हिमाचल प्रदेश के चिंतपूर्णी मंदिर में सावन मास में सावन मेले का आयोजन किया जाता है। सावन मेला 17 अगस्त से शुरू होकर 25 अगस्त तक मेला चलेगा। अष्टमी तिथि का दिन विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है।
न्नमस्तिका मेला श्रावण माह के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को शुरू होता है – पारंपरिक हिंदू कैलेंडर के अनुसार चंद्रमा के बढ़ते चरण का पहला दिन।उत्तर भारत. 2023 में, छिन्नमस्तिका मेला 17 अगस्त को शुरू होता है। यह मेला हजारों लोगों को आकर्षित करता है।
चिंतपूर्णी मंदिरऊना जिले में सोला सिंघी धार के ऊपर स्थित है।
यह मेला पर्वतीय क्षेत्र में पारंपरिक वस्तुओं के व्यापार के लिए प्रसिद्ध है।
यह व्यापक रूप से माना जाता है कि देवी शक्ति के प्रबल भक्त पंडित माई दास को छिन्नमस्तिका देवी ने सपने में वर्तमान मंदिर के आसपास दर्शन दिए थे। उसने उससे अपनी पिंडी ढूंढने को कहा जो पास में ही स्थित थी और उसने एक तालाब के बारे में भी जानकारी दी।
वर्तमान मंदिर उस स्थान पर स्थित है जहां पंडित माई दास ने पिंडी की खोज की थी।
मेला चिंतपूर्णी
प्रत्येक वर्ष नवरात्रि के दौरान माता चिंतपूर्णी मंदिर में माँ दुर्गा के भक्तों के लिए यह भव्य उत्सव और सबसे पवित्र समय होता है। नवरात्रि का त्योहार मां दुर्गा को समर्पित है और नौ दिनों तक मनाया जाता है। नवरात्रि शब्द का अर्थ ही ‘नौ रातें’ है। नवरात्रि का प्रत्येक दिन माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों में से एक को समर्पित है, सभी नौ स्वरूपों को मिलाकर नवदुर्गा कहा जाता है। प्रत्येक वर्ष चेत (मार्च-अप्रैल), सावन (जुलाई-अगस्त) और आश्विन (अक्टूबर-नवंबर) महीनों में नवरात्रि मनाई जाती है।
सबसे पूजनीय माता चिंतपूर्णी मेला (मेला) सावन नवरात्रि के दौरान दस दिनों के लिए आयोजित किया जाता है। यह प्रत्येक वर्ष जुलाई और अगस्त के बीच आता है। मंदिर में नवरात्रि के दिनों में बहुत उत्सव मनाया जाता है। इन विशेष दिनों के दौरान दूर-दूर से भक्त मां चिंतपूर्णी का आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर में आते हैं। मेला पूरे नौ दिनों तक दिन-रात चलता रहता है लेकिन इसके आठवें दिन जिसे अष्टमी कहा जाता है, भक्तों की उपस्थिति सबसे अधिक होती है। श्रद्धालु निजी वाहनों, सार्वजनिक परिवहन बसों या पैदल भी आते हैं।
माँ के भक्त, व्यक्तिगत रूप से या समूह के रूप में, मंदिर तक पहुँचने वाली पूरी सड़क पर लंगर (मुफ़्त भोजन सेवा) लगाते हैं। सड़क से गुजरने वाले सभी लोगों को लंगर निःशुल्क वितरित किया जाता है। वितरण के लिए सभी प्रकार की खाद्य सामग्री, चावल, सब्जियाँ, मिठाई, पानी आदि का उपयोग किया जाता है। यह उत्सव के सभी नौ दिनों तक जारी रहता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में आकर यात्रा का आनंद लेते हैं और मां चिंतपूर्णी जी के गुणगान करते हैं। चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए रास्ते में मेडिकल स्टॉल भी लगाए गए हैं।
चिन्तपुरनी मेला कब है?
