परशुराम जयंती 2025 :-
हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान विष्णु के अवतार परशुरामजी की जयंती मनाई जाती है। अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम का जन्म प्रदोष काल में हुआ था, ऐसे में वैशाख तृतीया तिथि और प्रदोष काल में भगवान परशुराम का जन्मोत्सव मनाया जाता है। अक्षय तृतीया का पर्व हिंदू धर्म में विशेष स्थान रखता है। यह तिथि एक अबूझ मुहूर्त है, जिसमें किसी भी तरह का शुभ और मांगलिक कार्य बिना मुहूर्त का विचार कर किया जा सकता है। भगवान परशुराम के बारे में सतयुग से लेकर द्वापर युग और कलयुग में अनेक कथाएं मिलती हैं।
परशुराम जयंती कब है?
परशुराम जयंती महर्षि परशुराम की जयंती के उपलक्ष्य में मनाई जाती है, जिन्हें हिंदू पौराणिक कथाओं में भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा राज्यों में यह 2025 में 29 अप्रैल मंगलवार को मनाई जाएगी।
पूजा विधि :-
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके सर्वप्रथम उगते हुए सूर्य को जल दें और भगवान परशुराम की पूजा उपासना करें। भगवान को पीले रंग के पुष्प और पीले रंग की मिठाई अर्पित करें। अंत में आरती कर परिवार के कुशल मंगल की कामना करें। ब्राह्मणों को दान अवश्य दें।
कौन हैं भगवान परशुराम
भगवान परशुराम भार्गव वंश में जन्मे भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं, उनका जन्म त्रेतायुग में हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन जन्म लेने के कारण ही भगवान परशुराम की शक्ति भी अक्षय थी। भगवान परशुराम भगवान शिव और भगवान विष्णु के संयुक्त अवतार माने जाते हैं। शास्त्रों में उन्हें अमर माना गया है। दरअसल भगवान परशुराम श्री हरि यानि विष्णु ही नहीं बल्कि भगवान शिव और विष्णु के संयुक्त अवतार माने जाते हैं। शिवजी से उन्होंने संहार लिया और विष्णुजी से उन्होंने पालक के गुण प्राप्त किए। भगवान शिव से उन्हें कई अद्वितीय शस्त्र भी प्राप्त हुए इन्हीं में से एक था भगवान शिव का परशु जिसे फरसा या कुल्हाड़ी भी कहते हैं। यह इन्हें बहुत प्रिय था व इसे हमेशा साथ रखते थे। परशु धारण करने के कारण ही इन्हें परशुराम कहा गया। भगवान परशुराम उन 7 अमर देवों में एक हैं, जिनके बारे में मान्यता है कि वह अभी भी धरती पर निवास करते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार, पिता की आज्ञा मानते हुए परशुराम ने अपनी माता की हत्या कर दी थी। परंतु आज्ञा मानने से प्रसन्न हुए पिता ने जब परशुराम से वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने माता को पुन: जीवित करने का वर मांग लिया। जहां परशुराम जी ने अपनी माता का वध किया और जहां इस वध के पाप से मुक्ति पाई आज वह दोनों ही जगहें राजस्थान में स्थित हैं। साथ ही झारखंड के टांगीधाम में साक्षात परशुराम के फरसे के दर्शन किए जा सकते हैं।
महत्व
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान परशुराम की पूजा उपासना करने से साधक को अमोघ फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि परशुराम जयंती के दिन व्रत रखने के साथ विधिवत तरीके से पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं निसंतान लोग इस व्रत को रखें तो जल्द ही योग्य संतान की प्राप्ति होती है। भगवान परशुराम की पूजा करने से विष्णु भगवान की भी कृपा जातक के ऊपर बनी रहती है।
परशुराम महदेव गुफा मंदिर
मातृकुण्डिया से कुछ मील की दूरी पर ही परशुराम महादेव मंदिर स्थित है। मान्यता है कि इसका निर्माण स्वयं भगवान परशुराम ने पहाड़ी काटकर किया था। इस पहाड़ी को उन्होंने भगवान शिव से प्राप्त फरसे से काटा था। परशुराम महादेव गुफा को मेवाड़ का अमरनाथ भी कहा जाता हैं।
मातृकुण्डिया
राजस्थान के चितौड़ जिले में स्तिथ है मातृकुण्डिया। यही वह जगह है जहां भगवान परशुराम अपनी मां की हत्या के पाप से मुक्त हुए थे। यहां पर उन्होंने शिव जी की तपस्या की थी और फिर शिवजी के कहे अनुसार मातृकुण्डिया के जल में स्नान करने से उनका पाप धुल गया था। इस जगह को मेवाड़ का हरिद्वार भी कहा जाता है। यह स्थान महर्षि जमदग्निनी की तपोभूमि से लगभग 80 किलो मीटर दूर स्थित है।
कथा
सनातन शास्त्र के अनुसार, चिरकाल में महिष्मती नगर में क्षत्रिय नरेश सहस्त्रबाहु का शासन था। राजा सहस्त्रबाहु क्रूर और निर्दयी था। उसके अत्याचार से प्रजा में त्राहिमाम मच गया। लोग अपने राजा से निराश और हताश थे। उस समय माता पृथ्वी, जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास गईं। माता पृथ्वी के आने का औचित्य श्रीहरि को पूर्व से ज्ञात था। इसके लिए माता पृथ्वी को आश्वासन दिया कि आने वाले समय में सहस्त्रबाहु के अत्याचार का अंत अवश्य होगा। जब-जब किसी अधर्मी द्वारा धर्म पतन करने की कोशिश की जाती है। उस समय धर्म स्थापना के लिए मैं जरूर अवतरित होता हूं। आगे उन्होंने कहा -हे देवी! मैं महर्षि जमदग्नि के घर पुत्र रूप में अवतार लेकर सहस्त्रबाहु का वध करूंगा। आगे चलकर वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया को जगत के पालनहार विष्णु जी, परशुराम रूप में अवतरित हुए। कालांतर में परशुराम भगवान ने क्षत्रिय नरेश सहस्त्रबाहु का वध कर पृथ्वी वासियों को सहस्त्रबाहु के अत्याचार, भय और आतंक से मुक्त किया। उस समय भगवान परशुराम के क्रोध को महर्षि ऋचीक ने शांत किया था।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार माने गए हैं। भगवान परशुराम कलयुग में मौजूद आठ चिरंजीवी में से एक हैं जो आज भी धरती पर मौजूद हैं।
-भगवान परशुराम का स्वभाव क्रोधी था इस कारण सभी देव और दानव इनसे भयभीत रहा करते थे। भगवान परशुराम के क्रोध का सामना भगवान गणेश ने भी किया था। जब भगवान परशुराम कैलाश पर भगवान शिव से मिलने जा रहे थे तब श्रीगणेश ने उन्हें मिलने से रोक दिया था, जिससे क्रोथ में आकर परशुराम जी ने गणेशजी का एक दांत तोड़ डाला था। तभी से भगवान गणेश का एक नाम एकदंत पड़ा।
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