेक कहलाता है। मानव जीवन के विकास के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है, इसलिए सनातन परम्परा में जीवन का पहला चरण शिक्षा प्राप्ति का है, जिसे ब्रह्मचर्य आश्रम कहा गया है।
जो पवित्रता और श्रद्धा से ज्ञान की प्राप्ति करेगा, उसी पर सरस्वती की कृपा होगी। सरस्वती की पूजा-उपासना का फल ही हमारे अंत:करण में विवेक के रूप में प्रकाशित होता है। हंस के इस गुण को हम अपनी जिंदगी में अपना लें तो कभी असफल नहीं हो सकते। सच्ची विद्या वही है जिससे आत्मिक शांति प्राप्त हो।
सरस्वती का वाहन हंस हमें यही संदेश देता है कि हम पवित्र और श्रद्धावान बन कर ज्ञान प्राप्त करें और अपने जीवन को सफल बनाएं।
देवी सरस्वती जीवित हैं!
अब तक आपने मंदिरों में मूर्तियों के रूप में, किताबों में चित्रों के रूप में और शास्त्रों में पाठ के रूप में देवी के दर्शन किए हैं। लेकिन क्या होगा अगर आपको मां सरस्वती को जीवित रूप में देखने का मौका मिले? जब आप उन्हें प्रत्यक्ष रूप में देखेंगे, तो वाणी के नियमों का पालन कम से कम दृढ़ता और सबसे अधिक उत्साह के साथ होगा।
जीवंत माता सरस्वती के कहा दर्शन हो सकते है?
यदि आप साक्षात् माँ सरस्वती के दर्शन करना चाहते है, तो आप ज्ञानी पुरुष, आत्मज्ञानी कि वाणी सुनकर कर सकते है।
सरस्वती देवी जो आप, चित्रों, पुस्तकों और शास्त्रों में देखते हो, वह अप्रत्यक्ष है (परोक्ष)। जबकि, ज्ञानी की वाणी में प्रत्यक्ष सरस्वती हैं; जीवंत सरस्वती। ज्ञानी द्वारा बोले गए शब्दों में ही देवी सरस्वती का वास है।
जुबान पर कब-कब बैठती हैं मां सरस्वती
शास्त्रों में दिन के हिस्सों को शुभ और अशुभ की श्रेणी में बांटा जाता है। हिंदू धर्म में सुबह 3 बजे के बाद को ब्रहम मुहूर्त कहा जाता है। इस समय से नए दिन की शुरुआत मानी जाती है। सुबह 3 बजकर 10 मिनटे से लेकर 3 बजकर 15 मिनट का समय सबसे शुभ समय होता है। ऐसे में इस समय के अवधि के बीच में अगर मन में अच्छी बात बोली जाए या फिर मन में लाई जाए तो वह जरूर पूरी होती है। इसके लिए अलावा सुबह 3 बजकर 20 मिनट से 3 बजकर 40 मिनट के बीच मां सरस्वती के जुबान पर बैठने का सबसे सही समय होता है। ऐसे में इस दौरान बोली गई कोई भी बात जरूर सच होती है।