17 AUGUST – 25 AUGUST
सावन मेला 17 अगस्त से शुरू होकर 25 अगस्त तक मेला चलेगा। अष्टमी तिथि का दिन विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। माता चिंतपूर्णी के मेले को स्थानीय लोग माता दा मेला या फिर देवी का मेला भी बुलाते हैं ।
चिंतपूर्णी मेला क्यों मनाया जाता है?
चिंतपूर्णी में माता सती के चरण गिरे थे। माता चिंतपूर्णी को छिन्नमस्तिका भी कहा जाता है। माना जाता है कि माता के भक्त की जो भी चिंता होती है वह माता के दरबार आने पर दूर हो जाती है इसलिए माता के धाम को चिंतपूर्णी धाम कहा जाता है
देवी की उत्पत्ति की कथा
दूर्गा सप्तशती और देवी महात्यमय के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच में सौ वर्षों तक युद्ध चला था जिसमें असुरो की विजय हुई। असुरो का राजा महिसासुर स्वर्ग का राजा बन गया और देवता सामान्य मनुष्यों कि भांति धरती पर विचरन करने लगे। देवताओं के ऊपर असुरों द्वारा बहुत अत्याचार किया गया। देवताओं ने इस विषय पर आपस में विचार किया और इस कष्ट के निवारण के लिए वह भगवान विष्णु के पास गये। भगवान विष्णु ने उन्हें देवी की आराधना करने को कहा। तब देवताओं ने उनसे पूछा कि वो कौन देवी हैं जो हमारे कष्टो का निवारण करेंगी। इसी योजना के फलस्वरूप त्रिदेवो ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के अंदर से एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ जो देखते ही देखते एक स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गया।
इस देवी को सभी देवी-देवताओं ने कुछ न कुछ भेट स्वरूप प्रदान किया। भगवान शंकर ने सिंह, भगवान विष्णु ने कमल, इंद्र ने घंटा, समुंद्र ने कभी न मैली होने वाली माला प्रदान की। इसके बाद सभी देवताओं ने देवी की आराधना की ताकि देवी प्रसन्न हो और उनके कष्टो का निवारण हो सके। और हुआ भी ऐसा ही। देवी ने प्रसन्न होकर देवताओं को वरदान दे दिया और कहा मैं तुम्हारी रक्षा अवश्य करूंगी। इसी के फलस्वरूप देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध प्रारंभ कर दिया। जिसमें देवी की विजय हुई और तभी से देवी का नाम महिषासुर मर्दनी पड़ गया।
पौराणिक कथा
चिंतपूर्णी मंदिर शक्ति पीठ मंदिरों में से एक है। पूरे भारतवर्ष में कुल 51 शक्तिपीठ है। इन सभी की उत्पत्ती कथा एक ही है। यह सभी मंदिर शिव और शक्ति से जुड़े हुऐ है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इन सभी स्थलो पर देवी के अंग गिर थे। शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमे उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया क्योंकि वह शिव को अपने बराबर का नहीं समझते थे। यह बात सती को काफी बुरी लगी। वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गयीं। जहां शिव का काफी अपमान किया गया। इसे सती सहन न कर सकी और वह हवन कुण्ड में कुद गयी। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे।
जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर के अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बांट दिया। जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। कोलकाता में केश गिरने के कारण महाकाली, नगरकोट में स्तनों का कुछ भाग गिरने से बृजेश्वरी, ज्वालामुखी में जीह्वा गिरने से ज्वाला देवी, हरियाणा के पंचकुला के पास मस्तिष्क का अग्रिम भाग गिरने के कारण मनसा देवी, कुरुक्षेत्र में टखना गिरने के कारण भद्रकाली, सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने के कारण शाकम्भरी देवी, कराची के पास ब्रह्मरंध्र गिरने से माता हिंगलाज भवानी, आसाम में कोख गिरने से कामाख्या देवी,नयन गिरने से नैना देवी आदि शक्तिपीठ बन गये। मान्यता है कि चिंतपूर्णी में माता सती के चरण गिरे थे। इन्हें छिनमस्तिका देवी भी कहा जाता है। चिंतपूर्णी देवी मंदिर के चारो और भगवान शंकर के मंदिर है।
मंदिर से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें – Facts of Chintpurni Temple
‘छिन्नमस्तिका धाम’ की दिलचस्प बात यह है कि भगवान शिव ने मंदिर को चारों तरफ से सुरक्षित किया हुआ है। पूर्व में कालेश्वर महादेव मंदिर, पश्चिम में नारायण महादेव मंदिर, उत्तर में मककंद महादेव मंदिर और दक्षिण में शिव बारी मंदिर स्थित हैं। नवरात्रि के दौरान, मंदिर में एक बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है, जिसमें दुनिया भर से सभी भक्त देवी से आशीर्वाद लेने के लिए इस जगह पर आते हैं।
चिंतपूर्णी मंदिर प्रसिद्ध शक्तिपीठ
चिंतपूर्णी धाम शक्तिपीठ है जहां पर मां सती के चरण गिरे थे।
जब प्रजापति दक्ष ने यज्ञ करवाया तो उन्होंने सभी देवी देवताओं को निमंत्रित दिया लेकिन भगवान शिव से बैर के कारण उनको नहीं बुलाया।
माता सती को जब पता चला कि उनके पिता यज्ञ कर रहे हैं तो वह बिना बुलाए ही यज्ञ में चली गई। वहां यज्ञ में भगवान शिव का भाग ना देखकर , भगवान शिव का यह अपमान सह ना सकी और हवन कुंड में कूद गई।
भगवान शिव को जब माता सती के देह त्याग का पता चला तो वहां पहुंच कर सती के शरीर को बाहर निकाल कर तांडव करने लगे तो सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 हिस्सों में बांट दिया।
यहां यहां माता सती के शरीर के भाग गिरे माता चिंतपूर्णी को छिन्नमस्तिका भी कहा जाता है। माना जाता है कि माता के भक्त की जो भी चिंता होती है वह माता के दरबार आने पर दूर हो जाती है |वहां शक्तिपीठ बन गई। चिंतपूर्णी में माता सती के चरण गिरे थे।
नवरात्रों में माता चिंतपुर्णी में कराएं दुर्गा सप्तशती का पाठ मां हरेंगी हर चिंता
मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर के स्थापना की एक कथा बहुत ही प्रचलित है। एक बार भरत माई दास नाम का माँ का भक्त जो की माँ की भक्ति में अपना सम्पूर्ण दिनचर्या व्यतीत करता था। एक बार जब वह कहीं यात्रा कर रहा था उस समय वह रास्ते में एक पेड़ के नीचे थककर सो गया। अपने स्वप्न में उसने एक छोटी कन्या का स्वरुप देखा जो की उससे कह रही थी की वह यहीं रुक कर उसकी पूजा अर्चना करे। यह स्वप्न देखकर भरत चौंककर उठ गया और उसने वही माँ का मंदिर बनाने का निश्चय किया। कुछ इस तरह हुई इस मंदिर की स्थापना।
नवरात्रि के समय मंदिर को भव्य रूप से सजाया जाता है जिसका दृश्य भक्तों के मन को मोह लेता है। प्रतिदिन रात्रि में यहां माता के भजन और जागरण किये जाते हैं। इस अवसर पर मेले का भी आयोजन किया जाता है। इस समय यहां आने वाले भक्तों की संख्या में भी बहुत वृद्धि हो जाती है। कहते हैं की माँ की भक्ति में इतनी शक्ति है की वह अपने भक्तों की बड़ी से बड़ी कठिनाइयां भी दूर कर देती हैं। यहां दर्शन मात्र से ही भक्त चिंतामुक्त हो जाते हैं।